TOWN OF DEATH chapter Three
TOWN OF DEATH chapter - three
अध्याय - ३
(हमला)
By - Mr. Sonu Samadhiya Rasik 🇮🇳
चारों तरफ से भेड़ियों और सियारों की नजदीक आतीं आवाजों से साफ़ जाहिर हो रहा था। कि सभी लोगों के सामने कितनी बड़ी मुसीबत आने वाली थी।
सभी लोगों के सामने इस मुसीबत की घड़ी में एक दुविधा आ चुकी थी।
सब कन्फ्यूज्ड थे। कि क्या एक अजनबी पर भरोसा करना कितना सही साबित हो सकता है, आगे आने वाली सिचुएशन के हिसाब से।
निकिता, डर से रजनीश से बच्चों की तरह हुई सहमी चिपकी हुई थी। इस तरह लगभग सभी लोग एक दूसरे से सटकर खड़े हुए थे।
और वह दिखने में हट्टा - कट्टा और सुन्दर नौजवान जो शेर की तरह बेखौफ अपने कंधे पर बंदूक रखे सभी के जबाब का इंतज़ार कर रहा था।
"क्या हुआ? भाई। क्या सोचा है। मेरे साथ चलना है कि खुद को मौत को सौंपना है?" - उस अजनबी ने कहा।
"देखो भई! हम आप पर कैसे भरोसा कर लें। आप आतें हैं और एक हीरो की तरह एक निहत्थे जानवर को मार कर सभी को इम्प्रेस करते हो। बात यहीं तक सीमित नहीं है आपका हम सबको बचाने के पीछे क्या मोटिव है?"-प्रो. राणा ने संदेह में पूछा।
" अरे भाई! मैं विक्रांत हूँ और आगे मैं अपने बारे में सब बताऊंगा ठीक है। जल्दी चलो मेरे साथ।
तुम में से किसी ने मेरी बात नहीं मानी न तो, तुम जो सवाल जबाब कर रहे हो वो भी करने लायक नहीं रहोगे।
जल्दी चलो मेरे पीछे पीछे...... ।"- वह अजनबी जो खुद को विक्रांत बता रहा था। वह इतना कहकर मोहिनीगढ़ कस्बे के अंदर जाने वाली गली की ओर बढ़ गया।
विक्रांत ने अपनी बंदूक को रीलोड किया और बंदूक को चारों तरफ़ पॉइंट करता हुआ। एक गली में घुस गया।
" पिता जी! अब हमें क्या करना चाहिए? आपने कुछ सोचा है?" - प्रवीण ने जैकेट पहनते हुए कहा।
"सर हमें बिना टाइम वेस्ट करे। उसके साथ जाना चाहिए। उसने मेरी जान बचाई है। इतना तो भरोसा कर सकते हैं न।" - दीप्ति ने अपनी बात प्रोफेसर के आगे रखी।
चारों तरफ़ कोहरे के कारण गुप अंधेरा हो चुका था। तापमान भी काफ़ी गिर चुका था। ऎसा लग रहा था कि आसपास की सभी वस्तुएं फ़्रीज़ होकर मौन हो चुकी थीं।
सिवाय उन भूखे आदमखोर भेड़ियों के, जो अपने साथी की मौत के बाद और ज्यादा खूंखार और आक्रामक हो चुके थे।
तभी प्रोफेसर बोले - "फ़िलहाल हमें विक्रांत के साथ चलना चाहिए। क्योंकि हमारे पास इसके अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है। रही बात भरोसे की तो जान बचाना उसकी चाल हो सकती है।
चलो हमें उसके साथ चलना चाहिए। कैसे भी करके लिए बस रात गुजारना है। सुबह होते ही हम अपने घर को रवाना हो जाएंगे।"
सभी प्रोफेसर के साथ उस गली की ओर बढ़े तभी....
" सभी चौकन्ने रहना!"-प्रोफ़ेसर ने पीछे मुड़कर कहा।
" सर! मुझे एक बात समझ में नहीं आई कि अगर ये कस्बा कई साल पहले पूरी तरह से वीरान हो चुका था। तो ये विक्रांत यहाँ क्या कर रहा है?"-नेहा ने रुकते हुए कहा।
" अबे पागल! चल न। क्यूँ बेवजह ऎसी सिचुएशन में ए सी पी प्रद्युम्न मत बन रही है?" - निकिता ने नेहा को खींचते हुए कहा।
सभी विक्रांत के साथ हो लिए,सभी अपने हाथों में ग्लब्स, जैकेट और मफ़लर से चेहरे ढंके हुए थे। रास्ते में कोहरे की धुंध से कुछ भी देख पाना असंभव था। सभी विक्रांत की टार्च का अनुसरण करते हुए सब आगे बढ़ रहे थे।
विक्रांत आगे रास्ते में खतरे को भांपता हुआ बढ़ रहा था। शायद वह कोई खुफिया रास्ता था।
कुछ देर बाद सभी को सामने एक बंगलो दिखा। जो कैंडल्स की रोशनी में जगमगा रहा था।
कोहरे के सीने को चीरतीं हुईं, बड़ी - बड़ी मॉमबत्तियाँ उस बंगलों को दूधिया रोशनी में नहला रहीं थीं।
ऎसे नजारे को देख कर सभी अपने डर को भूल चुके थे। जैसे वह बंगलो उन सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था।
विक्रांत ने मैन गेट को खोला जो मजबूत लोहे से निर्मित था और वह दीवारों से बनी एक बाउंड्री से जुड़ा हुआ था।
ये बाउंड्री उस बंगलों को चारों तरफ़ से घेरे हुए थीं।
विक्रांत ने गेट को खोलते हुए सभी का स्वागत करने के अंदाज में कहा - "आईये! आप सभी का इस खूबसूरत महल में स्वागत है।"
"अच्छा मज़ाक है! तुम भूत बंगले को खूबसूरत महल बोल रहे हो?" - दीप्ति ने विक्रांत की ओर मुस्कुराते हुए कहा।
"ये कैसे पॉसिबल हो सकता है, दोस्तों? मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा! हम सबको सावधान रहना होगा।" - रजनीश ने अपनी शंका को जाहिर किया।
" बेबी! तुम मुझे डरा रहे हो न?"-निकिता ने रजनीश की बांह को झकझोरते हुए कहा।
"नो बेबी! आईम सिरियस।"
इतना कहकर रजनीश अंदर चला गया।
" क्या?"-निकिता आश्चर्य से अंदर जाते हुए रजनीश की ओर देख रही थी।
सभी उस बंगले के मैन हॉल में पहुंच चुके थे। जहां पर एक बड़ी डायनिंग टेबल पर रात का खाना लगा हुआ था।
जिसमें बीयर, कई तरह का भोजन, चिकिन फ्रूट्स रखे हुए थे।
दीप्ति, रोनित ने अपने बेग्स चेयर पर पटक दिए और सीधा खाने पर टूट पड़े।
"गाईस, ज़रा आराम से.... ।" - प्रवीण ने कहा।
बाकी सब उस हॉल को देखे जा रहे थे। हॉल में कई जानवरों की खाल और बंदूकों को इस तरह सजाया गया था जिसे देखने पर वह घर किसी शिकारी का लग रहा था।
"तो आप शिकारी फ़ैमिली से बिलांग करते हैं?" - नेहा ने पास में दीवार पर टंकी बाघ की घाल को घूरते हुए कहा।
"जी, सही कहा आपने। ये मेरे पुरुखों की विरासत है। मुझे जो कुछ भी मिला है और मैंने जो भी कुछ सीखा है। सब मेरे पुरखों की देन है।" - विक्रांत ने रोशनदान में बोर्नफ़ायर के लिए लकड़ियाँ इक्कट्ठी करते हुए कहा।
"आप अपने बारे में बताएं। आप अकेले यहाँ और वो भी पूरी तरह से सुरक्षित कैसे हैं। और खाना खाना कहां से लाते हो? पास मैं तो कोई गाँव भी नहीं है।"-रजनीश ने कहा।
"आप सभी खाना खा लीजिए। आप यहां सुरक्षित हैं। निश्चिंत होकर डिनर को एंजॉय । हमारे पास रात भर का समय है। खाना खाने के बाद हम अपने बारे में भी ढेर सारी बातें करेंगे।"- विक्रांत ने खाना परोसते हुए कहा।
सभी बिना कुछ बोले खाना खाने लगे। इसी दौरान नेहा की नज़र साथ में खाना खा रहे विक्रांत के हाथ पर गई। जिस पर बहुत बड़ा और दिखने में ताज़ा घाव था।
" ये आपके हाथ में घाव कैसा है?"-नेहा ने खाना, खाना बंद कर विक्रांत की ओर देखा।
"वो क्या है न। शिकार करने के दौरान एक तेंदुए ने हमला कर दिया था। उसी का घाव है।" - विक्रांत ने घाव की ओर मुस्कुराते हुए कहा।
"मगर ये घाव, तेंदुए का तो नहीं है? ये किसी कुत्ते या फिर भेड़िये का लगता है।"
"आपको कैसे पता?" - विक्रांत सकपका गया था।
उसने अपनी जर्सी को नीचे खिसका लिया।
"अरे भई! उसे सब पता है। हम सब डॉक्टरेट हैं। और ये नेहा जंगली जानवरों के इंसानों के प्रति व्यवहार पर रिसर्च कर रही है। उन जंगली जानवरों में तेंदुए, बाघ, शेर, कुत्तों को की सभी नस्ल और भेड़िये शामिल है।"-रजनीश ने मुस्कुराते हुए कहा।
"बताओ भी यार क्या हुआ है तुम्हारे साथ।"-रोनित ने अपनी जिज्ञासा व्यक्त की।
विक्रांत ने खाना, खाना बंद कर दिया और एक लंबी साँस ली।
उसके चेहरे के भावों से वो रोनित के प्रश्नों से कुछ असहज महसूस कर रहा था।
तभी पास से एक भयानक आवाज आई, जो उस बंगलों के नजदीक से आ रही थी।
वह दहशत भरी आवाज इतनी तेज़ थी। कि सभी का शरीर कांप उठा।
दीप्ति के हाथ से चम्मच गिर पड़ी और निकिता डर कर रजनीश से चिपक गई। नेहा अपने कान बंद कर चुकी थी।
कुछ सेकंड्स के बाद वह डरावनी आवाज बंद हो गई।
"ओ भाई ये आवाज किसकी थी? मुझे यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा गाइज।" - रोनित ने खिड़की ओर बढ़ते हुए कहा।
"रोनित उधर खिड़की के पास क्यूँ जा रहा है?" - प्रवीण ने रोकते हुए कहा।
"भाई सुनो। सभी शांत हो जाइये। वह आवाज किसी जानवर की थी। जिसका किसी शिकारी जानवर ने शिकार किया होगा बस। घबराने की जरूरत नहीं है।"- विक्रांत ने रोनित की ओर देखते हुए सभी को समझाया।
"अबे इधर आना यार। ये कोई मज़ाक नहीं है।"-दीप्ति ने रोनित को बुलाया।
"रुक न यार देखने दे कौन है वो जानवर।"- रोनित ने नजरअंदाज करते हुए कहा।
"रोनित वहां जाना खतरनाक है।"-प्रोफ़ेसर ने रोनित को रोकते हुए कहा।
"रुक जाओ भाई। मैं बोल रहा हूँ न। वहाँ जाना ठीक नहीं है।"- विक्रांत रोनित को रोकने के लिए खड़ा हो गया।
तभी रोनित के सामने वाली खिड़की के टूटने की आवाज आई और एक झटके में रोनित एक खौफनाक आवाज के साथ बंगलों के बाहर पसरे कोहरे और अंधेरे के आगोश में समा गया।
कुछ ही सेकंड्स के अप्रत्याशित हादसे ने सभी को भयाक्रांत कर दिया। आश्चर्य और भय से सभी के मुंह खुले रह गए।
"ओह! माय गॉड! रोनित...... ।" - नेहा दौड़कर खिड़की से रोनित को आवाज लगाने लगी लेकिन रोनित ने कोई जबाब नहीं दिया।
विक्रांत अपना सर पीट कर चेयर पर बैठ गया।
"मैंने पहले ही रोका था। लेकिन नहीं, न जाने लोगों को मरने का इतना शौक है।"
"विक्रांत तुम ऎसे नहीं बैठ सकते तुमने देखा वो रोनित को ले गया।" - प्रोफेसर ने घबराते हुए कहा।
"प्लीज विक्रांत कुछ किजिए।" - दीप्ति ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा।
"देखिए, मैं अब कुछ नहीं कर सकता। रोनित का बचना नामुमकिन है। अब तक तो वो........ ।
"जस्ट शट अप! आगे एक भी शब्द मत बोलना। तुम हमें यहां मारने के लिए लाये हो हाँ।"-नेहा ने विक्रांत की कोलर पकड़ते हुए कहा।
नेहा का शरीर गुस्से से काँप रहा था। उसकी आँखें लाल पड़ चुकीं थीं।
विक्रांत, उसके आगे कुछ बोल न सका।
"नेहा। कूल डाउन।" - प्रोफेसर ने कहा।
" अब क्या होगा गाइज?"-निकिता ने कहा।
" ये तो नामर्द है। मैं जाऊँगी रोनित को बचाने के लिए। चलो...।" - नेहा ने जैकेट डालते हुए बाहर निकल गई।
"रुक जाओ, वो रोनित को कहां ले जाएगा मुझे पता है और मेरे बिना तुम लोग उसके पास नहीं पहुंच पाओगे।"
सभी लोग विक्रांत के साथ बाहर सर्द रात के घने अंधकार में रोनित को ढूंढने निकल पड़े।
सभी अपने हांथों में टार्च और अपनी सुरक्षा के लिए लड़की, लोहे की रॉड कुछ न कुछ लिए हुए थे, जो उन्हे उस घर में मिला।
" याद रहे कोई भी ज़रा सी भी आवाज नहीं निकालेगा।"-विक्रांत ने सभी को चेताया।
"तो हम रोनित को कैसे ढूंढेगे?"
"मुझे पता है वो रोनित को पास के स्कूल की बिल्डिंग में ले गया होगा! क्यों कि मैंने ज्यादातर जानवरों की गतिविधियां वहीं देखीं हैं।"
"कितनी दूर है वो बिल्डिंग मुझे तो डर लग रहा है।"
" पास में ही है! देखो वो रही!" - विक्रांत ने अंगुली का इशारा एक वीरान और अंधेरे में मनहुस दिखने वाली स्कूल की बिल्डिंग की ओर किया।
" सभी लोग मेरी बात को ध्यान से सुनो। भगवान करें रोनित जिंदा हो, अगर उसकी खैरियत चाहते हो तो सभी मेरी बात को मानेंगे। "
"हाँ बोलो!"
" सर जी जैसे ही हम सब बिल्डिंग के पास पहुँचेंगे तो सभी बिना आहट किए छिप जाएंगे और छिपकर बिल्डिंग के अंदर का मुआयना करेंगे। अगर सब अपने मुताबिक रहा तो जैसा मैं कहूँगा वैसा करना होगा।"
" हाँ, सब ऎसा ही करेंगे!"-प्रोफेसर ने सभी स्टूडेंट्स पर नजर डालते हुए कहा।
" तो फिर मेरे साथ आगे बढ़ीए।"
जैसे ही सभी उस बिल्डिंग के पास पहुंचे तो सभी को वहां से कुछ बेहद खौफनाक आवाजें सुनाई दें रहीं थीं। जैसे कुछ देर पहले उस बंगलों के पास से आ रहीं थीं।
सभी की हालत पतली हो चुकी थी। निकिता और दीप्ति की हिम्मत जबाब दे चुकी थी।
सभी ने दीवार की एक दरार से अंदर झांक कर देखा तो दीप्ति और निकिता की चीख निकल पड़ी लेकिन आवाज होने से पहले ही प्रवीण और रजनीश ने दीप्ति और निकिता के मुँह पर हाथ रख कर आवाज दबा दी।
असल में अंदर का माहौल बहुत ही डरावना और रूह को हिला देने वाला था।
अंदर रोनित खून से लथपथ था और उसे चारों ओर से खूनी और आदमखोर भूखे भेड़िये जैसे दिखने वाले जानवर घेरे हुए थे। वो रोनित को फाड़ कर खाने के लिये उतावले हो रहे थे।
जमीन पर सिमटा पड़ा रोनित अपनी जान के लिए उन नासमझ जीवों के सामने गिड़गिड़ा रहा था। उसके मुँह से खून के कतरे टपक रहें थे।
ठंड से फर्श पर पड़ा रोनित का खून जम रहा था। जिसे एक जानवर अपनी जीभ से चैट रहा था।
सभी जानवरों के गुर्राने की आवाजों से माहौल खौफनाक हो चुका था।
"अब हमें क्या करना चाहिए विक्रांत!, रोनित को इस समय हमारी सक्त जरूरत है।" - हमले को तैयार खड़े प्रवीण ने कहा।
"रुको!" - विक्रांत ने कहा।
"क्यूँ?" - रजनीश ने कहा।
"तुमने एक बात गौर की है?"
"कौन सी बात?"
"यही बात इन भूखे जानवरों ने रोनित को अभी तक जिंदा क्यूँ रखा? और हाँ अभी वो उस पर हमला क्यूँ नहीं कर रहे पता है क्यूँ?" - विक्रांत ने कहा।
"क्यूँ?"
"क्यों कि शायद वो किसी का इंतज़ार कर रहे हैं!"
"क्या बोल रहे हो तुम, चलो रोनित को बचाना है वो मेरा भाई है।"-रजनीश ने कहा।
जैसे ही रजनीश ने पिस्तौल उन जानवरों की ओर पॉइंट की तभी सब जानवर शांत हो गए, जो कुछ देर पहले गुर्रा रहे थे।
यह देख रजनीश के पसीने छूट गए, उसे लगा शायद उन जानवरों ने उसको देख लिया है।
लेकिन असल में ऎसा नहीं था। सभी जानवर दूर एक तरफ़ खड़े हो गए। क्योंकि सामने अंधेरे में से एक बड़ा जानवर आता हुआ। दिखा जो दो पैरों पर चल रहा था। उसके सारे शरीर पर काले बड़े बाल थे बिल्कुल एक भालू की तरह।
वह इंसानों की तरह चल रहा था लेकिन कमर से ऊपर वाला हिस्सा किसी भेड़िये जैसा लग रहा था।
वह गुर्राता हुआ रोनित के पास पहुंच गया और उसे सूंघने लगा।
दीप्ति और निकिता मन ही मन रोये जा रहीं थीं।
"देख लिया तुम सबने ये सभी जानवर इसी का इंतजार कर रहे थे। इसी लिए रोनित को अभी तक जिंदा रखा इन दरिंदों ने। लेकिन अब कोई फायदा नहीं अब तो रोनित को मारना होगा। अगर ऎसा नहीं हुआ तो ये हम सबको मार डालेगा।" - विक्रांत ने सबको समझाया।
"कुछ नहीं होगा? मैं मार डालूंगा उसे अपनी बंदूक से।"-रजनीश ने अपनी पिस्तौल से उस जानवर की ओर टार्गेट करते हुए कहा।
" रुक जाओ। ये तुम क्या कर रहे हो? इससे हम सब मारे जाएंगे। रोनित को अब हम नहीं बचा सकते ये सबको पता है लेकिन रोनित की जान से हम सबकी जान बच सकती है। आम पिस्तौल से उस पर कोई असर नहीं होगा। इससे वो हम सब भड़क जाएगा भाई। देखो बात मान लो और चलो यहां से।
उसी वक्त वह जानवर गुर्राता हुआ रोनित की ओर बढ़ा। अब वह आक्रामक हो चुका था शायद वह रोनित को मारने का फैसला कर चुका था। रोनित रोता हुआ पीछे की ओर खिसकने लगा।
"विक्रांत गोली चलाओ प्लीज। वो रोनित की ओर बढ़ रहा है।" - दीप्ति ने विक्रांत से कहा।
लेकिन विक्रांत ने बातों को अनसुना कर दिया।
वह रोनित को मारता हुआ देख रहा था।
लेकिन तभी प्रोफेसर ने रजनीश से कहा - "रजनीश गोली चलाओ।"
इतना सुनना था कि रजनीश ने गोली चला दी।
" रुक जा...... ।"
विक्रांत रजनीश पर झपटा। लेकिन तब तक गोली चल चुकी थी। विक्रांत काफी डर चुका था।
निशाना अपने टार्गेट पर लगा लेकिन ये क्या.?
उस जानवर पर गोली का कोई असर नहीं हुआ। वह जानवर रुका और पीछे मुड़कर सबकी ओर देखा और बहुत ज़ोर से दहाड़ा।
और जैसे ही वह फिर से रोनित की ओर मुड़ा तो सामने रोनित के पास नेहा आ चुकी थी पिस्तौल के साथ।
नेहा पिस्तौल को उस जानवर की ओर पॉइंट किए हुए थी।
"oowww ये भी जाएगी रोनित के साथ।" - विक्रांत ने मुंह फेरते हुए कहा।
जानवर, नेहा पर हमला करता तब तक नेहा उस पर गोली दाग चुकी थी। वह गोली उस जानवर के सीने को चीरती हुई निकल गई।
खून का फव्वारा फूट चुका था उस जानवर के सीने से। जिससे वह तिलमिला उठा।
लेकिन कुछ देर में वह जानवर सामान्य हो गया और उसने दहाड़ते हुए नेहा को पंजा मारा।
वार इतना शक्तिशाली था कि नेहा उछल कर रोनित के ऊपर जा गिरी।
नेहा दर्द से कराह उठी। साथ ही उसके हाथ से पिस्तौल दूर जा गिरी।
रजनीश लगातार फायरिंग कर रहा था।
लेकिन उसका हर वार उस जानवर पर बेअसर हो गया था।
वह जानवर नेहा के पास पहुंच गया। नेहा ने डर से अपनी आंखे बंद कर लीं क्यों कि अब उसके पास कोई उपाय नहीं था।
वह जानवर अपना चेहरा, नेहा के चेहरे के पास लाया और कुछ पल के लिए रुका। जैसे वह उसे महसूस कर रहा हो।
नेहा ने अपनी आंखे खोली तो उसकी आँखे उस जानवर की आंखों से जा मिली।
कुछ क्षण बाद उस जानवर ने अपना मुँह ऊपर कर दहाड़ लगाई नेहा ने अपने कान बंद कर लिए। उस दहाड़ को सुनकर सभी जानवर वहां से चले गए...
और
फिर वह भी आराम से गुर्राता हुआ वहाँ से चला गया।
नेहा और रोनित बेहोश हो चुके थे। सभी लोग वहाँ पहुँच गए थे। सब नेहा ही हिम्मत की दाद दे रहे थे।
सभी लोग डर के साथ रोनित और नेहा को जिंदा देख कर खुश थे।
सभी लोग वापस विक्रांत के बंगलों पर पहुँच चुके थे।
क्या यहीं अन्त होगा, सभी के साथ हो रहे हादसों का?
विक्रांत कौन है और उसने उस जानवर पर गोली क्यूँ नहीं चलाई?
कौन था वो आदमखोर जानवर और नेहा को उसने क्यू नहीं मारा?
क्रमशः________________ (भाग - 04 के लिए नीचे जायें 👇)
जबाब मुझे कमेंट करें।
और अगर अभी तक आपने मुझे फॉलो नहीं किया है तो इस कहानी के आगे आने वाले मज़ेदार रहस्य और रोमांच से भरपूर अद्वितीय और अविश्वसनीय भागों के लिए मुझे फॉलो करना न भूलें।
धन्यवाद 🙏
राधे 🙏 राधे 🙏
@follow_me
@leave_a_comment
@msg_me
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for visiting here SS₹ 🤗🫰🏻❤️🌹
🥀रसिक 🇮🇳 🙏😊
राधे राधे 🙏🏻