Ghost night

                     👻 ɢHᴏsᴛ NIGʜT 👻




By~Sonu Samadhiya 'rasik 🇮🇳 


ये कहानी मेरे एक दोस्त के रिलेटिव के साथ सर्दियों में घटित एक असामान्य रात की है। मेरे दोस्त के रिलेटिव उत्तर प्रदेश के किसी कस्बे में रहते थे। 

वह परिवार सर्दियों की एक रात में शादी अटेंड करके बापस लौट रहा था। कार में छः लोग सवार थे। 

रात काफ़ी हो चुकी थी। कोहरा घना होने के साथ बादल भी घिरे हुए थे। जिससे चारों तरफ़ स्याह अंधेरा पसरा हुआ था। 

कार सड़क पर तेज़ गति से दौड़ रही थी। सभी सदस्य आपस में शादी में बिताए ख़ास लम्हें के अनुभव शेयर कर रहे थे। 

कार में खूब चहल पहल थी। लेकिन कार को ड्राइव कर रहे। सागर अपना ध्यान कार पर ही केंद्रित किए हुए थे। 

थोड़ी देर बाद बारिश प्रारंभ हो चुकी थी। सागर झमाझम बारिश में कार को तेज़ गति से दौड़ा रहा था। 

बारिश इतनी तेज़ थी। कि सड़क पर सामने कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। कार के विंडो ग्लास पर जमी बारीक पानी की बूँदों के बीच में बरसात का पानी लकीरें बना रहा था। 

परिवार के सारे सदस्य अब बिल्कुल शांत थे। क्योंकि बरसात अपने विकराल रूप में आ चुकी थी। वो भी असमय सर्दियों में। चारों तरफ़ बस बरसात की बूँदें और उसका शोर ही मौजूद था। हालांकि कार के सभी विंडों ग्लास बंद होने के कारण धड़ाधड़ पानी को साफ कर रहे वाइपर की आवाज के अलावा बाहर की कोई आवाज अंदर सुनाई नहीं दे रही थी। 

सब शांत बैठ कर सामने देख रहे थे।  

बारिश तेज़ होने के कारण रास्ते में कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। 


"सागर बेटा, शॉर्टकट ले लो। मौसम खराब है और यह सड़क व्यस्त रहती है। तो यहां पर आगे ट्रेफिक जाम हो सकता है।" - गाड़ी में बैठे परिवार के वरिष्ठ सदस्य श्यामाप्रासाद ने अपने बेटे सागर से कहा। 



"बाबू जी, शॉर्टकट तो जंगल से गुजरता है। इतनी रात को वो रास्ता सुनसान होगा?"- सागर ने असहजता प्रकट करते हुए कहा। 


सागर ने गाड़ी को धीमा कर सड़क के किनारे रोक लिया। बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। 

" तभी तो बोल रहा हूँ। ऎसी बारिश में अगर भगवान न करे ट्रेफिक जाम में फंस गए तो क्या होगा?" 


उसमें बैठी लड़की महक ने बाहर के नजारे का मुआयना करने के लिए विंडो ग्लास हाफ डाउन किया। लेकिन तभी तेज हवा पानी के फुहार के साथ कार में प्रवेश कर गई। 

सर्दी का मौसम था। महक के पास ही में बैठे उसके भाई कार्तिक जो कि हेडफ़ोन लगाए गाना सुनने में मग़सूल था। ठण्डी फुहार के स्पर्श से झटके से हेडफ़ोन निकाल कर महक की ओर देखने लगा। 


"अरे यार। महक बाहर कितनी तेज़ बारिश हो रही है तूफान भी आया हुआ है। तुझे क्या जरूरत है। विंडो ओपन करने की।" 



महक ने हंसते हुए तुरंत खिड़की बंद कर दी। महक, परिवार में सबसे छोटी और सबकी लाड़ली थी। 


"सागर बेटा मुझे तो अपनी टैब्लेट लेनी थी। शुगर की। शर्मा जी के यहां मीठा कुछ ज्यादा ही हो गया है।"-सागर की माँ और महक - कार्तिक की दादी ने पानी की बोतल से पानी के दो घूँट अपने गले में उतारते हुए कहा। 


"ठीक है बाबू जी आगे उसी रास्ते से जाएँगे।" 


इतना कहते हुए सागर ने कार को जंगल वाले रास्ते की ओर मोड़ दी। कार तेज़ी से अपने गंतव्य की ओर दौड़ रही थी। 

कार की अंदर वाली लाइट ऑफ थी। सब शांति से सामने सड़क की ओर देख रहे थे। 

वाकई में जंगल वाला रास्ता बिल्कुल सुना था। 

कार की लाइट में सामने सड़क पर बरसात के पानी की सफेद चादर सी पसरी हुई दिखाई दे रही थी। 

तूफानी हवाओं से झूमते हुए पेड़ सड़क के किनारे पर ऎसे प्रतीत हो रहे थे। जैसे कई दानव समूह मतवाले होकर नृत्य कर रहें हों। 

कभी - कभी तो सड़क के किनारे पर स्थित झाड़ के पौधे झुक कर कार के सामने आ जाते जैसे कोई इंसान कार को रोकना चाहता हो। 

कार्तिक, अपने गानों में व्यस्त था और महक विंडो ग्लास से सर को सटाकर बाहर की ओर देख रही थी। हालांकि कार के साइड में इंडेक्टर की हल्की पीली रोशनी में कुछ भी देखना असंभव था। 

तभी कार जैसे ही सड़क के किनारे खड़े बरगद जैसे किसी विशालकाय पेड़ के पास से गुजरी तो महक की निगाह उस पेड़ के अंधेरे वाले भाग पर गई तो उसे अंधेरे में दो जुगनू की तरह हल्की पीली रोशनी दिखाई दी। जैसे कोई क्रेचर की दो आँखें हों। जो महक को घूर रहीं थीं। 

एक सेकंड बाद वो बंद हो गईं तो महक डर के मारे चीख पड़ी। 


"आहहहहहहहह...... मम्मी.... ।" 

महक अपने दोनों हाथों से कानों ढके और आँखों को डर से बंद कर लिया। 

सभी सदस्य डर गए और सागर ने कार को रोक दिया। 

और पूछने लगा - "महक तुम ठीक तो हो न?" 


"क्या हुआ महक बेटा।" - महक की माँ अनामिका ने महक के सिर को सहलाते हुए पूछा। 


कार्तिक और बाकी के सदस्य स्तब्ध होकर महक की ओर देखे जा रहे थे। कि महक ने ऎसा क्या देख लिया जो वो इतनी सहम गई थी। 


"माँ... उस पेड़ पर कोई था। जो मुझे घूर रहा था। उसकी आँखों से पीली रोशनी निकल रही थी और साथ में ब्लिंक भी कर रहीं थीं।" - महक ने अपनी माँ की बाहों में सिर को छुपाते हुए कहा। 



"अरे! महक बेटा। वो कोई जुगनू होगा। इसमें डरने की क्या बात है?" - श्यामाप्रासाद जी ने महक के डर को दूर करने का प्रयास करते हुए कहा। 


" दादा जी मैं इतना तो जानती हूँ कि जुगनू बरसात के मौसम में दिखते हैं न कि सर्दियों में.... ।" - महक ने अपनी माँ की गोद में से अपना सिर निकाल कर श्यामाप्रासाद को जबाब दिया। 


महक का जबाब सुनकर सभी कुछ देर के लिए शांत रह गए। क्योंकि महक की बात में सच्चाई थी। लेकिन यह उसका भ्रम भी तो हो सकता था। 


तभी सागर ने कार को बंद करते हुए कहा -" चलो मैं अभी देख कर आता हूँ।" 


"रुको सागर! इतनी रात को अकेले और ऎसे खराब मौसम में जाना ठीक नहीं रहेगा। शायद महक को कोई जानवर या फिर बहम होगा!" 



" चलिए पिता जी! ये पागल फालतू में अपना टाइम वेस्ट कर रही है। मैंने पहले ही इसे मना किया था। कि वैम्पायर्स और घोस्ट्‍स की स्टोरीज मत पढ़ा कर। वहम तो होगा ही न अब।"-कार्तिक ने महक पर चिढ़ते हुए कहा। 


सागर ने आगे बिना कुछ बोले कार को स्टार्ट करके सड़क पर दौड़ा दी। सभी शांत मुद्रा में बैठे हुए थे। सबके चेहरे पर अस्थिरता और असहजता के भाव उमड़ आये थे। 

सब हैरान थे कि वाकई में उस पेड़ पर कोई था। जो कुछ देर पहले महक को दिखाई दिया था। 

महक अभी तक खुद को अपनी माँ की बाहों में छिपाए हुए थी। 


सभी लोग स्वयं के विवेक और तर्कसंगत तथ्यों के आधार पर अपने मस्तिष्क में घटित उस घटना का विश्लेषण कर रहे थे कि तभी कार की एकदम से ब्रेक लगी। जिससे सभी आगे टकराने से बाल - बाल बचे। 


सामने सड़क के नजारे को देखकर सागर के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा। 


"अब ये कौन है?" 


सबने देखा कि सामने सड़क पर कार की लाइट में सड़क पर खड़े होने के साथ कार को रोकने का प्रयास कर रहा था। तेज़ बारिश में उसका कोट सराबोर हो गया था। उसके लङखङाते कदम और एक कंधे से नीचे की ओर खिसक रहे उसके कोट से ऎसा जाहिर हो रहा था। कि जैसे वो खुद को संभालने में असमर्थ है। ऎसा लग रहा था। मानो शायद वह नशे में धुत होकर सड़क पर पड़ा था। 


इतनी रात को ऎसे खराब मौसम और इस रास्ते में कोई इंसान कैसे हो सकता है? ये बात सबको परेशान कर रही थी। 

कार आहिस्ता - आहिस्ता उस शख्स की ओर बढ़ रही थी। दूर होने के कारण उस शख्स को पहचानने में भी मुश्किल हो रही थी। क्योंकि वह कीचड़ में पूरी तरह से सराबोर हो चुका था। 

बारिश झमाझम जारी थी। जिससे सर्दी अपनी चर्म सीमा पर थी। 


कार जैसे ही उसके बगल में जाकर रुकी तो वह अनजान शख्स बेहताश हो कर कार के उस गेट को नॉक करने लगा। जहां पर महक बैठी थी। महक ने देखा कि उस शख्स का चेहरा कीचड़ के साथ खून से सना हुआ था। उसके चेहरे पर कई जगह खरोंच के निशान थे। जिनसे खून रिस रहा था। 


महक ये खौफनाक मंजर देख कर चीख पड़ी। वह पहले से ही डरी हुई थी। 


"आहहह..... खूऽऽऽन..... मम्मी बचाओ।" 

महक दोबारा अपनी माँ की बाहों में छिप गई। वह डर से कांप रही थी। उसके शरीर से खौफ की तपन ईजाद होने लगी। 


"कौन पागल है ये? अभी देखता हूँ इसको।" - सागर गुस्से से कार को बंद करके गेट को ओपन करने के जैसे ही हाथ बढ़ाता है। कि तभी श्यामाप्रसाद ने सागर के हाथ पर अपना हाथ रख कर उसे रोका और ख़ुद उससे बात करने की इच्छा जताई। 

श्यामाप्रसाद ने अपनी ओर खिड़की का काँच नीचे किया और उस अंजान शख्स से बोले -" कौन हो भाई। हम लोगों से क्या चाहते हो इतनी रात को?" 


परिवार के सभी सहमे उस अजनबी शख्स की ओर देखे जा रहे थे। 

श्यामाप्रसाद की बात सुनकर वह शख्स कार का सहारा लेता हुआ उनके पास आया और हाँफ़ता हुआ बोला - "भाई साहब आगे मेरी कार का एक्सिडेंट हो गया है। उसमें मेरी बीबी और बच्ची है। भाई साहब कार खाई में गिर गई है। उसमें दोनों फँस चुके हैं। भाई साहब आपसे मेरी हाथ जोड़कर विनती है मेरी बीबी और बच्ची को बचा लो।" 

वह शख्स विलख - विलख कर रो पड़ा और वह दोनों हाथ जोड़ते हुए वहीं सड़क पर बैठ गया। 


" अरे! भाई तुम्हारी कार का कहाँ पर एक्सिडेंट हुआ है। बताओ मुझे तो कहीं कोई कार दिखाई नहीं दे रही है?"-श्यामाप्रसाद ने कार के अंदर से ही अपनी नजर को चारों ओर कार की तलाश में घुमाई मगर उन्हें कुछ भी नजर नहीं आया। 


"भाई साहब थोड़ी ही दूर सड़क के किनारे खाई है उसमें मेरी कार अपना संतुलन खो कर गिर गई है। प्लीज भाई साहब मेरी बीबी बच्ची को बचा लो। उनके सिवा मेरा इस दुनिया में कोई भी नहीं है।" 


वह शख्स बिना साँस लिए जल्दी - जल्दी बोले जा रहा था। वह काफ़ी घबराया हुआ लग रहा था। उसके चेहरे के भावों से तो वह कोई ठग या बदमाश नहीं लग रहा था। 



" तुम्हारा खून भी काफ़ी बह रहा है? तुम्हारी कार कितनी दूर होगी यहाँ से?"-श्यामाप्रसाद ने उसकी सहायता हेतु तत्परता दिखाते हुए पूछा। 


"यही कोई एक किलोमीटर के लगभग....... ।" - उस शख्स ने अपनी नजर अंधेरे के आगोश में समाई सड़क पर डालते हुए कहा। 



"भाई साहब मुझे भी बिठा ले चलो मैं उस जगह पर आपको ले चलूँगा।"

उस अजनबी शख्स ने दोबारा अनुरोध करते हुए कहा। 


उसकी बातों को सुनकर सभी लोग कुछ पल के लिए शांत हो कर एक दूसरे की ओर देखने लगे। 

वो सोच रहे थे। कि इतनी रात को और ऎसे डरावने जंगल में किसी अपरचित व्यक्ति को अपनी कार में लिफ़्ट देना उचित निर्णय होगा या फिर नहीं। 


तभी वह व्यक्ति तपाक से बोला - "क्या सोच रहे हो? भाई साहब मेरी बीबी बच्ची मर जाएगी भाई। भरोसा करो मुझ पर।" 



"चलो अंदर आ जाओ। तुम काफ़ी थके और डरे हुए लग रहे हो। तुम्हारी बीबी और बच्ची को कुछ नहीं होगा। हम लोग उन्हे बचा लेंगे। तुम्हारा खून भी बहुत बह गया है। तुम चलने के लायक नहीं हो।" - श्यामाप्रसाद ने कार का गेट खोल कर उसे सागर के पास बिठा दिया और खुद बीच में बैठ गए। 


" कार्तिक बेटा, तुम पीछे वाली सीट पर निकल जाओ।"


" जी दादा जी।"


सागर की नजर उस अजनबी शख्स की टांग पर गई तो उसका जी मिचलाने लगा। क्योंकि उसकी टाँग बहुत बुरी तरह से जख्मी थी। उसने से ढेर सारा खून निकल कर सीट को रक्त रंजित कर रहा था। आश्चर्य की बात यह थी कि उस व्यक्ति के चेहरे पर अपनी बीबी और बच्ची की इतनी परवाह थी कि उसे अपना जख्म और पीड़ा भी नहीं महसूस हो रही थी। वह बिना कुछ बोले उतावाला सा हो कर सामने सड़क को देखे जा रहा था। 


" लेकिन अंकल आपको कोई और नहीं मिला। और आप इतनी दूर कैसे आ गए। घायल होने पर भी।" - सागर ने आशंकित हो कर पूछा। 


"नहीं भाई। मैं बहुत देर से किसी व्यक्ति के आने का इंतजार कर रहा था। लेकिन कोई नहीं आया इस रास्ते पर..... ।" 


तकरीबन एक मिनिट बाद सागर को एक मोड़ के बाद सड़क के बायीं ओर अंधेरे में लाल और पीली रोशनी ब्लिंक करती हुई दिखी। शायद वही दुर्घटना स्थल था। 


तभी वह शख्स चिल्लाया -" भाई साहब वो रही मेरी कार जल्दी चलिए। मेरी बीबी और बच्ची को बचा लीजिए।"

सागर की धड़कने दुर्घटना स्थल के नजदीक आते ही तेज़ हो रहीं थीं। बारिश अब थम चुकी थी। कभी - कभी हवा के तेज झोंके से सड़क के किनारे खड़े पेड़ों की पत्तियों पर जमी वर्षा की बूँदें झड़कर बारिश होने का भ्रम उत्पन्न कर देती थी। 

सागर ने उस अंधेरे से भरी खाई के पास कार रोक दी और महक के अलावा सभी लोग कार से तेज़ी से निकल पड़े। 

महक अभी हल्की नींद में थी। 

सागर ने सभी के साथ उस खाई की ओर अपने कदम बढ़ाये। 

उस खाई में अभी तक कार के इंडीकेटर की बीप के साथ उसकी ब्लिंक करती हुई रोशनी खाई से बाहर दिखाई दे रही थी। इसके साथ ही सड़क से एक छोटे से नाले का पानी शोर करता हुआ उस खाई में गिर रहा था। इससे मालूम होता था कि खाई बहुत गहरी है। 

हवा का रुख तेज़ होने के साथ अतिशीतल था। जो खून जमाने के लिए काफी था। सभी लोग सर्दी की परवाह किए बिना ही आगे बढ़ रहे थे। 


उसी वक़्त कार में सो रही महक के कानों में किसी लड़की के रोने की आवाज़ सुनाई दी तो उसकी नींद टूट गई। उसने बैठ कर कार से अपने चारों ओर देखा। 

उसे अपने परिवार के सदस्यों के अलावा कुछ भी नहीं दिखा। 

लड़की के सिसकने की आवाज उसे अभी तक सुनाई दे रही थी। महक ने हिम्मत करके कार से बाहर आई और डरते हुए अपनी जैकेट ठीक की और उस आवाज की ओर न जाकर अपने घर वालों की ओर तेजी से अपने कदम बढ़ाने लगी। 


"दीदी प्लीज हेल्प मी..... ।" 


दर्द भरी आवाज ने महक के कदमों को वहीं ठिठका दिया। पहले तो वह इस आवाज को सुनकर उसका दिमाग़ सन्न रह गया। उसे लगा जैसे कोई पीछे से उसे आवाज लगा रहा हो। उसने धीरे - धीरे अपनी नजरों को घुमाकर कर पीछे देखा तो वहां कोई नहीं था। अपना बहम समझ कर जैसे ही उसने अपना कदम आगे बढ़ाया तो आवाज फिर से उसके कानों में गूंजी। 


"दीदी! पीछे नहीं इधर...।" 


महक ने गौर किया कि वह आवाज बगल में स्थित खाई में से आ रही है। चारों तरफ़ सांय - सांय करती हवाएँ और बरसात का ठहरा हुआ पानी का शोर वातावरण में एक अजीब सी अशांति घोल रहा था। जो माहौल को डरावना बना रही थी। 


महक अपने कांपते हुए कदमो से उस आवाज की ओर बढ़ रही थी। इतनी भयभीत होने के बावजूद महक खुद को आगे बढ़ने से नहीं रोक पा रही थी। जैसे वह किसी के वश में हो। 


महक, खाई के पास पहुंच चुकी थी। वह उस खाई के दूसरे छोर पर थी और उसके घर वाले लगभग डेढ़ सौ मीटर की दूरी पर थे। 


महक ने खाई में झाँक कर देखा तो वहां स्याय अंधेरे और उस खाई में गिरते हुए पानी के शोर के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था। 

आवाज अभी तक खाई के अंधेरे वाले हिस्से से आ रही थी। 


महक ने अपनी जैकेट से मोबाइल निकाला और उसकी फ्लेश जलाकर खाई में दोबारा झांकी तो पाया कि वहाँ काले पानी से खाई लबालब भरी हुई थी। महक असमंजस में पड़ चुकी थी। कि खाई में तो पानी भरा हुआ है। फिर यहां किसी लड़की की आवाज कैसे आ रही है? 



उधर सभी लोगों ने खाई में झाँक कर देखा तो दंग रह गए। उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। मानो जैसे उन सबका वजूद ही मिट गया हो। 

खाई में कार के परखच्चे उड़ गए थे और खाई में कार के पास दो नहीं तीन लाशें क्षितविक्षित हालत में बिखरी पड़ी हुईं थीं। 

लड़की की लाश का सिर धड़ से अलग था। और महिला का सिर कुचल कर उसका नामोनिशान मिट चुका था। 


जब सब लोगों की नजर तीसरी लाश पर पड़ी तो सबकी रूह सिहर उठी और सबका दिल जोरों से धड़कने लगा। मानो दिल शरीर से बाहर निकल आएगा। 

क्योंकि तीसरी लाश उस शख्स की थी। जो कुछ देर पहले उनके साथ कार में बैठ कर आया था। 

  वह इंसान नहीं बल्कि उस व्यक्ति की रूह थी। 

सभी लोगों ने मुड़कर अपने आसपास देखा तो सच में वह अजनबी वहाँ से गायब हो चुका था। 



"सभी लोग भागों यहाँ से, यहाँ कोई इंसान नहीं प्रेत - आत्माएँ हैं।" - सागर ने दौड़ते हुए आवाज लगाई। 

अनिष्ट की आशंका से भयभीत सभी लोग बदहवास हो अपनी कार की ओर दौड़े। 


जैसे ही सब लोग कार में बैठे तो उन्हे महक का ध्यान आया। जो कि न कार में थी और न ही उनके साथ। 



"पिता जी महक नहीं है?"-कार्तिक चिल्लाया। 


" महक...... कहाँ हो तुम? जल्दी यहां आओ। यहाँ कुछ ठीक नहीं हो रहा है। हमें अभी घर को निकलना है।" - श्यामाप्रसाद ने महक को आवाज लगाते हुए कहा। 



"महक, जल्दी आ। कहाँ हो तुम?" - महक की माँ अनामिका ने चारो तरफ देख कर आवाज लगाई। लेकिन उन्हें महक नजर नहीं आई। 


सब हैरान और महक को लेकर चिंतित थे। 


तभी दूर खाई के दूसरे छोर पर कार्तिक को मोबाइल की रोशनी दिखी तो वह चिल्लाया - "पिता जी वो रही महक..... ।" 


"कार्तिक, तुम यहीं रूको। मैं महक को लेकर आता हूँ। तब तक तुम सब कार के सभी गेट को लॉक करके बैठना। ठीक है।" 


"जी पिता जी .।" 


सभी लोगों ने खुद को कार के अंदर बंद कर लिया। 

तभी तेज़ गङगङाहट के साथ बारिश हल्की फुहार के रूप में शुरू हो चुकी थी। जो कभी भी अपना विकराल रूप धारण कर सकती थी। 



महक को उस मटमैले और काले पानी में कुछ हलचल सी महसूस हुई। जैसे कोई जानवर या इंसान दलदल से बाहर आ रहा हो। 

महक ने देखा कि वह वही लड़की थी। जो उसे सहायता के लिए आवाज लगा रही थी। महक का खौफ से गला सूखने लगा था। सांसे गले में अटक कर रह गईं थीं। 

इससे भी ज्यादा महक को डर तब लगा। जब उसने उस कीचड़ में सनी लड़की को बिना सिर के अपनी ओर रेंग कर आते हुए देखा। 


ऎसा खौफनाक दृश्य देख कर महक के मुंह से एक दहशत भरी चीख़ बुलंद हो गई। 

वह बेतहासा चीख़ते हुए अपनी कार की ओर मुड़ी। तभी उसने अपने सामने उसी शख्स को पाया जो कुछ देर पहले उसके साथ कार में आया था। 

उसे देख महक की संवेदनाओं में एक स्थिरता आई जिससे उसने अपने डर पर कुछ हद तक काबू पा लिया। लेकिन वह इस बात से अंजान थी कि जिस शख्स से उसका सामना हुआ है वह कोई इंसान नहीं एक आत्मा है। 



"अंकल आप यहाँ? अंकल भागो यहाँ से मैंने अभी यहाँ पर सिर कटी चुड़ैल देखी है।" - इतना कहकर महक वहाँ से भागने लगी। 


तभी उसे पीछे से एक डरावनी और कर्कस आवाज सुनाई दी। जिससे उसके कदम वहीं रुक गए। 


"वो सिर कटी चुड़ैल नहीं, मेरी लड़की है। चलो तुम भी मेरे साथ।" 


महक ने पीछे मुड़कर देखा तो चीख़ पड़ी। उसके गले से अब आवाज नहीं निकल रही थी। 

वह व्यक्ति अपने असली रूप में आ चुका था। खून से लथपथ चेहरा और आंखों की जगह बड़े - बड़े दो गड्ढे जिनमे तैरती हुईं दो पीली रोशनी बिन्दु। जैसे महक ने कुछ देर पहले अंधेरे में पेड़ पर देखे थे। 

शायद ये आत्मा उस पर पहले से ही नजर रखे हुए थी। 

वह आत्मा गुर्राती हुई उसकी ओर बढ़ने लगी। महक का सारा बदन पसीने से तर था। अब उसकी आँखों से आँसू बहने लगे थे और उसके होंठ डर से काँप रहे थे। 

साथ ही में वह अपने कदम पीछे की ओर खींच रही थी। 

तभी वह पीछे किसी से टकराई तो वह डर से चीख पड़ी और बेहोश हो गई। 

पीछे कोई और नहीं महक के पिता जी सागर थे। उन्होने महक को गिरने से पहले ही पकड़ लिया था। 

सागर ने उसे सहारा देकर कार तक ले आए और सभी अपने घर पहुंच गए। 

महक ने अपनी आँखे खोली तो उसने खुद को अकेले कार में लेता हुआ पाया। कार अभी तक जंगल में रखी हुई थी। 

महक ने चारों तरफ़ देखा तो उसे अपने घर का सदस्य दिखाई नहीं दिया। वह घबराते हुए कार के गेट को खोलने लगी। लेकिन कार के लॉक जाम हो चुका था। जिससे महक पर डर फिर से हावी होने लगा था। 

इसी जद्दोजहद में महक की नजर आगे वाली सीट पर गई। जहां पर वही सिर कटी चुड़ैल बैठी थी। 

ये देख महक ने चीख़ना चालू कर दिया और साथ ही में उसने पूरी ताकत के साथ कार के गेट को धक्का मारा। जिससे गेट खुल गया और वह कार के बाहर जा गिरी। 


तभी उसके कानों में उसकी माँ की आवाज पड़ी। 


"क्या हुआ महक तुम ठीक तो हो न?" 

महक ने अपनी आँखे खोली तो खुद को अपने बेड के नीचे पाया। 


"माँ वो सिर कटी लड़की.... दिखी मुझे। लेकिन मैं यहाँ कैसे माँ?" 


"तुम रात को बहुत थक चुकी थी। इसलिए सो गईं और कोई चुड़ैल- बुड़ैल नहीं है। रात वाली घटना की वजह से तुमको सपना आया होगा? "-महक की माँ ने उसे समझाते हुए कहा। 


उस हादसे वाली रात के बाद सागर को भी सफर के दौरान कार में किसी के बैठे होने का एहसास होने लगा था और महक के साथ घर के अन्य सदस्यों को सपने में वह सिर कटी चुड़ैल और रात वाला वाकया परेशान करने लगे थे। 

जब उन लोगों ने उस जंगल से गुजरने वाले हाई वे पर हुए हादसों की न्यूज, इंटरनेट की सहायता से जानकारी इकट्ठी की और सभी सड़क दुर्घटनाओं की जाँच पड़ताल की तो पाया कि जिस रात उन्होने जिस कार का एक्सिडेंट देखा था। वो उस रात के दस दिन पहले ही हो चुका था। दुर्घटना ग्रस्त कार में सवार तीन लोगों की मौत घटना स्थल पर ही हो गई थी। 

उन्ही लोगों की रूहें अभी तक मदद के लिए उस जंगल में भटकती हैं। 


इस बात की पुष्टि होने के बाद सागर ने अपने घर, परिवार के सदस्यों और जहाँ तक अपनी कार का मंत्रोच्चारण के साथ शुद्धिकरण करवाया। क्योंकि उन प्रेत - आत्माओं का साया उसके घर पर पड़ चुका था। 

शुद्धिकरण के पश्चात सागर के परिवार वालों का जीवन पूर्व की भांति सामान्य रूप से गुजरने लगा था। 


टिपः ~यह कहानी सत्य घटना एवं प्रत्यक्षदर्शीयों के वक्तव्य पर आधारित है। ये किसी भी प्रकार से अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देती। 


                  ☦️समाप्त ☦️



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