Town of Death chapter Five

TOWN OF DEATH Chapter-FIVE

                   (शापित भेड़िये) 
By- Mr. Sonu Samadhiya Rasik 





अगली सुबह पक्षियों की चहचहाहट से दीप्ति की नींद टूट गई। उसने अपनी आँखें खोली तो देखा कि निकिता भी उसके साथ नेहा की रजाई में घुसी हुई है।
प्रवीण और रजनीश पास के सोफे पर लुढ़के हुए हैं। देर रात तक जागने से शायद उनकी नींद पूरी नहीं हुई थी, इसलिए वो अभी तक सो रहे थे।
प्रोफेसर राणा खिड़की के पास खड़े हुए बाहर मोहिनीगढ़ का मनमोहक प्राकृतिक दृश्य सौंदर्य का अवलोकन कर रहे थे। साथ ही वह देख रहे थे कि रात को उस भेड़िये ने रोनित पर हमला इसी खिड़की को तोड़कर किया था।

दीप्ति, प्रोफ़ेसर के पास पहुंच कर वह भी बाहर का नज़ारा देखने लगती है।

"सर, आप सोए नहीं क्या?"

"हाँ, थोड़ा बहुत। हम सब अभी तक मुसीबत में हैं। ऎसे में नींद कैसे आ सकती है? हम सब एक अपरचित और जोखिम भरी जगह पर हैं। यहाँ पता नहीं कब क्या हो जाए।"

"आपने सही कहा। हमें सतर्क रहना होगा।"

दीप्ति ने मुड़कर देखा तो नेहा खड़ी हो गई थी। वह दूसरी खिड़की के पास खड़ी बाहर की ओर देख रही थी।

" क्या देख रही है, बाहर।"- दीप्ति ने नेहा के पास जाकर धीमी आवाज में कहा।

बाहर अभी हल्की धुंध छाई हुई थी। इस वजह से फिलहाल धूप के निकलने की कोई उम्मीद नहीं थी। 
नेहा कुछ कहती तब तक दीप्ति की नजर नीचे काम कर रहे विक्रांत पर गई। जो नीचे एक कुल्हाड़ी से लकड़ियों को काट रहा था। 

" ओहो, तो ये बात है। मेडम, बाहर का नज़ारा नहीं, उस हैंडसम बंदे को देख रहीं हैं। वैसे यार ये विक्रांत है बड़ा मस्त। इसके मसल्स देखो.... ।" - दीप्ति फुसफुसाई ।

"अरे यार! कुछ भी। मुझे उसमें कोई इंट्रेस्ट नहीं है। बस सर थोड़ा सा भारी था, तो हल्का कर रही थी।" 


" क्या हुआ? तू ठीक तो है न।"

" हम्म्म.... ।"

" देख नेहा! वो तुझे देख रहा है।मेरा तो मन करता है। कि एक बार तो राइड करूँ यार।"

" पागल हो गई है तू ड्रग्स के चक्कर में। जो कुछ भी बक रही है। रोनित कैसा है देखा तूने?"- नेहा ने झुंझलाहट में कहा। 

" ओह नो! चल देखते हैं।"
दीप्ति जैसे ही रोनित वाले कमरे में जाती है तो हैरान रह गई। रोनित अपने बेड पर नहीं था। 
उसने चीख़ कर नेहा को आवाज दी। नेहा दौड़कर उस कमरे में पहुंच गई। 

दीप्ति की चीख सुनकर सभी लोग उस कमरे में इकट्ठे हो गए। सभी रोनित को वहाँ न पाकर हैरान थे। 

" विक्रांत! रोनित कहाँ गया?" - रजनीश ने विक्रांत से पूछा। 

"श्श्श..... ।" - विक्रांत ने मुँह पर उंगली रखते हुए सभी को शांत रहने का इशारा किया। 

सभी शांत हो गए। विक्रांत की नजर बेड पर गई। जहां पर रोनित लेटा हुआ था। फिर उसने सामने खुली खिड़की को देखा और उसके पास पहुंच गया। 


" क्या वह इस खिड़की से कूद कर बाहर चला गया है?"-निकिता ने परेशान होते हुए पूछा। 


"नहीं।" - विक्रांत ने खिड़की को बंद करते हुए कहा। 

"तो..?"-प्रवीण ने कहा। 

"उस पर भेड़िये के जहर का असर हुआ है।" - विक्रांत ने सबकी और मुड़ते हुए कहा। 

"क्या?" 
सभी का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। 


" हाँ! मानव भेड़िये जिन्हें वेयरवुल्फ कहते हैं। उन्हें धूप से डर लगता है और रोनित के बेड पर धूप पड़ रही थी। इसलिए मैंने खिड़की को बंद कर दिया। रोनित, अभी एक नए वेयरवुल्फ की तरह बर्ताव कर रहा है।" 

"तो रोनित गया कहाँ?" 

"वह यहीं कहीं है हमारे आसपास।" - नेहा ने कहा। 

" क्या?"

" हाँ! सुनो ध्यान से।"

सभी ने शांत हो कर सुना तो बेड के नीचे से किसी के गुर्राने की आवाज आ रही थी। 

" दीप्ति! तुम सतर्क रहना। रोनित तुम पर हमला करेगा। क्योंकि तुम्हारे सर से अभी खून निकल रहा है। इसी खून की गंध उसे तुम तक खींच कर लाएगी और तभी हम उसे पकड़ कर अपने काबू में कर लेंगे।" 

सभी लोग तैयार थे।कि कब रोनित दीप्ति के पास आयेगा और उसे काबू कर लिया जाए। 


" विक्रांत, रोनित को कुछ होगा तो नहीं न।"- नेहा ने चिंता जताई। 

" बिल्कुल नहीं। मेरे होते हुए तो ये असंभव है। चिंता मत कीजिए।"

उसी वक़्त रोनित गुर्राता हुआ। दीप्ति पर झपटता है। तभी विक्रांत उसकी गर्दन पकड़ कर उठा कर उसे बेड पर पटक देता है। 
रोनित बुरी तरह से छटपटा रहा था। 

" विक्रांत! आराम से उसके लग जायेगी।" - नेहा ने विक्रांत का हाथ पकड़ते हुए कहा। 

" रुकिए, आप रोनित अभी अपने होश में नहीं है। वह अभी सभी के खून का प्यासा है।" 

सभी लोगों ने मिलकर रोनित पर काबू पाया। 
विक्रांत, रोनित को बेहोशी का इंजेक्शन दे कर उसे सुला देता है। 

सभी लोग रोनित को लेकर बहुत चिंचित हो उठे। 

"विक्रांत! रोनित ठीक होगा भी या नहीं। तुम्हारे रजत भस्म का लेप भी काम नहीं कर रहा है। बताओ अब आगे क्या किया जाए। जिससे रोनित बिल्कुल ठीक हो जाये।" - नेहा ने विक्रांत से पूछा। 


"इसका एक ही उपाय है। इसे हम अभी शहर जाकर हॉस्पिटल में एडमिट कराएंगे वहीं इसका ठीक से इलाज करेंगे। विक्रांत, तुम्हारे पास कोई कार या फिर कोई अन्य वाहन हो तो मुझे शहर तक छोड़ दो। अब हम यहाँ एक मिनिट नहीं रुकने वाले।"-प्रोफेसर राणा ने रोनित की ओर देखते हुए कहा। 


" हाँ! सर सही बोल रहे हैं यार।"-दीप्ति ने कहा। 


" पहले मेरे बात तो सुनिए।"-विक्रांत ने सभी को टोकते हुए कहा। 

" हाँ, बोलो!"

" रोनित, अब मोहिनीगढ़ से बाहर नहीं जा सकता। जब तक वह शापित है। आप सब जा सकते हैं लेकिन रोनित नहीं। अगर आप लोगों को जाना ही है,तो कोई बात नहीं रोनित को आप बेफिक्र छोड़कर जा सकते हैं।"


" क्या कह रहे हो तुम? हम रोनित को अकेला छोड़कर नहीं जा सकते। मुझे तुम पर भरोसा नहीं है, विक्रांत।"-नेहा ने कहा। 


" अगर रोनित ने मोहिनीगढ़ की सीमा के बाहर एक भी कदम बाहर रखा न तो उसके शरीर के चीथड़े उड़ जाएंगे। भरोसा नहीं है तो चलिए मेरे साथ, आप लोगों को ये प्रैक्टिकली समझाता हूँ।"


" लेकिन रोनित अकेला..... ।"-निकिता ने कहा। 

" मैं यही रुक जाता हूँ।" - रजनीश ने कहा। 

" मैं भी.. ।"- निकिता ने कहा। 

" हाँ, ठीक है। जैसी आप दोनों की मर्ज़ी। वैसे फिक्र करने की जरूरत नहीं है। क्योंकि रोनित को २-३ घंटे तक होश नहीं आने वाला।"

विक्रांत ने बंगलो से बाहर निकलने से पहले इंजेक्शन से रोनित के खून का सेम्पल लिया और दूसरे कमरे में जाकर एक पिंजरा उठा लाया जिसमें एक खरगोश बंद था। 
प्रोफ़ेसर राणा, प्रवीण, दीप्ति और नेहा, विक्रांत के साथ चले गए। रजनीश और निकिता, रोनित के पास रुक गये। 

विक्रांत, सभी को मोहिनीगढ़ की सीमा की ओर ले गया। जहाँ से सभी लोग वहाँ आए थे। 
सभी लोग घबराए हुए थे। क्योंकि मोहिनीगढ़ जितना सुंदर दिख रहा था उतना ही ख़तरनाक था। चारों तरफ़ धुंध में मटमैले घरों - बैल गाड़ियों एवं अन्य मानवोपयोगी वस्तुओं के अवशेष दिख रहे थे। ये सब मोहिनीगढ़ की सुंदरता पर एक काले धब्बे की भाँति जान पड़ रहे थे। लेकिन ये उजड़े और वीरान घर मोहिनीगढ़ में घटित अनसुनी दास्तां का दर्द बयां कर रहे थे। 

विक्रांत ने सभी के उतरे हुए चेहरों को देखा और मुस्कुराते हुए कहा कि - "अभी घबराने की जरूरत नहीं है। क्योंकि अभी दिन है और वेयरवुल्फ धूप में नहीं निकलते।" 

चारों तरफ किसी मरे हुए जानवर की सड़न की गंध फैली हुई थी। जिससे सभी का जी मिचलाने लगा। यह दुर्गंध पास ही में पड़े मरे हुए हिरण के शरीर से आ रही थी। 


निकिता, खड़े होकर खिड़की के पास पहुंच कर गई। 

" रजनीश! आज बाहर का मौसम कितना अच्छा है न।" - निकिता ने रजनीश की ओर देखते हुए कहा। 

"अच्छा जी।" - रजनीश ने निकिता के करीब आते हुए कहा। 

"हम्म... देखो न पास आकर।" 

रजनीश ने निकिता को पीछे से अपनी बाहों में भर लिया। 

"छोड़ो भी यार, रोनित है सामने।" - निकिता ने खुद को रजनीश की गिरफ्त से छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा। 

रजनीश ने रोनित की ओर देखा। वह अपनी आँखें बंद किए सो रहा था। 

"बाबू! ऎसे खुशनुमा मौसम में कुछ करने का इरादा है क्या?" - रजनीश ने अपनी पकड़ मजबूत करते हुए कहा। 

"क्या?" - निकिता ने रजनीश की आंखों में आंखे डालते हुए कहा। 

"प्यार..... ।" - रजनीश अपना चेहरा निकिता के खूबसूरत चेहरे के करीब ले जाते हुए कहा। 

निकिता की आंखें बंद हो चुकी थीं। रजनीश की निगाहें निकिता के लाल सुर्ख होंठों पर गढ़ीं हुईं थीं। निकिता के हसीन चेहरे पर बिखरी हल्की मुस्कान उसके खूबसूरत चेहरे पर सुंदरता के चार चाँद लगा रही थी। जिसे देख कर रजनीश को खुद पर काबू न रहा। 
अब दोनों के चेहरे इतने करीब थे कि दोनों को अपने चेहरे पर एक दूसरे की साँसे महसूस हो रहीं थीं। 
रजनीश, निकिता के होंठ चूमने के लिए जैसे ही बढ़ा तो निकिता ने उसे धक्का देकर उसे खुद से अलग कर दिया और खिलखिलाकर हँसती हुए कमरे के बाहर की ओर दौड़ पड़ी। 
निकिता, कमरे के गेट पर रुकी और मुड़कर रजनीश की ओर देखा। 
उसने रजनीश को एक हल्की मुस्कान पास की और वहां से चली गई। 


विक्रांत, सभी के साथ मोहिनीगढ़ की सीमा पर खड़ा था। सभी हैरान और उत्सुक थे कि अखिरकार विक्रांत करना क्या चाहता है।
सभी को सामने वही जगह दिख रही थी। जहाँ पर उनकी कार खराब हुई थी। कार अभी भी वहीं खड़ी थी।
तभी दीप्ति को कार के पास पड़े अपने पर्स पर गई तो वह उसकी तरफ बढ़ने लगी। उसके सीमा पार करने से पहले ही विक्रांत ने उसको पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया।

"क्या हुआ? मुझे जाने दो! सामने कार के पास मेरा पर्स पड़ा है। उसमें मेरा कैस और इंपोर्टेंट सामान रखा है।" - दीप्ति ने हैरान होते हुए कहा।


"सॉरी, मैं आपको बार्डर क्रॉस नहीं करने से सकता।"

"पर तुमने तो कहा था कि जो शापित होतें हैं जिन्हे भेड़िये ने काटा हो। वह सीमा पार नहीं कर सकते। दीप्ति तो नॉर्मल है वह शापित नहीं है न।"-नेहा ने कहा।


" हाँ, लेकिन रात को जब आप पर रोनित ने हमला किया था। उसमें आप जख्मी हुई थी। आपको लगा वो चोट थी कहीं वह रोनित के काटने या फिर नाखूनों के निशान हुए। तो रिस्क नहीं ले सकते न। मेरी बात मानो तो आप में से किसी को भी बाहर नहीं जाना चाहिए।"-विक्रांत ने समझाते हुए कहा। 


" क्या करना था, तुमको वह करो। वहाँ रोनित अकेला है।"- नेहा ने कहा। 

" हाँ!"

विक्रांत ने खरगोश को पिंजरे से बाहर निकाला और इंजेक्शन से रोनित के रक्त को, खरगोश के शरीर में इंजेक्ट कर दिया। 
इसके बाद विक्रांत ने खरगोश को मोहिनीगढ़ की सीमा के पास छोड़ दिया। जैसे ही खरगोश सीमा के उस पार जाता है। 

रजनीश, मुस्कुराते हुए निकिता के पीछा करते हुए कमरे से बाहर निकला। लेकिन वहां निकिता नहीं थी। 
रजनीश, निकिता को आवाज लगाकर ढूढने लगा। तभी पास के कमरे से आवाज आई - "बाबू, मैं यहाँ हूँ।" 

रजनीश भागकर उस कमरे में पहुंच गया। लेकिन वहां भी उसे निकिता नहीं दिखी। वह परेशान होने लगा कि तभी पीछे से निकिता ने उसे धक्का देकर पास पड़े बेड पर गिरा दिया। 

रजनीश ने देखा कि निकिता उसे कामुक नजरों से देख रही थी। उसने बिना कुछ कहें उसकी ओर बढ़ते हुए अपनी जैकेट और स्वेटर को निकाल दिया। अब निकिता के शरीर पर एक पतली सी कमीज ही बची थी। यह देख रजनीश ने भी अपनी जैकेट को निकाल फेंका और खड़े होकर निकिता को अपनी बाहों में भर लिया।

रजनीश ने उसके कान के पास जाकर हल्के से पूछा - "मे आई किस यू बेबी!"

"या बेबी.... ।" - निकिता फुसफुसाई। 

रजनीश ने निकिता के होंठों को चूम लिया। जिससे सारा माहौल एक रंगीन और खुशनुमा प्यारा हो गया। 
रजनीश ने निकिता को एक दीवार से सटा दिया। उसने अपने हाथों से निकिता के हाथ दीवार पर दबा के रखे थे। 
दोनों की साँसे तेज हो गईं थीं। मदहोशी अपने चर्म सीमा पर थी। रजनीश, निकिता के माथे और गले को चूम रहा था। निकिता ने रजनीश की शर्ट के बटन खोलने लगी। दोनों अपना होश गवां चुके थे। 

निकिता की नजर कमरे के खुले गेट की ओर गई तो उसकी चीख निकल पड़ी। 
दोनों घबरा कर गेट की ओर देखते हैं कि गेट पर रोनित खड़ा उन दोनों को घूर रहा है। जो दिखने में बिल्कुल असामान्य दिख रहा था। 
उसे देख कर दोनों की चीख निकल पड़ी। 

विक्रांत के द्वारा छोड़ा गया, खरगोश। सीमा के उस पार जाते ही माँस के चीथड़ों में फट गया। यह देख कर सभी की रूह काँप उठी। 

"अरे बाप रे! ये क्या था?" - प्रवीण ने कहा। 

"ये शाप का असर था। क्योंकि खरगोश रोनित के खून से शापित हो चुका था और सीमा पार करते ही वह मर गया। समझ लो इसी तरह कोई भी शापित जानवर या इंसान सीमा पार करता है, तो उसके साथ यही हश्र होगा।" 


"इसलिए कोई जानवर या फिर कोई इंसान मोहिनीगढ़ में एक बार आने पर फिर कभी बापस नहीं जा पाता है।"-दीप्ति ने कहा। 

" हाँ सही कहा।"

" क्या ये शाप तोड़ा नहीं जा सकता?"-नेहा ने पूछा। 

" नहीं, लेकिन ये १५ - २० दिनों बाद अपने आप ख़त्म हो जाता है। ये बात केवल मुझे पता थी लेकिन अब आप सबको पता चल चुका है।"

" इसका मतलब हम सबको अभी २० दिन यहीं पर गुजरना पड़ेगा?" - दीप्ति ने कहा। 

" हाँ। चलिए सब नाश्ता करते हैं। मैंने सभी के लिए ब्रेकफास्ट तैयार करके रख दिया था। लंच का भी समय हो जाएगा फिर तो... ।"

" मुझे यहां कुछ अजीब सा लग रहा है। न जाने मुझे ऎसा क्यूँ लगता है कि हम सब यहाँ से जिंदा बापस नहीं जाने वाले। क्योंकि यहाँ गिने चुने इंसान और सारा कस्बा भूखे आदमखोर भेड़ियों से भरा हुआ है। जो हर वक़्त हमारे शिकार की ताक में रहते हैं। कुछ पर तो गोली भी असर नहीं करती।" - नेहा ने चिंता जाहिर करते हुए कहा। 

" नेहा, हिम्मत रखो। हम सब जिंदा और ठीक घर जाएंगे।"- प्रोफेसर ने नेहा को सांत्वना दी। 


" नेहा जी। आप बेफिक्र रहिए। मैं वादा करता हूं। मेरे रहते हुए आपको कोई खरोंच तक नहीं आयेगी। बशर्ते बस सभी रोनित की तरह बेवकूफी मत करना और मेरी बात मानना हमेशा।" - विक्रांत ने नेहा को भरोसा दिलाया।



नेहा ने रात वाली घटी घटना का जिक्र करते हुए कहा। कि - "हाँ! सही बोल रहे हो। तभी तो कल रात को उस भेड़िये पर गोली नहीं चलाई, जो मुझे मारने वाला ही था।" 

" अरे! वो सब छोड़ो। चलो बापस चलते हैं। वहां पर सिर्फ तीन लोग हैं और रोनित को भी जल्दी ही होश आने वाला है। निकिता और रजनीश अकेले उस को काबू नहीं कर सकते।" - प्रोफेसर ने समझाते हुए कहा। 

सभी बंगलो की तरफ बढ़ने लगे। 

जब सब बंगलो पर पहुंचे तो सभी दंग रह गये। रोनित अपने बेड पर नहीं था और न ही निकिता और रजनीश का कुछ अता पता नहीं था। सभी बहुत डर चुके थे सिवाय विक्रांत के। 
नेहा और दीप्ति, निकिता और रजनीश को आवाज लगाते हुए ढूंढने लगी। 
प्रवीण और प्रोफेसर बाहर दोनों को ढूंढने के लिए चले गए। 

"आप सभी अपना ध्यान रखना, क्योंकि रोनित को अब होश आ चुका है।" - विक्रांत ने सभी को आगाह करते हुए कहा। 


नेहा और दीप्ति पास के कमरे में गई। वहां उन्होने कमरे में चारों तरफ खून ही खून बिखरा हुआ देखा। तो दोनों चीख पड़ी। उनकी चीख़ सुनकर सभी लोग वहाँ पहुँच गए। 

सभी ने जब ठीक से कमरे की छानबीन की तो बेड के बगल में रोनित को औंधे मुँह बेहोश पड़ा पाया। उसके सर से खून बह रहा था। 

"रोनित..... ।" - नेहा चीख कर रोनित की ओर दौड़ी। 

प्रवीण ने नेहा को उसके पास जाने से रोका। 

"रुक जाओ नेहा, वो अभी होश में नहीं है। वह तुम पर भी हमला कर सकता है।" 


"लेकिन रोनित को हुआ क्या है? वो जिंदा तो है न। उसके साथ किसने किया ये सब।" 

नेहा ने सवालों की बौछार कर दी। 
विक्रांत ने बेहोश पड़े रोनित को सीधा किया और अपनी उंगली उसकी नाक के पास ले गया और बोला कि -" इसकी साँसे चल रहीं हैं ये अभी जिंदा है। ये जिंदा इसलिए है क्योंकि इस पर अभी भेड़िये के जहर का असर है। नहीं तो इतना खून बहने के बाद भी कोई जिंदा नहीं रह सकता। शायद इसने होश आने पर निकिता और रजनीश पर हमला किया होगा और निकिता या फिर रजनीश ने अपने बचाव में किसी चीज़ से इसके सर पर वार करके बेहोश कर दिया होगा।"

विक्रांत ने रोनित को उठाकर बेड पर लिटा दिया और उसके सर पर बैन्डेड लगा दी। साथ ही उसके हाथ और पैरों को बांध दिया। 

" लेकिन निकिता और रजनीश कहाँ गए?"-प्रोफेसर ने कहा। 

" कहीं रोनित ने उन्हें काट तो नही लिया या फिर मार दिया हो।"-दीप्ति ने घबराते हुए कहा। 


"मारा तो नहीं होगा। अगर मारा होता तो उनकी डेड बॉडी यहीं कहीं पड़ी होती। लेकिन रोनित ने उन्हें काटा होगा तो अब उनसे भी सभी लोगों को खतरा है। क्योंकि अब वो भी शापित हो चुके हैं और उन्हें भी इंसानी खून और माँस की जरूरत पड़ेगी।"-विक्रांत ने समझाया। 

"तो दोनों गये कहाँ यार। कहीं वो सीमा के बाहर न चलें जाएं। क्योंकि हम सबको पता है कि सीमा पार करने में क्या खतरा है। उन्हें नहीं।"-प्रवीण ने परेशान हो चुका था। 


" मुझे पता है कि वो दोनों कहां गए होंगे। चलो मेरे साथ। सबको मेरे साथ रहना है और ये पकड़ो अपनी अपनी गन। क्योंकि उन दोनों पर काबू पाना मेरे अकेले के बस में नहीं है।"
विक्रांत ने सभी को एक एक पिस्तोल पकड़ा दी। 


" कोई भी गन को बेवजह नहीं चलाएगा क्योंकि दोनों हमारे दोस्त हैं। याद रहें, वो शाप खत्म होने से पहले ही हम सबके लिए खतरा हैं बस, बाद में सब ठीक हो जाएगा। भगवान् करे रोनित ने उन्हें काटा न हो। "- नेहा ने कहा। 

" वैसे तुमको ये सब कैसे पता?" - दीप्ति ने विक्रांत से पूछा। 


" क्यों कि मुझे पता है। रोनित के डर से वो बंगलो के अंदर नहीं छिपेंगें। इसकी वजह उन्हें पता है कि रोनित को कभी भी होश आ सकता है और वो उन्हे ढूंढ लेगा। दूसरी बात वो दोनों बाहर नहीं जा सकते अगर मेरा अनुमान सही है तो क्यों कि अगर वो रोनित द्वारा काट लिए गए हैं तो धूप से वो अपना बचाव करने के लिए यार्ड में एक स्टॉक रूम है। उसमें छिपे होंगे। 
लो वो गया सामने देखो शायद वो वहीं छिपे हुए होंगें।"- विक्रांत ने सामने एक टूटे पड़े कमरे की ओर इशारा किया। 


" सभी सावधान हो जाओ और अंदर घुसने से पहले मैं और प्रवीण दोनों को आवाज लगाएंगे। अगर अंदर से कोई रिस्पॉन्स नहीं आया तो हम सब मिलकर अंदर जाकर देंखेंगे।"-विक्रांत ने कहा। 


सभी उस कमरे के पास पहुंच गए और निकिता और रजनीश को आवाज लगाई। लेकिन कुछ देर तक आवाज देने के बाद भी अन्दर से कोई जवाब नहीं आया। प्रवीण ने सभी से अंदर चलने का इशारा किया और अंदर घुस गया। 

सभी अपनी - अपनी गन को लोड किए हुए आगे बढ़ रहे थे। तभी सभी को सामने निकिता एक कोने में सहमी सी और कांपति हुए बैठी दिखी। वह खून में लथपथ थी। 

सभी देखकर चौकन्ने हो गए और अपनी - अपनी गन को उसके ऊपर पॉइंट कर ली। 

"डोंट शूट मी प्लीज....... प्लीज हेल्प मी.... ।" - निकिता अपने हाथ जोड़े हुए गिङगिङा रही थी। 


"निकिता, व्हाट हैपंड, आर यू ओके?" - दीप्ति ने उसके तरफ़ बढ़ते हुए कहा। 

"रुक जाओ दीप्ति वो इन्फेक्टेड है। निकिता क्या तुमको रोनित ने काटा है?" - प्रवीण ने निकिता से पूछा। 

" हाँ... ।"-निकिता ने अपने कंधे से कमीज़ को हटा दिया। वहां रोनित के काटे जाने का निशान साफ़ दिख रहा था। निकिता लगातार रोए जा रही थी। 

"रोनित ने जब इसको काटा तब वह कुछ हद तक भेड़िये के रूप में था ये उसके काटने के तरीके से पता चलता है।" - विक्रांत ने कहा। 

" निकिता, रजनीश कहाँ है?" - नेहा ने पास जाकर पूछा। 

निकिता ने बिना बोले अपनी उंगली से दूसरी साइड इशारा किया। सबने देखा तो रजनीश भी लहूलुहान बेहोश पड़ा था। 
प्रवीण और विक्रांत ने रजनीश को अपने कब्जे में ले लिया और उसके हाथ पैर बाँध दिए। 

निकिता, रोते हुए नेहा की ओर दौड़ी। 

" हे, रुक जाओ प्लीज। "- प्रवीण ने निकिता की ओर गन पॉइंट करते हुए कहा। 
निकिता गन को देख कर रुक गई। 

"घबराने की कोई बात नहीं निकिता, बस तुम अभी होश में नहीं हो और तुम इन्फेक्टेड हो तो तुम अपना आपा खो सकती हो। इसलिए अभी कोशिश करो कि खुद से कंट्रोल न खोना पाये। हम सब तुम्हारी हेल्प करने के लिए ही आएं हैं।" - प्रोफ़ेसर ने निकिता को समझाया। 

निकिता चुपचाप घुटनों के बल बैठ गयी। नेहा और दीप्ति ने उसे अपने कंट्रोल में ले लिया और सभी मिलकर उसे और रजनीश को कम्बल में ढंक कर रूम में ले आये। 

निकिता, डरी और सहमी हुई रोनित के रूम की ओर देख रही थी। उसका शरीर ज्वर से तप रहा था और साथ ही ठंड से कांप रहा था। 

"कूल डाउन निकिता! अब तुम सेफ हो। रोनित को बांध दिया है। अब वह कुछ नहीं कर सकता। बताओ क्या हुआ था?" - नेहा ने निकिता के शरीर को रजाई से ढंकते हुए पूछा। 


"मैं और रजनीश पास के कमरे में मस्ती कर रहे थे कि तभी वहां रोनित पहुंच गया और देखते ही देखते वह रजनीश पर एक जंगली जानवर की तरह टूट पड़ा। मैंने उसे रजनीश से अलग करने की कोशिश की तो उसने मुझ पर भी हमला कर दिया और मेरी गर्दन में काट लिया। रजनीश ने मुझे बचाने के लिए रोनित को धक्का मारा तो वह रजनीश को मारने लगा तो मैंने जल्दी में पास में पड़ी कुर्सी उसके सर में मारी तो वह बेहोश हो कर गिर पड़ा। उसके बाद मैंने देखा रजनीश भी काफ़ी चोटिल हो गया है उसका ढेर सारा खून बह चुका था इसलिए वह भी बेहोश हो गया था। मुश्किल से मैं उसे खींच कर बाहर यार्ड में ले गई। अगर रोनित फिर से होश में आ जाता तो वो मुझे और रजनीश को नहीं छोड़ता। वो रोनित नहीं था वो कोई जंगली जानवर की तरह बेहेव कर रहा था उसकी ताकत भी ज्यादा थी। रोनित मेरी बहुत केयर करता है वो ऎसा कभी नहीं कर सकता। वह किसी और के काबू में था।"


" ओके अब आराम करो। कुछ देर बाद तुम भी रोनित की तरह हो जाओगी। इससे बचने के लिए हो सके तो खुद पर काबू रखने की कोशिश करना।"- प्रोफ़ेसर ने निकिता को हिदायत दी।


क्या रिसर्च टीम के मेंबर्स में बढ़ती इन्फेक्टेड लोगों की संख्या, बचे हुए नॉर्मल इंसानों को मोहिनीगढ़ में सर्वाइव करने देंगे? या फिर सभी होंगे शाप का शिकार................
पढ़ते रहिये TOWN OF DEATH

क्रमशः.........................


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