TOWN OF DEATH Chapter_Four

Town of Death chapter-four

                अध्याय - 0४ 
             (शाप या संक्रमण) 

By - Mr. Sonu Samadhiya Rasik 





रोनित और नेहा अभी तक बेहोश थे। दोनों को ठंड से बचाने के लिए रजाई भी डाल दी थी। क्योंकि उनके शरीर का तापमान सामान्य से बहुत गिर चुका था। रोनित के कंधे पर एक बड़ा बन गया था। जिससे ढेर सारा खून निकल रहा था। शायद उस भेड़िये ने रोनित को कंधे से पकड़ खींचा था। रोनित का शरीर बेहोशी की हालत में भी कांप रहा था।
सभी नेहा और रोनित को घेरे हुए होश में आने का इंतजार कर रहे थे।

प्रोफेसर पास में पड़ी चेयर पर गंभीर मुद्रा में बैठे हुए थे। उनकी नजर विक्रांत पर थी। जो अलमारी में रखी चीज़ों को टटोल कर कुछ खोजने में तल्लीन था।

दीप्ति रोनित के सर पर हाथ फेर रही थी। रोनित का शरीर ज्वर से तप रहा था। उसे दर्द से ज्वर आ चुका था। सभी उसके होश में आने का इंतजार कर रहे थे। ताकि उसे फीवर की टैब्लेट दे सके। रोनित का घाव पर बेंडेड बांध दी गई थी जिससे खून बहना बंद हो चुका था। 

रजनीश ने विक्रांत को रोनित की ओर बढ़ते हुए देखा तो विक्रांत को रोकते हुए कहा - "ओ मिस्टर! रुक जाइए। कहां चले आ रहे हो? ये सब तुम्हारी वजह से ही हुआ। खैर मनाओ मैंने तुमको छोड़ दिया। वरना एक बुलेट मैंने तुम्हारे लिए स्पेशल बचा के रखी है।" - रजनीश ने पिस्तौल दिखाते हुए कहा। 

"हट जाओ! रोनित की हालत बहुत खराब है, उसे मुझे देखने दो।" - विक्रांत ने रजनीश की बातों को अनसुना करते हुए कहा। 


" अब बड़ी फिक्र हो रही है। तब तो उसके मरने का तमाशा देख रहे थे। तारीफ तो नेहा की है, जो अपनी जान दाँव पर लगा कर उसे बचा लिया।" - निकिता ने गुस्से में कहा। 
दीप्ति भी विक्रांत को नफरत भरी निगाहों से घूरे जा रही थी। 

"तुमने गोली क्यूँ नहीं चलाई?" - प्रवीण ने कहा। 

" मैं ये सब बाद में बताऊँगा। रोनित को कुछ हो जाए और वो तुम सबकी जान का खतरा बन जाए इससे पहले मुझे कुछ करना होगा।"


" मैं तुम्हें कुछ नहीं करने दूंगी। वो मेरा दोस्त है और तुम एक धोखेबाज। मैं तुमपे भरोसा नहीं करती।"-दीप्ति ने कहा। 


तभी नेहा को होश आ गया। सभी नेहा के पास पहुंच गए और विक्रांत, रोनित के पास पहुंच गया। 
विक्रांत, रोनित की बेंडेड खोलने लगा। रोनित, छटपटाने लगा था। यह देख कर प्रोफेसर विक्रांत के पास गए और बोले 

" विक्रांत ये क्या कर रहे हो तुम?"

" कुछ नहीं बस ये देखना है कि घाव भेड़िये के काटने का है या फिर चोट का।" 

विक्रांत बेंडेड को हटाना जारी रखता है। 


तभी रोनित जोर से चीखता है और तेज़ी के साथ अपने हाथ पांव पटकने लगता है। 
सभी लोग दौड़ कर रोनित के पास आ गए। 

" तुमने ये क्या किया विक्रांत......?"-दीप्ति ने गुस्से में आकर कहा। 


" आख़िरकार चाहते क्या हो तुम? क्यूँ कर रहे हो ये सब?" - निकिता ने कहा। 
वह इन सबकी वजह जानना चाहती थी। 


विक्रांत, किसी की बातों को सुने बिना खिड़की की ओर देख रहा था। 

"ये ऎसे नहीं मानेगा, रुक इसको मैं अभी बताता हूँ।"-रजनीश ने अपनी पिस्तौल को निकालते हुए कहा। 

" रुक जाओ रजनीश,आराम से.... ।"-प्रोफेसर ने रोकते हुए कहा। 

प्रवीण ने रजनीश की पिस्तौल पकड़ ली। 

"कूल डाउन।" 

रोनित की चीखें तेज़ और भयानक होती जा रहीं थीं। वह सब लोग की पकड़ से बाहर हो चला था। वह ऎसी हरकतें क्यूँ कर रहा था? ये ये हर किसी की समझ से परे था। सिवाय विक्रांत के। 

" ऎसे क्या हुआ विक्रांत कुछ बोलोगे भी।" - निकिता ने विक्रांत से पूछा। 

"एक सेकंड रुको, मैं अभी आया..... ।" - विक्रांत खड़े होकर टूटी हुई खिड़की के पास पहुंचा। जिसे कुछ देर पहले भेड़िये द्वारा तोड़ दिया गया था। 

"कुछ करो! विक्रांत।" - प्रवीण ने कहा। 

विक्रांत ने जल्दी से खिड़की को पर्दे से ढंक दिया और रोनित के पास आ गया। 
वह घाव को गौर से देखने लगा। 

"इसे भेड़िये ने काटा है!"-नेहा ने विक्रांत की ओर देखते हुए कहा। 
सभी हैरानी से नेहा की ओर देखने लगे। 


"हाँ सही कहा तुमने। तुमको भी काटा है क्या भेड़िये ने?"-विक्रांत ने कहा। 


"नहीं, बस थोड़ी सी खरोंच हैं। और जो घाव 
तुम्हारे हाथ पर था, वो भी भेड़िये के ही काटने का था।"- नेहा ने कहा ।


तभी रोनित बेकाबू होकर दीप्ति पर झपटता है। जिससे दीप्ति बेड से नीचे गिर जाती है। जिससे उसका सिर जमीन से टकरा जाता है। दीप्ति के सिर से खून बहने लगता है। 


" सभी जल्दी से इसे पकड़ो, मैं ये रजत भस्म का लेप इसके घाव पर लगाउँगा। जिससे यह भस्म घाव में भेड़िये के विष के प्रभाव को खत्म कर देगी। नहीं तो इसे अपनी जान देनी पड़ेगी।" 


"आपको मालूम है कि आप क्या कह रहे हैं? आप हमारे स्टूडेंट रोनित की जान लेने की बात कह रहें हैं!"-प्रोफेसर ने कहा। 

" मैं तुमको ये नहीं करने दूंगी!"-निकिता ने विक्रांत का हाथ पकड़ते हुए कहा। 

" देखिए! मेरी बात मानों। इस भस्म का उपयोग पहले भी मैं खुद पर कर चुका हूं। जिससे मैं आप सबके सामने हूँ। इसलिए मैं इस भस्म के लेप का प्रयोग रोनित पर कर रहा हूं शायद ये काम कर जाये।" - विक्रांत ने समझाते हुए कहा। 

" शायद मतलब?" - प्रवीण ने कहा। 

"इसे किसी आम भेड़िये ने नहीं बल्कि एक मानवभेड़िये ने काटा है। अभी मैंने खिड़की से चाँद को देखा है। कोहरा हट चुका है,जिससे चाँद निकल आने से और दीप्ति के सिर से निकल रहे खून की गंध से रोनित पर भेड़िये के जहर का असर होने लगा है। इसलिए ये बेकाबू होने लगा है।जैसे ही जहर पूरे शरीर में फैलता जाएगा वैसे ही एक दो दिन में यह पूर्ण मानव भेड़िया बन जाएगा और हम सबको मार डालेगा।इसमें मेरा कोई स्वार्थ नहीं है, मैं तो तुम सबको बचाना चाहता हूँ।"


" ऎसा है तो आप इस भस्म का प्रयोग कर सकते हो।"-प्रोफ़ेसर ने अनुमति देते हुए कहा। 


आप तीनों रोनित को पकड़ लो और आप इनको अंदर दूसरे कमरे में ले जाइए और आप अपने और इनके कपड़ों से खून साफ कर लीजिए। नहीं तो खून की गंध से रोनित के साथ साथ आसपास के भेड़िये भी आपके पास खिंचे चले आएंगे।"

नेहा और निकिता, दीप्ति को अपने साथ लेकर दूसरे कमरे में चली जाती है और रोनित का एक हाथ प्रोफेसर, दूसरा हाथ प्रवीण और पैरों को रजनीश पकड़ कर दबा लेते हैं। 

विक्रांत ने, रोनित के घाव पर रजत भस्म के लेप को छिड़कने लगता है। जिससे रोनित जोर जोर से चीखने और गुर्राने लगता है। उसका शरीर बहुत तेज़ ज्वर से तप रहा था। उसकी आँखें रक्त के सदृश्य लाल पड़ चुकीं थीं। 
कुछ देर तक चीखने और छटपटाने के बाद रोनित बेहोश हो जाता है। 
विक्रांत, रोनित के पैर, और दोनों हाथों को बेड पर बांध देता है। 

विक्रांत ने बेहोश रोनित को रजाई से ढंक देता है। 

"अब हम लोग इसे आराम करने देते हैं। अगर आगे कुछ होता है तो भी हम सेफ रहेंगे क्यों कि उसके हाथ पैर बंधे हुए हैं।" - विक्रांत ने सबको निश्चिंत करते हुए कहा। 

विक्रांत ने अपने कपड़े ठीक किए और दूसरे कमरे की ओर बढ़ गया, जहां पर दीप्ति, नेहा और निकिता थी।

"तुम लोग ठीक हो न, दीप्ति अब कैसा फील कर रही हो?"

" अब ठीक हूं सर! बस थोड़ा दर्द है।"

कमरे में दीप्ति रजाई में लेती थी और नेहा - निकिता उसके आसपास उसी रजाई में बैठीं थीं। 


"चलो अब सभी सो जाओ। रात बहुत हो चुकी है। सभी को आराम की बहुत जरूरत है!" - प्रोफेसर ने हैंड वॉच को देखते हुए कहा। 

" हाँ, सही कहा आपने, प्रोफेसर आपने।"-विक्रांत ने कहा। 

"रुको!" - नेहा ने सभी को रोकते हुए कहा। 

"अब क्या हुआ, नेहा!" - प्रवीण ने कहा। 


"विक्रांत हमें सब जानना है, इस मनहुश मोहिनीगढ़ के रहस्य के बारे में और तुम्हारे बारे में।" - निकिता ने विक्रांत को याद कराते हुए कहा। 


" अभी इतनी रात को........ ।आपको आराम करना चाहिए" 

"हाँ!" - नेहा ने कहा। 

"चलो विक्रांत अब बता ही दो,अपने बारे में और मोहिनीगढ़ के बारे में, कि यह कस्बा क्यूँ रातों रात वीरान हो गया और तुम अकेले यहां कैसे सर्वाइव कर रहे हो?" - प्रोफेसर ने कमरे में पड़ी कुर्सी पर आराम से बैठते हुए कहा। 


" अच्छा जी अब आप लोग इतना कह रहे हो तो सुनों। पहले आप सभी रजाई में पहुंच जाओ। मैं कहानी शुरू करता हूं।"

विक्रांत ने पास रखी अलमारी से रजाई निकाल कर सबको पास करते हुए कहा। 
सभी रजाई में पहुंच चुके थे। वह कमरा काफी बड़ा था। जिसमें कई लोगों के लिए अलग अलग बेड रखे हुए थे। 

" तो सुनिए, आज से २५ साल पहले की बात है। मोहिनीगढ़ एक खूबसूरत जगह हुआ करती थी। इस जगह की खूबसूरती किसी भी व्यक्ति के मन को मोह लेती थी। इसलिए इस कस्बे का नाम मोहिनीगढ़ पड़ा। 
इस खूबसूरत कस्बे की खुशियों को किसी की नजर लग गई और एक अमावस्या की रात सभी मोहिनीगढ़ वासियों के लिए मौत बन कर आई।"
इतना कहकर विक्रांत रोशनदान में बोनफ़ायर के लिए रखी लकड़ियों को इकट्टा करने लगा। 
उसने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा - 

" अमावस्या की शाम मोहिनीगढ़ का एक चरवाहा मोहिनीगढ़ के जंगलों के अंधेरे पक्ष में ग़लती से अपनी भेड़ चराते हुए पहुंच गया। उस जगह पर जाना शख्त मना था। सूरज ढलते ही वह चरवाहा अपनी भेड़ों को लेकर अपने घर वापस आने लगा। 
चारों तरफ़ अंधेरा हो चला था। वह चरवाहा डरा हुआ जल्दी जल्दी घर की ओर बढ़ रहा था लेकिन उसकी भेड़ें ठहरी जानवर वो बिना किसी डर के अठखेलियां करतीं हुई धीरे धीरे चल रहीं थीं। 
तभी एक भेड़ पास की झाड़ियों में चरने के लालच में घुस गई।"

विक्रांत ने प्रोफेसर की और अपनी कुर्सी रोशनदान में जल रही आग के सामने खिसका ली और उस पर बैठ कर एक लंबी साँस ली। 

" फिर क्या हुआ आगे?"-निकिता ने जिज्ञासावस पूछा। 

" लेकिन उस जंगल में ऎसा क्या था? जो लोग इतना डरते थे।वहाँ जाने में?"-रजनीश ने पूछा। 


"उस जंगल में पिशाचों, डायन, डाकनी और मानव भेड़ियों का वास माना जाता है। इसलिए..... ।

" क्या वो अभी भी हैं वहाँ पर...?"-प्रवीण ने पूछा। 


" उन्होने रोनित को अपना शिकार बना लिया होता, क्या तुम्हें अभी भी लगता है कि उस जंगल में कभी भी उनका वजूद रहा या फिर मिट गया है।" 


"आगे बताओ विक्रांत, वो जंगल से मोहिनीगढ़ में क्यूँ आए?इसका कोई विशेष कारण!" - प्रोफेसर ने बात को मुद्दे पर लाते हुए कहा। 


"नहीं सर जी! इन भूखे जानवरों के लिए किसी कारण की जरूरत नहीं पड़ती। बस भूख लगी तो सामने कोई भी हो उसे मार कर खा जाते हैं। 

आगे सुनिए....... 

वह चरवाहा जैसे ही झाड़ियों के पास अपनी भेड़ लेने गया तो झाड़ियों से बेहद खतरनाक आवाज आई। जिससे उस चरवाहे की चीख निकल पड़ी। 
वह गिरता हुआ वहां से भाग खड़ा हुआ। वह भागता हुआ। भेड़ों के झुंड के पास पहुंचा तो देखा वहां भी एक भेड़ मरी हुई थी और उसके शव को एक आधा इंसान और आधा भेड़िया दिखने वाला जीव खा रहा था। 
वह कुछ सोच पाता तब तक उसने उस पर हमला करके नीचे गिरा दिया। लेकिन उस चरवाहे ने हार नहीं मानी और वह अपनी लाठी को गिरते समय भी मजबूती से पकड़े रहा। मरता क्या न करता। वह चरवाहा आँखें बंद किए अपनी लाठी को पूरी ताकत के साथ चारों तरफ़ घुमाता रहा। जब उसने आँखें खोली तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वह मानव भेड़िया वहां पर नहीं था। 
वह खड़े होकर अपनी भेड़ों को घर की ओर हांकने लगा। तभी उसे अपने कंधे पर जलन महसूस हुई। 
उसने अपना हाथ वहाँ फेरा तो उसका हाथ चिपचिपे पदार्थ से लस गया। 
उसने देखा तो वह कांप उठा, उसने अपना देखा तो उसकी आँखे खौफ से फटी की फटी रह गईं। वह लसलसा पदार्थ कुछ और खून था। 

वह जल्दी से अपने घर को गया। 

अब उसे एक और डर सताने लगा। कि कहीं वह भेड़िया न बन जाएं। 

अनमने से बैठे चरवाहे को देख उसकी पत्नी बोली - "क्या हुआ जी? तबीयत तो ठीक है न।"

"नहीं सब ठीक है।" 


"सुनते हो! आज अपने घर मेहमान आएं हैं, तो उनके लिये अच्छा खाना बनाना है। मैं चाहती हूं कि उन्हे भेड़ की दावत देतें हैं। इसलिए आप एक अच्छी भेड़ लेकर आईये। आज अमावस्या है तो गाँव की शांति के लिए पुरोहित जी ने यज्ञ का आयोजन किया है। सभी को वहाँ अपने पूरी फ़ैमिली के साथ बुलाया है। 

अगर आपकी तबीयत ठीक नहीं है तो मैं जाकर देख लेती हूँ।"


" रहने दो, मैं जाकर देख लेता हूँ।"

चरवाहे की पत्नी मेहमानों से बातें करने लगती है। 
कुछ देर बाद चरवाहे की पत्नी देखा कि इतनी देर से वह बापस नहीं आया। तो उसे शंका हुई, वह घर के बाहर बने बाड़े में टार्च लेकर पहुंच गई। उसने चरवाहे को आवाज लगाई मगर उधर से कोई जबाब नहीं मिला। तो वह खुद बाड़े में घुस गई। 
जैसे ही वह बाड़ के अंदर घुसी तो उसके कानों में किसी खूंखार जानवर के गुर्राने की आवाज पड़ी। वह डर गई और साथ में चौकन्नी भी ही गयी। 

जब उसने सामने से आ रही डरवानी आवाज की ओर टार्च लगाई तो उसके पैरो तले जमीन खिसक गई। डर से उसका दिन बैठा जा रहा था। 

सामने बेहद डरावना और घृणित दृश्य था। उस महिला के सामने। 

सामने वही चरवाहा है भेड़ मारकर उसके अंदर के अंगों को चबा रहा था। उसके कपड़े खून से लसे हुए थे। उसके चारों तरफ़ खून ही खून बिखरा हुआ था।

टार्च की रोशनी जब इस चरवाहे पर पड़ती है, तो वह भेड़ को वहीं छोड़ कर उस औरत की ओर गुर्राते हुए बढ़ने लगा। 

वह औरत भाग कर मेहमानों के पास पहुंच जाती है और अंदर से गेट बंद कर लेती है। उसकी साँसे समा नहीं रही थी। उसका शरीर ज़ोर से कांप रहा था। 

वह कुछ कहती। तभी गेट के खटखटाने की आवाजें आने लगी। 
तीन मेहमान और वह औरत डर से एक कोने में चिपक गए। बाहर से वह मानव भेड़िया सबके खून का प्यासा हो चला था। तभी एक जोरदार आवाज के साथ गेट मिट्टी की कच्ची दीवार के साथ गिर पड़ा। 
सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागने लगे। तभी उस मानव मानव भेड़िय ने उस महिला पर हमला करके उसके सीने को फाड़कर दिल को खा लिया। 
इसी दौरान एक आदमी वहां से भागने की कोशिश करता है तो वह वेयरवुल्फ़ उसकी गर्दन को अपने नुकीले नाखूनों से काट देता है। जिससे उसके गले से खून बहने लगता है। खून बहने से वह व्यक्ति गिर पड़ता और बेहोश हो कर जमीन गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो जाती है। 

अंतिम बचा हुआ आदमी मरे हुए आदमी के पास गया। वह उसका छोटा भाई था। वह उसे गले लगाकर रोने लगा। उसने नफरत और क्रोध से उस वेयरवुल्फ़ को देखा जो धीरे धीरे गुर्राते हुए बढ़ने लगा है। 

तभी उस व्यक्ति के गोद में पड़ा उसका भाई की अचानक आँखे खोली, अब उसकी आँखों में का रंग काले से पीला पड़ गया और उसके सामान्य दाँत एक भेड़िये के दांतों की तरह हो गए। 

फिर पलक झपकते ही उसने अपने भाई की गर्दन को अपने नुकीले दांतों से गाड़ दिए जिससे खून के फब्बारे निकल पड़े, उस कमरे की चारों दीवारों पर खून ही खून बिखर गया। 
कुछ पलों तक सारा घर चीखों से गूंजता रहा।
ये थी मानव भेड़िये की कहानी जो कि सच है न। 

"फिर आगे क्या हुआ?" - निकिता ने पूछा। 

"आगे क्या होता, इसी तरह सारा गाँव धीरे धीरे वीरान हो गया।" 

क्रमशः......... 
क्या होगा इस कहानी का अंजाम, पढ़ते रहिये.... 


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