खूनी डायन (Bloody Witch) | Top hindi Horror Story by Mr. Sonu Samadhiya Rasik

            खूनी डायन (Bloody Witch) 

लेखक :-सोनू समाधिया रसिक 🇮🇳 💕
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शोभा और समर के फ़्रेंड्स ने समर वेकेशन्स पर शोभा के मामा के गाँव चन्दनपुर जाने का प्लान बनाया। 
चंदन पुर के घने जंगल, ऊंचे ऊंचे पर्वत और कल-कल की ध्वनि से गुन्जित झरने इंसान को ही नहीं बल्कि प्रवाशी पशु-पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम थे। 
चंदनपुर में हर साल कई पर्यटक घूमने के लिए आया करतें हैं। चंदनपुर एक अच्छा पर्यटन स्थल था। 
सभी ने लोकल बस से ही जाने का प्लान बनाया और निकल पड़े चन्दनपुर की सैर करने के लिए। 
शाम के समय सभी बस पकड़कर चन्दनपुर के लिए रवाना हो गए। 
शोभा और समर बस की खिड़की से ढलती हुई शाम का आनंद ले रहे थे। 
शाम होने की वजह से हवा थोड़ी ठंडी हो गई थी,मगर दोपहर की चिलचिलाती धूप का असर उसमें अभी भी था, जो दोपहर के वक्त तेज़ और जानलेवा लू के रूप में बहती है। 
आस पास खड़े पेड़ और झाड़ के विभिन्न प्रकार के फूलों की मनमोहक खुश्बू मन को आनंदित कर रही थीं।
ग्रामीण अपने मवेशियों को अपने घर वापस ला रहे थे। 

शोभा की फ्रेंड पलक भी अपने बॉयफ्रेंड साहिल के साथ आई थी। 
 मुख्य मार्ग ख़त्म हो गया था और चंदनपुर का मार्ग प्रारम्भ हो गया था। 
अंधेरा कब्जा जमाने लगा था। 
सुदूर क्षेत्र में फैले घने जंगल के पेड़ अपनी मौन मुद्रा में खड़े थे। 
शोभा अभी तक बाहर के नजारों को देखे जा रही थी। उसको इनसब में रुचि के साथ एक अलग लगाव सा था,क्योंकि शोभा का बचपन यही पर गुजरा था। 
शोभा को चंदनपुर की डायन वाला किस्सा जो उसे उसके मामा सुनाया करते थे, वो उसे अच्छी तरह से याद था। 
उसने पलक और साहिल की ओर देखा जो उसकी आगे वाली सीट पर बैठे हुए थे। 
वो दोनों आपस में हसी मज़ाक कर रहे थे। शायद दोनों प्रेमियों को ये मालूम नहीं था कि वो अभी गाँव में न कि शहर में। 
उन दोनों को उस बस में बैठे ग्रामीण घूरे जा रहे थे। 
जब साहिल और पलक की नजर गाँव वालों पर पड़ी तो दोनों एक दूसरे से अलग हो गए। 
ये सब देखकर शोभा और समर मुस्कुरा पड़े।
रात हो चुकी थी, बस ड्राइवर ने बस की लाइट ऑन कर ली। 
अब केवल बस के अंदर बैठे व्यक्ति लाइट में दिख रहे थे और चारों तरफ जहां तक नजर जाती वहां तक सिर्फ़ गहरा अंधकार पसरा हुआ था। 
"भैया! आगे बस रोक देना।" - शोभा ने बस ड्राइवर से कहा। 

"क्यूँ, क्या हुआ।वो रास्ता तो चंदनपुर को जाता है।" - बस कंडक्टर ने हैरान होते हुए कहा। 


"हाँ, हम सबको चंदनपुर ही जाना है। यही पर रोक दीजिए।" 


"लेकिन इस वक्त चंदनपुर कोई नहीं जाता। और इस रास्ते से सूरज ढल जाने के बाद तो बिलकुल नहीं। तुमको नहीं पता क्या?" - बस में बैठे एक बुजुर्ग ने कहा। 


" बाबा मुझे सब पता है। मेरे यहां मामा जी रहते हैं, चलो गाइस।"


" लेकिन, बेटा!"


" क्या हुआ, बाबा जी आप कुछ कहना चाहते हैं क्या? "-समर ने बुजुर्ग से पूछा। 


" छोड़ न, यार चल। कुछ नहीं है। मैं हूँ न साथ में। बचपन बीता है मेरा यहाँ, चप्पा चप्पा जानती हूँ यहां का, चलो फिजूल की बातो में मत पड़ो।"-शोभा ने समर को खींच कर बस से नीचे उतार लिया। 


चारों दोस्त बस से चंदनपुर के कच्चे रास्ते पर उतर गए और बस अपने गंतव्य के लिए रवाना हो गई। 
बस के चले जाने के बाद चारों तरफ़ अंधेरा छा गया था। 
सभी लोगों ने अपना फोन निकाल कर फ्लैश लाइट जला ली। 


" शोभा, वो बाबा किसके बारे में बोल रहा था?" - समर ने बात को दोहराते हुए कहा। 


"चल न यार तु एक ही बात को पकड़ लेता है बस!" - पलक ने बात को काटते हुए कहा। 


"समर, घर पहुँचते ही बताती हूँ ओके।" - शोभा ने आश्वासन दिया। 


"ओके।" 

रास्ता कच्चा और चारों तरफ से जंगली झड़ियों से घिरा हुआ था। 

" यार! ये रास्ता पहले से काफी बदल चुका है, कितना मुश्किल हो रहा है, चलना। 10 साल पहले ये ऎसा नहीं था।" - शोभा ने परेशान होते हुए कहा। 

" शायद, कोई यहां से नहीं गुजरता। लगता है कि ये काफ़ी दिनों से बंद पड़ा है।" - समर ने मोबाइल की फ्लैश सभी फ़्रेंड्स की ओर करते हुए कहा। 

" कई दिनों से नहीं, बल्कि कई सालों से बंद पड़ा है। "-पलक ने सबकी ओर देखते हुए कहा। 

"ऎसा है,क्या? शोभा।" - साहिल ने शोभा से पूछा। 

" शायद, हाँ।"-शोभा ने सहमति जताई। 

" तो अब क्या होगा यार! क्या हम सब फँस गए?" - साहिल ने घबराते हुए कहा। 

"नहीं यार! रास्ता कई सालों से बंद है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम फँस गए हैं। थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ेगा,बस।"-शोभा ने सभी की हिम्मत बड़ाई। 


सभी फ़्रेंड्स उस रास्ते पर आगे बढ़ने लगे। शोभा सबसे आगे चल रही थी, क्योंकि वह उस रास्ते को जानती थी। 
रात का अंधेरा गहराता जा रहा था। उस सूनसान रास्ते पर उन चारों दोस्तों के अलावा किसी भी इंसान का नामोनिशान नहीं था। 
हवा अभी भी कुछ गर्माहट लिए हुए थी और दोपहर की तुलना में कम गति से बह रही थी। 

समर और साहिल ने गर्मी की वजह से अपनी शर्ट उतार ली थी क्योंकि उनका गर्मी की वजह से हाल बेहाल था। 
समर अपने फोन में इतना बिज़ी था कि उसे मालूम ही नहीं पड़ा कि वो अपने दोस्तों से कितना दूर हो गया है। 

"पलक! समर कहां है?" - शोभा ने अपने फोन की फ्लैश को इधर-उधर समर को ढूंढते हुए कहा। 

"यहीं तो था,अभी।" 

"वो, रहा समर, समर...... क्या कर रहा है तू वहां जल्दी आ इधर।" - साहिल ने समर को बुलाते हुए कहा। 

समर इतनी दूर था कि रात के अंधेरे में उसके फोन फ्लैश की टिमटिमाती हल्की रोशनी दिख रही थी। 

"हाँ! आया...... ।" - समर ने अपना ध्यान से फोन हटाते हुए कहा। 

" अरे, ये क्या है?"

समर के पीछे साइड में खड़े पेड़ से एक जोरदार खरखराहट की आवाज से एक गठरी जैसी चीज गिरी। 

"दोस्तों जल्दी से इधर आओ। यहां कुछ है!" 

सभी समर के पास आते तब तक समर उस अनजान चीज के पास पहुंच गया। 
फ्लैश की रोशनी में समर को वह चीज हिलती हुई नजर आई। 
जैसे ही समर उस के और करीब गया तो वह अनजान चीज मूव करने के साथ एक खौफनाक आवाज भी निकाल रही थी। 
समर काफी डर चुका था, वह कुछ सोच या समझ पाता तब तक समर का हाथ एक अनजान खूनी पंजे की गिरफ्त में था। 
समर की रूह अचानक हुए हमले से कांप उठी। 
उसने आनन फानन में अपने हाथ को छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन उस खूनी पंजे की गिरफ्त बहुत मजबूत थी। 
हङबङाहट में समर का फोन नीचे गिर गया जिससे वह उस अनजान खौफनाक जीव को नहीं देख सका। 
वह जीव अभी भी भयानक आवाजें निकाल रहा था। 
समर समर अपना हाथ छुड़ाने में नाकाम रहा तो उसकी एक भयंकर चीख निकल पड़ी। 

"क्या हुआ? समर।" - शोभा ने समर के पास आकर घबराते हुए पूछा। 

"व्व्वो....!" - समर ने अंगुली से सामने वाले पेड़ की ओर इशारा किया। 
उसकी आँखो में दहशत साफ दिख रही थी। 
समर कुछ ज्यादा नहीं बोल पाया और वह बेहोश हो गया। 


"ये तो बेहोश हो गया है।" 

"क्या हुआ इसे?कोई बताएगा मुझे, चल क्या रहा है यहाँ ये सब,हां!" 

"साहिल तु शांत रह ओके, समर बेहोश पड़ा है और ऊपर से तू बेवजह हाइपर हो रहा है। चल, इसे उठा।" - पलक ने साहिल को समझाते हुए कहा। 

"समर ! कुछ तो बोलो, क्या हुआ तुम्हें। "

" लगता है, समर पर किसी जंगली जानवर ने हमला किया है।"-साहिल ने शोभा की ओर देखते हुए कहा। 

" यार! अब क्या होगा। साहिल तू कुछ करना। "-पलक ने घबराते हुए कहा। 

" अगर ये बात मामा जी को पता चली न तो वो बहुत गुस्सा करेंगे। "-शोभा ने कहा। 

" तेरी वजह से ही ये सब हुआ है! दूसरे रास्ते से ले चलती। यही रास्ता क्यूँ ले आई और ऊपर से रात को।" 

"तू शांत रह ओके, शाम को तेरा ही प्लान था, चलने का मैंने तो सुबह को ही बोला था। और मुझे क्या पता था कि यह रास्ता बंद हो जाएगा। "

" यार! शांत हो जाओ। कोई उपाय ढूंढो। यहां हम लड़ने नहीं समर वेकेशन मनाने आएं हैं यार। 
साहिल तू अपने बैग से पानी की बोतल निकाल।" 

साहिल ने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और पानी की कुछ बूंदें समर के चेहरे पर छिड़की तो समर घबराता हुआ उठ बैठा। 

" क्या हुआ? समर तेको!"-पलक ने कहा। 

"बोल न समर क्या हुआ तेरे साथ जो तुम इतना घबरा गए थे कि बेहोश हो गए। "-शोभा ने समर के सामने बैठकर दोनों हाथ पकड़ते हुए कहा, मानो वह समर को झकझोर कर उसे होश में आने की कोशिश कर रही हो। 

"अबे! तेरे हाथ से तो खून निकल रहा है यार! तु बोलता क्यूँ नहीं है कुछ। क्या कोई जानवर था? "-साहिल ने उसका हाथ देखते हुए कहा। 

" न्न्न्न्नहीं....... व्व्व्व्वो... जानवर नहीं किसी भयानक चेहरे वाली बुढ़िया जैसी दिख रही थी।" 

"क्या???" 

"हां! यार। वो शायद अभी भी यही कहीं आसपास है। "

सभी दोस्तों के चेहरों पर डर अब साफ साफ दिखाई देने लगा था। 


तभी...... 

पास की झाड़ियों के हिलने आवाज आई। सभी उसी तरफ मोबाइल की फ्लैश करके देखने लगे। 

" चलो! दोस्तों, अब हम सब को यहां से निकलना चाहिए। यहाँ कुछ ठीक नहीं लग रहा है। "-पलक ने इधर उधर अपनी नज़ारों को घुमाते हुए कहा। 

"हां, चलो।" 

"समर ज्यादा तो नहीं लगी न!" 

"नहीं बस थोड़ा सी ही खरोच है।" 

"सुनो गाईज! कोई भी इस बात का जिक्र मेरे मामा के सामने नहीं करेगा ओके। "

" हाँ! तू सही कह रही है, शोभा नहीं तो मामा जी गुस्सा करेंगे और वो गुस्से में अपुन पर घूमने के लिए पाबंदी भी लगा सकते हैं। "


चारों दोस्त शोभा के मामा प्रताप सिंह के घर पहुंच गए थे। सभी के चेहरों पर फ़ेक स्माइल थी। जिससे उनके मामा जी को रास्ते में घटित घटना की भनक न लगे। 

" मामा जी! नमस्ते।"-सभी ने एक स्वर में कहा। 

" बच्चों! रास्ते में कोई दिक्कत तो नहीं आई। शोभा बिटिया तुम अपने दोस्तों को मैन रोड से लायी होगी।" 

"नहीं मामा जी! मैं वही पुराने उजड़े बगीचे के रास्ते से लायी सबको।वो बंद पड़ा था, तो थोड़ी बहुत दिक्कत हुई। मुझे नहीं पता था कि वह बंद पड़ा है जब मैं आख़िरी बार आई थी तब तो वह रास्ता साफ और अच्छा था।"

" अरे! उस रास्ते को बंद हुए 20 साल हो गए हैं। और रात के समय उस रास्ते से बिल्कुल आना मना है। "

" क्यूँ मामा जी! उस रास्ते में ऎसा क्या है? एक बुजुर्ग ने भी मना किया था। ऎसा क्या है वहां। "-साहिल ने पूछा। 

" उस रास्ते पर किसी डायन का साया है। 20 साल पहले उस रास्ते पर जाने वाले कई राहगीरों को डायन ने अपना शिकार बना लिया था। इसलिए पर्यटन विभाग ने बदनामी के डर से उस रास्ते को बंद कर दिया था। भगवान् का शुक्र है कि तुम लोग रात के समय भी सलामत लौट आए।" 


"ओह! माइ गॉड।"

" चलो कोई नहीं, खाना तैयार है, अब सब अपने हाथ पैर धो लो। सब मिलकर खाना खाएंगे।"

सभी खाना खाने और अपनी दिन की यात्रा के अनुभव बताने में व्यस्त थे। तभी प्रताप सिंह की नजर सामने गुमसुम बैठे समर पर गयी, जो असहज महसूस कर रहा था। 

" बेटा समर! क्या हुआ? खाना खाओ, यूँ उदास क्यूँ बैठे हुए हो। "

" व्व्व्व्वो..... कुछ नहीं मामा जी बस यूहीं।" - समर ने अपनी बाहों को ढंकते हुए कहा। 


"बेटा! तुम्हारी बाँह पर ये निशान कैसा?" 



"वो रास्ते में,मैं गिर गया था, उसी की हल्की खरोच है। वैसे सब ठीक है मामा जी। "



"वो क्या है न मामा जी। हम लोग पैदल आए थे। तो समर रास्ते में गिर गया था, हैं न समर।" - शोभा ने कहा। 

"हंहंहंहां..... मामा जी।"

" कोई बात नहीं, चलो सब जल्दी से खाना खाओ और आराम करो रात भी बहुत हो गई है। सुबह घुमने भी तो जाना है न सबको।" 

अगले दिन सुबह....... 

सूर्य अपनी लालिमा पूर्व में बिखेर चुका था। पक्षियों की सुरीली आवाजें मानों जैसे कानों में शहद घोल रहीं थीं। 
प्रकृति के इस अद्भुत नजारे का नजारा देखने के लिए सभी दोस्त नहा धोकर अपने मामा जी के बगीचे में पहुंच गए जो उनके घर के बगल में था। 
वैसे पूरा चंदनपुर एक बगीचे जितना सुंदर था। 

सभी दोस्त थे, मगर समर दिखायी नहीं दे रहा था वहां। 

"साहिल! समर कहां है? वो सुबह से दिखायी नहीं दे रहा है।" 

"हां! शायद वो अभी तक अपने कमरे में सो रहा होगा चल देखते हैं।" 

"वो ठीक तो हैं न सोभा।" 

तीनों दौड़कर समर के कमरे में पहुंच कर देखते हैं कि समर अभी तक सो रहा था। 

"समर! चल उठ जा अब, देख सुबह हो गयी है। घूमने नहीं चलना है क्या? "-साहिल ने समर को झकझोरते हुए कहा।

"ये क्या बे! तुझे तो बहुत तेज़ फीवर है। क्या हुआ समर।" 

" पता नहीं यार, सारा शरीर में दर्द हो रहा है और रात को भी नींद ठीक से नहीं आई। वो हादसा ही घूमता रहा आँखों के सामने। "

" समर! तुम्हारी आंखे भी लाल हैं। "

" चल तू उठ जा, पहले नहा धोकर फ्रेश हो जा और नाश्ता कर ले, तुझे मैं फीवर की टेबलेट देती हूँ।" - पलक ने कहा। 

सभी ने मिलकर नाश्ता किया और समर को फीवर की टैब्लेट दी। 
सभी ने समर के फीवर ठीक हो जाने के बाद घूमने का डीसाइड किया। 

लेकिन समर पर टैब्लेट का कोई असर नहीं हुआ। उसे तेज़ सर्दी लगने लगी। 
सभी दोस्त ये देखकर घबरा गए। जैसे ही समर को धूप में ले जाया गया तो एक डरावना नजारा देखने को मिला। 
समर धूप में पहुँचते ही जोर जोर से चीखने लगा। 
कुछ सेकंड तक चीखने के बाद समर बेहोश हो कर गिर पड़ा। 
सभी लोग एक दूसरे को देख रहे थे, क्योंकि वो अचंभित होने के साथ डरे हुए भी थे। 

शोभा ने समर को पास जाकर उसे पलटकर सीधा किया तो सब हैरान रह गए। 
क्यों कि समर अब बिल्कुल सामान्य था उसकी आँखें नॉर्मल और फीवर भी नहीं था। 

सब इस चमत्कार से खुश थे। 

सब घूमने को जाने लगे। सब बहुत खुश और उत्साहित थे, चंदनपुर की हसीं वादियों में खो जाने के लिए। 

"शोभा.... एक बात सुनो!" - प्रताप ने शोभा को टोकते हुए कहा। 

"हाँ! मामा जी, बोलिए।" - सभी दोस्त शोभा के साथ प्रताप सिंह के समीप पहुंच गए। 

"अच्छा! बच्चों, अब आप सब घूमने के लिए तैयार हो और उत्साहित भी हैं न।" 

"जी! मामा जी।" 

"अच्छा! एक बात सुनो, आज अमावस्या है और ऊपर से चंदनपुर की स्थिति पिछले सालों से ठीक नहीं है। अच्छा होगा कि आप सब सूरज ढलने से पहले ही घर आ जाना। ठीक है! कल जी भर के घूमना। "

" जी! मामा जी।"

" शोभा.... ।"

" जी, मामा जी! "

" इधर आओ तुम्हें कुछ बताना है।" 

शोभा अपने मामा जी के पास पहुंच गई। 

" देखो, उम्मीद है कि मेरी बात को सब समझ गए होंगे। कोई भी मेरी बात को अंधविश्वास समझ कर कोई नादानी या गलती मत करना। मेरी बात पर हर हालत में अमल में लाने की कोशिश करना।" 

" ऎसा क्या मामा जी। क्या सच में कोई भूत प्रेत या डायन होती है?" - पलक ने कहा। 

"हां! बेटा। ये मैं इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि मैंने इन हसीं वादियों में कई खौफनाक हादसे भी देखें हैं। बात ज्यादा पुरानी नहीं है, पिछले अमावस्या की रात को एक लोग की हत्या का मामला सामना आया है। ये एक नहीं हर अमावस्या की रात का सिलसिला है। "

"ये सब कौन करता है, मामा जी। "

" ये सब डायन करती है उसे अभी तक किसी ने भी नहीं देखा है! "

" क्यूँ? "

" क्यों कि जिसको वो दिखी है वो अब जिंदा नहीं है। "

" तो फिर आपको कैसे पता कि ये सब वो डायन ही करती है, क्या पता कोई सीरियल किलर हो जो इन वारदातों को अंजाम देता हो। अंधविश्वास की आड़ में। "

साहिल की इस बात पर प्रताप सिंह मुस्कुरा उठे। 

" बेटा, आपको तो CID में होना चाहिए था। बैसे एक बात बोलू एक दुनिया एसी भी होती है जो हमारे कानून, सोच और विज्ञान से परे है। और उसी काली रहस्यमयी दुनिया का यहां कब्जा है। ये बात मैंने अपने पुरखों से सुनी है। "

"मामा जी। अब आपने पूरी बात बताने की ठानी ही है तो ये भी बता दीजिए कि डायन आदमी को अपना शिकार कैसे बनाती है। "

"ठीक है, तो सुनो डायन पहले कैसे भी करके अपने शिकार को रात के समय उसको जख्म देती है और उसी जख्म के जरिये वो उस शिकार हुए इंसान को अपने काबू में कर लेती है। "

" क्या??? "

" हां! ऎसा सुना है मैंने और जिन लोगों की मौत हुई है उनके शरीर पर भी जख्म देखा है।क्या हुआ। तुम लोगों को,जो ऎसा बर्ताव कर रहे हो, डर गए क्या? "

सभी ने समर की ओर देखा समर घबराया हुआ था। 

" क्या हुआ बच्चों। "

" क्क्क्क्कुछ नहीं मामा जी!" 


सभी ने बात को छुपाना ही ठीक समझा क्यों कि अगर वो बता देते तो उनके मामा उनको घूमने नहीं जाने देते। 
इसका कारण उनकी घूमने की इच्छा और अंधविश्वास था। 
चारों दोस्त घूमने के लिए निकलने लगे। 

"शोभा बेटा! सूरज ढलने से पहले ही घर आ जाना। "

" जी, मामा जी। "



चारों दोस्तों ने चंदनपुर की हसीन वादियों में खूब मस्ती की। 
समर भी खुद को बेहतर महसूस कर रहा था, लेकिन उसका घाव गहराता जा रहा था। 
पलक और साहिल रोमैंटिक मूड में थे। वो दोनों कायनात जैसे माहौल को पूरी तरह से एंजॉय कर रहे थे। 
चारों तरफ फैली फूलों की खुशबू और मंद मंद बहती शीतल पवन शरीर को स्पर्श करके रोम रोम को आनंदित कर रही थी। 
पास में बहते हुए झरने के पानी की कल कल ध्वनि को सुनकर साहिल और पलक दोनों दौड़ कर तालाब में कूद पड़े और स्विमिंग का मज़ा लेने लगे, ऎसा मज़ा उन्हे शहर के स्विमिंग पूल में नहीं मिला। 

समर और शोभा पलक और साहिल को देख कर मुस्कुरा रहे थे। 
समर और शोभा दोनों तालाब के पास एक छोटी सी चट्टान पर बैठ गए जिसके पास में बहुत सारे सुगंधित फूलों की झाड़ी थी। 


समर ने अपना हाथ देखा तो उसमें दर्द और जलन धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी। जिससे समर की बेचैनी भी बढ़ रही थी। 

"क्या हुआ? समर, आर यू ओके।" - शोभा ने समर का हाथ पकड़ते हुए कहा। 

"क्क्क्क्कुछ नहीं बस ठीक है सब.... ऎसे ही।" - समर ने हङबङाते अपना हाथ खींच लिया। 


"शोभा!, देख समय क्या हुआ है?" 

"क्यूँ क्या हुआ? कुछ तो बोल यार।" 

"समय क्या हुआ है?.... छोड़ मेरा बैग।" 

समर ने अपना बैग शोभा से लिया और उसमें से अपना फ़ोन निकाला देखा तो शाम के ६ बज चुके थे। 

" शाम के ६ बज चुके है, मामा जी ने क्या कहा था याद हैं न तुम्हें। "

" हां! यार। "

" तो सबको बुलाओ चलो यहां से निकलते हैं, जल्दी। "

" ओके। "

समर की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। 
शाम के ६ बज चुके थे जंगल की वजह से अंधेरा हो गया था, जिससे सूर्य की रोशनी कम पहुंच रही थी। 
समर की आंखे लाल पड़ चुकी थी। उसका शरीर में दर्द होने लगा। 

" साहिल......!"

"क्या है, शोभा। "


" चल चलते हैं अब रात होने में थोड़ी ही देर है।" 

"रुक न यार बस थोड़ा और..।" 

"यार! आज अमावस्या है और समर की भी हालत बिगड़ रही है।" 


"रुक न यार तेरे मामा तो बाबा आदम के जमाने की बातें करते हैं, बिल्कुल फालतू और अंधविश्वास की। "-पलक ने साहिल को रोकते हुए कहा। 

साहिल और पलक एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर एक सुंदर पेड़ की ओर घूरते हुए आगे बढ़ गए। 
शोभा को अपने मामा की हर बात याद आने लगी वो अपने मामा की हर बात पर एतबार करती थी। 
क्यों कि बचपन में उसने उस डायन के द्वारा किए गए अपहरण की कई घटनाएं सुनी थी। 

शोभा दौड़ कर समर के पास गई। 

"समर! चलो निकलते हैं। मुझे लगता है कि हम चारों को साथ में रहना चाहिए।" 


"कहाँ हैं वो दोनो।" 

"ईस्ट की ओर गए हैं, चलो।" 

"मगर हम तो नॉर्थ से आए थे न।" 

"हां यार उनको भी साथ में लेना है, पागलों को। चलो।" 



समर और शोभा साहिल और पलक के पास पहुंच गए। 


"गाईस! शाम हो चुकी है और हम सबको साथ में रहना चाहिए और हाँ! ध्यान रहे कि हम सबको ग्रुप में रहना होगा ओके और जितना जल्दी हो सके तो हम सबको घर पर पहुँचना होगा।" - शोभा ने सबको आगाह करते हुए कहा। 

चारों तरफ अंधेरा हो चुका था और शांत मुद्रा में खड़े पेड़ों से झींगुरों और कीटों की आवाजें आने लगी थी। 
पार्थिव विकिरण से चारों तरफ़ का माहौल शांत और गर्म था। 
      
      सभी ग्रुप बनाकर घर की तरफ फुर्ती से बढ़ने लगे। 

   शाम को रोशनी धुंधली पढ़ने लगी, जिससे समर की बैचैनी बढ़ती जा रही थी। 
कुछ दूर चलने के बाद समर अचानक अपना हाथ पकड़कर बैठ गया और तेज आवाज के साथ चीखने लगा। ये देख सब घबरा गए और दौड़कर समर के पास गए। 

"क्या हुआ? समर!" - साहिल और शोभा ने समर को झकझोरते हुए कहा। 


"प्लीज... मुझे बचा लो। मुझे बहुत दर्द हो रहा है। यार...।" - समर ने एकदम साहिल का हाथ पकड़ते हुए कहा। 
समर का चेहरा बिल्कुल बदल चुका था, उसकी आँखें लाल अंगारे की तरह हो चुकी थी और साथ में ही उसकी आवाज में भी करकसता थी जैसे समर नहीं बल्कि उसमे से कोई शैतान बोल रहा हो। 


" समर! तुझे कुछ नहीं होगा। चल मेरे साथ घर पर, सब ठीक हो जाएगा। तुझे फीवर भी बहुत है इसलिए ऎसा महसूस हो रहा है।" - पलक ने समर को संभालते हुए कहा। 


"तू मुझे ले जाएगी यहाँ से हां, बेवकूफ़ लड़की। हाहाहाहाहा...!" - समर ने साहिल का हाथ छोड़ कर पलक की गर्दन ली और उसे हवा में उठा लिया। 


" आह्ह्ह्ह्.....! छोड़ो मुझे। आह्ह्ह्ह् प्लीज हेल्प मी। "-पलक अपने पैरों को फड़फङाते हुए कहा। 


"छोड़ इसे!" 


जैसे ही साहिल और शोभा ने पलक को छुड़ाने की कोशिश तो समर ने दोनों को धक्का दिया जिससे दोनों दूर जा गिरे। 

    जैसे ही शोभा फिर से खड़ी हुई तो उसका पैर कटीली झाड़ी नुमा चीज़ में फंस गया जब शोभा ने पीछे मुड़कर देखा तो चीख पड़ी इसका पैर एक भयानक चेहरे वाली हरी आँखों वाली बुड़िया जैसी दिखने वाली औरत के खूनी पंजों में था। 

       शोभा चीखते हुए अपने पैर को छुड़ाने की कोशिश करने लगी मगर वो नाकामयाब रही। उस डरावनी बुड़िया जो एक डायन थी जिसका जिक्र अक्सर शोभा अपने मामा की बातों और कहानियों में सुना करती थी। आज वो साक्षात् उससे रूबरू थी। 



"अच्छे बच्चे ज़िद नहीं करते, जाओ अपने घर नहीं तो मुझे तुम जैसे किड़ों को मसलने में देर नहीं लगती। ये मेरी चेतावनी है तुम सबको जाओ दफा हो जाओ यहां से रात होने से पहले.. जाओ।" - डायन ने सबको अपनी बातों से चेताया। 


डायन ने डरावनी हंसी से मुस्कराते हुए समर की ओर देखते हुए कहा -" बेटा समर। छोड़ दे इस नादान को। अगर इन सबको अभी मार दिया तो अगली बार बलि के लिए दूसरा इंसान खोजने के लिए दिक्कत हो सकती है क्योंकि ये कायर इंसान अमावस को शाम से पहले ही अपने घरों में छिप जाते हैं। 
        इन सबको मैंने घाव दिए हैं बस १ महीने की बात है, ये तड़पेंगे और १ महीने बाद ये खुद व ख़ुद आएंगे मेरे पास हाहाःहहाह..!"


समर ने मुस्कुराते हुए पलक को वहीं पटक दिया। 

" शाबाश! मेरे शेर..., चलो अब अपनी पूजा करते हैं। "-डायन सबको वही छोड़ और समर को अपने साथ ले गई। 

सब डर से कांप रहे थे और सबने अपने शरीर को देखा तो अचंभित रह गए, क्योंकि सबके शरीर में कहीं न कहीं समर की तरह घाव के निशान थे। 


"यार अब क्या करें, वो समर को अपने साथ ले गई है।"-पलक ने घबराते हुए कहा। 

" कही वो समर को मार न दे।" - साहिल ने कहा। 


"इसीलिए वो उसे ले गई है यार, अगर वो समर की बलि देती है तो देख रहे हो न सब अपने घाव वो डायन इसी घाव के जरिए हम सबको भी अपना शिकार बना लेगी। "-शोभा ने कहा। 

" तो क्या करें अब! "

" मेरी बात सुनो। वो डायन समर को मारे इससे पहले हमें कुछ करना ही होगा। अगर उसने समर को मार डाला तो वो और ताकतवर हो जाएगी फिर उसे रोकना मुस्किल हो जाएगा। "


" तो बता न शोभा यार। "

" सुन! मैं समर के पीछे जाती हूँ और तुम दोनों घर जाकर गाँव से सहायता ले आना ओके। "


" पर यार तूने सुना नहीं क्या उसने क्या कहा था। अगर हमने उसका पीछा तो वो सबको मार देगी। यार। "

" डोंट वरी! मुझे पता है जब डायन के पास बली के लिए कोई लड़का या मेल होता है, तब तक वो लड़की या औरत को नुकसान नहीं पहुंचाती। अब तुम जल्दी जाओ और सहायता लेकर आओ।" 


" ओके! बी केरफूली। "

" हम्म्म्म! "

" एक बात सुन! "

" क्या? "

" मामा को किस जगह लेकर आना है ये तो बता दे। "

" वो तो मामा जी को पता है कि वो डायन कहां रहती है। "


साहिल और पलक दोनों घर की ओर दौड़े। 

रात गहराती जा रही थी और जंगली जानवरों की आवाजें अकर्णप्रिय ध्वनि उत्पन्न कर रहे थे, जैसे कि कोई साहिल और पलक को आकर अभी अपना शिकार बना लेगा। 
चारों तरफ़ सन्नाटे पसरा हुआ था, हवा भी हल्की हल्की बहने लगी थी। रास्ता भी अंधेरे की वजह से साफ नहीं दिख रहा था। 

उधर शोभा को भी अंधेरे की वजह से समर का पीछा करने में दिक्कत हो रही थी। 
अचानक समर रुक गया तो शोभा भी रुक गई, समर ने पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं दिखा। शोभा अपने मुँह पर हाथ रखकर पास की झाड़ियों में छिप गई। 
     तभी शोभा को सामने कुछ ही दूरी पर एक अंधा कुआँ दिखा जिसके अंदर से एक हल्की पीली रोशनी दिख रही थी। 
कुआं अपनी जर्जर हो चुकी हालत में था उसके चारों तरफ़ झाड़ियां और घास थी जिससे उसे देख पाना मुश्किल था। 

 वह डायन समर को लेकर जब कुँए के पास पहुंची तो एक तेज़ रोशनी दिखी और उसके बाद शोभा की आँखों के सामने अंधेरा छा गया। 
इसके बाद उसे कुछ न दिखा। वो दौड़ कर वहां गयी और इधर उधर देखने लगी उसे कुछ भी नहीं दिखा वो घबरा गई, क्योंकि अब वो कैसे उसके पीछा करे और वो डायन समर को कहां ले गई ऎसे ख्यालों से शोभा घबरा गई। 


     तभी उसका पैर एक खाली जगह पर पड़ा और वह नीचे की ओर चली गई वह एक चीख के साथ जमीन पर जा गिरी वह और कुछ नहीं कुआं ही था। 
वह कुँए में गिर गई थी क्योंकि कुआं फूटा हुआ था। 

शोभा खड़ी होकर इधर-उधर देखने लगी तो उसने कुएँ कि दीवार में एक बड़ा सा द्वार दिखा। 

    शोभा ने अंदर झांक कर देखा तो अंदर अंधेरे की वजह से कुछ दिखायी नहीं दे रहा था। तभी शोभा को अपने कंधे पर नुकीली चीज़ का आभास हुआ उसे समझते देर नहीं लगी वो चीख कर पीछे मुड़ी तब तक डायन ने उसे कुँए की दीवार पर पटक दिया। 

"मैंने कहा था न, बेवकूफ़ लड़की ज़िद नहीं करते चली जाती यहां से तो १ महीने तक और जी लेती, मगर लगता है कि तुझे अपनी जिंदगी प्यारी नहीं है।, चल!" 


साहिल और पलक कुछ दूर चले ही थे कि उन्हे सामने से शोभा के मामा प्रताप सिंह और कुछ गाँव वाले अपने हाथों में मशाल, टार्च और हथियार लेकर आते हुए दिखे। साहिल और पलक के चेहरे पर डर जाता रहा और दोनों को उम्मीद जगी। 

दरअसल प्रताप सिंह बच्चों के घर न पहुंचने पर चिंतित था। इसलिए वो उन्हे ढूंढने के लिए खुद जंगल में पहुंच गए। 

"वो मामा जी, वो डायन समर को ले गई।" 

"क्या? मुझे इसी बात का डर था। शोभा कहां है?" 

"वो समर और डायन का पीछा करते हुए गई है।" 

"क्या? हे! ईश्वर इस लड़की को अकल कब आएगी, वो डायन है, न कि कोई आम महिला, जो वो उससे मुकाबला कर पायेगी।"

"चलो भाईयो। वो उसे उस उजड़े हुए रास्ते के अंधे कुँए में ले गई होगी।"



शोभा ने अपनी आँखे खोली तो खुद को एक खंबे से बंधा हुआ पाया। उसके कानों में मंत्रों की आवाज सुनायी दी तो सामने देखा तो दंग रह गई। 
सामने समर बेदी के पास घुटनों के बल बैठा था। वो खौफनाक चेहरे वाली डायन समर जो उसके लिए बलि था उसका पूजन कर रही थी। 
वह डायन एक मृत औरत थी, जो अपने जिंदगी और उम्र के लिए हर अमावस्या की रात को इंसान की बलि देती थी। 
शोभा ने छूटने के लिए छटपटाने लगी। 


शोभा रोने लगी पर वो बेवस थी वो बंधी हुई थी। 

तभी शोभा को सामने पलक आती हुई दिखी उसने शोभा को अपने मुंह पर अंगुली रखकर चुप रहने का इशारा किया। 

पलक चुपके से शोभा के पास जाकर उसकी रस्सी को काट दिया और शोभा अभी भी बंधे हुए होने का नाटक कर रही थी। 


तभी प्रताप सिंह ने अपनी बंदूक से डायन पर निशाना साधते हुए कहा - "रुक जा डायन। तेरा ये गंदे कारनामो का खेल खत्म अब।" 


"हाहाहाहा..... तेरे जैसे मामूली इंसान ऎसे खिलोनों से मुझे डराने चले हो, लगता है कि आज एक नहीं कई बलियाँ एक साथ चङेगीं, हाहाहाहा...।" - डायन ने अपनी हरी आंखों को दिखाते हुए कहा। 

प्रताप सिंह ने बंदूक से डायन पर फायर किया। लेकिन उस डायन का कुछ नहीं हुआ। वह लगातार हँसती जा रही थी सभी ने अपनी अपनी बंदूकों से उस डायन पर हमला किया। 
अब उस डायन की बारी थी, अपनी पूजा में विघ्न पड़ते देख वो आग बबूला हो गई तभी उसने अपनी शक्ति से सभी लोगों को जमीन पर पटक दिया और उन सबको पत्थर बना दिया। 


"हाहाहाहा... अब आया न मज़ा पड़े रहो यही सब, और करो अमावस्या की रात को अपनी मौत का इंतज़ार। तुम सबको तो मैं बाद में देखूँगी। अब बलि का समय हो गया है।" 

डायन का ध्यान शोभा और पलक पर नहीं गया क्योंकि उसे नहीं पता था कि शोभा अभी छूट चुकी है। 

डायन ने खंजर उठाया और समर की ओर बढ़ने लगी। जैसे ही उसने समर को मारने के लिए खंजर उठाया तो पलक ने उसका हाथ पकड़ लिया। 
और शोभा ने झट से उसके बाल काट लिए। 
डायन ने पलक को दूर फेंक दिया। डायन बाल कटते ही कमजोर होने लगी। वह गुस्से में शोभा की ओर बढ़ी। 

"देखो, मेरी तरफ मत बढ़ना मैं बालों को जला दूँगी। सच बोल रही हूँ,।" 

शोभा के पैर और आवाज कांप रही थी। 

"हाहाहाहा... इन्हें जलाकर मुझे तो ख़त्म कर दोगी, पर याद रखना। मेरे साथ ये सब भी खत्म हो जाएंगे।" 


तभी शोभा गिर पड़ी और उसके हाथों से डायन के बाल गिर गए शोभा डर से चीखने लगी। 

" शोभा जल्दी से बाल आग में जला! ये ख़त्म हो जाएगी और हम सब बच जाएंगे, ये झूट बोल रही है ये तुम्हारे दिमाग से खेल रही है। "

शोभा कुछ कर पाती तब तक डायन ने शोभा का गला पकड़ लिया और उसे हवा में उठा लिया। 

डायन शोभा को मारती तब तक पलक ने बाल उठाकर आग में डाल दिए। 
जिससे डायन चीख पड़ी उसका शरीर कांप उठा और देखते ही देखते वो डायन जलकर खाक हो गई। 

डायन के मरने के बाद वहां सब कुछ सामान्य हो गया। 
सब लोग बिल्कुल ठीक हो गए। शोभा ने पलक को गले लगा लिया। 
शोभा की सूझबूझ और पलक की हिम्मत ने सबको दूसरी जिंदगी दी थी। सब एक दूसरे के गले मिले और वापस अपने घर को आ गए। 
अब चंदनपुर इन चारों दोस्तों के कारण डायन के शाप से मुक्त हो गया दनपुर की खूबसूरती में चार चांद लग गए थे और चंदनपुर के पर्यटकों में भी इजाफा हुआ। 
सुबह होते ही ये खबर सारे चंदनपुर वासियों के साथ फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट तक फैल गई। 
सभी लोगों ने उन सबको शाबासी दी और वन विभाग ने उन्हे पुरस्कृत किया। 
हम सबको को भी अपनी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, मरते दम तक चाहे सामने मौत क्यूँ न खड़ी हो। 
आप अपनी सूझबूझ से मौत को भी मात दे सकते हैं। 

                💕 समाप्त 💕

💕 ✍🏻 सोनू समाधिया रसिक 🇮🇳 💕💕💕


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Thanks for read my article
🥀रसिक 🇮🇳 🙏😊😊

Best for you 😊

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