खूनी कब्र
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By sonu Samadhiya Rasik
एक तूफानी रात में शहर से दूर एक फ़ार्म हाउस पर करीब रात के ९ बजे परिवार के सदस्यों में एक अजीब सा शोरगुल था।
आसमान में बादल छाए हुए थे और तूफान आस पास के पेड़ों का झकझोर कर बुरा हाल कर रहा था।
उसी वक़्त एक महिला घर के अन्दर से तकरीबन ८ वर्ष के बच्चे को घसीटते हुए बाहर ले आई उसके एक हाथ में लकड़ी की छड़ी और दूसरे हाथ में उस बच्चे का हाथ था।
बच्चे का रो रोकर बुरा हाल हो रहा था। वह हर हाल में बाहर आने का विरोध कर रहा था लेकिन वह महिला उसे बेरहमी से पीटते हुए, बाहर गेट पर धकेल कर अंदर चली गई।
बच्चा बिलखते हुए अंदर जाने के लिए गेट की ओर दौड़ा लेकिन तब तक महिला गेट को बंद कर दिया।
बच्चा गेट को पटकते हुए रोय जा रहा था।
"माँ! भैया ने कुछ नहीं किया। खिड़की का मिरर ग़लती से टूट गया था। प्लीज माँ गेट खोल दो।"
"ज्यादा बोला तो तुझे भी दो खींच के मारूँगी और बाहर फेंक दूँगी। समझे न तुम। आज उस नालायक को न ही खाना मिलेगा और न ही आज वो अंदर सोएगा।" - महिला ने ४ साल के बच्चे निकेश को आंख दिखाते हुए कहा।
" पापा, आप ही बोलो न माँ को, प्रतीक भैया के लिए गेट खोल दे।"-घर के मैन हॉल में बैठे निकेश ने अपने पिता गौरव से कहा।
" अरे! श्वेता अब बहुत हुआ। गेट खोल दो। बेचारा बच्चा ही तो डर जाएगा। बाहर तूफान आया हुआ है। अंदर ले आओ उसे। इतनी पनिसमेन्ट काफ़ी है, ग़लती से ही टूटा होगा काँच।"
वह महिला अपने पति की बात को इग्नोर करती हुए बङबङाते हुए सोफ़े पर बैठ गई।
"सुन रही हो न। मैं क्या कर रहा हूँ। तुम जा रही हो या फिर मैं जाऊँ गेट खोलने के लिए।"
" अब नहीं आएगा वो अंदर समझे न तुम। अगर तुमने कुछ किया न तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। या तो वो रहेगा अंदर या फिर मैं।" - स्वेता ने झल्लाते हुए कहा।
"अच्छा। अगर वो तुम्हारा अपना बेटा होता तो क्या तुम तब भी ऎसा ही करती?"
" ओ! ज्यादा प्यार उमड़ रहा है न अपने बेटे के लिए तुम भी जाओ बाहर और रहो अपने लाड़ले बेटे के साथ रात भर बाहर जंगल में। "
इतना कहते हुए स्वेता, निकेश को लेकर अपने रूम में चली गई।
स्वेता, गौरव की दूसरीपत्नी थी और वह प्रतीक की सौतेली माँ थी। जो आये दिन उसे एसी तरह की सजाएँ देती थी।
गौरव भी न चाहते हुए भी अपने रूम में सोने गया।
उधर प्रतीक रोते हुए गेट के पास भूखा ही सो गया।
रात के २ बजे......
तूफ़ान थम चुका था और घर के सभी सदस्य सोये हुए थे। प्रतीक की अभी तक सोते हुए सिसकियाँ निकल रही थी।
उसी वक़्त प्रतीक के पास लगे लाइट के खंभे की लाईट में हरकत हुई और वह ब्लैंक करने लगी।
"प्रतीक ऽऽऽऽऽऽऽ........ ।"
एक हल्की सी आवाज ने प्रतीक की नींद तोड़ दी। वह डरता हुआ सिमिट कर बैठ कर चारों तरफ़ देखने लगा।
"कौन है?" - प्रतीक ने डरते हुए कहा।
प्रतीक, ८ साल का बच्चा था। उसका डरना स्वाभाविक था।
"बेटा! मैं हूँ।"
प्रतीक ने अपने पीछे मुड़कर देखा। तो एक औरत जिसका लिबास काला और बालों, त्वचा का रंग सफ़ेद था।
उसकी बड़ी-बड़ी लाल आँखो को देखकर प्रतीक डर गया।
"माँ... बचाओऽऽऽऽ, डेडी बचाओ...।"
"बेटा! डरो मत। मैं तुम्हें कुछ नहीं करोगी।" - उस अंजान औरत ने प्रतीक के पास आते हुए कहा।
"देखो! बेटा अगर तुमने अपनी माँ और पिता की नींद खराब की तो तुम्हें कितनी पनिसमेन्ट मिलेगी तुमने ये सोचा है।"
"तुम कौन हो? तुम बहुत डरावनी हो दिखने में।"
" दिखने में डरवानी हूँ बेटा। लेकिन मैं दिल से बिल्कुल भी बुरी नहीं हूँ। तुम्हारी माँ जैसी।"
"आप क्या चाहती हैं।"
प्रतीक का डर धीरे - धीरे कम होने लगा था।
" तुम्हारी सहायता करना चाहती हूं बेटा। आज रात के लिए। क्यूँ की सुनो आसपास कितने भयानक जंगली जानवरों की आवाजें आ रही हैं और तुम अकेले बाहर हो। पास ही कितना घना जंगल है। जहां कोई आता है वह जिंदा नहीं जाता।"-उस अंजान औरत ने गंभीरता से कहा।
उसकी आँखे रहस्यमयी ढंग से जंगल की ओर देख रहीं थीं।
" तो अब क्या करूँ। आप मेरे पापा को जगा दीजिए न प्लीज वो मुझे अंदर जरूर ले जाएंगे ।"
" नहीं ले जाएंगे बेटा। अगर उन्हे ले जाना होता तो अब तक ले जाते। तुम ऎसा करो, मेरे साथ चलो मेरा घर पास ही में है। रात भर वही रुकना और सुबह अपने घर चले जाना।"
" ठीक है, दादी।"
प्रतीक, का जबाब सुनकर उस रहस्यमयी औरत के चेहरे पर मुस्कान छलक आई। उसने प्रतीक का हाथ पकड़ा और जंगल के दक्षिणी भाग में स्थित एक कब्रिस्तान में पहुंच गई।
।
" दादी ये क्या है?"प्रतीक ने रुकते हुए सवाल किया।
" हाँ बेटा। यह कब्रिस्तान है और मेरा घर उस सामने वाली कब्र में है। चलो तुम्हें अपना घर नजदीक से दिखाती हूँ।"
"पर दादी, कब्रिस्तान में तो लोगों को दफनाया जाता है। तुम यहाँ क्यूँ रहती हो, आपको डर नहीं लगता?"
" नहीं! बेटा। दुनिया वालों ने मुझे अपने समाज और परिवार से बाहर निकाल दिया इसलिए मैं यहां रहने लगी हूँ।"
" मेरी तरह.... इसलिए आप मेरी हेल्प कर रही हो न।"
" हाँ बेटा।"
वह अंजान औरत प्रतीक की भोली बातों को सुनकर मुस्कुरा रही थी।
बातों ही बातों में दोनों एक कब्र के पास पहुंच गए।
" ये वाला घर आपका है? "-प्रतीक ने एक साफ़ कब्र पर हाथ फेरते हुए कहा।
" हाँ बेटा। आओ आराम से अब सो जाओ मेरी गोद में।"उस औरत ने कब्र के एक सिरे पर बैठते हुए कहा।
उसके दोनों हाथ प्रतीक की ओर फैल चुके थे। उस औरत के चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी।
प्रतीक को उसने अपनी गोद में लिटा लिया। वह प्रतीक के सर को सहलाती हुई बातें करने लगी।
"आप बहुत अच्छी हो! लेकिन आप अकेली क्यूँ रहती हो यहाँ?"
"कोई मुझे अपने साथ नहीं ले जाता इसलिये मुझे यहां अकेले रहना पड़ता है।"
"मैं ले चलता अपने साथ लेकिन मेरी माँ बहुत ही खराब है वो मेरे पापा की भी नहीं सुनती।"
"अच्छा। मैं चलूँगी तुम्हारे साथ। तुम्हारी माँ को पता भी नहीं चलेगा।"
" वो कैसे?"-प्रतीक ने उस औरत को देखते हुए कहा।
" जैसा मैं कहती हूँ बेसा करते जाओ।"
" ठीक है।"
उस औरत के कहने पर प्रतीक ने उस कब्र को खोदा और उस कब्र में पड़ी लाश के गले से लॉकेट निकाल कर पहन लिया। लॉकेट साइज़ में काफी छोटा होने की वजह से निगाह में नहीं आ सकता था।
"बेटा। मैं अभी आती हूँ। तुम्हें कोई लेने आए या फिर तुम खुद घर जाओ तो मेरे बारे में और इस लॉकेट के बारे में किसी को भी मत बताना।"
"क्यूँ?"
"क्यूँ कि तुम्हारे घर वालों को पता चल गया तो मुझे अपने घर में घुसने नहीं देंगे और तुम्हें भी हमेशा के लिए बाहर निकल देंगे।"
" ठीक है, समझ गया मैं। लेकिन आप कहा जा रही हो?"
" बस अभी आई। जंगल से सुबह के लिए खाना लाने जा रही हूँ।"
उस औरत के चले जाने के कुछ देर बाद प्रतीक को अपने पापा की आवाज सुनाई दी। जो उसे ढूंढते हुए उस रहस्यमयी कब्रिस्तान में पहुंच गए थे। उन्होने प्रतीक को वहां लेकर अपने घर वापस पहुंच गए।
वह लॉकेट अभी तक प्रतीक के गले में पड़ा हुआ था।
प्रतीक और गौरव अपने अपने रूम में जाकर सो गए थे।
उसी रात प्रतीक को सपना आया कि कब्रिस्तान से एक कब्र से एक खूनी डायन निकली और उसने प्रतीक को अपने वश में करके उसकी सारी फ़ैमिली को मार डाला और उसके घर पर रहने लगी।
प्रतीक इस सपने से बहुत डर गया था जब उसकी आँख खुली तो उसने खुद को हॉस्पिटल में बेड पर पाया।
बाद में पता चला कि उसकी सारी फ़ैमिली को किसी जानवर ने घर में घुस कर अपना शिकार बना लिया किसी की भी लाश सही हालत में नहीं मिली।
और उसकी जान बचाने वाली रात वाली एक बुढ़िया थी जो उसे ये सब सुना रही थी।
✝️समाप्त ✝️
बहुत अच्छी कहानी है सर ,बोले तो झकास.
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