Town of Death chapter - 10

         Town of Death chapter 10th
                        अध्याय - १० 
                 (आदमखोरों का हमला)  

✍🏻लेखक :-  सोनू समाधिया 'रसिक' 🇮🇳 
       रात के ढाई बज चुका था। मोहिनीगढ़ घने कोहरे के आगोश में पूरी तरह से समाया हुआ था।
मोहिनीगढ़ का चप्पा - चप्पा कड़ाके की ठंड से जम चुका था।
चारों तरफ़ जंगली जानवरों की भयानक आवाजें इस शीत से भरे माहौल को और भी असामान्य रूप में ढाल रहीं थीं।

जिप्सी के पास में अलाव जल रहा था। संजना और अल्का दोनों जिप्सी के अंदर सो रहीं थीं। 
हर्षित जिप्सी के बोनट पर बैठा हुआ अपने मोबाइल को देख रहा था। 
जगदीश और हरिसिंह कंबल को औढ़े हुए अलाव के पास बैठे हुए थे। 

“सर ने तो एक घंटे के बाद निकलने को बोला था। देख लो रात के ढाई बज गए।” - हरिसिंह फुसफुसाया। 

“अरे घर जाकर क्या करते? बीबी की डांट खाते। इससे अच्छा तो मोहिनीगढ़ का अडवेंचर है।"- जगदीश ने मज़ाक में कहा। 

तभी जगदीश और हरिसिंह को पास की झाड़ियों में से एक किसी इंसान के कराहने की आवाज सुनाई दी। 
दोनों ने कम्बल फेंक अपनी गनें उस दिशा की ओर पॉइंट कर लीं और हर्षित को आवाज लगाई। 


“सर! जल्दी यहाँ आईए।” 


हर्षित ने जिप्सी के अंदर सो रही अल्का और संजना को अलर्ट करते हुए अपनी गन को निकाल लिया और हरिसिंह, जगदीश के पास पहुंच गया। 

“क्या हुआ?” - हर्षित ने जगह का मुआयना करते हुए कहा। 

“सर! यहाँ कुछ है?” 

हर्षित, हरिसिंह और जगदीश मौन और चौकन्ने हो कर उस दिशा में टार्च की रोशनी में देखने लगे। जहाँ से किसी के कराहने की आवाज के साथ झाड़ियों में हो रही हलचल का आभास हो रहा था। 

उधर जिप्सी के विन्डो मिरर किसी नुकीली चीज़ से खारोचने की आवाज से संजना और अल्का सदमे में आ गईं। 

संजना और अल्का अपनी गन को निकाल कर बाहर की ओर पॉइंट कर ली। वो दोनों किसी भी तरह के हमले के जबाब देने के लिए तैयार थीं। 


"सर, वो क्या है?” - हरिसिंह ने झाड़ियों रहित एक हिस्से पर टार्च की रोशनी को स्थिर करते हुए कहा। 

सभी ने देखा कि एक इंसान की तरह दिखने वाला जीव जमीन पर रैपटाइल की तरह रेंग रहा है। 
कुछ देर पहले आ रही कारहने की आवाज अब एक भेड़िये के गुर्राने की आवाज में तब्दील हो चुकी थी। 

"हरिसिंह!” 

“जी सर!” 

“ वो हमें ही देख रहा है। फ़ायर करो उस पर इससे पहले कि वो हम सब पर हमला करे।” 

सबको समझ में आ चुका था कि उनका सामना किस बला से पड़ा है। वो साधारण सा रुग्ण दिखने वाला जीव अब एक भेड़िये में बदल चुका था। वह पुलिस वालों पर हमला करने के लिए तैयार था। 
उस भेड़िये की आंखों में भूख गुस्सा बन कर छलक रही थी। 

हरीसिंह ने उस मानव भेड़िये पर अपनी गन से लगातार तीन - चार फायर किए। 
अचानक से हुए हमले से भेड़िया तिलमिला उठा और जख्मी हो कर पास की झाड़ियों में छिप गया। 

सारा मोहिनीगढ़ गन के चलने से गूंज उठा। चारों ओर फैले सन्नाटे की सीमा परे एक शोर अख्तियार होने लगा। 

ये केवल शोर न होकर मोहिनीगढ़ के आदमखोर भेड़ियों को आकर्षित करने का संकेत साबित हुआ। 

चारों ओर फैले सघन कोहरे में नजदीक आ रहे सैंकड़ों भेड़ियों की आवाजें सुनाई देने लगी। 

संजना को जिप्सी के टूटे मीरर के बाहर एक काली परछाइ गुजरती हुई दिखी तो उसने अपनी पिस्टल से फायर करना शुरू कर दिया। तो वह परछाइ दिखना बंद हो गयी। 

बुलेट्स को बेअसर होता देख हर्षित हरिसिंह को रोकता है। 

“रुक जाओ। कोई गोली नहीं चलायेगा। देखा तुम लोगों ने उस पर हमारी गोलियों का असर नहीं हो रहा है। इसका मतलब यह कोई आम भेड़िया नहीं है बल्कि एक मानव भेड़िया है। 
इस पर अपनी बुलेट्स जाया मत करो। हमारे पास वैसे भी ज्यादा बुलेट्स नहीं हैं। 
हमें संजना और अल्का के पास चलना चाहिए। उन्होंने भी फायर किया है कहीं वो किसी बड़ी मुसीबत में न हो।” 

सभी भाग कर जिप्सी के पास पहुंच गए। संजना और अल्का दोनों सुरक्षित थीं। 

“ये जगह सेफ नहीं है। हमें और चौकन्ने रहना चाहिए। क्योंकि हम पर कभी भी हमला हो सकता है।” 


“लेकिन सर इन पर तो गोलियों का असर नहीं हो रहा है तो हम खुद की सुरक्षा कैसे करेंगें।” 


“अरे हरिसिंह जी। उसका उपाय भी है मेरे पास। वो सब कोई आम भेड़िये नहीं है। वो वेयरवुल्फ़ हैं जो या तो चांदी से मरतें हैं या फिर लकड़ी से। 
और हाँ वो आग से भी डरते हैं। तो इसका मतलब समझे आप।” 


“हाँ! हम सबको आग के पास रहना है।क्योंकि हमारे पास नुकीली लकड़ी या चांदी की बुलेट्स नहीं हैं।” 



“लेकिन सर हमारे पास जलाने के लिए भी तो पर्याप्त लकड़ियाँ नहीं हैं जो सुबह तक इन वेयरवुल्फ़्स से प्रोटेक्ट कर सकें।” - अल्का ने अपनी शंका जाहिर करते हुए कहा। 


“वेल सैड अल्का! हमें सुबह तक सर्वाइव करने के लिए लकड़ियों की जरूरत पड़ेगी और चारों ओर घना जंगल है और वो घायल भेड़िया हम पर हमले की ताक में हैं। हमें अगर जिंदा रहना है तो किसी न किसी को जोखिम लेना पड़ेगा। 
इसका एक आइडिया है मेरे पास है। आई होप सभी को पसंद आएगा।” 



“क्या सर?” 


“हम में से कोई एक लकड़ी उठाएगा और बाकी के सब उसे कवर देंगे और हाँ काउंटर अटैक में कोई चूक नहीं होनी चाहिए। नहीं तो हम सबकी जिंदगी मुश्किल में पड़ सकती है। क्या तुम सब तैयार हो?” 


“यस सर!” 


“तो फिर चलो। ध्यान रहे वो बुलेट्स से जख्मी हो सकते हैं लेकिन मरेंगे नहीं।” 


सभी लोग कुछ दूर घने कोहरे के आगोश में पूरी तरह से समा गए। हरिसिंह को लकड़ियों को इक्कट्ठा करने का काम सौंपा गया। हाङ कंपा देने वाली ठंड में भी उसके पसीने निकल रहे थे। 

उसके हाथ नीचे लकड़ियों पर और उसकी निगाहें दूर घने कोहरे और अंधेरे में गढ़ी हुईं थीं। 
क्यों कि चारों ओर जंगली जानवरों की आवाजें आ रहीं थीं। मानों कोई भेड़िया उन्हें ललचाई नजरों से देख रहा हो। 

हर्षित की नजर उन झाड़ियों पर टिकी हुई थीं। जिस ओर कुछ देर पहले वो आदमखोर भेड़िया जख्मी हो कर गया था। 

हरिसिंह लकड़ियों को इकट्ठा कर चुका था। 
सभी निश्चिंत थे। क्यों कि उन्होने ये काम मोहिनीगढ़ जैसे शापित टाउन में रहते हुए भी सहजता से बिना किसी रुकावट के निपटा लिया था। 

सभी सहज होकर वापस जाने को लौटने लगे। लेकिन हरिसिंह के पैरों तले जमीन तब खिसक गई। जब उसके कानों में पीछे से किसी भेड़िये के गुर्राने की आवाज पड़ी। 

खौफ से कांपते हुए हरिसिंह ने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि कोहरे और रात के अंधेरे को चीरता हुआ खून से लथपथ एक बड़ा सा भेड़िये का चेहरा उसके बेहद करीब था। 

वो वही भेड़िया था, जिसने कुछ देर पहले उन सभी पर हमला किया था। 
गोलियों के हमले से उसका चेहरा विकृत हो चुका था। 
उसके मुंह से टपक रहे खून और लार से उसकी आक्रमता का अंदाजा लगाया जा सकता था। 

उसको देख कर सभी के हाथ पांव फूल गए। किसी की भी हिम्मत नहीं हुई उस पर फ़ायर करने की। क्योंकि हरिसिंह गोलियों और भेड़िये की जद में था। 

भेड़िया हरिसिंह को एक टक देखते हुए धीरे धीरे गुर्राते हुए उसकी ओर बढ़ रहा था। किसी को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। 
उस परिस्थिति को देख कर ऎसा लग रहा था कि हरिसिंह की मौत निश्चित है। 


नेहा की नींद तब खुली जब उसने खुद को किसी की गोद में लेटा हुआ पाया। असहज नेहा ने आँखें खोली तो वास्तव में वो सुंदर और अच्छी कद - काठी वाले लड़के की गोद में थी। 
उसकी गोद में नेहा को सुकून और अपनापान महसूस हो रहा था। चारों तरफ़ बर्फ़ की सफेदी औढ़े हुए ऊंचे ऊंचे पर्वत एक दूधिया रोशनी से प्रकाशित हो रहे थे। लेकिन नेहा को अचरज में डालने वाली बात तो यह थी कि वो इस वक़्त कहाँ है और वो यहाँ आई कैसे? जो कुछ देर पहले विक्रांत के घर में सोई हुई थी। 

नेहा, अचंभित हो कर उस अजनबी की गोद से खड़ी हुई और खड़े हो कर मुड़कर उसकी ओर देखा। तो अचानक उसके मुँह से एक एक जाना पहचाना नाम का शब्द निकला। जिसे वो जानती थी। 

“शौर्य.......! तुम? मैं यहाँ कैसे आई?” 

शौर्य, नेहा को अपनी बाहों से दूर होते देख, बैचैन होने लगा। 

“कहाँ जा रही हो नेहा, क्या तुम भूल गई इस जगह और मेरे प्यार को?” 

शौर्य, आसपास के खूबसूरत नजरों को अपने हाथों के इशारों से नेहा को दिखा कर उसे कुछ याद दिलाने का प्रयास कर रहा था। 

लेकिन नेहा को उसकी बातों पर गुस्सा आ रहा था। 

“शौर्य! ये क्या बदतमीजी है? पहले तुम मुझे यहाँ उठा लाए हो और ऊपर से प्यार का नाटक कर रहे हो? मुझे नहीं पता था कि तुम ऎसे इंसान हो?” - नेहा ने नफरत से अपना मुंह एक तरफ़ करते हुए कहा। 

“नेहा! ये क्या कह रही हो? तुम याद नहीं है क्या? तुम्हें ये जगह बहुत पसंद थी और हमने पहली बार इसी जगह पर अपने प्यार का इजहार किया था।” - शौर्य ने नेहा की ओर बढ़ते हुए कहा। 


“देखो शौर्य! मेरी तरफ मत आना प्लीज। मैं विक्रांत से प्यार करती हूं। क्योंकि आज की इस मतलब की दुनिया में कोई किसी का नहीं होता। उस वक्त भी विक्रांत ने मेरी फिक्र की वो भी कई बार अपनी जान जोखिम में डाल कर। चले जाओ मुझ से दूर, प्लीज मुझे और तंग मत करो वैसे भी मैं कई दिनों से इस मोहिनीगढ़ में फंसी हुई हूँ।” 
इतना कह कर नेहा दूसरी ओर मुड़ कर खड़ी हो गई। 

तभी उसे पीछे से किसी के गुर्राने की आवाज सुनाई दी। इस आवाज से चारों ओर से कई खूंखार जंगली जानवरों की आवाजें सुनाई देने लगी। 

“तुम मेरी नहीं हो सकती तो किसी की भी नहीं हो सकती....... ।” 

शौर्य की आवाज अब सामान्य न होकर एक अकर्णप्रिय कर्कशतापूर्ण ध्वनि में परिणित हो चुकी थी 

नेहा ने डरते हुए पीछे देखा तो उसकी चीख निकल पड़ी। सामने शौर्य नहीं बल्कि उसकी जगह एक खूंखार आदमखोर वेयरवुल्फ़ उसके बिल्कुल नजदीक खड़ा था। 

उसी वक़्त उस खूंखार आदमखोर वेयरवुल्फ़ ने नेहा पर हमला कर दिया। 
तभी नेहा की चीख के साथ आंख खुल गई और उसने खुद को अपने बेड पर पसीने में तर पाया। 
ये लाज़मी था क्योंकि सपना बेहद खौफनाक था। 

नेहा ने रूम वॉच में टाइम देखा तो सुबह के 3 बजे थे। 
नेहा कुछ देर तक शांत मुद्रा में बैठी रही और फिर एक लंबी साँस लेकर पास की टेबल पर रखे पानी की गिलास की ओर बड़ी। क्योंकि डर से उसका गला सूख गया था। 
पानी पीते हुए नेहा विक्रांत के बारे में सोच रही थी कि वो उसका कितना ख्याल रखता है। इतना काम होने के बाद भी वह उसके लिए पानी रखना नहीं भूला। 

नेहा, पानी पीने के बाद जैसे ही अपने बेड की ओर बढ़ी तभी पास के कमरे में किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ से नेहा काँप गई। 
वह आवाज रोनित, रजनीश, दीप्ति और निकिता सोए हुए थे। 

अनिष्ट की आशंका से नेहा ने उस कमरे में जाकर देखने की सोची। नेहा ने जैसे ही अपने रूम का गेट खोला तो सामने विक्रांत को खड़ा देख वो चौंक गई। 


“ओह माय गॉड...... । तुम यहां इस वक़्त क्या कर रहे हो?” - नेहा ने हड़बङाते हुए कहा। 


“आप चीखीं थीं न। इसलिए आपको देखने के लिए चला आया। आप ठीक तो हो न।” 


“ह्ह्ह्ह्हां..... मैं ठीक हुँ एक्चुअली क्या है न? मुझे पास वाले रूम से आवाजें आ रहीं थीं।” 


“अरे हाँ, वो आवाजें मैंने भी सुनी। मैं ऎसी आवाजें रोजाना सुनता हूँ। असल में वो आवाजें पास के खंडहर से आती रहतीं हैं। रही बात आपके दोस्तों की उनकी चिंता मत करिए मैं हूँ न। अब आपकी और आपके दोस्तों की हिफाज़त करना मेरा फर्ज़ है।” 


“थैंक यू, विक्रांत... ।” 


“अरे नहीं! इसकी कोई जरूरत नहीं है। अगर आपको कोई एतराज न हो तो मेरे रूम में बैठ कर बातें करें।” 


“हम्म्म्मम्....... ।” - नेहा ने अपने सिर को हिलाकर सहमति जताई। 

नेहा जैसे ही विक्रांत के कमरे में घुसी तो चारों ओर फैली मनमोहक सुगंध ने उसका मन मोह लिया। चारों ओर जल रहीं मॉमबत्तियाँ और उनकी रोशनी में दिख रही कमरे की नक्काशी उसे पुराने जमाने के रहन सहन अनुभव करा रहीं थीं। 

कमरे में धीमी रोशनी के साथ फैली उस सुगंध ने नेहा के दिमाग को बदल दिया। 

नेहा ने विक्रांत की ओर देखा जो काफ़ी सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था। नेहा बरबस उसकी ओर खींचती जा रही थी। 

विक्रांत ने बीयर पीते हुए नेहा की ओर देखा और एक हल्की मुस्कान पास की। 
नेहा भी बिना पलक झपकाए एक टक उसी की ओर देखे जा रही थी। 

“मैं तो कहता हूँ कि आपको भी बीयर पी लेना चाहिए। ये प्राकृतिक है और सेहत के लिए फायदेमंद। मोहिनीगढ़ के ऎसे सर्द मौसम में इसका सेवन आवश्यक हो जाता है।” - विक्रांत ने टेबल के पास खड़ी नेहा की ओर बीयर की बोतल बढ़ाते हुए कहा। 

“तुम हिंदी अच्छी बोल लेते हो? और हाँ ये सुगंध काफ़ी अच्छी है। आई लाइक इट।” - नेहा ने विक्रांत की ओर बढ़ते हुए कहा। 


“धन्यवाद जी। और हां ये सुगंध मेरे अजीज को बहुत पसंद थी।” 


नेहा, सोफे पर बैठे विक्रांत के पास जाकर बैठ गयी। नेहा का मूड बिल्कुल बदल चुका था। जैसे वो किसी सम्मोहन में हो। 

“सुनो न... ।” - नेहा ने आहिस्ता से विक्रांत का हाथ अपने हाथ में थामते हुए कहा। 

“जी कहिए न।” 


“मेरी फिक्र करने के लिए और मेरी और मेरे दोस्तों की जान बचाने के लिए थैंक यू।” 

नेहा का कामुकता से पूर्ण स्वभाव, माहौल और चारों ओर फैली महकी महकी सी हल्की सुगंध के प्रभाव को दर्शा रहे थे। 

“मुझे आपसे कुछ कहना है।” - नेहा ने विक्रांत के बेहद करीब खिसकते हुए कहा। 
दोनों एक दूसरे की नजरों में झाँक रहे थे। 


“हम्म्म्म्म्....... ।” 



“तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो, प्यार करती हूं तुमसे यार.. आई लव यू सो मच।” 


“मैं भी आपसे बहुत प्यार करता हूँ। इस दुनिया में आपके सिवा मुझे अपना कोई नहीं लगा। असल में, मैं सो नहीं रहा था। नींद तब आए जब आपके ख्यालों से फुर्सत मिले।” - विक्रांत ने नेहा के चेहरे को अपने हाथों में भर लिया। 

नेहा के चेहरे की गर्माहट विक्रांत को आवेशित कर रही थी। 

“नेहा!” 


“हम्म्म्मम्..... ।” 


“ये शराब के नशे बहुत कर लिए आज मुझे आपका नशा करना है। क्या आप इसकी इजाजत दोगी।” 


“विक्रांत अपनी ख्वाहिशों को अपने अंदर यूं न कुचलो। बहुत सब्र कर लिया तुमने। मुझे भी नशा करना है।” 


नेहा की आंखें बंद हो चुकीं थीं और सांसे तेज हो चुकी थीं। 
नेहा के लरजते सुर्ख लाल होंठ देख कर विक्रांत खुद पर नियंत्रण न रख सका और उसने नेहा के होंठों को चूम लिया। 

नेहा भी विक्रांत का साथ दे रही थी। मानों आज सदियों से प्यासों को पूरा समंदर मिल गया हो। 
दोनों मदहोश प्यार के सागर में डूबे हुए थे। दोनों एक दूसरे में समाने को आतुर थे। 

विक्रांत ने अपना हाथ फेरते हुए आहिस्ता आहिस्ता नेहा के कंधे पर लाया और उसने कमीज को वहाँ से हटा दिया। 
विक्रांत ने नेहा की गर्दन पर किस करना चाहा कि तभी नेहा की आंखों के सामने क्षणिक शौर्य तस्वीर उभरी। 

नेहा ने झटके से खुद को विक्रांत से अलग कर लिया। और खड़ी हो कर अपनी कमीज को ठीक करके अपने कंधे को ढंक लिया। 
नेहा के हावभाव से ऎसा लग रहा था। जैसे उसका सम्मोहन भंग हो गया है और वो ये सब करना नहीं चाहती थी। जैसे वो किसी के वश में थी। 

“क्या हुआ नेहा?” 

“कुछ नहीं मुझे लगता है कि अब मुझे चलना चाहिए।” 
नेहा सकपकाई सी वहां से चली जाती है। नेहा के जाने के बाद विक्रांत का चेहरा गुस्से से रक्त वर्ण सूर्य के सदृश्य तमतमा उठा। 

उसका लाल चेहरा और पीली रोशनी से दीप्तिमान आँखें नर्क के दानव के समकक्ष बना रहीं थीं। 


“माँ देखा तूने, शौर्य फिर से मेरे और नेहा के बीच में आ रहा है।” - विक्रांत ने आग बबूला होते हुए कहा। 


विक्रांत के पीछे एक काले लिबास में एक चुड़ैल प्रकट हुई। 

“बेटा तू चिंता मत कर बस एक दिन और परसों वाली अमावस्या की रात्रि तेरी हर मनोकामना पूरी करेगी।” 


विक्रांत गुस्से में वहां से चला गया। 
 

भेड़िया जैसे ही हरिसिंह पर छलांग लगाता है तो हरिसिंह चीख कर लकड़ियों को फेंक कर खुद गिर पड़ता है। जब तक वह भेड़िया उसके ऊपर आता तब तक वहां शौर्य आ जाता है और उस भेड़िये को हवा में ही पकड़ लेता है। शौर्य के दोनों शक्तिशाली हाथों में उस भेड़िये का जबड़ा था। 
भेड़िया जब तक अपना पेंतरा बदलता तब तक शौर्य पास पड़ी एक नुकीली लकड़ी को उस भेड़िये के सीने में घोंप कर उसे धराशायी कर दिया।

शौर्य खून में सनी उस लकड़ी को हरिसिंह को दिखाते हुए कहा - “जब भेड़िया हमला करे तो लकड़ियों को फेंका नहीं जाता बल्कि इन नुकीली लकड़ियों को वेयरबुल्फ़ के सीने में घोंपा जाता है।”

“थैंक यू दोस्त जान बचाने के लिए।” - हरिसिंह ने कपकपाती आवाज में कहा।

“अपने हाथ ऊपर करो और ये बताओ तुम हो कौन?” - हर्षित ने शौर्य की ओर गन पोइन्‍ट करते हुए कहा।


“इससे कुछ नहीं होने वाला। मेरा नाम शौर्य है और मुझे तुम लोग अपना रक्षक समझ सकते हो। मेरे साथ चलो।” - शौर्य बिना किसी झिझक के वहां से चला गया।


“हम अपनी सुरक्षा खुद कर सकते हैं। मुझे किसी की जरूरत नहीं है।”


“हाँ वो दिख रहा था। तुम सब कुछ नहीं कर सकते उनका। मेरी बात न मान कर तुम सब मारे जाओगे। वो कोई आम भेड़िया नहीं हैं वो वेयरवुल्फ़ हैं। उन्हें मारना इतना आसान नहीं है।” - शौर्य ने रुक कर कहा।


“हमें पता है कि वो वेयरवुल्फ़ है। और हमें कुछ समझाने की कोई जरूरत नहीं है। हम ऎसे कई मिशन कर चुके हैं।”-जगदीश ने कहा। 

“अच्छा! फिर भी बेवकूफ़ों की तरह फ़ायर किए जा रहे हो। वेयरवुल्फ़ को मारने के लिए सिल्वर बुलेट्स और लकड़ी की जरूरत होती है। वो तब काम में आती है जब सामने कमजोर वेयरवुल्फ़ हो तो।”
शौर्य ने जगदीश की आँखों में आँखें डालकर कहा।

“अब तो वो मर चुका है तो अब हम सब सेफ हैं न।” - अल्का ने कहा। 


“बिल्कुल भी सेफ नहीं हो तुम सब। अब तो बिल्कुल भी नहीं हो एक वेयरवुल्फ़ को मारने के बाद। तुम लोगों को अभी वेयरवुल्फ़्स के बारे में ज्यादा नहीं जानते कि वो हमेशा झुंड बनाकर रहते हैं।” 


“वो तो अकेला था?” - संजना ने कहा। 


“यही उस की गलती थी और मारा गया। इसका फायदा तुम लोगों को मिला। नहीं तो तुम लोगों का सफाया कब का हो चुका होता।” 

तभी चारों ओर का शांत माहौल अशांत हो गया। चारों ओर घने कोहरे से भेड़ियों की आवाजें आने लगी। मानों जैसे मोहिनीगढ़ के रात के स्याह अंधेरे में खूंखार मानव भेड़ियों की फौज हमला करने को आतुर खड़ी हो। 

शौर्य सारी स्थिति को पल भर में भांप गया।

“जल्दी भागो यहाँ से। उस भेड़िये के साथी हम पर हमला करने के लिए आ रहें हैं। उनकी संख्या बहुत ज्यादा है जिन्हे हम कंट्रोल नहीं कर सकते।” - इतना कहकर शौर्य एक दिशा में आगे बढ़ गया।



“रुको मैं जिप्सी से कुछ जरूरी सामान लेकर आती हूँ।” - इतना कहकर संजना जिप्सी के पास चली गई।


“क्या हुआ। तुम लोग अब किसका इंतजार कर रहे हो। अपनी मौत का?” - शौर्य ने मुड़ कर कहा। 


शौर्य ने देखा कि एक महिला सदस्य वहाँ नहीं है तो वो घबरा कर पूछता है। 

“अभी एक लड़की थी वो कहाँ है?” 

“वो कुछ जरूरी सामान लेने जिप्सी के पास गई है।” 

“क्या? वो लोग वहीं हैं वो वहां तुम सबका इंतजार कर रहे हैं। तुम लोग यहीं रुकना मैं उसे लेकर आता हूँ।” - शौर्य ने कहा। 


“हम सब तुम्हारे साथ चलेंगे।” - हर्षित ने कहा। 

शौर्य बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया। हर्षित के इशारे पर अल्का, हरिसिंह और जगदीश शौर्य के पीछे हो लिए। 

संजना जैसे ही जिप्सी के नजदीक पहुंची तो कोहरे और रात के अंधेरे की वजह से जिप्सी धुंधली सी दिखाई दे रही थी। 

तभी संजना ने सुना कि जिप्सी के पास से किसी चीज़ को तोड़ने की आवाज के साथ जंगली जानवरों की आवाजें आ रहीं थीं। जैसे कोई जानवर आक्रामक हो कर एक दूसरे से लड़ रहें हों। 

संजना को कुछ गड़बड़ लगा तो उसके पैर वहीं ठिठक गए। उसने वहाँ न जाकर आवाज लगाकर ही स्थिति का जायजा लेने का विचार बनाया। 


“कौन है............?” 
संजना जब तक पूछती तब तक शौर्य उसका हाथ पकड़ कर पीछे की ओर खींच लेता है। लेकिन जिसका डर था वही हुआ। सारे वेयरवुल्फ़्स किसी इंसान की आवाज सुनकर संजना की ओर दौड़ पड़े। 


“मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम अपने साथियों के साथ दक्षिणपूर्व दिशा में एक पहाड़ी है उसके पीछे मिलो। ये बहुत ख़तरनाक हैं। मैं तुम लोगों को वहीं मिलूंगा।” - शौर्य ने धीरे से संजना को समझाया। 


“ओह माय गॉड....... ।” - संजना की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं। 


सामने उसे सेकड़ों की संख्या में वेयरवुल्फ़्स दिखे जिनमे कुछ अर्ध मानव भेड़िया थे। 
असल में सारे वेयरवुल्फ़्स अपने साथी के मरने और विक्रांत का ऑर्डर फॉलो करते हुए सभी लोगों को अपना शिकार बनाने के लिए आए थे। 

“मैंने कुछ कहा तुमसे जाओ यहाँ से..... ।” - शौर्य ने संजना को चेताते हुए कहा। 

सभी लोग काउंटर अटैक पोजिसन में आ चुके थे। लेकिन संजना ने सबको असलियत बतायी जिन्हें वो सामान्य समझ रहे थे वो असल में अविश्वसनीय और खौफनाक घटनाओं में से एक थी। 

उन पर मानव भेड़ियों ने हमला किया। 

“मुझे लगता है कि हम सबकी शौर्य का साथ देना चाहिए। उसने हम सबकी जान बचाई है वो अकेला उनका सामना कैसे करेगा। हमें वापस उसके पास चलना चाहिए इस तरह उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए।” - हर्षित ने सबके सामने अपना मत रखते हुए कहा। 


“वो मना कर रहा था। हम में से किसी को यहाँ रुकने के लिए शायद वो उनसे अकेले निपटने का तरीका जानता होगा।” - संजना ने कहा। 

संजना की बात को लेकर सभी ने अपनी सहमति जताई। 

“अगर शौर्य अपनी बताई गई जगह पर नहीं आया तो हम सब यहां उसे लेने के लिए जरूर आएंगे। चलो..।” 
इतना कहते हुए हर्षित, शौर्य की बताई हुई जगह की ओर बढ़ गया। 

उधर शौर्य मानव भेड़ियों के बीच फंस चुका था। 

देखते ही देखते शौर्य इंसान से एक अर्ध मानव भेड़िये में बदल गया है। ये उसकी पीले रंग की रोशनी से चमक रहीं आँखों और बड़े हुए दांतों से जाहिर हो रहा था। 

शौर्य, उस पर हमले को तैयार अर्ध मानव भेड़ियों की ओर गुर्राते हुए बोला कि - “ तुम्हारे लिए तो मैं ही काफ़ी हूँ, तुम सब ये समझ लो मेरे साथ गुस्ताखी का अंजाम क्या होगा। और हां तुम चारों जाने पहचाने से लगते हो।” 



क्रमशः............. 


©Copyright :- Mr. Sonu Samadhiya Rasik 

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for visiting here SS₹ 🤗🫰🏻❤️🌹
🥀रसिक 🇮🇳 🙏😊
राधे राधे 🙏🏻

Best for you 😊

खूनी डायन (Bloody Witch) | Top hindi Horror Story by Mr. Sonu Samadhiya Rasik

पुराने बरगद की चुड़ैल - Hindi horror story 2022

ये मेरे श्याम लौट के आजा full mp3 bhajan download