Town Of Death Chapter 11
Town of Death chapter 11
मोहिनीगढ़ का जाल
By - Mr. Sonu Samadhiya Rasik
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अध्याय १० से जारी......
हर्षित अपनी टीम के साथ कुहरे से ढंके बियावान मोहिनीगढ़ के जंगलों में शौर्य की बताई हुई दिशा में लगातार बढ़ रहा था।
शौर्य के अपरचित होने के बावजूद भी हर्षित और उसकी टीम उस पर भरोसा कर रही थी।
चारों और पसरे स्याह अंधेरे में मोहिनीगढ़ के जंगल की झाड़ियां भी मानों उन परजीविओं के खौफ से भीगी बिल्ली की तरह शांत प्रतीत हो रहीं थीं।
सभी पुलिस वालें तीव्र गति से अपने कदम बढ़ा रहे थे। सभी के कपड़े रास्ते में पड़ने वाले पौधों और झाड़ियों की ओस से भीगी पत्तियों की वजह से औस से सराबोर हो चुके थे। जिससे सभी को सर्दी का एहसास पहले की तुलना में ज्यादा हो रहा था। सभी को इसका बिलकुल भी अंदेशा नहीं था कि मोहिनीगढ़, सभी को अपने जाल में फंसा चुका था। वह जाल जिससे इंसान क्या इंसान की रूह तक आजाद होने की मोहताज हो जाती हैं।
कुछ देर चलने के बाद सभी को पेड़ों के एक बड़े से झुरमुट से मसालों के जलने की रोशनी दिखी। सभी उसी रोशनी की ओर तेजी से बढ़ गए।
शौर्य की आँखें पीतल के सदृश्य चमक उठीं और उसके चहरे से बड़े दाँत जाहिर हो रहे थे.... वह अपने शरीर को एक शक्तिशाली नर- भेड़िये में अख्तियार करने लगा। जिसे देख सामने हमले के लिए तैयार खड़े भेड़िये अपनी हमला करने की योजना पर पुनः विचार करते हुए अपने कदमों को अहिस्ता अहिस्ता पीछे खींचने लगे।
सारे भेड़िया गुस्से से गुर्राते हुए अपने पंजो से जमीन से मिट्टी को हटाते हुए शौर्य को लड़ाई के लिए ललकारने की चेष्टा करने लगे। लेकिन इसके बाद भी शौर्य ने अपनी ओर से हमले की पहल नहीं की, क्योंकि शौर्य अपने उसूलों का पक्का था, नतीजन सारे भेड़िये बेमन वहां से चले गए और रात के अंधेरे में गायब हो गए।
हर्षित और उसकी टीम को आगे जाने पर पेड़ों के झुरमुट में एक बड़ा सा खंडहर दिखा, जहां पर उस खंडहर का लगभग कोना - कोना मसालों की रोशनी में प्रकाशित था।
खंडहर के एक खुले हिस्से के बीचोंबीच बड़ा सा अलाव जल रहा था, जो सर्दी से परेशान पुलिस वालों को अपनी ओर खींच रहा था।
“ये सब शौर्य ने किया है तो उसकी काबिले तारीफ है।” - अलका ने अलाव की ओर बढ़ते हुए कहा।
“मोहिनीगढ़ में और ऎसे आदमखोर जानवरों से भरे इस जंगल में ऎसा होना नामुमकिन है सर!” - संजना ने शक़ की दृष्टि से कहा।
“तुम्हारे कहने का मतलब है कि शौर्य इंसान नहीं है?” - अलका ने संजना से पूछा।
“शायद नहीं! शौर्य अगर इंसान है तो वो कोई आम इंसान नहीं है, नहीं तो वो इन में से ही कोई एक है।” - हर्षित ने अलाव से अपने हाथ सेकते हुए कहा।
“सर! ये देखिए.... दीवारों के इस हिस्से पर कुछ चित्रकारी की गई है। जैसे भर्तृहरि और भीमबैठका की गुफाओं में मिलते हैं।” - हरिसिंह ने दीवारों पर बने शैल चित्रों पर अपनी उँगलियाँ फेरते हुए कहा।
हर्षित और बाकी के सब लोग हरिसिंह के पास पहुंच गए।
दीवारों पर कुछ प्राचीन शैलचित्र तरासे गये थे। जिनमें कुछ चित्रों में एक शाकाहारी जीव हिरण को कुछ लोग (शिकारी) घेरे हुए दिख रहे थे। जिनमें कुछ शिकारियों का आधा शरीर इंसानों और आधा शरीर भेड़ियों के जैसा था।
“देखने में तो ये कोई भेड़िये या फिर कोई दुर्लभ प्रजाति का कुत्ते जैसे मालूम होते हैं, लेकिन अपने पिछले पैरों पर तो बस मानव - भेड़िये या फिर भालू खड़े हो सकते हैं।” - हर्षित ने उन शैल चित्रों पर उंगलियाँ फेरते हुए कहा।
हर्षित गंभीर होकर शैल चित्रों का मुआयना कर रहा था।
“सर ये कोई और नहीं बल्कि भेड़िये हैं।” - संजना ने कहा।
सभी लोग दीवारों पर बने चित्रों को देख रहे थे।
“इसका मतलब यह हुआ कि मोहिनीगढ़ में इन वेयरवुल्फ्स का प्राचीन समय से ही कनेक्शन है।” - हर्षित ने संजना की बात का समर्थन किया।
सभी लोग खंडहर का निरीक्षण करने लगे कि तभी पास के झाड़ियों से किसी जानवर की डरावनी आवाज सुनाई दी। सभी लोगों ने डरकर अपनी गन्स उस दिशा में पॉइंट कर लीं जहां से आवाज आई थी।
अंधेरा होने की वजह से उस जानवर की पहचान नहीं हो पा रही थी।
तभी हर्षित हाथ में गन लिए आगे बढ़ा तभी पीछे से आवाज आई।
“रुक जाओ.......! वहां कोई नहीं है सिवाय भेड़िये के.... । मैंने ही पहले से ही बोल रखा है कि तुम लोग उनका कुछ नहीं कर सकते... तो फिर क्यूँ अपनी जान जोखिम में डाल रहे हो?”
“कौन हो तुम.....?”
“कोई भी हूँ... उससे कुछ नहीं करना तुम लोगों को.... यहां रहोगे तो सुरक्षित रहोगे...।”
“इस डरावने और खंडहर में सेफ्टी....?” - अलका ने पूछा कि तभी शौर्य ने बात को काटते हुए कहा - “ये लो और दाएँ हाथ की कोहनी में इसे बांध लो खून निकलना बंद हो जाएगा।” - शौर्य ने अलका की और कपड़ा बढ़ाते हुए कहा।
“तुमने सुना नहीं कौन हो तुम? तुम्हें पता होना चाहिए कि हम पुलिस हैं और तुम्हें हमारे इन्वेस्टिगेसन में हमारा साथ देना चाहिए।”
“सुनो! ये तुम्हारा कोई पुलिस स्टेशन नहीं है... मोहिनीगढ़ है... यहाँ के अलग ही नियम हैं जिंदा रहना है तो मेरे नियमों को फॉलो करो... और हाँ तुम अपनी ब्लीडिंग जल्दी से रोको वरना रक्त की गंध से वो सभी यहाँ आ जाएँगे।”
संजना ने अचंभित होते हुए अलका की इनर और जैकेट को ऊपर खिसकाई तो देखा तो सच में कोहनी से खून निकल रहा था। असल में जिप्सी में फंसी अलका पर भेड़िये के हमले के दौरान अलका की चोटिल हो गई थी। सभी ने चकित होकर शौर्य की ओर देखा। कि उसे ये सब कैसे पता चला?
खून की गंध से शौर्य बैचेन होने लगा। वो वहाँ से चला जाता है। संजना ने दीवार की ओट से शौर्य की एक्टिविटी पर गौर करने लगी।
“सर आपने देखा? खून की महक से उसकी बॉडी लैंग्वेज बिल्कुल चेंज हो गई थी वो शांत से अग्रेसिव हो गया। मुझे तो शौर्य पर डाउट है।”
“मुझे भी..... ।”
“सब लोग चौकन्ने रहना... हम शौर्य को नहीं जानते हैं। वो हमारे लिए अनजान है तो हम उस पर भरोसा नहीं कर सकते। सर्दी बहुत, बस कैसे भी करके रात कट जाये,अब सुबह ही हम आगे की कार्रवाई करेंगे।”
“एक बात बताओ...? तुम में से किसी को भेड़िये ने तो नहीं काटा न?” - अचानक से शौर्य ने पास के टूटे पड़े कमरे की खिड़की से झांकते हुए पूछा।
“नहीं.... हम में किसी को भी भेड़िये ने नहीं काटा।”
“और किसी को कोई काले लिबास में एक महिला या परछाइ तो नहीं दिखी न सपने में या असल में?”
“नहीं..... ।”
“तुम लोग सुरक्षित हो यहां पर, आराम से रात बितायीए.... किसी चीज की जरूरत हो तो मुझे बताना..... । ध्यान रहे कुछ भी हो लेकिन यहाँ से बाहर नहीं निकलना।”
सुबह के पाँच बज चुके थे।
आदमखोर भेड़ियों की डरावनी आवाजों से गुंजायमान मोहिनीगढ़ की सर्द भरी रातें और तीर के समान हड्डियों को छेद देने वाली शीत लहर की वजह से हर्षित और उसकी टीम की आंखों से नींद कोसों दूर थी।
संजना खड़ी हो कर शौर्य के कमरे की ओर बढ़ी।
संजना ने कमरे में झाँक कर देखा तो शौर्य अभी तक अलाव के पास बैठा एक टक आग की ऊपर उठती लौ को देख रहा था।
शौर्य किसी गहन विचार में लीन था। अब वो शांत और सामान्य दिख रहा था।
“अलका कैसी है अब?” - शौर्य ने पीछे से आ रही संजना से बिना मुड़े ही पूछा।
“वो ठीक है तुम हम सबके पास क्यूँ नहीं रुके....? कोई वजह....?” - संजना ने शौर्य के पास बैठते हुए कहा।
“मुझे खून खराबा अच्छा नहीं लगता। तुम गन को रख सकती हो, भरोसा रखो मैं तुम में से किसी को भी कोई नुकसान नहीं पहुँचाउँगा।”
“ओह! सॉरी.... ।” - संजना ने अपनी गन रखते हुए कहा।
“वैसे उस भेड़िये को जो तुमने लकड़ी से मारा तब भी उसे ब्लीडिंग हुई थी। उसका क्या?”
“मैं इंसानी खून की बात कर रहा हूं।”
“ओके... हम सबकी जान बचाने के लिए शुक्रिया...।”
“ठीक है अब बात पर आओ, क्या पूछना है तुमको मुझसे।”
“कौन हो तुम...? और यहाँ अकेले कैसे जिंदा हो?”
“मैं शौर्य हूँ। बचपन से ही ऎसे माहौल में रहा हूँ इसलिए सर्वाइव कर रहा हूँ।”
“एक बात बताऊँ...... ।”
“हाँ, बिल्कुल..।”
“तुम सबको यहाँ नहीं आना चाहिए था”
“क्यूँ?” - हर्षित ने पूछा।
हरिसिंह, अलका और जगदीश, हर्षित के साथ शौर्य के पास पहुंच गये।
“क्यूँ, क्या? तुम लोगों ने मोहिनीगढ़ के बारे में नहीं सुना है क्या? यहाँ आना किसी खतरे से कम नहीं है।”
“वो तुम्हें पता नहीं है, मोहिनीगढ़ क्या है हमारे लिए। हम ने इससे भी खतरनाक जगहों पर सक्सेस ऑपरेशन किए हैं।” -
“वो सब छोड़िए, शौर्य जी! ये बतायीये आपने यहाँ पर हमारे अलावा कोई और कोई टीम तुम्हें मिली?” - हर्षित ने कहा।
“हाँ.... कुछ लोग थे जो यहां भटक चुके है जो परसों ही मुझे मिले थे। उन में से शायद एक दो ही बचे होंगे।”
“अच्छा कौन थे वो लोग...?”
“आर्किलोजिस्ट प्रोफ़ेसर राणा अपनी टीम के साथ आए थे।”
“वो सब अभी कहाँ पर हैं?” - हर्षित ने उत्सुकता पूर्वक पूछा।
“इसका मतलब तुम लोग उन्हीं के लिए यहां आए हो?”
“हाँ... उनके बारे में कुछ और बताओ?”
“तुम लोगों ने यहाँ आकर बहुत बड़ी गलती की है, तुम सबको मालूम नहीं है कि तुम सब मोहिनीगढ़ के जानलेवा जाल में फंस चुके हो?”
शौर्य को सब कुछ समझ में आ चुका था। लेकिन हर्षित और उसकी टीम को शौर्य की पहेलीनुमा बातें समझ में नहीं आ रही थीं।
तभी पीछे से अलका की आवाज आई - “ कौन है वहाँ पर....?”
सभी ने बातें बंद करके पीछे अलका की ओर मुड़ कर देखा। अलका कमरे के दरवाजे की ओर गन पॉइंट किए हुए खड़ी थी।
“क्या हुआ अलका? कौन है वहाँ?”
“सर वहाँ मैंने अभी किसी को गुजरते हुए देखा। एक काले कपडे़ वाली औरत को........ ।”
“क्या.......?”
सभी ने दौड़ कर बाहर देखा तो वहाँ कोई नहीं था।
“यहाँ तो कोई नहीं है अलका?”
“लेकिन सर वो औरत तो अभी यहीं........ आहह....... ।” इतना कहते ही अलका अपनी बाँह को पकड़ कर बैठ गयी। उसे असहनीय जलन और दर्द हो रहा था।
संजना, हरिसिंह और जगदीश शौर्य से हेल्प मांगते हैं।
“इसे क्या हो रहा है, शौर्य! कुछ करो।”
“इसका इलाज सिर्फ मोहिनीगढ़ में सिर्फ़ एक ही शख्स के पास है।”
“कौन है वो शख्स?”
“और भी रहते हैं यहां....?”
“शौर्य जल्दी से उस शख्स का नाम बतायीये। अलका की हालत गंभीर होती जा रही है।”
“अलका, अब शापित हो चुकी है। तुम लोग कुछ नहीं कर सकते..... परसों अमावस्या है वो कल अलका को लेने खुद आएंगे।”
“क्या बोल रहे हो..... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि तुम क्या कह रहे हो? साफ़ साफ कहो हमारे पास टाइम नहीं है।”
“कल वही लेने आयेगा.... जिसकी तुम्हें तलाश है..... उसका नाम है.... विक्रांत... ।”
क्रमशः..........
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