Town of Death CHAPTER - 13

 Town of Death CHAPTER - 13


              अध्याय - १३

   † मोहिनीगढ़ का एकलौता नर -पिशाच †



By_Mr. Sonu Samadhiya Rasik



अध्याय 12 से आगे.....


शाम के 4 बजे थे, सूर्य लगभग क्षैतिज में छिप चुका था, जिससे कोहरा और भी गहरा गया था। 

चारों तरफ से भेड़ियों की आवाजें सुनाई देने लगीं थीं। जो शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी। 

सभी लोग जल रहे अलाव के पास कंबल औढ़े हुए सर्दी से बचने की कोशिश कर रहे थे। सबसे अलग खड़े शौर्य की नजर डूबते हुए सूरज पर थी। 



“अंधेरा होने वाला है, हम सबको चौकन्ना रहने की जरूरत है। क्योंकि वो कभी भी अलका को लेने आ सकते हैं!” - शौर्य ने सभी को और मुड़ते हुए कहा। 




“तुम्हारे हाव भाव देख कर लगता है कि वो कोई आम इंसान नहीं बल्कि कोई ताकतवर इंसान है?” - हर्षित ने शौर्य की ओर संदेह और जिज्ञासा भरे लहजे में देखा। 




“हाँ.... कह सकते हो... वो ताकतवर है...” शौर्य ने हर्षित के करीब आकर कहा। “.... हैवान भी क्यों कि वो मेरा भाई है...” शौर्य की नजर हर्षित की नजरों से जा मिली। 

हर्षित को आभास हो चुका था। कि शौर्य की बातों में सच्चाई है। 



“हमें क्या करना चाहिए, शौर्य!” - संजना ने तत्परता दिखाई। 




“मेरी बात सुनो.... उसे मैं अच्छी तरह से जानता हूँ, वो जो सोच लेता है। उसे वो करके ही रहता है, उसे कोई भी नहीं रोक सकता.....” 





“आप भी नहीं.....?” - अलका ने अपने अंदर बढ़ रहे डर से निजात पाने की आशा में शौर्य के मुँह से 'हाँ' जबाब सुनने की उम्मीद की..... लेकिन, 



“..... नहीं... मैं भी उसे नहीं रोक सकता लेकिन कोशिश कर सकता हूं।” 



“तुम्हारे कहने का क्या मतलब है? शौर्य...” - हरिसिंह ने शौर्य से पूछा। 




“ जो तुमने सुना.... वही मतलब है। अब हमें अपना समय जाया न करते हुए। अपनी सुरक्षा का प्रबंध करना चाहिए।” - शौर्य ने जल्दबाजी दिखाई। 



अलका को उम्मीद टूटती नजर आई, तो विक्रांत के खौफ से उसका गला सूख गया। अब उसे अपनी मौत स्पष्ट नजर आने लगी थी। उसका बदन आतंकित हो हल्की सी भय के ताप के साथ कंपन करने लगा था। वो बैचेन हो गई। उसका मन अब कहीं नहीं लग रहा था। 




“तो क्या हम.. अलका को विक्रांत के हवाले कर देंगे मरने के लिए.... ताकि हम सब बच जाएं...।” - संजना ने अपने अंतर्भावों को प्रकट करते हुए कहा। 




“भावनाओं में मत बहिये, तुम लोगों को अपनी सुरक्षा में एतिहात बरतनी चाहिए, जब तुम लोग जिंदा बचोगे तो ही अलका को बचा सकते हो न, ... नहीं तो वो आयेगा और तुम लोगों को अपने रास्ते का काँटा बनते देख, सभी को निपटा देगा और अलका को ले जायेगा, वो सदियों से कत्लेआम करता आ रहा है। इसलिए तुम लोगों को मारने में उसे कोई हर्ज नहीं होगा....” - शौर्य ने सबके सामने अपनी योजना और बात को कुछ हद तक स्पष्ट किया। 





“तो तुम्ही बताओ, हमें क्या करना चाहिए... जिससे हम सबकी जान बच जाए।” - हर्षित ने परामर्श लेने की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा। 




“वो कभी भी आ सकता है.... उसके साथ कुछ लोग भी हैं जो नेहा की टीम के सदस्य हैं, जिन्हे वो अलका की तरह शापित करके अपना गुलाम बना चुका है। उन्हें तुम लोग या फिर मैं नहीं मार सकता... लेकिन वो तुम लोगों को मार सकते हैं.... मुझे नहीं अगर उन्हें जिंदा रहना है तो..... समझ रहे हो न मैं क्या कह रहा हूँ...” 




“हाँ...!” - सभी ने सहमति में सिर हिलाया। 





“तो तुम लोगों को इसी खंडहर में कहीं छिप जाना है। अलका यहीं मेरे पास रहेगी, क्योंकि विक्रांत तो इस खंडहर में नहीं आ सकता.... लेकिन जो लोग नये हैं, उसके साथ, जो अभी वेयरवुल्फ़ बनें हैं वो अंदर आ सकते हैं, अलका को देख कर शायद वो उनका ध्यान तुम लोगों पर न जाये। नहीं तो उन्हें मुझे रोकना पड़ेगा...” 



तभी अलका संजना से लिपट गई और रोते हुए बोली.. 

“ यार मुझे बचा लो... मुझे नहीं मरना...।” 





“डरो मत अलका... तुम्हें कुछ नहीं होगा भरोसा रखो हम तुम्हें बचा लेंगे.... ।” - हर्षित ने अलका को तसल्ली दी। 




“श्श्श्श्श्....... शांत रहो.... वो आ रहें हैं” - शौर्य ने अपने मुँह पर उंगली रखते हुए सभी को आगाह किया। “तुम लोगों को छिप जाना चाहिए.... । अलका तुम मेरे पास आओ..।” 



हर्षित, संजना, हरिसिंह और जगदीश खंडहर के सुरक्षित हिस्से में जाने लगे, अलका सिमिटी सी सभी को जाते हुए कातर नजरों से देख रही थी। हर्षित ने पीछे मुड़कर अलका को कुछ न होने का भरोसा दिलाते हुए इशारा किया। अलका डरती हुई शौर्य के पास पहुंच गई। 



तभी आसपास के माहौल में बदलाव होने लगा। भेड़ियों की दूर से आतीं आवाजें अब नजदीक से आ रहीं थीं, जो पहले से ज्यादा कर्कश और डरावनी थीं। पास में पड़ीं पेड़ों की सूखी पत्तियों पर किसी के चलने से उत्पन्न सरसराहट की ध्वनि को सुनकर शौर्य चौकन्ना हो गया। उसकी चील जैसी तेज नजरें आसपास के असामान्य माहौल का मुआयना कर रहीं थीं। 




कुछ क्षण बाद अचानक से शौर्य ने बिना कुछ बोले अलका के कंधे पर हाथ रखा, अलका भी बिना कुछ बोले हैरानी भरे लहजे में शौर्य की ओर देख रही थी। शौर्य की नजरों और शरीर की गतिविधियों में तेजी आ चुकी थी, जैसे वो आने वाले खतरे के प्रति सजग और सुरक्षा के लिए तैयार था। 


अलका कुछ सोच पाती कि तभी उस पर विपरीत दिशा से बिजली की तेजी के साथ एक हमला हुआ। 

शौर्य ने अलका को धक्का देकर अपने पीछे की ओर धकेल दिया। अलका खुद को संभाल न सकी और वो धड़ाम से जा गिरी। लेकिन उसे चोट नहीं लगी। 



अकेला के कानों में एक रुंधते हुए गले से आती हुई “आहह.....” की आवाज पड़ी, तो उसने तुरंत मुड़ते हुए शौर्य की ओर देखा तो पाया कि शौर्य के हाथों में उस वेयरवुल्फ़ का गला था, जिसने अलका पर हमला किया था। अलका ने गौर किया तो उसने शौर्य में असाधारण बदलाव देखे, जिसने अलका हो हैरान कर दिया। 


“बहुत...... जल्दी में हो..... ।” - शौर्य ने गुस्से से अपने दाँत पिसते हुए कहा। 


शौर्य के हाथों में जिस वेयरवुल्फ़ की गर्दन थी, वो कोई और नहीं बल्कि रजनीश था। जिसके दोनों पैर हवा में और गर्दन शौर्य के हाथों में थी। वो छटपटा रहा था और साथ ही अपने नुकीले पंजों से शौर्य पर हमला करने का निर्थक प्रयास कर रहा था। 

गुस्साए शौर्य की आँखों और शांत से दिखने वाले चेहरे की रंगत बदल चुकी थी। इसका शांत चेहरा उग्र रूप धारण कर चुका था। 



“क्या हो तुम......?” - अलका ने खड़े होते हुए शौर्य से पूछा। 


अलका के चेहरे पर अभी भी हैरानी के भाव बरकरार थे। 



“जल्दी ही पता चल जाएगा....” 


शौर्य की आवाज भारीपन के साथ कर्कशता लिये हुई थी। 



“तुम्हें... मैं एक झटके में मसल सकता हूं लेकिन तुम वेयरवुल्फ़ से पहले एक इंसान हो इसलिए इतना ही काफ़ी है तुम्हारे लिए.....” 



शौर्य ने एक झटके में एक हल्के से प्लास्टिक बेग की तरह रजनीश को दूर पेड़ों के झुरमुट में फेंक दिया। 




“वाह.... वाह.... बहुत खूब.... ।” 


शौर्य को पीछे से तालियों के साथ एक भारीभरकम और डरावनी आवाज सुनाई दी। 


शौर्य और अलका ने पीछे मुड़कर देखा तो विक्रांत, रोनित और 3,4 मानव - भेड़ियों के साथ उसकी तरफ आते हुए दिखा। 


विक्रांत की आँखों की बदली रंगत उसके गुस्से को जाहिर कर रहीं थीं। 




“अच्छा... तो तुम हो? वैसे तुम्हारी कायरों की तरह छिप कर वार करने की आदत अभी तक गईं नहीं... ।” - शौर्य ने विक्रांत की हरकत पर ताना मारते हुए कहा। 





“हा हा हा...... मेरे प्यारे भाई यहीं बातें मुझे गुस्सा दिलातीं हैं.... ये बात न मेरे यहां पर लगी..” - विक्रांत ने गुस्से में मुंह बनाते हुए अपना हाथ सीने पर दे मारा। “वैसे मैं तुमसे कभी डरा ही नहीं तो पीछे से वार करने की बातें तुम्हारे मुँह से शोभा नहीं देती।” 




“तो मर्द की तरह सामने से वार करो.... । झुंड में क्यूँ चलते हो?” 



“ही ही ही हाहाहा.... देखो भाई लोग... मुझ से कौन मर्दानगी की बात कर रहा है...देख मेरे बड़े भाई मुझे तुझ पर तरस आता है कितनी बार मैंने इन मोहिनीगढ़ के जंगलों में तुझे हराया और तुझे तोड़ा भी है... मेरी गलती बस यही रही कि मैंने तुझे हर बार जिंदा छोड़ दिया।” 




“तू बस धोखा दे कर पिता जी के सीक्रेट फॉर्मूले से मुझसे ताकतवर बन गया है। फिर भी तू क्या मोहिनीगढ़ में कोई भी इंसान या जीव मुझे नहीं मार सकता। अगर तूने मुझे मारा तो तेरा सदियों का मोहिनीगढ़ का राजा बनने का सपना एक पल में चकनाचूर हो जायेगा।”



खुद को मोहिनीगढ़ का राजकुमार कहने वाले विक्रांत अपनी पोल खुलते देख गुस्से से आग बबूला हो गया और तेजी से अपने दाँतों को पिसते हुए अलका की ओर बढ़ा। जैसे ही वो खंडहर के प्रभाव क्षेत्र में दाखिल हुआ तो उसका शरीर भारी होने लगा। उसे महसूस हुआ। कि जैसे उसका शरीर कुछ ही देर में पत्थर में परिवर्तित हो जायेगा, अगर वो पीछे नहीं हटा तो....। उसके चेहरे पर गुस्से की जगह हैरानी ने ली थी। 

उसने शौर्य की ओर देखा तो वो खड़ा मुस्कुरा रहा था। 


“ये कैसे हो सकता है? मैं तुम्हें अंतिम चेतावनी देता हूं.... अलका को मुझे सोंप दो.. नहीं तो....” - विक्रांत ने बेबसी में अपने कदम पीछे खींच लिए। 



“नहीं तो क्या.....?” 



“मैं तुम्हें और उस नेहा दोनों को बुरी मौत मारूँगा।” गुस्से से विक्रांत का चेहरा लाल पड़ चुका था। उसके नथुने फूल चुके थे, जो क्रोध से उत्पन्न साँसों के तेज प्रवाह को सहज बना रहे थे। 




“तुम मेरा और उसका कुछ नहीं कर सकते... क्योंकि तुम एक सत्ता के नशे में चूर धोखेबाज और कमजोर नर - पिशाच हो.......” 


इतना कहते ही शौर्य अपनी जगह से 4,5 कदम दूर खड़े विक्रांत के पास पहुंच गया। जिसे देख रोनित और उसके साथी वेयरवुल्फ़ अलका की ओर लपके। 



“रुक... जाओ.. कोई भी उस लड़की को हाथ नहीं लगायेगा... उसे तो मैं ही यहां से ले जाऊँगा घसीटते हुए, वो इस की लाश के ऊपर से...” 


विक्रांत ने भी गुस्से से गुर्राते हुए अपने कदम, उसकी ओर आ रहे शौर्य की ओर बढ़ा दिए। विक्रांत अब एक नर - पिशाच का रूप अख्तियार कर चुका था। जो कि असल में उसकी पहचान थी। 


विक्रांत जैसे ही शौर्य के नजदीक पहुंचा तो शौर्य ने अपनी हथेली से हल्का धक्का विक्रांत के सीने पर दिया। 


“लो... देख लो अपनी ताकत की हैसियत.....” 


शौर्य की हथेली के हल्के प्रहार को विक्रांत ने बहुत अधिक शक्तिशाली प्रहार की भाँति महसूस किया। जिससे वो एक हल्के टिन के डिब्बे की तरह कई फीट पीछे लुढ़कता हुआ चला गया, अंततः विक्रांत ने अपने पैरों को मजबूती से जमीन पर गढ़ा लिए जिससे वो खुद को संतुलित कर सका। 



शौर्य के वार से विक्रांत का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वो गुर्राते हुए दुगनी ताकत से शौर्य की ओर दौड़ा, शौर्य भी उसके अगले वार का जबाब देने के लिए तैयार था। 



विक्रांत जब तक शौर्य पर हमला करता तब तक शौर्य ने बिजली की गति से विक्रांत का गला दबोच लिया। 

शौर्य आगे कुछ करता तभी उसे कुछ माइक में कुछ लोगों की आवाज सुनाई दी। जिसने विक्रांत के मायूसी भरे चेहरे पर मुस्कान की रोशनी बिखेर दी। 



“ओह.... सिट... ।” - शौर्य के मुँह से अनायास निकला। 



“हम ग्वालियर पुलिस हैं... हमने तुम्हें चारों ओर से घेर लिया है... सभी अपनी जगह पर घुटनों के बल और अपने हाथ ऊपर कर बैठ जाएँ... ये तुम सबके लिए अच्छा होगा.... नहीं तो हमें मजबूरन तुम सब पर फायरिंग........ आहह..... इतना कहते ही बीच में उस ऑफिसर की आवाज एक चीख के साथ हमेशा के लिए बंद हो गयी। क्योंकि उस बैक अप टीम पर मानव - भेड़ियों के झुंड ने हमला कर दिया था। उस ऑफिसर का गला, रोनित अपने तेज धारीनुमा आरी के समान दांतों से फाड़ चुका था। 




“वाह... मेरे शेरों.... अब तुम मुझे मारोगे या फिर इन्हे या फिर अलका को बचाओगे.... ।” विक्रांत ने मुस्कुराते हुए कहा। 

शौर्य ने विक्रांत को जिंदा छोड़ दूर फेंक दिया। और रोनित के पास जाकर उसके चेहरे पर घूंसा मारा तो दूर जा कर गिरा और वहाँ से दुम दबाकर भाग गया। 



शौर्य के वहां पहुंचने से पहले ही वो ऑफिसर अपना दम तोड़ चुका था। उस टीम के 5 सदस्यों में से बचा एक ऑफिसर डर से भागता हुआ एक पेड़ के पीछे खुद को छिपा लेता है। शौर्य अलका के पास पहुंच जाता है। क्योंकि उसे अन्य भेड़िये उठाने की फिराक में थे। 



डर से पेड़ के पीछे छिपे ऑफिसर पर विक्रांत की नजर पड़ती है तो वो भूखे शिकारी की तरह उस ऑफिसर के पास पहुंच गया। जिसे देख कर ऑफिसर की चीख निकल पड़ी.... 



“न.... न... न... चीखने से कोई फायदा नहीं होने वाला क्योंकि तुम लोगों की मोहिनीगढ़ में एंट्री गलत समय पर हुई है खैर ये मेरे लिए गोल्डन चांस जैसा है। अब मैं तुम्हें अपना चारा बनाऊँगा..... हा हा हा...।” - विक्रांत ने उस ऑफिसर का मुंह बंद करते हुए कहा। 


वो ऑफिसर बाघ के मुँह में फँसे एक असहाय मृग की तरह छटपटा रहा था। 





विक्रांत उस ऑफिसर को अपना चारा बनाकर झाड़ियों से बाहर आया। 


“शौर्य.... मेरे भाई.... देखो मैं तुम्हारे लिए एक तोहफा लेकर आया हूँ। इसे स्वीकार करोगे या फिर मैं इसे बेकार समझ कर इसका हुलिया ही क्षितविक्षित करके बिगाड़ दूं..... ।” - विक्रांत ने अपनी चाल को लापरवाह और मतवाली करते हुए कहा। 



विक्रांत के चेहरे से छलक रही हैवानियत वाली मुस्कान उसके बुरे इरादों को प्रदर्शित कर रही थी, जो शौर्य को धर्म संकट में डालने वाली थी। 



“मेरे भाई... अब तुमको ही चुनना है कि ये पुलिस वाला या फिर एक शापित लड़की, जिसे तुम मुझे सोपोंगे भी नहीं तो भी वो कुछ दिन बाद मर ही जाएगी। क्योंकि शाप की वजह से उसका शरीर नेहा की तरह अंदर से सड़ रहा है। जिसे एक न एक दिन फट ही जाना है। इससे अच्छा यही होगा अलका को मुझे सौंप दो और इस बीवी बच्चों वाले पुलिस वाले को बचा लो, अगर तुम ऎसा नहीं करते हो तो, तुम मुझे जानते हो और उस शाप को भी जानते हो उसका कोई तोड़ नहीं है और मैं इसके बीवी बच्चों को अनाथ करने में बिल्कुल भी नहीं झिझकूँगा।” - विक्रांत ने अंतिम चेतावनी देते हुए कहा। 



सर्दी और खौफ़ से ठिठुरता ऑफिसर कातर नजरों से शौर्य की ओर देख रहा था। वो कुछ बोल भी नहीं सकता था क्योंकि उसका मुँह विक्रांत ने अपने हाथों से बंद कर रखा था। शौर्य की नजरें उसके चहरे पर जा टिकी। उसे लगा जैसे उसकी नजरें शौर्य से अपने जीवन की भीख मांग रही हों। शौर्य को पता था। वो कितनी भी कोशिश कर ले किसी को भी बचाने की लेकिन आख़िरकार मोहिनीगढ़ में आये सभी लोगों को मरना निश्चित है। 



शौर्य ने विक्रांत की ओर देखा वो उसी की ओर देख रहा था उसे शौर्य के उत्तर का इंतज़ार था। वो मुस्कुराता हुआ उस ऑफिसर की गर्दन पर अपने नुकीले नाखूनों को फेर रहा था। 



तभी शौर्य ने कुछ सोचा और अलका की ओर मुड़ा, तो अलका को समझते हुए देर नहीं लगी। वो रोने लगी और शौर्य से गिङगिङाने लगी। 



“शौर्य प्लीज ऎसा मत करो.. मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ती हूँ.... ।” 




“सॉरी अलका.....” 

ऎसा कहते हुए शौर्य अलका से दूर होता चला गया। शौर्य के दूर होते ही अलका को रोनित और उसके साथी भेड़ियों ने अलका को पकड़ लिया। 



विक्रांत भी उस ऑफिसर को शौर्य की ओर धकेल कर, उसकी ओर घूरता हुआ अलका की ओर बढ़ गया। 



निढाल सा ऑफिसर जैसे ही शौर्य की बाहों में आया तो वो एक ही बात बोला जिसने शौर्य को चौंका दिया। साथ ही उसने विक्रांत के विश्वासघाती स्वभाव को चरितार्थ कर दिया था। 



“विक्रांत ने मुझे काट लिया है....... ।” 



शौर्य ने तुरंत पलट कर अलका की ओर देखा तो पाया कि विक्रांत अलका को लेकर वहां से निकल चुका था। 



“उसने कहा था कि तुम अब मेरे गुलाम हो... थोड़ी देर में तुम अपने असली रूप में आ जाओगे, तो उसने मुझे अपने साथी और तुम्हें मारने का फरमान सुनाकर तब मेरा खून पीना बंद किया।” - ऑफिसर के शब्द लरज कर गले में बैठ गए और वो बेहोश हो गया। बेहोशी उसके शरीर में हुई खून की कमी से हुई थी। जिसकी पूर्ति वो कुछ मिनटों में नर - पिशाच बनकर और इंसानों का खून पी कर करेगा। 



शौर्य अपना सिर पकड़ कर बैठ गया उसे अब कुछ समझ में नहीं आ रहा था। 




हर्षित, जगदीश, संजना और हरिसिंह शौर्य के पास पहुंच गए। शौर्य के पास ऑफिसर को देख कर सब हैरान रह गए। क्योंकि वो उनकी बैक अप टीम का मेंबर था... 



“शौर्य, अलका कहाँ है?.... और इसे क्या हुआ है?” - हर्षित ने हालात को समझने की कोशिश की। 




“अलका को विक्रांत ले गया है, वो भी हमेशा की तरह धोखा दे कर।” - शौर्य के भाव निराशा से भर गए। 



तभी अचानक से वो ऑफिसर बहुत जोरों से हिलने लगा। इसके साथ ही उसके मुंह से भयानक आवाजें भी आने लगीं। 



“अब इसे क्या हो रहा है?” 



“ये नर - पिशाच में बदल रहा है, इसे विक्रांत की ओर से हम सभी को मारने का ऑर्डर मिला है।” - विक्रांत ने स्तिथि को स्पष्ट करते हुए कहा। 




चीखते हुए वो ऑफिसर कहता है कि - “ दोस्तो, मैं कुछ देर में...... आहह... कुछ देर में... पिशाच बन जाऊंगा.... आहह.... तो तुम सबको मैं मार डालूंगा। दोस्तो मुझे भी मार दो.... क्योंकि मैं शहीद की मौत मरना चाहता हूं तुम सबको मारकर एक कातिल की जिंदगी जी कर....... आहह.... मोहिनीगढ़ में नहीं भटकना चाहता..... आहह...... ।” 



हर्षित ने उस ऑफिसर की ओर अपनी गन पॉइंट कर ली लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हुई अपने स्टाफ़ के ऑफिसर को मारने की। 


सहसा, वो ऑफिसर हर्षित पर झपटा, वो हर्षित की घायल करता कि तभी एक गोली उसके सिर को चीरते हुए उसे धराशायी कर गई। 



सबने देखा कि ये कार्य, जगदीश की गन के द्वारा संपन्न किया गया था, सबसे अच्छी बात तो ये थी कि उसकी टाइमिंग बिल्कुल सटीक थी। 



सभी लोग कुछ देर तक मौन मुद्रा में खड़े रहे। फिर शौर्य टहलता हुआ खंडहर के अंदर चला गया। उसके पीछे सभी लोग ठंड के प्रकोप से बचने के लिए खंडहर में चले गए। 



सभी लोग अलाव के पास गुमसुम से अलका के बारे में सोच रहे थे। 


'न जाने विक्रांत अलका के साथ क्या करेगा? उसे भी मार देगा या फिर अपनी जैसी बना लेगा.....?” 



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नेहा ने अपनी ओर बढ़ रही चुड़ैल के सीने में पूजा बेदी पर रखा खंजर घोंप दिया। जिससे वो तिलमिला कर जमीन पर गिर पड़ी। नेहा ने बिना क्षण गवाएं जमीन पर छटपटा रही चुड़ैल के सीने पर उस तिलिस्मी किताब को रख दिया। जिससे वो चुड़ैल चीखने लगी, 


नेहा भागकर तहखाने से बाहर आई और प्रवीण और प्रोफेसर से हङबङाते हुए बोली - “भागों यहां से... अंदर एक पिशाचनी की रूह है जो इन सब शापों की वजह है, अभी वो किताब के प्रवाह से कमजोर है यही मौका है इस जगह से बाहर निकल जाने का..... ।” 




“लेकिन नेहा हम सब जाएंगे कहाँ.....?” - प्रवीण ने बाहर जाती नेहा को रोक कर कहा। 




“हम सब शौर्य के पास जाएंगे.... क्योंकि उसने जो कहा वो कुछ हद तक सच निकला है। क्या पता वो हमारी हेल्प कर दे.....” 




“वैसे भी हमारे पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं... ।” 



“सही कहा सर आपने.... ।” 



प्रवीण, नेहा और प्रोफेसर राणा घर के बाहर शाम के अंधेरे में डूब रहे मोहिनीगढ़ के परिवेश को एक काले गुफा की रचना में बदल चुकी थी। 


तीनों, उस अंधेरे में जीवन की रोशनी की तलाश में निकल चुके थे। उन्हे मोहिनीगढ़ की सर्द रातों के साथ ही भेड़ियों के खौफ से डरते हुए आगे बढ़ रहे थे....... 







क्रमशः .......... 




मिलते हैं आगे के नए हिला देने वाले चैप्टर में...... तब तक पढ़ते रहिये TOWN of Death ☠ 


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