Town of Death ☠ CHAPTER - 12

         Town of Death CHAPTER - 12


          प्राचीन तिलिस्म किताब का रहस्य



By - सोनू समाधिया रसिक 🇮🇳


[sᴜᴘᴘᴏʀᴛ ᴍᴇ ᴅᴏɴᴀᴛᴇ ᴡɪᴛʜ ᴜᴘɪ ——————------------------------ sonusamadhiya10@paytm] 


अध्याय - ११ से आगे ~


प्रवीण की आँखें कमरे में किसी के कदमों की आहट से सहसा खुल गईं। उसने तुरंत अपनी रजाई को हटाकर बाहर देखा तो सामने नेहा खड़ी थी। 



“अरे यार! तूने तो मुझे डरा ही दिया।” - प्रवीण ने टेबल पर रखी घड़ी में टाइम देखते हुए कहा। 


सुबह के 7 बज चुके थे। प्रवीण ने अपने हाथ मलते हुए रजाई के अंदर कर लिए। 



“खड़ी क्यूँ है? बैठ.... आज सर्दी बहुत है यार।” 


नेहा, बिना कुछ बोले प्रवीण के बेड के पास रखी चेयर पर बैठ गई। 

बाहर बहुत घना कोहरा था। आज सूर्यनारायण भगवान के दर्शन मुश्किल थे। 

नेहा और प्रवीण कुछ देर के लिए मौन होकर खिड़की से बाहर मोहिनीगढ़ के मनुहुश वातावरण की ओर देखने लगे। बाहर एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। 

मौन मुद्रा में खड़े विशालकाय वृक्षों ने हल्की बर्फ़ की चादर औढ़ रखी थी। बूँद बूँद टपकते कोहरे की आवाज और हल्की ठंडी हवा के झोंकों से हिलते पर्दों की आवाजें जहन में खौफ की सिहरन पैदा कर रहीं थीं। 

सारे पेड़ - पौधे गुलामों की तरह नतमस्तक खड़े हुए प्रतीत हो रहे थे, मानों कोई उन्हें अभी शाही फ़रमान सुनाने वाला हो। 


“प्रवीण! तुम्हें यहाँ कुछ अजीब नहीं लग रहा?” - नेहा ने अपने मौन को तोड़ते हुए प्रवीण से पूछा। 



“अजीब.... ? इसमें अजीब वाली क्या बात है? मोहिनीगढ़ में दो दिन से फंसे हुए हैं। तब से सब कुछ अजीब ही हो रहा है। दो पैरों पर चलने वाले इंसानी खून के प्यासे मानव भेड़ियों से अजीब और कुछ हो सकता है क्या?” 




“वो तो है ही लेकिन इस घर में भी कुछ न कुछ गड़बड़ है। तुम्हें पता है रात को मैं सो न सकी। क्योंकि मैंने रात को पास वाले कमरे से कुछ अजीब सी आवाजें सुनीं। ये वही कमरा है जहां रोनित, रजनीश, निकिता और दीप्ति को रखा गया है।” 




“अरे यार, आवाजें तो आएंगी ही क्यों कि वो सभी इन्फेक्टेड हैं, दौरा पड़ा होगा उन्हें.... तुमने ही तो कहा था कि ये भेड़िये हैं जो रात को जागते हैं और दिन में सोते हैं।” 



“मैंने इसके अलावा एक ब्लैक शैडो भी देखी है अब बता..... ।” 



“ क्या?” 



“हाँ..... तुझे पता है, इस मोहिनीगढ़ में विक्रांत के अलावा मुझे एक और शख्स मिला उसका नाम शौर्य था, बट मैं श्योर नहीं हूँ कि वो इंसान था या फिर इन्हीं में से कोई एक...... ।” 




“क्या कह रही हो? तुमने ये सब पहले क्यूँ नहीं बताया?” - प्रवीण ने बेड पर बैठते हुए कहा। 



“बताना चाहती थी मैं, लेकिन शौर्य ने मुझे माना कर रखा था इस सीक्रेट को किसी के साथ शेयर करने से.... ” 



नेहा ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा “.... उसने एक और बात कही थी कि इस घर में एक तहखाना भी है जहां पर..... ।” 



कमरे के गेट खुलने की आहट से नेहा ने अपनी बात को रोक दिया। प्रवीण और नेहा ने देखा कि विक्रांत अपने हाथों में चाय की ट्रे लिए मुस्कुराता हुआ कमरे में दाखिल हो रहा था। साथ में प्रोफेसर राणा अपने हाथ में चाय का कप लिए हुए थे। 



“हैलो! गुड मॉर्निंग, हैव ए नाइस डे।” - विक्रांत ने मुस्कुराते हुए नेहा और प्रवीण की ओर ट्रे बढ़ाते हुए कहा। 



“थैंक्स विक्रांत... ।” - नेहा ने विक्रांत की ओर मुस्कुराते हुए चाय का प्याला ट्रे से उठा लिया। 



“वेलकम जी... ।” 



विक्रांत ने ट्रे को टेबल पर रखते हुए कहा कि - “आप लोग नहा लीजिए, मैंने पानी गर्म कर दिया है, सर जी तो रेडी हैं। इस के बाद मैं खाना तैयार करता हूँ...... ।” 




“कितना काम करते हो विक्रांत आई प्राउड ऑफ़ यू।” प्रोफ़ेसर ने विक्रांत की पीठ थपथपाते हुए कहा। 



“ये तो मेरा फर्ज है सर। ऎसा अवसर मोहिनीगढ़ जैसे वीरान कस्बे में कभी कभार ही मिलता है।” 



इतना कहते हुए विक्रांत वहां से जाने लगा। तभी नेहा खड़ी हुई। 



“विक्रांत मैं भी आई.... तुम्हें दिक्कत होगी अकेले...... मैं हेल्प कर देती हूँ।” 



“आप रहने देतीं, आप सब मेरे मेहमान हैं।” 



“हे! विक्रांत नो प्रॉब्लम...।” - प्रवीण ने कहा। 



नेहा किचन में विक्रांत के साथ खाना तैयार कर रही थी। तभी विक्रांत ने झिझकते हुए कहा - “ नेहा! रात के लिए मुझे अफसोस है। सॉरी।” 



“अरे! कोई नहीं... इट्स ओके.... अगर रात को गलती हुई है तो किसी एक से नहीं हम दोनों से हुई है... इसलिए डोंट से सॉरी। वैसे तुम एक अच्छे इंसान हो, मैं अभी भी तुम्हें पसंद करती हूँ।” - नेहा ने थाली में खाना लगाते हुए कहा। 

नेहा, विक्रांत की ओर मुस्कुराते हुए तिरछी नजर से देख रही थी। तभी विक्रांत नेहा की आंखों में झाँकता हुआ..... आहिस्ता आहिस्ता उसके करीब आया। नेहा भी काम को बंद करते हुए विक्रांत की ओर मुड़ गई और उसने दोनों हाथ पीछे की ओर ले जा कर डेस्क पर रख लिए, नेहा की नशीली आँखों से कामुकता छलक रही थी। जो विक्रांत को बेकाबू बना रही थी। 

विक्रांत ने नेहा को बाहों में भींच लिया। और अपने होंठों को नेहा के चेहरे के पास लाया। 

नेहा की आँखें बंद हो चुकीं थीं, नेहा की कंपित तेज साँसे उसकी तत्परता और उसकी दिली ख्वाहिश को बयां कर रही थी। वो विक्रांत की बाहों में निढाल सी होने लगी थी। तभी विक्रांत ने..... 


नेहा के कान में धीमे से कहा - “अगर तुम्हारी इजाजत हो तो, रात वाला अधूरा काम पूरा कर दूँ।” 



“ह्म्म्म......” - नेहा ने मुस्कुराते हुए सहमति जताई। 



विक्रांत जैसे ही नेहा को किस करने वाला होता है कि उससे पहले ही नेहा का शरीर जोर से हिलने लगता है और उसकी आंखों में एक रात वाले खूंखार भेड़िये की तस्वीर और गुर्राने की आवाज उसके कानों में गूंजी। 

आवाज इतनी भयानक और तेज थी कि नेहा की चीख निकल पड़ी। एक पल के लिए नेहा ने महसूस किया कि ये आवाजें उसके कान के पर्दे और मस्तिष्क को फाड़ देंगीं। 


हङबङाहट में नेहा के हाथ से डेस्क पर रखा चाकू नीचे उसके पैर पर जा गिरा जिससे उसका पैर कट गया और उससे खून निकलने लगा। 


नेहा की चीख सुनकर प्रवीण और प्रोफेसर राणा किचन में पहुंच गए। 



“क्या हुआ नेहा?” 



“कुछ नहीं सर, बस पैर में थोड़ा सा चाकू लग गया, जिससे पैर में ब्लीडिंग होने लगी है।” 



नेहा के पैर से निकल रहे खून ने विक्रांत को बैचेन कर दिया। उसका गला सूखने लगा। नेहा ने देखा कि विक्रांत के शरीर के रोंगटों बड़े और काले होने लगे। 



“विक्रांत तुम्हें क्या हुआ? - नेहा ने हैरान होते हुए कहा। 



“क्क्क्क्कुछ नहीं.... मुझे खून से एलर्जी है... मैं आपको कपड़ा देता हूँ। आप अपना खून रोकने की कोशिश किजिए। क्योंकि खून की महक उन्हें यहां खींच लाती है।” 


इतना कहते हुए विक्रांत वहाँ से चला गया। नेहा को विक्रांत का बिहैवियर नॉर्मल नहीं लगा। विक्रांत के चले जाने के बाद नेहा, प्रवीण और प्रोफेसर एक दूसरे को देख रहे थे। विक्रांत, नेहा, प्रोफेसर और प्रवीण के शक़ के घेरे में आ चुका था। 


“नेहा तुम ठीक हो?” 



“हाँ, सर.... ।” 



दोपहर के 12 बज कर 16 मिनिट हुए थे, सभी लोग डायनिंग टेबल पर दोपहर का खाना खा रहे थे। 



“विक्रांत!...”



“जी प्रोफ़ेसर...।”



“आपने हम सबको मोहिनीगढ़ से निकालने की कोई योजना बनाई अभी तक या नहीं।” - प्रोफेसर ने विक्रांत से पूछा।


सभी की नजरें विक्रांत पर जा टिकीं। नेहा, विक्रांत से नजरें मिलाने से अब कतरा रही थी।



“हाँ प्रोफेसर क्यूँ नहीं, मैं दो दिन से ही एक प्लान पर काम कर रहा हूँ... मैंने तो उसी टाइम एक प्लान बना लिया था... जब आप लोग मुझे मिले थे।”-विक्रांत ने हिचकिचाहट में एक झूठी मुस्कान बनाते हुए सभी को गुमराह करने की कोशिश की।



“तो क्या आप मुझे अपना प्लान बताओगे? हम सब भी तो जाने आपका प्लान क्या है और अभी उसका स्टेटस क्या है?”



“प्लान सामान्य और ख़ास है प्रोफेसर.... बस कल की रात और.... एक पूजा होनी है। जिससे आप लोग मोहिनीगढ़ के शाप से मुक्त हो जाएं उसके बाद रही भेड़ियों की बात तो परसों आप दिन में निकलना क्यों कि भेड़िये दिन में आपका कुछ नहीं कर सकते हैं....”



“लेकिन...” - नेहा ने कुछ पूछना चाहा लेकिन विक्रांत ने उसकी बात को बीच में अनदेखी करते हुए अपनी बात जारी रखी।



“..... अरे! नेहा जी पहले मेरी पूरी बात सुन लीजिए, अगर दिन में भी भेड़िये आप सब पर हमला करते हैं तो मैं रहूँगा आप लोगों के साथ, जब तक आप मोहिनीगढ़ से बाहर नहीं निकल जाते ठीक है....., अब आप कहिए नेहा जी..।”



“नहीं... मुझे बस यही पूछना था... जो तुमने बता दिया..... ।”



“तो फिर आप लोग जल्दी से लंच ख़त्म करिए और आराम करिए... तब तक मैं, रोनित और रजनीश रात तक एक काम निपटा कर आते हैं, दीप्ति और निकिता यहीं रहेंगी अपने रूम में आराम करेंगी।”




“लेकिन विक्रांत रोनित और रजनीश की तबीयत अभी ठीक नहीं हुई है और उन लोगों ने खाना भी नहीं खाया शायद...।” - प्रवीण ने कहा।



“आप उनकी टेंशन मत लो, वो अब ठीक हैं और उनको मैं खाना पहले ही दे चुका हूँ। सब मज़े से सो रहें हैं, हालाँकि मैं मानता हूं कि उन्हे अभी तक मामूली सी चोटें आईं हैं जो रात को पूजा के बाद पूरी तरह से ठीक हो जाएंगी।” 



“ठीक है विक्रांत, तुम अपना ख्याल रखना और रोनित और रजनीश का भी... ।” - नेहा ने जाते हुए विक्रांत से कहा। 



“हाँ बिल्कुल..... ।” 



विक्रांत के चले जाने के बाद नेहा ने कहा - “सर, मुझे विक्रांत कुछ ठीक नहीं लग रहा... मुझे लगता है कि विक्रांत हम सबको गुमराह कर रहा है....” 



“लेकिन हमने अभी देखा कि तुम्हें उसकी कितनी फिक्र है।” - प्रवीण ने चिड़ते हुए कहा। 



“अरे! ऎसा इसलिए कहा जिससे विक्रांत को हम पर डाउट न हो।” 



“... और हाँ वो ह्यूमन ब्लड के प्रति अतिसंवेदनशील है लाइक ए वेयरवुल्फ.... ।” 



“ओह..... ।” 


नेहा की बातें सुनकर प्रवीण का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। 




विक्रांत पास वाले में कमरे में पहुंच गया था, सामने रोनित, रजनीश, निकिता और दीप्ति सिर झुकाए खड़े थे। असल में विक्रांत उनसे सामान्य आवाज न बात करते हुए भारी और कर्कश आवाज में उन्हें अपना हुकुम सुना रहा था। 



“कल सुबह तक हमें पूजा के लिए एक शिकार लाना है जिसे माँ द्वारा शापित कर दिया है, ध्यान रहे वो एक लड़की है, हमें वो जिंदा चाहिए.... हमारे पास रात भर का समय है वो अभी शौर्य के पास है.... शौर्य से बचकर रहना उस पर हमला मत करना नहीं तो उसका खून तुम्हें मार देगा.... शौर्य के अलावा कोई भी हो... उसे वहीं जिंदा फाड़ दो... समझे न तुम लोग.... ।” 




“जी.... सरदार...।” 




“बेवकूफ़ों! मुझे सरदार नहीं, प्रिंस ऑफ मोहिनीगढ़ बुलाओ.... हा हा हा हा हा.... इस लम्हे के लिए मैंने सदियों तक इंतजार किया है एक - एक पल जंग में गुजारा है... । मुझे मोहिनीगढ़ का राजकुमार बुलाओ...गुस्ताखों... ।” 



“जी राजकुमार.... ।” - सभी ने एक स्वर में कहा। 




“निकिता और दीप्ति, तुम दोनों सुनो!” 



“जी.... ।” 



“तुम दोनों, यहीं पर रहकर, नेहा, प्रोफेसर और प्रवीण पर नजर रखना, नेहा को छोड़कर कोई भी गुस्ताखी करे या फिर उस तहखाने में प्रवेश करने की कोशिश करे तो उसे मार देना। मुझे तो लगता है कि नेहा को मुझ पर शक़ हो गया है।” - विक्रांत ने चिंतित स्वर में कहा। 




“राजकुमार मुझे किसी इंसान की गंध आ रही है लगता है, कोई इंसान अभी हमारे आसपास ही है।” 



“ओह! मैं भूल ही गया था, कहीं कोई हमारी बातें तो नहीं सुन रहा?..... जाओ तुम लोग अपने काम पर लग जाओ! मैं अभी जाकर देखता हूँ कि हमारी बातें सुन रहा है या नहीं ?” 




विक्रांत जब तक बाहर निकल कर देखता कि तब तक नेहा अपना साँस रोक कर दबे पाँव वहां से निकल गई। 

 


बाहर किसी को न पाकर विक्रांत अपने काम में लग गया। 


नेहा दौड़कर प्रोफेसर और प्रवीण के पास गई। नेहा को घबराई और उतावली देख कर प्रवीण और प्रोफेसर को शंका हुई। 



“क्या हुआ नेहा? सब ठीक तो है न?” - प्रवीण ने नेहा से पूछा। 



“श्श्श्शश...... मुझे आप लोगों को कुछ बताना है।” - नेहा ने धीमी आवाज में कहा। 




“क्या?” 



“मेरा शक़ सही निकला...।” 



“कौन सा शक़, साफ़ साफ़ बोलो नेहा क्या बात है?” - प्रोफेसर ने कहा। 



“विक्रांत जरूर कोई भेड़िया या फिर कोई और है। वो जरूर कोई बड़े प्लान को अंजाम देना चाहता है, मैंने सब सुन लिया है।” 



“.... रोनित, रजनीश, निकिता और दीप्ति सब उसके वश में हैं, वो सब पहले जैसे नहीं रहे वे सब विक्रांत के गुलाम हैं और वे सब वक़्त आने पर हम सबकी जान ले सकते हैं।” 



“ये क्या कह रही हो?....नेहा!” - प्रोफेसर ने हैरानी भरे लहजे में कहा। 



“हाँ सर ये सब सच है क्योंकि मैंने अभी अपने कानों से सुना है और अपनी आंखों से देखा है.......” 



“... प्रवीण! मैंने तुम्हें सुबह ही बताया था कि इस मोहिनीगढ़ में विक्रांत के अलावा एक और इंसान भी है जिसका नाम शौर्य है..... ।” 




“हाँ...।” 



“वो सच है क्योंकि विक्रांत ने उसके नाम का भी जिक्र किया था... और हाँ इन सब की सच्चाई इस घर के तहखाने में है क्योंकि शौर्य ने भी तहखाने में कुछ राज छुपे होने की बात कही थी और विक्रांत ने भी निकिता और दीप्ति को वहाँ तैनात किया है ताकि विक्रांत की अनुपस्थिति में हम में से कोई भी वहां न जा पाये।” 




“ओह गॉड.... हम सबको तहखाने में जाकर देखना चाहिए।” - प्रवीण ने उत्सुकता दिखाई। 



“रुक जाओ! प्रवीण अभी विक्रांत और सभी लोग हैं यहाँ पर.... उसके जाने के बाद हमें दीप्ति और निकिता को अपने काबू में करना होगा। तब जाकर हम वहाँ जा सकते हैं..... ।” 




“कहाँ जाने की तैयारी है? नेहा! मुझे भी तुम्हारे साथ चलना है।” 



दीप्ति की अचानक दाखिले से कमरे के अंदर सभी लोगों के चेहरे से हवाईयां उड़ गईं। 

डर से सभी का गला सूख गया। 



“तुम्ही बता दो प्रवीण! कहाँ जाना है तुम सबको?” - दीप्ति ने बुत बने प्रवीण से पूछा। 



“मैं बताता हूँ.... ।”



“सर.... ।” - नेहा ने डरते हुए प्रोफेसर को रोकना चाहा। 



“रुको नेहा मुझे बताने दो.... ।” - प्रोफ़ेसर ने नेहा को इशारे से समझाया। 




“दीप्ति! हम सब सोच रहे थे कि हम सब आज शाम को ही यहाँ से निकल जायेंगे, क्योंकि हम विक्रांत को और ज्यादा परेशान नहीं कर सकते हैं।”


तभी दीप्ति ने गुस्से में सबको घूरते हुए कहा - 

“कोई कहीं नहीं जायेगा, जब तक विक्रांत अपना काम करके यहाँ नहीं आ जाता.....”



“विक्रांत या राजकुमार........ ।”


पीछे से नेहा की आवाज सुनकर दीप्ति जैसे ही मुड़ी तो उसने नेहा के हाथ में कुर्सी का टुकड़ा देखा तो उसे समझने में देर नहीं लगी। कि उन सबकी बातें नेहा ही सुन रही थी। दीप्ति ने नेहा पर गुर्राना शुरू कर दिया, लेकिन दीप्ति जब तक नेहा को कुछ कर पाती, तब तक हमले के लिए पहले से ही तैयार नेहा ने दीप्ति के सिर पर जोरदार वार किया। जिससे दीप्ति तुरंत बेहोश हो कर जमीन पर जा गिरी।

जमीन पर गिरते ही दीप्ति सामान्य हो गई, जो पहले एक आदमखोर वेयरवुल्फ की घृणित शक्ल अख्तियार किए हुए थी।



“प्रवीण..... जल्दी से इसके हाथ पकड़ो और ये होश में आये उससे पहले ही इसे मजबूती से रस्सियों से बांध दो.... ।” - नेहा ने चिल्लाते हुए।



प्रोफेसर ने उस रूम का गेट बंद करते हुए कहा - “जल्दी से इसे कहीं छुपा दो... निकिता आने वाली है उसे भी हमको काबू में करना है... ।”




“इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा सर!” 




“सही कहा तुमने, नेहा! वेयरवुल्फ़ को सब पता चल जाता है, जब उनके साथी पर हमला होता है..... ।” 



“हाँ सर! विक्रांत को भी पता चल गया होगा तो.... ।” - प्रवीण ने गंभीर होते हुए कहा। 



“हाँ, लेकिन उसे इन दोनों पर पूरा भरोसा है तो वो फिलहाल अपने काम को निपटाकर ही आएगा...।” 




“कोई तो उपाय करना पड़ेगा.....?” - प्रवीण ने दीप्ति को रस्सियों से बांधते हुए कहा। 


तभी रूम के गेट को निकिता ने जोर जोर से चीखते हुए पीटना शुरू कर दिया। 

वो भयानक आवाजें निकालते हुए बेतहाशा शोर मचा रही थी.... ऎसा लगता था जैसे वो कुछ पल में ही रूम का गेट तोड़ देगी। 



“कुछ तो करना पड़ेगा, जिससे पहले निकिता गेट तोड़ कर अंदर आ जाए और हम सबको गुस्से में मार डाले.... ।” - प्रवीण ने हङबङाते हुए कहा। 




तभी नेहा ने प्रवीण की ओर देखते हुए कहा - “मेरे पास एक आइडिया है, वेयरवुल्फ्स को ह्यूमन ब्लड बहुत पसंद होता है न.... ।” 



“ओके.. मैं समझ गया.... ।” 


प्रवीण तेजी से डायनिंग टेबल की ओर बढ़ा और वहाँ पर उसने फ्रूट बास्केट से चाकू उठाया और अपनी हथेली पर एक चीरा लगा लिया और प्रवीण ने कटी हुई हथेली को डायनिंग टेबल पर रखी एक प्लेट में ब्रेड के ऊपर लाया जिससे उसके हाथों से टपकतीं खून की बूँदों से ब्रेड सन गया। 



इसके बाद प्रवीण अपनी हथेली को दबाकर एक कोने में छिप गया और अपने हाथ पर कपड़ा बांध लिया। 


नेहा ने गेट के पास खड़े प्रोफेसर को थम्ब दिखाते हुए इशारा किया और छिप गई। 

नेहा का इशारा मिलते ही प्रोफेसर ने रूम का गेट खोल दिया। 


अचानक से बिना कोई परेशानी और जद्दोजहद के गेट खुल जाने के वजह से निकिता चीखना बंद करते हुए तेजी से कमरे में दाखिल हो गई। 


निकिता पूरी तरह बदल चुकी थी वो गुस्से में अपने बड़े बड़े नुकीले दाँतों को पिसते हुए कमरे चारों ओर दीप्ति को ढूँढ रही थी। 

उसका विभत्स और डरावना चेहरा सभी की दिल धड़कने बढ़ाने के लिए काफ़ी था। 



तभी निकिता ने तेजी से मुड़कर गेट की ओट में छिपे प्रोफेसर की ओर देखा तो वो गुस्से से चीखते हुए तेजी से प्रोफेसर की और दौड़ी। 


प्रोफेसर पर हमला होते देख, प्रवीण और नेहा उनके बचाव में बाहर निकल आये, लेकिन तभी प्रोफेसर ने उन्हे हाथ के इशारे से दोनों को अपने करीब आने को मना कर दिया और उन्हें छिपे रहने को कहा। 



निकिता अचानक से रुक गई और लंबी - लंबी साँसे लेने लगी। असल में वो इंसानी खून की गंध सूँघ रही थी। 

वह बापस मुड़ी और अपने हाथों और पैरों के बल दौड़ती हुई, डायनिंग टेबल के पास पहुंच गई। 


निकिता ने उतावले होते हुए ब्रेड का टुकड़ा उठा लिया और गुर्राते हुए उस ब्रेड के टुकड़े को चाटते हुए खाने लगी, जैसे वो न जाने कितने दिनों से भूखी थी। 


निकिता को व्यस्त देख, प्रवीण ने कुर्सी के टुकड़े से निकिता के सिर पर वार करना चाहा जिससे उसे काबू में किया जा सके, जो उसके होश में रहते हुए संभव नहीं था। 


प्रवीण जैसे ही निकिता के पास आया तो निकिता ने पलक झपकते ही प्रवीण का गला अपने खूनी पंजों में दबोच लिया। जिससे प्रवीण के गले से खून निकलने लगा और लकड़ी का टुकड़ा उसके हाथ से छूट गया। 



“प्रवीण..... मेरे बेटे.......” - प्रोफेसर चिल्लाते हुए निकिता की ओर बढ़े, लेकिन वो कुछ कर पाते तब तक निकिता उन्हें धक्का दे कर दूर हवा में धकेल देती है। 



प्रवीण की आँखों से आँसू बहने लगे, उसकी साँसे अटकने लगीं थीं। निकिता, प्रवीण के गले से टपक रहे खून को देख कर अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए उसके गले को अपने हाथों से मसल रही थी। 



तभी वहाँ नेहा आती है और बिना देरी किए पास पड़े कुर्सी के टुकड़े से निकिता के सिर पर जोरदार प्रहार करती है, जिससे वो निढाल हो कर वहीं लुढ़क जाती है। 


तभी वहाँ प्रोफेसर अपना सिर पर हाथ रखे, वहाँ आ जाते हैं, उन्हें हल्की सी चोटें आईं थीं। नेहा और प्रोफेसर दोनों मिलकर निकिता को रस्सियों से बांध देते हैं। 




 “क्या तुम ठीक हो प्रवीण?” - नेहा ने प्रवीण हो हिलाते हुए पूछा। 



“हाँ...... आहह.....” 



“बेटे क्या हुआ.....?” 



“कुछ नहीं बस थोड़ा सा दर्द और जलन है गले में...... ।” - प्रवीण कराहते हुए बैठ गया। 



“हम्म्म... निकिता तो तुम्हारी गर्दन ही तोड़ने वाली थी, जिसने असल जिंदगी में कभी कुछ न तोड़ा हो.... ।” 


नेहा ने प्रवीण के गले में कपड़ा बांध दिया। 



 “हाँ यार..... शी इज वेरी स्ट्रॉंग..... ।”



“चलो अब हमें बिना देरी के तहखाने में जाकर देखना चाहिए, शायद वहाँ कुछ मिल जाए, वैसे भी अगर विक्रांत बापस आयेगा तो हम सबको जिंदा नहीं छोड़ेगा। मरने वाले तो हैं ही, एक बार और शौर्य पर भरोसा करके, एक आखिर कोशिश कर ली जाए।”




“सही कहा डैडी आपने!”



“सर!... केवल मैं जाऊँगी तहखाने के अंदर.... आप दोनों बाहर नजर रखना.... ।”



“आई थिंक, अब कोई बाहर बचा होगा हमारे अलावा क्योंकि ये दोनों तो हमारे कब्जे में हैं...... ।”



“फ़िर भी सर..... विक्रांत कभी भी आ सकता है और उसके साथ रोनित और रजनीश भी हैं..... ।”



“ओके.... बी केयरफुल... कुछ भी हो अंदर तुरंत आवाज लगाना मुझे, अगर आवाज नहीं आई तो मैं और प्रवीण तुम्हें लेने के लिए अंदर आ जाएँगे। तब तक हम दोनों यहाँ कुछ ढूंढते हैं जिससे उन दरिंदों से बचा जा सके।”



“ओके... सर...!”



नेहा सीड़ियों से होते हुए तहखाने में पहुंच चुकी थी। चारों तरफ़ अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था। जिससे उस तहखाने की बनावट और आकार का अनुमान लगाना असंभव था।



उस अंधेरे में किसी के होने के अंदेशे ने नेहा के शरीर में फुरफुरी पैदा कर दी।

नेहा को सामने दूर एक पूजा बेदी दिखी जिस पर एक मॉमबत्ती मंदिम लौ में अपनी रोशनी बिखेर रही थी।



नेहा हिम्मत करके उस पूजा बेदी की ओर बढ़ी तभी अंधेरे में उसका पैर किसी चीज से टकरा गया। नेहा एक पल को कांप उठी और वहीं ठिठक गई।


नेहा ने डरते हुए अपने हाथों से अंधेरे में टटोलते हुए उस चीज को उठा लिया। वो चीज कोई और नहीं बल्कि एक प्राचीन किताब थी। 

वही तिलिस्मी किताब जिसमें मोहिनीगढ़ के कई रहस्य छिपे हुए थे। 


नेहा उस किताब को लेकर उस पूजा बेदी की ओर बढ़ी क्यों कि अंधेरा होने के कारण उस किताब को पढ़ना मुश्किल था। 

पूजा स्थल के पास जाकर नेहा ने बुझी हुई मॉमबत्तियाँ जला दीं। जिससे कुछ हद तक तहखाने के अधिकांश हिस्से रोशन हो गए। 



नेहा ने उस पुरानी जिल्द वाली किताब को टटोला तो उसे शक़ हुआ कि ये जिल्द किसी के चमड़े से निर्मित किया गया है। 



नेहा ने जल्दी से उस किताब को खोला, किताब के शुरुआती पन्नों में किताब के बारे में विस्तार से जानकारी लिखी गई थी। जो कि मोहिनीगढ़ की प्राचीन स्थानीय भाषा में लिखी हुई थी। 

जब नेहा ने पढ़ना शुरू किया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, वह किताब हजारों साल पुरानी थी, सबसे घृणित और दिल दहला देने वाली बात तो यह थी कि उस किताब का जिल्द गर्भस्थ शिशु की चमड़ी से निर्मित किया गया था। साथ ही किताब में प्रयुक्त स्याही कोई आम स्याही न होकर तत्कालीन ताज़ा खून था वो भी जीवित जीव का.... उस जीवित जीव या उस इंसान का जिसका वर्णन किताब के पृष्ठ पर किया गया था। नेहा ने किताब के पृष्ठों पर अपनी अंगुलियों को फेरा और फिर उन्हें सूंघा, उसे कुछ हासिल नहीं हुआ। 


नेहा ने अपने कांपते हाथों से किताब के पन्नों को पलटा तो नेहा को उस किताब में और भी हैरान करने वाले कुछ राज मिले। वह किताब मोहिनीगढ़ में पनपे अच्छे और बुरे, शासक और सामंत, इंसान और शैतान, मानव - भेड़िये और नर - पिशाच, जो मोहिनीगढ़ की सत्ता में रहे उनके बारे में विस्तार से चर्चा की गई थी, वो भी बारीकी से.... 



उस किताब को पढ़ते हुए नेहा की रूह हिल गई। क्योंकि उसने अपनी जिंदगी में पहली बार किसी प्राचीन स्थल का इतना डरावना और क्रूर इतिहास पढ़ा था। 


उस किताब के आख़िरी पृष्ठ पर लिखा था 


“इस किताब को लिखने में अपवित्रता की सारी हदों को पार किया गया, फिर भी इसे अपवित्र न बना सके.... ।” 



नेहा को ये कथन कुछ हद तक समझ में नहीं आया। लेकिन उसने इसे समझने की कोशिश नहीं की। क्यों कि उसके पास समय बहुत कम था।

नेहा को उस समय मानव - भेड़िया और नर - पिशाचों से मिलती जुलती समस्या का सामना करना पड़ रहा था।

उसी समस्या के समाधान हेतु नेहा ने उस किताब के मानव - भेड़िया और नर - पिशाचों वाले भाग को पढ़ना उचित समझा।


नेहा ने किताब के पन्नो को जल्दी से उलटना शुरू किया तो उसे मानव - भेड़िया और नर - पिशाचों वाले भाग में कुछ हैरान करने वाली बातें मालूम हुईं। 


विक्रांत जैसी तस्वीर नेहा को नर - पिशाच वाले भाग में मिली। नेहा समझ नहीं पा रही थी कि वो चित्र विक्रांत का है या फिर विक्रांत जैसे दिखने वाले किसी अन्य व्यक्ति का। क्योंकि अगर वो चित्र विक्रांत का है तो किताब की बात माने तो वो विक्रांत के खून से उसके मरने से पहले बनाया गया होगा, लेकिन विक्रांत तो जिंदा है.... 

नेहा के दिमाग ने उस बात को मानने से इंकार कर दिया, क्योंकि ये असंभव था। 


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तभी नेहा की नजर दूसरे पृष्ठ पर बने चित्र पर गई तो उसकी आँखें चमक उठीं उसके मुँह से स्वतः ही निकल गया। 



“ओह.... तुम्हें तो मैंने पहचान लिया...... ।” 


वह चित्र उस काले लिबास वाली चुड़ैल का था, जो नेहा को कई बार मिल चुकी थी... उसके कारण नेहा का ध्यान पहले चित्र से भटक गया जिससे वो उस समय पहले वाले चित्र के बारे में पढ़ना भूल गई। 


नेहा ने जैसे ही उस चुड़ैल के बारे में पढ़ना शुरू किया तो सहसा उसके कंधे वाले घाव में तेज जलन होने लगी। 


नेहा दर्द और जलन से कराहने लगी। 


तभी, अंधेरे से किसी के आने की आहट के साथ एक आवाज आई.... 


“क्या हुआ....? मेरी प्यारी बच्ची... दर्द बर्दाश्त से बाहर हो गया क्या?...” 


नेहा ने अपने सामने एक काली परछाइ देखी जो उसी काले लिबास वाली चुड़ैल की थी, वो नेहा के करीब आ रही थी। 


नेहा की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा था क्योंकि दर्द वाकई उसके बर्दाश्त के बाहर जाने लगा था, वो बेहोशी की हालत में पहुंच चुकी थी। 



“क्क्ककौन.... हो.... तुम...? मंजरी....?” 



इतना सुनते ही उस चुड़ैल ने झटके के साथ नेहा की गर्दन पकड़ ली और उसे हवा में लहरा दिया। 



“मंजरी नहीं.... रक्त मंजरी नाम है मेरा... तो.. अब तू... मेरे बारे में जान ही चुकी है, तो मैं विक्रांत के आने से पहले ही तेरा काम तमाम कर देती हूँ..... ।” 




“चुड़ैल.... मैं भी ये जान गईं हूँ कि इस किताब के सामने तेरी कोई शक्ति काम नहीं आने वाली..... क्योंकि इस किताब को लिखने में अपवित्रता की सारी हदों को पार किया गया, फिर भी इसे अपवित्र न बना सके....इस किताब की पवित्रता ही तुम सबका काल है.... ले अब तू मर.....” 



नेहा ने उस किताब को मंजरी चुड़ैल के सीने से लगा दिया.. जिससे वो चीखती हुई दूर जा गिरी।

चुड़ैल के अगले हमले से पहले ही नेहा ने उसका जड़ से काम तमाम करने के लिए उस किताब को फिर से पढ़ना शुरू कर दिया.... 


दूर खड़ी चुड़ैल भी एक बार फ़िर से नए पैंतरे के साथ हमले के लिए तैयार हो गई..... 




क्रमशः....... 



                🙏 राधे राधे 🙏 

                     ©SSR ❤️ 


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