गड्ढे वाला भूत

             गड्ढे वाला भूत 

⚔️लेखक :- सोनू समाधिया रसिक 🇮🇳 

आज से लगभग ३० वर्ष पहले की बात है। बरसात के दिनों में एक व्यक्ति जिसका नाम महेश था। वह पड़ोस के गाँव में मृत्यु भोज के लिए गया था। उस दिन बरसात ४ घंटे पहले थम चुकी थी। चारों ओर नजर डालने पर पानी ही पानी दिख रहा था। आसमान में हल्के बादलों के बीच सूरज लुका छुपी खेल रहा था। गाँव के कच्चे रास्तों में कीचड़ और सूखे पेड़-पौधों के अवशेषों का जमाव था। जिससे रास्ते संभवतः अवरुद्ध हो चुके थे। हवा का रुख पहले की अपेक्षा मंद पड़ चुका था। 
हवा के शीतल बहाव और बरसात की वजह से मौसम सर्द हो चुका था। 
महेश व्यस्तता के चलते भोज में विलंब से पहुंचा था। जिससे उसका अपने गाँव के लोगों का साथ छूट गया था। शाम के ६ बज चुके थे और मौसम खराब होने की वजह से अंधेरा जल्दी होने लगा था। 
मौसम ने फिर से अपना मिजाज बदला और आसमान में घने बादल घिर आये। 
महेश ने खाना खाने के बाद अपने कदम घर की ओर तेज़ी से बढ़ा दिए। 
वह अब अकेला अपने गाँव की ओर जाने वाले पुराने रास्ते पर था। 
आसमान में बादल गरज रहे थे और हवा का तेज़ बहाव आसपास खड़े पेड़ों को झकझोरने के साथ उसे भी हल्की सी सर्दी का एहसास करा रहा था। महेश ने हवा से अस्त व्यस्त हुए अपने कपड़ों को ठीक करने का प्रयास किया और तेज़ी से अपने गंतव्य की ओर बढ़ता रहा। भेड़ियों, बरसाती मेढ़कों और विभिन्न प्रकार के कीटों की मिश्रित अजीब सी ध्वनि एक भयावह माहौल पैदा कर रहीं थीं। 
कीचड़ की वजह से महेश को रास्ता पार करने में परेशानी हो रही थी। 
अंधेरा गहराता जा रहा था और खौफ महेश के दिल में घर करता जा रहा था। 
गीली मिट्टी महेश के जूतों में फंस चुकी थी जिससे उसके पैरों में अनावश्यक भार में वृद्धि हो चुकी थी। 
महेश, लगातार टार्च की रोशनी में आगे बढ़ता जा रहा था। वो इससे पहले कभी भी खराब मौसम में बाहर नहीं निकला था। 
टार्च की रोशनी में बारिश की हल्की फुहार मौतियों की तरह बिखरती हुई प्रतीत होने लगी थी। इसके साथ ही बारिश की हल्की फुहार मिट्टी में फिसलन का सबब बन चुकी थी।
महेश का शरीर सर्दी की वजह से थरथरा रहा था। कीचड़ और फिसलन की वजह से महेश अपनी टांगों में तनाव और थकान महसूस कर रहा था। 
चारों तरफ़ गुप अंधेरा और सांय सांय करती मानसूनी हवाएँ महेश के शरीर में भय की गर्माहट के साथ साथ उसके शरीर में फुरफुरी को इजाद कर रहीं थीं। 
अब महेश जरा सी आहट पाकर चौकन्ना हो जाता और टार्च की रोशनी में चारों ओर देखता। 
महेश को एक अनजाने भय ने घेर लिया। उसकी आशा, निराशा में परणित होने लगी। इन सबकी एक ही वजह थी वो थी उस रास्ते में रहने वाले "गड्ढे वाले भूत" की कहानियाँ! 

थकान, भय और खराब रास्ते की वजह से महेश की चाल धीमी पड़ चुकी थी। 

उसी पल एक बहुत भयानक आवाज के साथ बिजली चमकी जिससे सारा वातावरण दीप्तिमान हो गया। लेकिन आवाज इतनी तेज़ थी कि महेश का शरीर कांप उठा। 

कुछ क्षण के लिए चारों तरफ़ शांति छा गई। 

महेश के कानों में पीछे से किसी के आने की आहट सुनाई दी तो उसने तुरंत पीछे टार्च की रोशनी डाली और देखा कि कोई व्यक्ति उसकी ओर आ रहा है। 
महेश ने राहत की साँस ली और उस व्यक्ति के पास आने की प्रतीक्षा करने लगा। 

"महेश! अकेले और ऎसे मौसम में यहां कैसे?" - उस अंजान व्यक्ति ने महेश से पूछा। 

महेश उस अजनबी की बातें सुनकर हैरान रह गया। क्योंकि वह व्यक्ति उसके लिए अपरचित था। 

"आप मुझे जानते हैं?" 

"अरे! हाँ। मैं भी उसी गाँव का ही हूँ और यहां पास में ही मैं अपनी भैंसे चराने के लिए आया था। तो मैं भी तुम्हारी तरह लेट हो गया।" 


"अच्छा! चलो ठीक है। तुम्हारा साथ मिल गया।" 

"महेश! एक काम करो। मेरे साथ चलो। पास में ही मेरी भैंसें होंगीं। उन्हे भी लेता चलूँगा।"

वह अजनबी इतना कहकर दूसरी दिशा में बढ़ गया। महेश उसका अनुसरण करता हुआ पीछे पीछे चल दिया। महेश टार्च की रोशनी में उस व्यक्ति को देख सकता था किन्तु वह व्यक्ति अभी तक महेश के इतने करीब नहीं आया था। कि वह उसका चेहरा देख सके। 

टार्च की रोशनी में उस व्यक्ति की धुंधली सी परछाइ दिख रही थी। वह ६ फुट का इंसान सफेद कुर्ता और पजामा पहने हुए था। 

आश्चर्य की बात यह थी कि वह व्यक्ति बिना किसी रुकावट के सहजता से आगे बढ़ा जा रहा था। जबकि महेश को कीचड़ और फिसलन की वजह से परेशानी हो रही थी। 
महेश ने उसके पैरों पर टार्च की रोशनी डाली तो वह साफ़ साफ़ नहीं देख सका कि उस व्यक्ति ने अपने पैरों में क्या पहना है? 

चलते चलते महेश और वह व्यक्ति एक बड़े आम के पेड़ के नीचे पहुंच गए। बारिश अभी भी हो रही थी जिसकी वजह से आम के पेड़ की पत्तियों से शोर उत्पन्न हो रहा था। वहाँ उसने देखा कि आम के पेड़ के नीचे एक बड़ा सा कीचड़ से भरा गड्ढा है। जिसमें एक भैंस धंसी हुई है और दो भैंसें उस गड्ढे के पास खड़ी हैं। 
गड्ढे में पड़ी भैंस, गड्ढे से निकलने की कोशिश कर रही थी। शायद वो उसमें फँस चुकी थी। 

"महेश! मेरी भैंस गड्ढे में फंस चुकी है। तुम मेरे साथ इस गड्ढे में आ जाओ और मेरी सहायता करो भैंस निकालने में।" 

महेश को उस व्यक्ति की बातें अजीब लगी और उसे कुछ अनहोनी का अंदेशा हुआ। क्योंकि महेश हनुमान जी का परम भक्त था। वह प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करता था। 

महेश को झिझकता देख वह व्यक्ति बोला -" अगर तुमको गड्ढे में जाने में कोई दिक्कत हो तो तुम ऊपर से ही भैंस की पूंछ को पकड़ कर खींच लो। यार मेरी सहायता करो।" 

इतना कहकर वह व्यक्ति गड्ढे में उतर गया और भैंस को निकालने की कोशिश करने लगा। 

"आ जाओ यार।" - उस व्यक्ति ने महेश को आवाज लगाई। 

महेश को उस गड्ढे वाले भूत की कहानी याद आई तो उसे कुछ आभास हुआ और उसने कहा-" मुझे नहीं आना। मैं अपने घर जा रहा हूँ।"

महेश जैसे ही अपने घर के लिए मुड़ा तो पीछे से एक भयानक और कर्कस आवाज आई - "बड़ी भूल कर दी तुमने यहां आकर। यहां से कोई भी जिंदा नहीं लौटा। आओ! आज तुम्हें भी अपना साथी बना लूँ। हाहाहाहा....... ।" 

महेश ने डरते हुए पीछे देखा तो उसकी रूह कांप उठी। वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि वह गड्ढे वाला भूत था और जो भैंसे थी वो भी अब अपने असली रूप में थे। 
उनका चेहरा घृणित और विकृत था। सब की अंगारों जैसी लाल आंखे महेश को घूर रहीं थीं। उनका आकार बढ़ता जा रहा था। 
महेश का डर से बुरा हाल था। वह इतना डरा हुआ था कि वह हनुमान चालीसा का पाठ भी भूल चुका था। लेकिन एक भी भूत उसके पास नहीं जा पा रहे थे। क्योंकि वह हनुमान चालीसा के पाठ के तेज़ से महेश को छू नहीं पा रहे थे। 
महेश इन बातों से अनजान था। उसका बढ़ता हुआ भय भूतों को आकर्षित करने में सफल रहा और सारे भूत उस पर हावी हो गए। 

 भूत महेश को हवा में उछाल कर काटों, पत्थर और कीचड़ में पटकने लगे। 

कुछ देर बाद महेश का सारा शरीर लहूलुहान और चोट से नीला पड़ गया। उसे कोई नहीं दिखाई दे रहा था। लेकिन उसे महसूस हो रहा था जैसे उसे कुछ लोग पीट रहे हों। 
आखिरकार महेश कीचड़ में औंधे मुँह गिर पड़ा। उसकी पलकें भारी होने लगी थी क्योंकि वह बेहोशी की हालत में पहुंच चुका था। 
तभी उसे लगा कि किसी ने उसका पैर पकड़कर खींच कर कही ले जा रहा है। 
वास्तव में वो भूत महेश को खींच कर गड्ढे में दफ़न करने के लिए ले जा रहे थे। 

तभी महेश को होश आया और उसके मुँह से सहसा "जै हनुमान ज्ञान गुन सागर... जै कपीश तींहू लौक उजागर।....."निकल पढ़ी। 

हनुमान चालीसा के प्रवाह से वो तीनों भूत एक भयंकर चीख के साथ महेश से दूर हो गए। 
महेश के कानों में छपाकऽऽऽऽ.. की आवाज गूंजी उसने उठकर देखा तो सारे भूत उस गड्ढे में समा चुके थे। 

हनुमान चालीसा के पाठ से महेश के शरीर में एक भय रहित नयी ऊर्जा का संचार हुआ। 
जिससे महेश अपने घर वापस पहुंच गया। घर पहुँचते ही वह बेसुध हो कर गिर पड़ा। उसके घर वालों देखा तो सब डर गए और साथ में ही सब हैरान थे। महेश की हालत देखकर तो ऎसा लगता था कि एसी परिस्थिति में किसी भी इंसान का जीवत रहना असंभव था लेकिन जो असंभव को भी संभव कर दे वही महावीर कहलाते हैं। 

महेश को जब नहलाया गया तो उसके शरीर में सैंकड़ों की संख्या में कांटे धंसे हुए थे। उसको स्वस्थ होने में कई महीनों का समय लग गया। 

टिप:- ये कहानी मध्य प्रदेश के भिंड जिले के एक गाँव में घटित सत्य घटना पर आधारित है। जो कि प्रत्यक्षदर्शियों के वक्तव्य के आधार पर कहानी के रूप में प्रस्तुत की गई है। यह कहानी के सत्य होने का दावा नहीं करती और न ही किसी भी प्रकार के अंधविश्वास को बढ़ावा देती है। 

                     ✝️ समाप्त ✝️ 




 






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Thanks for read my article
🥀रसिक 🇮🇳 🙏😊😊

Best for you 😊

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