श्रापित आलिंगन : इंसान और यक्षिणी की प्रेम गाथा by Sonu Samadhiya Rasik #Hindi/_Horror_Story, #यक्षिणी_की_कहानी #2025
"श्रापित आलिंगन : इंसान और यक्षिणी की प्रेम गाथा"
कुछ प्रेम कहानियाँ साधारण नहीं होतीं। कुछ प्रेम कहानियाँ अमर होती हैं, लेकिन कुछ ऐसी भी होती हैं जो डर और रहस्य से भरी होती हैं। यह कहानी है एक ऐसे प्रेम की, जिसने इंसान और यक्षिणी के बीच की सीमाओं को मिटा दिया... और फिर सब कुछ बदल गया।
विभोर एक पुरातत्वविद् था, जिसका काम पुरानी इमारतों और गुप्त रहस्यों को खोजना था। इस बार उसकी खोज उसे राजस्थान के एक वीरान गाँव में ले आई, जहाँ एक पुरानी हवेली खंडहर में तब्दील हो चुकी थी।
"इस हवेली में कोई जाता नहीं," गाँव के बुज़ुर्गों ने चेतावनी दी थी।
पर विभोर के लिए यह सिर्फ एक कहानी थी—जब तक कि उसने पहली बार उसे नहीं देखा।
रात के समय, जब विभोर हवेली की जाँच कर रहा था, अचानक उसे हल्की-हल्की पायल की आवाज़ सुनाई दी। उसने मुड़कर देखा—सामने एक लड़की खड़ी थी।
लंबे घने बाल, बड़ी काली आँखें, लाल चूड़ियाँ, और एक अजीब सी मोहक खुशबू...
"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
विभोर चौंक गया। वह यहाँ अकेला था, फिर यह लड़की कौन थी?
"मैं... मैं पुरातत्वविद् हूँ, इस हवेली का इतिहास समझने आया हूँ।" विभोर ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया।
लड़की मुस्कुराई। "इतिहास ढूंढोगे, तो खुद उसमें खो जाओगे।"
विभोर को नहीं पता था कि यह सिर्फ एक चेतावनी थी—एक ऐसी चेतावनी जिसे उसने नज़रअंदाज़ कर दिया।
विभोर अब हर रात उस हवेली में जाता, और हर रात वह लड़की उससे मिलने आती।
उसका नाम रूद्राणी था। वह किसी सपने की तरह लगती थी—मधुर हँसी, गहरी आँखें, और एक ऐसा आकर्षण जिससे विभोर बच नहीं पा रहा था।
धीरे-धीरे विभोर को उससे प्यार होने लगा।
एक दिन, उसने हिम्मत जुटाकर पूछा, "रूद्राणी, तुम कौन हो?"
रूद्राणी के चेहरे पर हल्की उदासी छा गई। "मैं हूँ... जो नहीं होनी चाहिए थी।"
विभोर समझ नहीं पाया।
फिर एक रात, जब चाँद पूरा था, रूद्राणी ने विभोर की गोदी में सिर रखकर आसमान की ओर देख रहे थे कि तभी उसने विभोर से कहा, "अगर मैं कहूँ कि मैं इंसान नहीं हूँ, तब?"
विभोर हँस पड़ा। "मज़ाक मत करो, रूद्राणी।"
लेकिन अगले ही पल, हवेली की खिड़कियाँ ज़ोर से खुलीं, हवा में अजीब सी गूँज उठी, और रूद्राणी की आँखें लाल हो गईं।
"मैं यक्षिणी हूँ, विभोर ..."
विभोर के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
रूद्राणी ने अपनी कहानी बताई—वह इस हवेली की रक्षक थी, जिसे सैकड़ों साल पहले एक साधु ने इस स्थान की रक्षा के लिए यक्षिणी बना दिया था। उसने कभी किसी इंसान को अपने करीब नहीं आने दिया था... लेकिन विभोर में कुछ अलग था।
"तुम्हारे बिना मैं अधूरी हूँ, विभोर । लेकिन मेरे प्यार का मतलब है तुम्हारी मौत।"
विभोर को यकीन नहीं हो रहा था। वह भाग जाना चाहता था, लेकिन दिल नहीं मान रहा था।
क्या वह रूद्राणी से दूर हो जाएगा? या फिर प्यार के लिए मौत को भी गले लगाएगा?
इन ख्यालों से विभोर के दिल में उथल-पुथल मची हुई थी। क्या वह सच में किसी यक्षिणी से प्यार कर बैठा था? वह भाग जाना चाहता था, पर रूद्राणी की आँखों में कुछ ऐसा था जो उसे रोक रहा था।
रूद्राणी ने धीरे से विभोर का हाथ पकड़ा। उसकी छुअन ठंडी थी, पर उसमें एक अजीब सा आकर्षण था।
"मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ, विभोर ... लेकिन यह प्रेम तुम्हारे लिए मौत से भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है।"
विभोर ने उसकी आँखों में झाँका। "अगर प्यार करने की सजा मौत है, तो मैं इसे कबूल करता हूँ।"
रूद्राणी मुस्कुरा दी, लेकिन उसकी आँखों में आँसू थे।
"अगर तुम सच में मेरे साथ रहना चाहते हो, तो तुम्हें यक्षिणी साधना करनी होगी।"
विभोर ने सुना था कि कोई भी साधारण इंसान यक्षिणी साधना नहीं कर सकता, और जिसने करने की कोशिश की, उसकी मौत पक्की थी। लेकिन अब उसके पास कोई और रास्ता नहीं था।
रूद्राणी विभोर को एक सुनसान शमशान घाट पर ले गई। चारों ओर घना अंधेरा था, सिर्फ बीच में जलती चिता की रोशनी थी।
"यहाँ बैठो, और यह मंत्र पढ़ो," रूद्राणी ने विभोर को एक पुरानी ताम्र पत्र पर लिखे कुछ संस्कृत श्लोक दिए।
विभोर ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। चिता की आग तेज़ होने लगी। हवा में अजीब सी गूँज उठी। आसपास की रूहें कराहने लगीं।
तभी विभोर को लगा कि कोई चीज़ उसके शरीर से निकल रही है। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
"तुम्हें अब खुद को मेरे हवाले करना होगा, विभोर !" रूद्राणी की आवाज़ गूँजी।
विभोर ने आँखें बंद कीं और खुद को रूद्राणी के हवाले कर दिया।
अचानक, हवेली के चारों ओर चमकदार रोशनी फैल गई। विभोर के चारों ओर धुएँ की लहरें उठने लगीं।
विभोर की आँखें खुलीं। अब वह हवा में तैर रहा था। रूद्राणी उसके सामने खड़ी थी—अब वह और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी, पर उसकी आँखें भयावह हो गई थीं।
"तुम अब मेरे हो, विभोर । पर याद रखना, अगर तुमने मुझे छोड़ने की कोशिश की... तो मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगी!"
विभोर के अंदर एक अजीब सा डर पैदा हुआ।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसने सही किया या गलत।
अब वह किसी इंसान की तरह महसूस नहीं कर रहा था।
रूद्राणी उसकी ओर बढ़ी, और उसने विभोर को अपने गले से लगा लिया।
"अब हम हमेशा के लिए साथ हैं..."
लेकिन विभोर के मन में सवाल उठने लगे—क्या सच में यह प्रेम था, या यह सिर्फ एक जाल था?
रूद्राणी की बाहों में बंधा विभोर अब खुद को किसी और दुनिया में महसूस कर रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी गर्मी दौड़ रही थी, और उसकी आँखों के सामने धुंधली छवियाँ घूमने लगीं।
"अब तुम मेरे हो, विभोर … हमेशा के लिए," रूद्राणी की आवाज़ किसी सम्मोहन जैसी थी।
लेकिन विभोर के दिल में सवाल उठ रहे थे—क्या यह सच में प्रेम है? या वह किसी जाल में फँस गया है?
तभी विभोर को अचानक झटका लगा। उसके सामने का दृश्य बदलने लगा। हवेली, शमशान, और चारों ओर फैली रहस्यमयी ऊर्जा धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगी।
वह एक पुराने महल के अंदर खड़ा था।
सामने एक विशाल आईना था, जिसमें एक डरावनी छवि झलक रही थी—रूद्राणी का असली रूप।
झुलसी हुई त्वचा, जलती लाल आँखें, और एक भयानक चेहरा।
विभोर का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। उसने तुरंत पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन उसका शरीर हिल भी नहीं रहा था।
"यह सब क्या है, रूद्राणी?" उसने डरते हुए पूछा।
रूद्राणी मुस्कुराई, लेकिन अब उसकी मुस्कान में कोई कोमलता नहीं थी।
"तुमने सोचा कि यक्षिणी का प्रेम इतना सरल होगा?
रूद्राणी ने विभोर की ओर कदम बढ़ाए।
"तुमने मुझे प्रेमिका समझा, विभोर … लेकिन मैं हमेशा से तुम्हारी नहीं थी। तुम सिर्फ मेरे लिए एक ज़रिया थे—मुझे इस कैद से मुक्त करने का।"
विभोर अवाक् रह गया।
"कैद? कौन सी कैद?"
रूद्राणी की आँखों में एक पल के लिए पीड़ा उभरी।
"सैकड़ों साल पहले, एक महान तांत्रिक ने मुझे इस हवेली में बाँध दिया था। मैंने उसे प्रेम के बदले में अमरता देने का वादा किया था… लेकिन जब वह लालची हो गया, तो मैंने उसे श्राप दे दिया।"
विभोर धीरे-धीरे सब समझने लगा।
"तो तुमने मुझे भी सिर्फ अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया?"
रूद्राणी चुप रही।
लेकिन अब विभोर को गुस्सा आ रहा था।
"मुझे इस श्राप से मुक्त करो, रूद्राणी! मैं तुम्हारे जाल में नहीं फँसना चाहता!"
रूद्राणी की आँखें अचानक जल उठीं।
"अब तुम चाहो या न चाहो, विभोर … तुम इस बंधन से बाहर नहीं निकल सकते। तुमने मेरी साधना पूरी की, और अब तुम मेरी शक्ति का हिस्सा बन चुके हो!"
विभोर को महसूस हुआ कि उसका शरीर हल्का हो रहा है।
वह इंसान से कुछ और बनने लगा था…
विभोर ने अपनी पूरी ताकत लगाकर खुद को रूद्राणी से अलग करने की कोशिश की, लेकिन वह कमजोर हो चुका था।
"कोई तो होगा जो इस जाल से मुझे बचा सकता है!"
तभी उसे याद आया—बाबा भैरवनाथ!
वह संत, जिनका नाम गाँव में लिया भी नहीं जाता था, क्योंकि कहा जाता था कि वे शक्तिशाली यक्षिणियों को काबू में कर सकते हैं।
लेकिन रूद्राणी उसकी सोच पढ़ चुकी थी।
"अगर तुमने बाबा का सहारा लेने की कोशिश की, विभोर … तो तुम्हारी मौत तय है!"
लेकिन विभोर अब डरने वाला नहीं था।
उसने अपनी आखिरी ताकत जुटाई और खुद को रूद्राणी से झटक कर दूर किया।
और फिर… भागने लगा।
विभोर घने जंगलों में दौड़ता जा रहा था। रूद्राणी की चीत्कारें उसके कानों में गूँज रही थीं।
"तुम मुझसे बच नहीं सकते, विभोर ! अगर तुमने मेरी अवहेलना की, तो मैं तुम्हारी आत्मा को भी नहीं छोड़ूँगी!"
पर विभोर अब किसी भी हालत में बचना चाहता था। उसे बाबा भैरवनाथ का आश्रम ढूँढना था।
गाँव के बुजुर्गों से सुना था कि बाबा केवल अमावस की रात को प्रकट होते हैं।
"क्या मैं समय रहते उन तक पहुँच पाऊँगा?"
वह हाँफते हुए एक पुराने मंदिर के खंडहर में पहुँचा।
अचानक, मंदिर की घंटी अपने आप बजने लगी। हवा में गूंज उठी मंत्रों की ध्वनि।
"तुम यहाँ क्यों आए हो, पुत्र?"
एक भारी आवाज़ गूँजी। विभोर ने डरते हुए देखा—सामने एक लंबे, जटाधारी साधु खड़े थे। उनकी आँखों में चमक थी, जैसे वे सब कुछ जानते हों।
"बाबा! मुझे बचाइए! यक्षिणी रूद्राणी ने मुझे अपने प्रेम-जाल में फँसा लिया है!" विभोर ने कांपते हुए कहा।
बाबा ने गहरी साँस ली और आँखें बंद कर लीं।
फिर बोले—
"तुमने बहुत बड़ी भूल कर दी, पुत्र! यक्षिणी प्रेम के नाम पर कभी बंधन नहीं तोड़ती। उसने तुम्हें नहीं चुना, बल्कि तुम्हारी आत्मा से अपना श्राप मिटाने के लिए तुम्हें मोहरा बनाया है।"
विभोर चौंक गया।
"मतलब?"
"रूद्राणी को अमरता तभी मिलेगी, जब वह तुम्हारी आत्मा को पूरी तरह अपने वश में कर लेगी। और अगर वह सफल हो गई, तो तुम कभी इस संसार से मुक्त नहीं हो पाओगे!"
विभोर के होश उड़ गए।
"तो मैं क्या करूँ, बाबा?"
बाबा ने आँखें खोलीं।
"तुम्हें उसे फिर से उसी अभिशप्त दुनिया में लौटाना होगा जहाँ से वह आई थी। लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा।"
"कैसे?"
"साधना के दौरान जो मंत्र पढ़े थे, उनका उल्टा जाप करना होगा। लेकिन रूद्राणी यह होने नहीं देगी।"
विभोर समझ चुका था—उसे अपनी आखिरी लड़ाई लड़नी होगी।
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विभोर और बाबा शमशान घाट पहुँचे। चारों ओर घना अंधेरा था। अचानक, हवा तेज़ होने लगी।
रूद्राणी प्रकट हो चुकी थी।
"तुमने मुझे धोखा दिया, विभोर !" उसकी आवाज़ ज़मीन तक हिला देने वाली थी।
बाबा ने तुरंत मंत्र पढ़ना शुरू किया।
रूद्राणी तड़प उठी। उसकी आँखें लाल हो गईं।
"तुम मुझे नहीं हरा सकते!"
लेकिन विभोर अब डरा हुआ नहीं था।
उसने बाबा का दिया हुआ ताबीज निकाला और मंत्र दोहराने लगा।
रूद्राणी दर्द से चीख उठी। उसकी खूबसूरत छवि अब धुंधली पड़ने लगी।
"विभोर , मत करो! मैं तुम्हें अमर कर दूँगी! अनंत प्रेम दूँगी!"
पर विभोर अब नहीं रुका।
आखिरी मंत्र पूरा होते ही, ज़मीन फटने लगी और एक गहरी काली खाई बन गई।
रूद्राणी की चीखें पूरे शमशान में गूँज उठीं।
"नहीं... विभोर ... यह प्रेम था, छल नहीं!"
और अगले ही पल, वह खाई में समा गई।
विभोर के सामने अब बस राख बची थी।
बाबा ने उसके कंधे पर हाथ रखा।
"अब तुम मुक्त हो, पुत्र।"
विभोर की आँखों में आँसू थे।
"क्या सच में यह छल था? या वह मुझसे सच में प्यार करती थी?"
कोई जवाब नहीं था।
पर एक हल्की सी हवा चली, और विभोर को लगा कि कोई उसके कान में फुसफुसा रहा है—
"मेरा प्रेम सच्चा था, विभोर … पर तुमने मुझे ठुकरा दिया!"
विभोर काँप उठा।
क्या यह सच में खत्म हुआ था? या वह अब भी उसके साथ थी? इसका फ़ैसला आगे होने वाला था।
विभोर को लगा कि वह इस श्राप से मुक्त हो चुका है, लेकिन उसके मन में अजीब सी बेचैनी थी। शमशान में हुई उस रात के बाद से ही, उसे हर समय ऐसा महसूस होता जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसके आसपास मंडरा रही हो।
उस रात जब वह अपने घर लौटा, तो दरवाजा खोलते ही एक तेज़ हवा का झोंका आया और कमरे की सारी बत्तियाँ एक साथ बुझ गईं।
"यह कैसा अजीब संयोग है?" विभोर ने खुद से कहा।
जैसे ही उसने लाइट ऑन करने के लिए स्विच दबाया, आईने में उसकी परछाई के पीछे एक धुंधला सा चेहरा दिखाई दिया।
रूद्राणी!
उसके शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई।
"यह असंभव है! बाबा ने कहा था कि वह हमेशा के लिए चली गई!"
विभोर घबराकर पीछे मुड़ा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
पर उसकी सांसें तेज़ हो गईं—क्योंकि कमरे में अचानक उसकी प्रेमिका की खुशबू फैल गई थी। वही खुशबू जो हमेशा रूद्राणी के आने पर महसूस होती थी।
विभोर को समझ नहीं आ रहा था कि यह उसका भ्रम था या हकीकत।
वह खुद को संभालने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी उसकी मोबाइल स्क्रीन अपने आप जल उठी।
एक अनजान नंबर से मैसेज आया था—
"तुमने मुझे मिटाने की कोशिश की, लेकिन प्रेम कभी नहीं मरता।"
विभोर का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
"क्या यह कोई शरारत है? या सच में रूद्राणी वापस आ गई है?"
वह बाबा के पास जाने का सोच ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई।
धीरे-धीरे, बहुत ही डरावनी दस्तक।
विभोर काँप उठा।
उसने हिम्मत करके दरवाजा खोला—पर बाहर कोई नहीं था।
पर तभी… हवा में वही परिचित सरसराहट गूँजी—
"विभोर … मुझे कैसे भुला सकते हो?"
विभोर पीछे हटा, लेकिन जैसे ही उसने अपने बिस्तर की ओर देखा—वहाँ सफेद साड़ी में बैठी एक परछाई दिखी।
रूद्राणी!
लेकिन इस बार वह सिर्फ यक्षिणी नहीं थी… उसके चेहरे पर दर्द था, आँखों में एक अलग सी चमक थी।
रूद्राणी ने धीरे-धीरे विभोर की ओर हाथ बढ़ाया।
"तुमने मुझे त्याग दिया, विभोर … लेकिन मेरा प्यार अमर है। तुम मेरे बिना नहीं रह सकते।"
विभोर ने कांपती आवाज़ में कहा—
"पर तुम… तुम तो चली गई थी! बाबा ने तुम्हें मुक्त कर दिया था!"
रूद्राणी मुस्कुराई।
"मुक्ति? हाहाहा… विभोर , मैं मुक्त नहीं हुई। मुझे इस दुनिया में रहने के लिए एक नया शरीर चाहिए। और मैंने अपना नया शरीर चुन लिया है—तुम्हारी नई प्रेमिका!"
विभोर के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
"नहीं! तुम उसे कुछ नहीं करोगी!"
पर रूद्राणी का चेहरा अचानक विकृत हो गया।
"अगर मैं तुम्हें नहीं पा सकती, तो मैं तुम्हारी हर खुशी छीन लूँगी!"
कमरे में तेज़ हवाएँ चलने लगीं। विभोर घबराकर बाबा को फोन लगाने ही वाला था कि अचानक फोन की स्क्रीन ब्लड रेड हो गई और उसमें एक अजीब सा चेहरा दिखने लगा।
रूद्राणी की आँखें अब पूरी तरह काली हो चुकी थीं।
"विभोर … अब कोई तुम्हें मुझसे बचा नहीं सकता!"
अब विभोर को समझ आ गया था कि उसने गलती की थी। वह यह मान चुका था कि रूद्राणी हमेशा के लिए खत्म हो गई थी, लेकिन प्रेम कभी नहीं मरता—चाहे वह इंसान का हो या किसी अलौकिक शक्ति का।
उसे सिर्फ एक ही तरीका नजर आया—रूद्राणी का पुनर्जन्म रोकना!
पर सवाल था—कैसे?
बाबा ने कहा था कि प्रेम के श्राप को तोड़ने के लिए किसी और को अपना जीवन बलिदान देना पड़ता है।
विभोर को याद आया कि गाँव में एक औरत थी—साध्वी त्रिपुरा।
वह अकेली ऐसी महिला थी जो रूद्राणी जैसी आत्माओं के खिलाफ शक्ति रखती थी।
विभोर अगले ही दिन उसके पास गया।
साध्वी त्रिपुरा ने उसे देखते ही कहा—
"रूद्राणी वापस आ चुकी है, है ना?"
विभोर के होश उड़ गए।
"आपको कैसे पता?"
साध्वी मुस्कुराई।
"क्योंकि प्रेम और श्राप का यह खेल सदियों से चला आ रहा है। मुझे पता था कि एक दिन यह यक्षिणी फिर लौटेगी!"
विभोर गिड़गिड़ाया—"मुझे बचाइए, साध्वी माँ! वह मेरी नई प्रेमिका को भी मारना चाहती है!"
साध्वी त्रिपुरा ने गहरी सांस ली और कहा—
"रूद्राणी को पूरी तरह से रोकने का सिर्फ एक ही तरीका है—तुम्हें उसके प्रेम को स्वीकार करना होगा!"
विभोर सन्न रह गया।
"क्या? लेकिन मैं उससे मुक्ति चाहता हूँ!"
साध्वी ने गहरी नजरों से उसे देखा और कहा—
"तुम्हें प्रेम और बंधन के बीच का अंतर समझना होगा। अगर तुमने रूद्राणी के प्रेम को स्वीकार कर लिया, तो वह तुम्हें छोड़ देगी। लेकिन अगर तुम उससे भागोगे, तो वह तुम्हें कभी चैन से जीने नहीं देगी!"
विभोर उलझ गया।
क्या वह सच में रूद्राणी से प्रेम करता था?
या फिर… वह केवल डरकर भाग रहा था?
विभोर के पास सिर्फ एक रात थी यह तय करने के लिए कि वह क्या करेगा।
क्या वह रूद्राणी के प्रेम को स्वीकार करेगा?
या फिर वह हमेशा के लिए इस श्राप से बचने की कोशिश करेगा?
विभोर के मन में तूफान सा मचा हुआ था। क्या वह सच में रूद्राणी से प्रेम करता था?
वह उसके लिए डर महसूस करता था, क्रोध भी… लेकिन कहीं न कहीं एक अजीब सा खिंचाव भी था, जिसे वह खुद समझ नहीं पा रहा था।
साध्वी त्रिपुरा की बातों ने उसके अंदर हलचल मचा दी थी।
"अगर तुम उसके प्रेम को स्वीकार कर लोगे, तो यह श्राप समाप्त हो जाएगा। पर याद रखना, यह प्रेम स्वार्थी नहीं होना चाहिए। सच्चा प्रेम त्याग माँगता है।"
विभोर उलझन में था, पर अब उसके पास ज्यादा समय नहीं था।
विभोर अपने घर लौटा तो देखा कि उसकी प्रेमिका, सान्या, कमरे में बेसुध पड़ी थी।
"सान्या!" वह भागा, उसे उठाने की कोशिश की।
तभी एक धीमी हंसी गूँजी।
"तुम्हें लगा था कि तुम मुझे छोड़ दोगे और मैं चुपचाप देखती रहूँगी?"
विभोर ने पलटकर देखा—रूद्राणी वहीं खड़ी थी, मगर इस बार उसकी आँखों में क्रोध की जगह कुछ और था… एक अजीब सा दर्द।
"रूद्राणी, मैंने तुमसे कभी घृणा नहीं की… पर तुमने मेरा सब कुछ छीन लिया!"
रूद्राणी ने धीरे से कहा, "और तुमने मुझे क्या दिया, विभोर ? जब मैं तुमसे प्रेम करती थी, तुमने मुझे त्याग दिया। पर मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकती… क्योंकि मैंने सिर्फ तुम्हें चाहा है, हर जन्म में!"
विभोर ने गहरी सांस ली।
"अगर सच में तुम मुझसे प्रेम करती हो, तो मुझे मुक्त कर दो, रूद्राणी।"
उसकी आँखों में आँसू आ गए।
"प्रेम त्याग है ना? तो फिर तुम मुझे मुक्त क्यों नहीं कर सकती?"
रूद्राणी के चेहरे पर पीड़ा उभर आई।
"अगर मैं तुम्हें छोड़ दूँगी, तो मेरा अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, विभोर … मैं तुम्हें खोने से डरती हूँ।"
विभोर को एहसास हुआ कि रूद्राणी सच में सिर्फ उससे प्रेम करती थी।
"अगर यही सच है, तो मैं तुम्हें स्वीकार करता हूँ।"
रूद्राणी ने चौंककर उसकी ओर देखा।
"तुम… क्या कह रहे हो?"
विभोर ने धीरे से उसका हाथ थामा।
"मैं तुमसे प्रेम करता हूँ, रूद्राणी… और शायद हमेशा से करता था, बस मैंने कभी माना नहीं। पर अब मुझे समझ आ गया है कि तुम्हारा प्रेम ही तुम्हारी मुक्ति है। अगर मैं तुम्हें सच में चाहता हूँ, तो मुझे तुम्हें मुक्त करना ही होगा।"
रूद्राणी की आँखों से आँसू बह निकले।
"अगर तुम मुझसे प्रेम करते हो, तो क्या तुम मेरे साथ चलोगे?"
विभोर मुस्कुराया।
"अगर हमारा प्रेम सच्चा है, तो हम हर जन्म में एक-दूसरे से मिलेंगे… लेकिन इस जन्म में, तुम्हें मुक्त होना होगा।"
रूद्राणी काँप उठी।
पर विभोर ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया।
"अब जाओ, रूद्राणी। मुक्त हो जाओ।"
रूद्राणी की आँखों में सुकून था।
एक हल्की रोशनी चमकी, और देखते ही देखते, रूद्राणी की आत्मा मुक्त हो गई।
विभोर ने जब आँखें खोलीं, तो सब कुछ शांत था।
सान्या होश में आ चुकी थी।
रूद्राणी जा चुकी थी।
विभोर को एहसास हुआ कि वह पहली बार पूरी तरह मुक्त था—पर साथ ही, एक अजीब सी शांति थी।
उसने रूद्राणी को हमेशा के लिए खो दिया था… लेकिन वह जानता था, कि वह जहाँ भी होगी, खुश होगी।
क्योंकि प्रेम ने उसे मुक्त कर दिया था।
(समाप्त)
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