पुराने बरगद की चुड़ैल - Hindi horror story 2022

                   पुराने बरगद की चुड़ैल......


Writer ✍🏻 Mr. Sonu Samadhiya Rasik
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गिरीश आज 20 वर्ष बाद अपने गाँव में स्थित अपनी पुश्तैनी हवेली में बापस आया था। 
वो अपने बच्चों की ज़िद पर यहां समर वेकेशन पर आया था। 
कार उसकी हवेली के सामने आकार रुक गई तो उसमें से गिरीश की पत्नी स्टैलीना जो कनाडा की थी उसके तीन बच्चे और उसका गहरा मित्र सुरेश निकले।
उन्हे देखकर शंभू जो गिरीश का शाही नौकर था, जो कई वर्षों से वीरान पड़ी हवेली की हिफाजत कर रहा था।
उसके पूर्वज भी यही अपनी सेवा देते थे।


शंभू दौड़ता हुआ आया।और सामान उठाकर चल दिया। 
"सुरेश! ये हैं शंभू काका जो हमारी गैरमौजूदगी में हमारी हवेली की देखरेख करतें है।" 
"ह्म्म्म।" 
गिरीश के बच्चे भी शंभू के साथ उछलते हुए हवेली की ओर बढ़ गए। 
स्टैलीना सामने वीरान और शाही ठाठ से खड़ी हवेली को देखे जा रही थी। 
सुरेश और गिरीश अपने जॉब के सिलसिले में बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
हवेली में जो चमक और खूबसूरती 20 साल पहले थी., वो खो चुकी थी उसकी जगह उस पर उगी घास और हरी शैवाल ने ले ली थी। 
जो उसके जर्जर हो चुकी स्थिति से अवगत करा रही थी। 


जैसे ही गिरीश मैन गेट से अंदर घुसने वाला ही था कि उसकी नजर सामने खड़े पुराने बरगद के पेड़ पर पढ़ी तो एकाएक उसके पैर वही ठिठक गए। 
उसकी बातें रुक चुकी थी उसके चेहरे पर गंभीर रेखाएं उभर आई थी 
वह थोड़ा रुका और उस बरगद के पेड़ की और अपना धूप का चश्मा उतार कर देखने लगा। 
कुछ पल के लिए गिरीश अपनी बीती यादों के समुद्र में डूब सा गया। 
उसका अतीत की घटनाएँ चलचित्र की भाँति उसकी आँखों के सामने घूमने लगीं। 


"क्या हुआ? कहां खो गए।" - स्टैलीना ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा। 

"क्क्क्हीं नहीं!" 

"तो फिर चलें बच्चे वेट कर रहें होंगे अंदर और रमेश भी।" 

"ओह! हां चलो।" 

जैसे ही गिरीश अंदर गया तो सामने शंभू काका को बच्चों से घिरा हुआ देखकर मुस्कुरा कर कहा - "संभू काका बच्चे बड़े जल्दी आपसे हिलमिल गए हैं।" 


"जी, गिरीश बाबू। मैंने आप सबका सामान सबके कमरे में लगा दिया है और आप सब हाथ पैर धो कर बैठक में आ जाइये। खाना तैयार है।" 

"ठीक है।" 

"और हाँ आपने बच्चों को प्लेसमेंट और उस बरगद के पास जाने से मना कर दिया है न।"


" जी! बाबू।"

शाम का समय हो चुका था सब डायनिंग टेबल पर बैठे हुए खाना खा रहे थे। 


" शंभू काका! आपको कोई दिक्कत तो नहीं होती न अकेले इतना सारा काम करते हो कोई और रख लो साथ मे हेल्प के लिए। "-गिरीश ने खाना खाते हुए कहा। 


" साहब कोई भी तैयार नहीं है इस हवेली में काम करने के लिए।" 

"क्युं क्या हुआ?" 

"पता नहीं दिन भर काम करते हैं और रात को ही भाग जाते हैं, कहतें हैं कि उन्हें किसी औरत के रोने की आवाज सुनाई देती है सामने वाले बरगद के पेड़ से।"


" क्या बकवास है और आप भी ऎसी बातें करते हो। देखिए, इन बच्चों को कितने डर गए हैं आपकी फालतू बातों से।"


वास्तव में सब बच्चे डर चुके थे वो खाना को छोड़कर संभू काका का मुँह ताक़ रहे थे। 


" माफ़ी चाहूँगा बाबू, जैसा उन्होने कहा बैसा मैंने बोल दिया।"


रमेश और स्टैलीना दोनों की बातें सुनकर मुस्कुरा रहे थे।
और फिर सब खाना से निपट कर बाहर आ गए। 
सूरज ढल जाने के बाद मौसम सुहाना हो गया था। 


ठंडी हवा बह रही थी साथ में हवेली के बगीचे में फुलवारी से फूलों की मंद मंद खूशबू सबको मंत्रमुग्ध कर रही थी। 
जो शहरों की दूषित वायु में कहा थी। सभी लोग सुकून महसूस कर रहे थे। 


" डैडी!"-गिरीश के सबसे बड़े लड़के ने हाथ पकड़ते हुए कहा। 


"हां! बेटा बोलो क्या बात है?" 

"पापा उस पेड़ पर भूत रहता है?" - पीयूष ने उस बरगद के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा। 


"नहीं, बेटा वहां कोई नहीं रहता।" 


"पर संभू काका तो बोल रहे थे कि वहां चुड़ैल रहती है।"


" अरे ! वो तो आप सबको डराने के लिए कह रहे थे वहां चुड़ैल नहीं जंगली जानवर रहते हैं। आपने देखा! यहां पास मे जंगल है और कोई गाँव या हॉस्पिटल नहीं है।"


दरअसल उस हवेली के आसपास कोई घर नहीं था बस जंगल के सिवाय।

रात हो चुकी थी। संभू काका ने सभी गेट सावधानी पूर्वक लगा दिए और प्रकाश के लिए मॉमबत्तियाँ जला दी। सब रात का खाना खाने के बाद अपने अपने कमरे में चले गए।
सभी आराम से सो रहे थे।

रात के तकरीबन दो बजे गिरीश के कानों में एक अजीब सी आवाज ने उसकी आँख खोल दी।
गिरीश ने पलट कर देखा तो स्टैलीना सो रही थी। गिरीश उठ कर बैठ गया उसे महसूस हुआ। कि हवेली के बगीचे में कोई है।


     उसने अपने रूम की खिड़की को खोलकर देखा तो पाया कि बगीचे में कोई भी नहीं है। किसी के चलने की आहट उसका भ्रम नहीं हो सकती क्योंकि ऎसा उसके साथ पहली दफा हुआ था, ऎसा सोचते हुए गिरीश अपने बेड की ओर जैसे ही मुड़ा तभी किसी के चीखने की आवाज़ उसके कानों को चीरती हुई चली गई।


      पहले तो वह बहुत डर गया, लेकिन उसने हिम्मत करके खिड़की के बाहर देखा तो सामने खड़ा बरगद का पेड़ उसे हिलता हुआ प्रतीत होता है और फिर उसे वहाँ से किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। जो बेहद खौफनाक थी गिरीश का सारा बदन हिल गया और दिमाग सुन्न हो गया था।


     वह उस आवाज को तुरंत पहचान गया उस आवाज में दर्द और दहशत उसे साफ़ साफ़ महसूस हो रही थी।
वह गुमसुम सा अपने बेड पर आ गया। उसे डर भी था कही ये आवाजें उसके लिए मौत का सबब न बन जाए।
इन्ही से तो दूर उसे कनाडा जाना पड़ा था।

और...... 
      
        इसी तरह उसकी करवटें बदलते हुए रात कट गई।
सुबह जब उसने आँखे खोली तो सामने स्टैलीना काफ़ी लिए खड़ी मुस्कुरा रही थी। गिरीश ने एक अंगड़ाई ली और काफी को टेबल पर रख कर खिड़की से झाँका तो बरगद का पेड़ रात को जितना भयानक लग रहा था उतना ही अच्छा सुबह दिख रहा था।
उसने बगीचे की ओर देखा तो उसके सारे बच्चे रमेश अंकल के साथ खेल रहे थे और पास ही में संभू काका खड़े थे।


गिरीश के दिमाग में रात वाली घटना घूम रही थी वह परेशान था! कि कही रात वाली घटना का उसके अतीत से कोई संबंध न हो।

  अगर ऎसा हुआ तो वो अपनी और अपने परिवार की जान जोखिम में नहीं डाल सकता वह कल ही इस हवेली को छोड़कर वापस कनाडा चला जाएगा, ऎसा निश्चय करके वह कॉफी पीने लगा।
रमेश एक फ़ोटोग्राफ़र है, उसे नेचर की फोटोग्राफी करने का बहुत शौक है।


"शंभू काका! प्लीज आप इन बच्चों को यही खिलायीए तब तक मैं एक दो शॉट लेकर आता हूँ।"

"जी, साहब।"


रमेश वहां के मनोरम दृश्य में ऎसा खो गया कि उसे ये नहीं पता चला कि वह कब फोटो खींचते खींचते उस पुराने बरगद के पेड़ के नीचे पहुंच गया उसे वह बहुत अच्छा लगा तो उसने उस पेड़ की भी फोटो लेने के लिए जैसे ही कैमरा रोल किया तो उसकी चीख निकल पढ़ी उसने कैमरा झटके से फेंक दिया जैसे उसमे बिजली दौड़ गयी हो।
उसने डरते डरते ख़ुद पर काबू पाया और हिम्मत करके कैमरा उठाया उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कैमरा जो दिखा रहा है। वो वास्तव में है ही नहीं बरगद पर कुछ भी नहीं है।
उसने फिर से कैमरे में देखा तो उसके पसीने छूट गए।
सामने बरगद पर एक खौफनाक चेहरे वाली औरत दिख रही है जिसके हाथ और चेहरे साथ साथ पूरे शरीर से खून रिस रहा है और उसके लंबे लंबे नाखूनों वाले हाथ बंधे हुए हैं।

जो लगातार उसे घूरे जा रही थी।

"मुझे आजाद कर दो, मेरे बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे हैं......" - उस औरत के भयानक चेहरे से आवाज आई।
रमेश पागल सा गिरता भागता हुआ। संभू काका के पास पहुंचा उसकी हालत गंभीर हो चुकी थी।
उसकी हालत देखकर गिरीश, स्टैलीना और बच्चे सब डर गए थे। 

"संभू काका आप सारा सामान बापस कार में रखिये, हम वापस जा रहे हैं।” - रमेश ने हङबङाते हुए कहा। 

“क्या हुआ साहब?” 

“कुछ दिन हम अपने ग्वालियर वाले घर में रहेंगे और फिर कनाडा जाएंगे हमे यहा नहीं रुकना मुझे तो कुछ गलत होने की आशंका लग रही है कही वो वापस न आ जाए।" - गिरीश ने घबराते हुए कहा। 


"स्टैलीना! रूबी तुम्हारे पास है क्या?, चलो हमे ग्वालियर के लिए अभी निकलना है।"


" नहीं! मेरे पास नहीं है रूबी।"


" क्या?"


" सब यही खड़े हैं तो रूबी कहा है। रमेश संभू काका उसे बुलाकर लाओ कहना हमे अभी निकलना है, देखना कही वो उस पुराने बरगद के पेड़ के पास तो नहीं है।"


" जी।"


वास्तव में रूबी, जो गिरीश की बड़ी लड़की थी। वह खेलते खेलते बरगद के पेड़ के नीचे पहुंच चुकी थी। 
वह अपने खेल में मग्न थी कि तभी एक हल्की आवाज ने उसको अपनी ओर आकर्षित किया। 

" रबईईई.... बेटा।"


रूबी ने पीछे मुड़कर देखा तो वहां एक औरत खड़ी थी जो कि बरगद के पेड़ से चिपकी खड़ी थी। 

"आप कौन हैं अंटी?” 

"मेरे पास आओ... मैं तुमको ढेर सारे खिलौने और मिठाइयाँ दूँगी तुम्हारी पसंद की।" 


"आप ही आओ न आंटी, वहां क्यूँ खड़ी हो, यहाँ आओ।" 


"नहीं बेटा मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकती क्योंकि मेरे हाथ बंधे हुए हैं देखो।" - उस औरत ने रूबी को अपने हाथों को दिखाते हुए कहा। 


" ओह। माय गॉड! किसने किया ऎसा आपके हाथों से खून निकल रहा है।"


इतना कहते हुए रूबी उस औरत के पास पहुच गई।

" ये सब मेरे पति ने किया है, वो मेरे हाथ बाँध गए हैं। क्या तुम मेरे हाथ खोल दोगी।” 

" हाँ! क्यूँ नहीं ये लीजिए। अभी खोल देती हूँ। आपके पति तो बहुत गंदे हैं!" 



तभी पीछे से रमेश और संभू काका की आवाज सुनाई दी जो रूबी को बुला रहे थे। 


" मुझे रमेश अंकल बुला रहे हैं। अब मुझे जाना होगा।" 


"बुलाने दो तुम मेरे हाथ खोल दो न, मेरे बहुत दर्द हो रहा है। हाथ खोलने के बाद तुम चली जाना।"


" ओके।"


तभी रूबी के पास आकर संभू काका ने कहा -" यहाँ क्या कर रही हो? आपको वहां सब ढूँढ रहे हैं, यहां आने के लिए मना किया था न आपसे। फिर भी चली आई।"


" वो अंटी ने मना किया था न बोलने को.......।” 


      इतना कहकर जैसे ही रूबी पीछे मुड़ी तो देखा कि वहां कोई भी नहीं है सिवाय उसके हाथ में कलावा के जिससे उस औरत के हाथ बंधे हुए थे। 
" कौन अंटी कैसी अंटी कोई नहीं है यहां और ये कलावा तुम्हारे पास कैसे आया? "_संभू काका ने परेसान होते हुए कहा। 

" हां! ये कलावा उन्ही के हाथ में था। जिससे वो बंधी हुई थी और खून भी निकल रहा था, पता नहीं कहा चली गई।"

" क्या??? सब अनर्थ कर दिया तुमने। भागो यहाँ से।"


संभू काका रूबी का हाथ पकड़कर हवेली की ओर दौड़ पड़े। 

उस बरगद पर बैठी वही औरत की आँखें अंगारों की तरह लाल और चेहरे पर रहस्यमयी हँसी थी, जो सामने दूर हवेली की तरफ भाग रहे लोगों पर थी। 


" गिरीश बाबू। अनर्थ हो गया!" 

" क्यूँ क्या हुआ? "

" आपकी बेटी ने उस पुराने वाले बरगद की चुड़ैल को आजाद कर दिया।" 


"क्या?" 


"कौन बरगद वाली चुड़ैल??" - स्टैलीना ने कहा। 


"पहले तुम जल्दी से निकलो और कार में बैठो सब पता चल जाएगा तुमको ओके,रमेश यार चल न जल्दी से कार में बैठ। "-गिरीश ने हड़बढाते हुए कहा। 


"ओके, लेट्स गो। "


सब दौड़कर कार के पास पहुंचे तो दंग रह गए क्यों कि कार के चारों टायर पंचर हो गए थे जो कुछ देर पहले सही थे। 
सबका डर से बुरा हाल हो गया था। 


  अचानक हवेली के अंदर से संभू काका की चीख सुनाई दी। सब दौड़कर उनके पास पहुंचे तो देखा कि वह जमीन पर पड़े तड़प रहे हैं और कुछ कहने की कोशिश कर रहे हैं।  गिरीश भागकर उनके पास पहुँचा. और उनसे बात करने की कोशिश करने लगा। 
संभू काका के चेहरे पर नाखूनों के चीरने के निशान बने हुए थे जिनसे ढेर सारा खून बह रहा था। 
जो बहुत भयंकर था। 

उससे भी भयंकर संभू काका द्वारा गिरीश को बतायी गयी बात थी जिसने गिरीश को एक खौफनाक मौड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था। 


"तुम्हारी बेटी ने उसे गलती से आजाद कर दिया है और वह वापस लौट आई अपना बदला लेने के लिए। अब वह अपने द्वारा कही गई हर बात को सही करेगी। वह अभी भी यही कही पास ही में है।" - इतना कहकर संभू ने दम तोड़ दिया। 

सभी इस हादसे को देखकर बहुत डर गए। 

गिरीश अपने सर को पकड़ कर बैठ गया था क्योंकि अब वह अपनी फ़ैमिली के साथ उस हवेली में फंस चुका था।
उसने सभी को उस हवेली में बंद कर लिया और सुबह होने का इंतजार करने लगा। 
गिरीश ने सभी को साथ में लेकर एक कमरे में बंद कर लिया।


रात में उस वीरान हवेली में पड़ी एक इंसानी लाश से माहौल बेहद डरावना हो चुका था। सब डरे हुए थे, स्टैलीना अपने बच्चों को खुद से चिपकाय हुए डरी और असमंजस में थी उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या और क्यूँ हो रहा है।रमेश और गिरीश घबराए हुए थे। 


  तभी उन्हे बाहर से दरवाजा टूटने की आवाज सुनाई दी। गिरीश ने कमरे की खिड़की से बाहर देखा तो हवेली का मैन गेट को तोड़ कर खोला गया था। 
जो किसी आम इंसान के बस में नहीं था। उसने देखा कि गेट से एक लहूलुहान औरत अपने पैर घसीटते हुए संभू की लाश की ओर बढ़ रही थी। 


वो औरत कोई और नहीं पुराने बरगद की चुड़ैल थी। 
उसने संभू का एक हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए बाहर ले गई। लाश के खून से जमीन पर घसीटने के निशान बन गए थे। 
गिरीश ऎसा खौफनाक दृश्य देख कर डर से बेहाल हो गया था। 
चुड़ैल के जाने के बाद एक जोरदार हवा का झोंका आया और बैठक में रखी सारी मॉमबत्तियाँ बुझ गई। एक डरावनी हंसी पूरी हवेली में गूंज उठी।

जो उस चुड़ैल की मौजूदगी का अंदेशा दे रही थी। 
रमेश और गिरीश बुरी तरह से कांप गए और भागकर बेड पर सभी बैठ गए। 


लेकिन कुछ ही देर बाद.... 


     उसी कमरे में रखी अलमारी से कोई काँच की वस्तु नीचे गिर कर टूट गई। बच्चों की चीख निकल पड़ी और रमेश, गिरीश भी कांप गए। सभी डर कर भगवान का नाम लेने लगे। उधर अंधेरे में अलमारी का डोर खुलने की आवाज़ सुनाई दी तो रमेश ने अपने फोन की फ्लैश ऑन कर दी। फ्लैश लाइट में सबको जो भी दिखा वो बेहद खौफनाक और डरा देने वाला था। 


अलमारी के निचले हिस्से से वही चुड़ैल का सर निकल रहा था फिर हाथ और फिर पिछला हिस्सा वह रेंगती हुए उन सबकी तरफ बढ़ने लगी। चुड़ैल खून जैसी लाल और खून से लथपथ भयानक चेहरा गिरीश को गुस्से से घूरे जा रहा था। 
बच्चों और स्टैलीना का डर से चिल्ला चिल्ला कर बुरा हाल था। सारा कमरा चीखों से गूंज रहा था, लेकिन वह चुड़ैल लगातार रेंगती हुई उन की ओर बढ़ रही थी। 
उनकी ओर बढ़ रही चुड़ैल रुक जाती है। उसके चेहरे पर गुस्सा की जगह डर था किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि तभी रमेश ने अपना फोन अपनी ओर मोड़ कर देखा तो उसे याद आया कि उसने अपने फोन की वॉल पर हनुमानजी की तस्वीर लगाई है जिससे वो चुड़ैल आगे की ओर नहीं बढ़ पा रही थी। 


रमेश ने हिम्मत करके बेड से उतर कर उस उस चुड़ैल को लगातार हनुमान जी की तस्वीर दिखाने लगा जिससे वह चुड़ैल घबराकर गायब हो गई। 


"मैं फिर आऊँगी, कोई नहीं जा पाएगा यहां से... हा हा हा हा हा...।" - चुड़ैल सबको चेतावनी देते हुए वहां से चली गई। 


सब शांत और भगवान का धन्यवाद दे रहे थे। पूरी हवेली मौन सागर में विलीन थी। रमेश और गिरीश हवेली से निकलने का उपाय खोजने लगे उन्होने फोन में देखा तो 3:28 बज रहे थे। 

तभी उनका ध्यान फोन की बैट्री पर जाता है जिसमे केवल 1%बचा था। दोनों के मुँह आश्चर्य से खुले रह गए क्यों कि फोन कभी भी बंद हो सकता था। 


"गिरीश, तेरा फोन कहाँ हैं?" - रमेश ने घबराते हुए कहा। 

"मेरा फ़ोन तो शायद बैठक में है टेबल पर। तेरा पावर बैंक कहा रखा है उससे चार्ज कर ले न यार जल्दी से फोन ऑफ नहीं होना चाहिए।" 


"ओह, मैं उसे कार में ही छोड़ आया।" 

"क्या?"
 
"हाँ!" 

"अब क्या होगा अब हम एसी हालत में बाहर नहीं जा सकते हैं और न ही फोन ऑफ होना चाहिए।"


" अगर जिंदा रहना है तो बाहर तो जाना पड़ेगा।"


" कैसे?"


" भगवान करे फोन बंद न हो तो हम तेरा फोन या अपना पावर बैंक उठा कर लाएंगे और इस तरह से रात भी कट जाएगी, सुबह होते ही हम कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेंगे।"


" हां, सही कहा तुमने चलो जल्दी...!"


    जैसे ही दोनों बाहर जाने के लिए कमरे के दरवाजे की तरफ बड़े तो फ़ोन वाइब्रेट के साथ बंद हो गया। 
सभी कांप उठे। बच्चों ने डर से रोना शुरू कर दिया। 
रमेश और गिरीश भी डर से दबे पाँव बेड पर पहुंच गया। 

अब हवेली में फिर से सन्नाटा पसरा हुआ था। 
कुछ देर बाद हवेली के मैन हॉल में कुछ हलचल हुई। 
सभी पसीने में सराबोर थे। पाँव की आहट मैन हॉल से उनके कमरे तक आकर रुक गई। 
सभी का डर से बुरा हाल हो रहा था, सब भगवान को याद कर रहे थे। 

तभी उन सबका बेड ज़ोर से हवा में उठा और तेज आवाज से नीचे गिर पड़ा। सभी चीख कर कमरे में बिखर गए और ख़ुद को छिपाने लगे। सारे कमरे में भयंकर आवाजें गूंजने लगी। और इन्ही आवाजों में... 


"पापा.... मुझे बचा लो....?, कोई मुझे खिंच रहा है.. आहः‍हह.. बचाओ..." 


ये आवाज रूबी की थी, उसे वास्तव में उस चुड़ैल के शिकंजे में थी। 
उस कमरे का गेट जो अंदर से लॉक था वह एक जोरदार आवाज के साथ खुला और रूबी रोती और चीखती हुई, घिसटते हुए निकल गई। उसके बाल उस चुड़ैल के हाथ में थे मगर अंधेरे के कारण उसे कोई देख नहीं पाया। 
" रूबी बेटा कहा हो तुम....!" 


गिरीश रमेश दौड़कर जैसे ही कमरे से बाहर निकल कर हवेली के गेट पर पहुंचे तो सिड़ी से फिसल कर गिर गया और उसके हाथ किसी फ़ुटबॉल जैसी चीज़ पर पड़ गया। 

 उसे टटोलकर देखा तो पाया कि वह किसी तरल पदार्थ में भीगी हुई है, तभी उसका हाथ उसके बालों पर पढ़ा तो उसकी चीख निकल पढ़ी वह वस्तु फूटबाल नहीं संभू का सर था। उसके बाल छोटे थे। वह भागता हुआ रमेश के साथ उसी कमरे में पहुच गया। 


जहाँ उसने देखा कि स्टैलीना बेहोश हो चुकी थी। 
गिरीश भी घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा। रमेश ने सब बच्चों को संभाल लिया। 


"अब कोई नहीं बचेगा हम सब मारे जाएंगे संभू और रूबी की तरह..... रूबी... मेरी बेटी..!" 

सूर्य की किरणों की लालिमा चारों तरफ़ फैल चुकी थी। मौसम रोजाना की तरह खुशनुमा था। मगर गिरीश की फ़ैमिली के लिए काफी बुरा और दहशत भरा हुआ था। 
सभी कमरे से बाहर निकले तो उन्होने देखा कि मैन हॉल में फर्श पर खून बिखरा पड़ा है जो संभू का था। 
सब डरते हुए बाहर पहुचें तो देखा कि संभू के शरीर को बेहरमी से क्षतविक्षित किया गया था। 

ये सब देख कर स्टैलीना और पीयूष को उल्टियां होने लगी। 

सबने कई प्रयास से हालत पर काबू पाने की कोशिश की मगर सबकी हालत गंभीर होती जा रही थी। सभी पागलों की तरह रूबी को ढूंढ रहे थे। 
गिरीश को कुछ याद आया और वह दौड़ता हुआ उस बरगद के पेड़ के पास पहुंचा और उसने वहाँ देखा कि रूबी बेहोश हालत में पड़ी हुई है। 
गिरीश ने दौड़कर उसे गले लगाकर फूट फूट कर रोने लगा। 

रूबी भी होश आने पर अपने पापा के गले लगकर रोने लगी। 

सभी वहाँ पहुच गए और रूबी को सही हालत में देखकर ख़ुश हुए। गिरीश रूबी को उठाकर जैसे ही हवेली की ओर मुड़ा तो उसे रमेश की आवाज सुनाई दी। तो उसने मुड़कर देखा तो पाया कि रमेश बरगद पर लटका हुआ है उसके गले में बरगद की जड़ों से फांसी लगी हुई है और वह छटपटा रहा था। 


गिरीश दौड़कर उसके पास पहुंचा और उसे जरूरी छुटाने की कोशिश करने लगा। 
जैसे ही गिरीश की निगाह बरगद के पेड़ के ऊपर गई तो चीख कर नीचे गिर पड़ा क्यों कि ऊपर वही खौफनाक चेहरे वाली चुड़ैल बैठी बैठी मुस्कुरा रही थी। 
इधर रमेश जिंदगी की लड़ाई मौत से हार गया था। उसकी सारी हलचलें बंद हो चुकी थी। 
गिरीश खड़ा होकर सबको साथ लेकर हवेली की तरफ दौड़ा। 
गिरीश ने सबको कार में बिठा दिया। 


"तुम लोग यही पर बैठना ओके जबतक मैं बापस न आ जाऊँ।" 


"आप कहां जा रहे हैं, आप भी अंदर आ जाइये मैं आपको अकेले कही नहीं जाने दूँगी।"

 
"पापा प्लीज कही मत जाओ।" 


"मुझे कुछ नहीं होगा ओके पहले मेरी बात सुनो कार को अंदर से लॉक कर लो जब तक मैं न कहूँ तब तक कार से बाहर मत निकलना ओके।"


गिरीश हवेली के सामने वाले रास्ते पर दौड़ता हुआ चला गया। स्टैलीना और बच्चे बेहद डरे और सहमे हुए कार में बैठे हुए थे। 
कार में शिव जी की मूर्ति थी जिससे चुड़ैल का उसमें प्रवेश कर पाना मुश्किल था। 


कुछ मिनिटों बाद ज़ोर की हवा चली और कुछ देर बाद रुक गई धूल की वजह से कार में से कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। हवा धीमी हुई तो कार के विंडो ग्लास पर स्क्रैच के निशान थे जैसे किसी नुकीली चीज़ से खरोंचें गए हो उस निशानों में खून भी लगा हुआ था जिससे जाहिर होता था कि चुड़ैल उनके पास में ही है।

 
     तभी कार की छत से किसी के रेंगने की आवाज आई और देखते ही देखते सामने से वही भयानक चेहरे वाली औरत का चेहरा दिखा जिससे कार का आगे वाला ग्लास खून से लाल हो गया। ये सब देख कर सभी चीख कर एक दूसरे से चिपककर बैठ कर रोने लगे। फिर सब शांत हो गया सबने देखा गिरीश एक तांत्रिक के साथ चला आ रहा है। 

     गिरीश सभी को अपने साथ लेकर हवेली की बैठक में पहुंच गया। 
"ये बहुत ही खतरनाक आत्मा है ये कई वर्षों से बंधक होने और अपना बदला न लेने के कारण बहुत गुस्से में हैं और इसका गुस्सा इसको ज्यादा ताकतवर बनाता है। इसे आजाद करना तुम लोगों की मूर्खता है।" 


"तो कुछ किजिए न स्वामी।" 


"कर ही तो रहा हूँ, ये आत्मा कितनी भी खतरनाक हो उसे मैं पहले की ही तरह बंधक बना लूँगा हाहा.... ।"

" बाबा ये आत्मा कौन है? और हमसे क्यूँ बदला लेना चाहती है?"


" गिरीश! ये कौन है?"


" स्वामी। जी ये मेरी धर्मपत्नी हैं, आप क्रिया प्रारंभ किजिए इन्हे मैं समझा देता हूं।"


गिरीश स्टैलीना को एक साइड ले जाकर समझाने लगा। 

" गिरीश!"

" हाँ! स्वामी जी।"

" ये लो रक्षासूत्र इसे सबकी कलाई पर बाँध दो। जिससे वह नापाक रूह किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकती। "
" जी स्वामी जी।"


गिरीश ने सबके वह धागा बांध दिया उसने देखा कि रूबी वहां नहीं है वह उसे ढूंढने के लिए द्वार पर गया तो स्टैलीना ने गिरीश का हाथ पकड़कर कहा -" मैंने पूछा न कि ये औरत कौन है और हम सबसे किस बात का बदला ले रही है जल्दी बताओ मुझे सच जानना है।"


"ओके, सुनों ये मेरी पहली पत्नी सीमा है।" 

"व्हाट?" 

"हाँ! आगे सुनों इसके लड़का नहीं हुआ तो इसने काले जादू का सहारा लिया और इसकी नीचता यही नहीं रुकी इसने लड़के के लिए मेरी बेटी प्रिया और मेरे पैरेंट्स को भी बलि चढ़ा दिया। 
इसलिए गाँव वालों ने इस डायन को मार डाला।"


" ओह माइ गॉड!"


" मरने के बाद भी जिस तरह से वो सभी को मार रही है उसी तरह से मारने लगी तो इन्ही स्वामी जी ने इसे बरगद के पेड़ पर बाँध दिया।"

" अब क्या होगा, गिरीश।"


चिंता की कोई बात नहीं अब स्वामी जी सब संभाल लेंगे!" 

"गिरीश!!!... ।" 

"हाँ स्वामी जी...।" 

"जल्दी से मेरे पास आओ...।" 


"क्यूँ क्या हुआ स्वामी जी!" - गिरीश दौड़ते हुए तांत्रिक के पास जाकर पूछा। 


"ये देखों नींबू का रंग लाल पड़ गया है इसका मतलब यह है कि आत्मा यही कहीं पास में ही है। सबको बुला लो साथ मे ही रहना। वो आत्मा ताकत के साथ चतुर भी है। "

" स्टैलीना! सब हैं पर रूबी कहा है?"


" पता नहीं अभी तो साथ में ही थी।" 


"ओह माइ गॉड! रूबीईईईइई......." - गिरीश ने चिल्लाकर रूबी को आवाज दी। 


तभी हवा का एक तेज़ झोंका आया और सारे हॉल में धूल छा गई। 

" पापा.... हूं हूं हूँ....... ।"सामने से रूबी के रोने की आवाज सुनाई दी। 
सबने देखा तो सामने रूबी अपनी आंखों को मलते हुए आ रही है। 


" बेटा कहा थी क्या हुआ जल्दी मेरे पास आओ।" 

रूबी दौड़कर तांत्रिक के पास पहुच कर उससे लिपट कर रोने लगी। 

"बाबा मुझे बचा लो, वो सबको मार डालेगी।"

" डरो मत! बेटा कुछ भी नहीं होगा अब मैं आ गया हूँ न।" - तांत्रिक ने रूबी को समझाते हुए कहा। 


"तू भी मरेगा कमीने, उस दिन तूने मुझे बंधक बना लिया था अब नहीं जा मर तू!" - रूबी की आवाज में उस चुड़ैल की आवाज थी। 
तांत्रिक कुछ कर पाता तब तक रूबी ने पास में पड़े चाकू से हमला कर दिया और तांत्रिक की पीठ के आर पार कर दिया। 

       हमले से तांत्रिक छटपटा ने लगा रूबी तांत्रिक के सीने पर सवार होकर चाकू उसके गले पर रखते हुए कहा कि -" निगाह हटी, तो समझ दुर्घटना घटी। हाहाहाहा...।" 


"ये क्या किया तुमने रुबी।" - गिरीश ने रूबी को पकडकर कहा। 

"मैं रूबी नहीं तेरी मौत सीमा हूँ, याद कर उस दिन कैसे मेने तुझसे अपनी और अपनी बेटी की जान की भीख मांगी थी। ले अब तु भी मर... आह...।" - रूबी के शरीर में समाई सीमा की आत्मा गिरीश की कलाई में बँधा धागा देखकर चली गई। 
रूबी बेहोश हो कर गिरीश की गोद में गिर पढ़ी। 
गिरीश रूबी को गले से लगा कर रोने लगा। 


सभी लोग कुछ सोच नहीं पा रहे थे। की क्या किया जाए। 
सब लोग एक समूह में बैठ गए और ईश्वर को मानने लगे कि इस आफ़त से छुटकारा मिल जाय। 
गिरीश अभी तक रूबी को गले लगा कर रोए जा रहा था। रूबी ने अपनी आँखे खोली उसकी आँखों में एक असाधारण चमक थी उसने हल्की मुस्कान से चाकू फिर से उठा लिया और गिरीश की उस कलाई पर हमला कर दिया जिस पर वह धागा बँधा हुआ था। धागा कट कर अलग हो गया। 


गिरीश दर्द से तिलमिला उठा उसने देखा कि सामने रूबी अपने हाथ में चाकू लिए उसकी तरफ बढ़ने लगी। 
स्टैलीना ने भागकर रूबी को पकड़ लिया। उसकी कलाई में बंधे धागे के स्पर्श से सीमा की आत्मा भाग गई और रूबी बेहोश हो कर स्टैलीना की बाहों में गिर पड़ी। 
उसी वक्त गिरीश की चीख सुनाई दी स्टैलीना ने देखा कि चुड़ैल गिरीश के पैर पकड़कर उसे बाहर खिंच ले गई। 
सभी बच्चे और स्टैलीना रोते हुए गिरीश को छुड़ाने के लिए भागे। 


उन्होने देखा कि चुड़ैल गिरीश को बरगद के पेड़ के पास ले गई। सभी वहां पहुंच कर देखते हैं कि गिरीश बरगद की जड़ों से जकड़ा हुआ है और चुड़ैल उस के गले को अपने खूनी नाखूनों से काटना चाहती है। 



"रूको! मेरे पति और मेरे परिवार को माफ कर दीजिए, हम सब ने आपका क्या बिगाड़ा है, भगवान तुम्हें ऎसे नीच काम के लिए कभी माफ़ नहीं करेगा।" - स्टैलीना ने रोते हुए कहा। स्टैलीना की बात सुनकर चुड़ैल ने अपनी अंगारों जैसी लाल आंखों से स्टैलीना की ओर देखा। 
"मैंने कौन सा नीच काम किया है?, तुझे क्या पता तू भी मेरी तरह ही भोली है। इसी ने किया है नीच काम। 
सुनना है तो सुन मेरे पापा के पास बहुत सारी जायदाद थी। तो इसने उनको फंसाकर मुझसे शादी कर ली और जब मैं इसको औलाद के रूप में लड़का न दे पाई तो इसने उस ढोंगी स्वामी के साथ मिलकर घिनोनी चाल चली। उसे मेरे पास भेजा और कहलवाया कि मैं एक पूजा करूंगा। जिससे मेरे अगली संतान लड़का होगी और इसी तरह मुझे बेहोश करके इसने मेरी बेटी को मारकर मेरे पास रख दिया और खून में भीगी कटार मेरे पास रख दी। 


  और सारे गाँव वालों को मेरे पास बुला लाया गाँव वालों के शोर से मुझे होश आया तो मैंने देखा कि मेरे जिगर के टुकड़े को किसी ने बेरहमी से मार दिया है जिससे मैं पागल सी हो गई। गाँव वालों ने समझा कि मैं बेटे के लिए पागल हो गई जिससे मैंने अपनी बेटी की बलि दे दी है। 
गाँव वालों ने मेरी एक बात भी नहीं मानी और मुझे पीट पीट कर मार डाला और इस ने मुझे जला दिया।"-चुड़ैल की आंखों में गुस्सा की जगह दर्द भरे आँसू थे। 


" मुझे माफ कर दो सीमा, मुझसे गलती हो गई। "-गिरीश की घीनॉनी हरकत सबके सामने आ चुकी थी। 

स्टैलीना भी रोने लगी। 

" और सून तेरी माँ को मैंने ही चूल्हे में सर देकर मैंने ही मारा था। तेरे बाप को और स्वामी के बेटे को मैंने इसी बरगद के पेड़ पर मारा था और बचा फिर तू। तुझे मारती तब तक इस पाखंडी स्वामी ने मुझे यहाँ कैद कर दिया। ले अब देख अपने सामने अपनी औलाद को मरते हुए देख कर कितना दर्द होता है।"


चुड़ैल ने रूबी, पियूष और शेखर की तरफ बड़ी। 
" रुक जाओ सीमा तुम्हें जान ही लेनी है न मेरी ले लो, लेकिन मेरी फ़ैमिली को छोड़ दो।"


" बढ़ा प्यार आ रहा है? हाँ! मेरी प्रिया के बारे में ऎसा सोचा होता। लेकिन मेने जो कहा था वो पूरा करूंगी तेरे वंश का सर्वनाश। ले मर तू।" 


चुड़ैल ने अपने तेज़ खूनी नाखूनों से गिरीश का गला काट दिया जिससे गिरीश ने तड़पकर जान दे दी। 

" अब तू मरने के लिए तैयार हो जा! "-चुड़ैल ने स्टैलीना का गला दबाते हुए कहा, स्टैलीना की सांसे रुकने लगी और आंखों से आंसू आने लगे। 


" आंटी प्लीज मेरी माँ को छोड़ दो हमारी कोई गलती नहीं है। हमें कुछ पता भी नहीं था। हम माँ के बिना कैसे रहेंगे। उनके सिवाय कोई भी नहीं मेरा इस दुनिया में। आप प्रिया की माँ की तरह मेरी भी माँ हो हम आपके ही बच्चे है आप अपने बच्चों को अनाथ कैसे कर सकती हो माँ... ।"-तीनों बच्चे सीमा के पैर में पड़े अपनी माँ की जान की भीख मांग रहे थे। 


तभी सीमा अपने असली रूप में आ गई उसकी आंखों में आंसू थे। उसके दिल में नफरत की जगह ममता ने ले ली। उसने स्टैलीना को छोड़ दिया। 


" काश मैं और मेरी बेटी प्रिया को भी इस दुनिया में जीने का हक़ मिलता।" - सीमा इतना कहते हुए आंखो में आंसू भरकर हमेशा के लिए गायब हो गई। 
स्टैलीना अपने बच्चों को खुद से चिपका कर फूट फूट के रो पढ़ी। 

      'माँ का दर्द केवल, एक माँ ही समझ सकती है।'
    
                        ✝️समाप्त ✝️

Jai shri radhe 🙏 🌼 
सोनू समाधिया रसिक 



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