प्रेत संतति
💀प्रेत संतति 💀 ये वाकया आज से 5, 6 दशक पुराना है। घने और काले बादलों ने गाँव को अपने आगोश में ले लिया था। शाम के समय ही ऎसा प्रतीत हो रहा था कि मानो रात के काले शाये ने दस्तक दे दी हो। बरसात भी प्रारंभ हो चुकी थी। कड़कती हुई बिजली के प्रकाश में गाँव के बाहर एक टूटी हुई झोपड़ी कभी कभी दृष्टि गोचर हो रही थी। झोपड़ी में एक कोने में एक बुढ़िया अपनी जर्जर हो चुकी चारपाई पर अपने पेरों को हाथों में जकड़े हुई छत से आ रहे टपके खुद को भीगने से बचा रही थी। वो बरसात के थमने का इंतजार कर रही थी। दरअसल वो बुढ़िया उस गाँव में दाई (ऎसी औरत जो तत्कालीन समय में आधुनिक युग जैसी चिकित्सक सुविधाओं के अभाव में गर्भवती महिलाओं को चिकित्सीय सुविधा देती थी) का काम करके खुद का गुजारा करती थी। वो 75-80 उम्र की रही होगी ये उसकी कपकपाते हुए शरीर से जाहिर होता है। उसके पास ही एक लालटेन की रोशनी उसके घर का टूटा हुआ दरवाजा दिख रहा था। बिजली की चमक और गड़ गङाहट माहौल को असामान्य बना रहे थे। इस तूफानी रात में केवल वही बुढ़िया जाग रही थी वो भी अपने घर