Town of Death - Chapter 09
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🙏🙏🕉️ श्री शिवाय नमस्तुभ्यं। 🕉️🙏 🙏
Town of Death - Chapter 09
अध्याय - ०९
(Neha fall in love with vikrant)
By - Mr. Sonu Samadhiya Rasik
(अध्याय ०८ से आगे..........)
पुलिस स्टेशन, भिंड (मध्य प्रदेश)
“जगदीश, हरिसिंह...... ।” - टी आई हर्षित ने अपने हेड कॉन्स्टेबल को बुलाया।
“जी सर।”
“संजना और अल्का कहां हैं?”
“सर वो दोनों छुट्टी पर हैं।”
“अच्छा!”
“जी सर!”
“उनकी छुट्टियाँ कब ख़त्म हो रहीं हैं?”
“सर, दो दिन बाद..... ।”
“तो ठीक है, उन्हें कॉल करो और कहो कि उनकी छुट्टियां आज खत्म हैं हमें सुरईपुर मोड़ पर मिलें, इमरजेंसी है।”
“जी सर।”
“हरि सिंह...।”
“जी सर।”
“जल्दी से गाड़ी निकालो हमें अभी निकलना है।”
टी आई हर्षित ने बाहर निकलते हुए कहा।
हर्षित एक तेज तर्रार युवा पुलिस ऑफिसर है। उसके कंप्यूटर से भी तेज दिमाग और चीते जैसी फुर्ती के आगे बड़े से बड़े खूंखार अपराधी अपनी जान बचाने के लिए उसके आगे सरेंडर कर चुके थे। इसके साथ ही हर्षित एक आकर्षक व्यक्तित्व का भी धनी व्यक्ति था।
जिप्सी को स्टार्ट करते हुए हरिसिंह ने पूछा - “ सर हम जा कहां रहें हैं?”
“हम सब मोहिनीगढ़ जा रहें हैं।” - हर्षित ने अपनी रिवाल्वर को लोड करते हुए कहा।
“क्या? मोहिनीगढ़!....... ”
मोहिनीगढ़ का नाम सुनकर हरिसिंह और जगदीश के डर और आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।
“हाँ मोहिनीगढ़, तुम लोग मोहिनीगढ़ के नाम से इतना चौंक क्यूँ गए। मुझे रात को वहाँ से एक कॉल आया था।”
तभी हरिसिंह ने सामने खड़ी संजना और अल्का के लिए कार रोकी और दोनों को बिठा लिया।
“जय हिंद सर।” - संजना और अल्का ने कहा।
“जय हिंद, छुट्टियां कैसी रहीं आप दोनों की?”
“बढ़िया रहीं सर, लेकिन हम सब जा कहां रहें हैं?”
“मोहिनीगढ़ की ट्रिप पर........ ।”
“क्या......?”
“हाँ, दरअसल रात को मोहिनीगढ़ में कुछ लोगों के फंसे होने और उन में से कुछ लोगों के घायल होने की इन्फॉर्मेशन मुझे आर्किलोजिस्ट नेहा ने कॉल करके दी है। आप सब जानते ही हैं। कि मोहिनीगढ़ सेफ नहीं है, तो ये इन्फॉर्मेशन हमारे लिए बहुत इंपोर्टेंट है। अगर समय रहते सही एक्शन न लिया जाए तो एक बड़ा हादसा हो सकता है।” - हर्षित ने कहा।
“लेकिन, सर मोहिनीगढ़ एक मनहुश और कई सालों से वीरान पड़ा कस्बा है। सुना है कि वहां जो जाता है। वह लौट कर बापस नहीं आता है। लोग उसे मौत का कस्बा तक कहने लगे हैं।” - हरिसिंह ने गंभीर होते हुए कहा।
“हाँ, सर! हरिसिंह सही बोल रहा है।” - जगदीश ने हरिसिंह का साथ दिया।
“हाँ, मुझे पता है सब। आप लोगों को पिछला कसाईगढ़ कस्बे का डायन वाला ऑपरेशन याद है न। वहां भी ऎसा ही सुन रखा था। लेकिन वहां क्या मिला कुछ नहीं न। ऊपर से अगर पुलिस की टीम वहां न पहुंचती तो वहां की जनता उन औरतों को डायन समझ कर मार डालते।”
“लेकिन सर ये कस्तुरीगढ़ नहीं, मोहिनीगढ़ है।” - संजना ने अपना डर जाहिर करते हुए कहा।
उसकी भाव-भंगिमा से स्पष्ट था। कि वह मोहिनीगढ़ जाने की बात से पूरी तरह से खिलाफ थी। लेकिन ड्यूटी तो ड्यूटी है।
“हाँ बाबा मुझे पता है। कि वो मोहिनीगढ़ है और यह भी जानता हूँ। कि वहां जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ है। वैसे भी तुम लोग ऎसे कई तरह के केसेस सॉल्व कर चुके हो मेरे साथ। इसलिए मैंने आप लोगों को चुना है। उम्मीद है कि हम सब मिलकर कुछ नया और हटकर करेंगे।”
“जी सर।”
सुबह शुरू से ही सर्द भरा हुआ था। कोहरा इतना घना था। कि इस बात का अंदाजा दृश्यता एक मीटर से कम दूरी से लगाया जा सकता था।
“यार संजना बाहर कितनी सर्दी है। ढाबे से चाय पी कर चलते तो ठीक रहता।” - अल्का ने संजना से कहा।
“हाँ यार, लेकिन अब चाय मोहिनीगढ़ की मिस्ट्री को सॉल्व करके ही पीना है।”
कार कोहरे को चीरती हुई तेज़ गति से मोहिनीगढ़ की ओर बढ़ रही थी। सड़क पर किसी भी इंसान और न ही किसी जानवर का कोई नामोनिशान नहीं था।
इसकी एक ही वजह थी वो है - 'मोहिनीगढ़ का खौफ ʼ
मोहिनीगढ़ का खौफ इंसानों में ही नहीं बल्कि जानवरों में भी था। कोई भी जानवर या पक्षी मोहिनीगढ़ की ओर गलती से भी नहीं जाता था। जो भी वहां जाता वह कभी बापस नहीं आया।
“हरिसिंह!”
“जी सर!”
“लेफ्ट ले लो कार को.... ।”
कार बायीं ओर मुड़ी। सामने मोहिनीगढ़ का बोर्ड देख कर सभी कुछ देर के लिए मौन मुद्रा में चले गए। कोहरे को चादर के सदृश्य औढ़े हुए मोहिनीगढ़ की ऊंची ऊँची मीनारें और सालों से वीरान पड़ी संकीर्ण गलियां। मानों सभी का इंतजार कर रहीं थीं।
कार जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी वैसे ही वैसे कोहरे की परतें बेपर्दा होतीं जा रहीं थीं।
सभी लोग चौकन्ने हो चुके थे। क्योंकि सब जानते थे कि ये मोहिनीगढ़ का क्षेत्र है। यहां कोई इंसान कब गायब हो जाए ये कोई बड़ी बात नहीं थी।
तभी हर्षित ने शांत और मौन माहौल की निरंतरता को तोड़ते हुए कहा - “अल्का जरा इस नंबर पर कॉल करना। इसी नंबर से रात को कॉल आया था।”
जैसे ही अल्का अपने मोबाइल पर नंबर डायल करती है तो उसे पता चलता है कि फोन में नेटवर्क नहीं है।
“सर यहाँ नेटवर्क ही नहीं है।”
तभी तेज आवाज हुई और कार अनियंत्रित हो गई।
“क्या हुआ हरिसिंह?”
सभी ने चौकन्ने होकर अपनी गन निकाल कर चारों ओर पॉइंट कर ली।
हरिसिंह ने मुश्किल से कार पर नियंत्रण पाया।
सभी ने कार से बाहर निकल कर देखा तो पाया कि कार के पिछले दोनों पहिए पंचर हो चुके थे।
पंचर का कारण पता चला तो सब हैरान रह गए। पहियों को जानबूझकर पंचर किया गया था। रास्ते में एक कटीला तार बिछाया गया था। जिसने पहियों को पंचर किया था।
“सभी सावधान हो जाओ! हम पर कभी भी हमला हो सकता है।” - हर्षित ने अपनी गन को निकालते हुए कहा।
“नेहा! दीप्ति कहाँ है? वो अभी तक ब्रेकफास्ट पर क्यूँ नहीं आई?” - प्रो. राणा ने नेहा ने पूछा।
सभी लोग डायनिंग टेबल पर दीप्ति का इंतजार कर रहे थे।
नेहा, अपनी कुर्सी से खड़ी हो कर दीप्ति वाले रूम की ओर बढ़ते हुए बोली - "मैं अभी आई।”
सभी लोग दीप्ति के बिना नाश्ता नहीं करना चाहते थे। सभी नेहा को जाते हुए देख रहे थे।
नेहा दीप्ति के पास जाती है। तो उसने देखा कि दीप्ति रजाई औढ़े अभी तक सो रही थी।
नेहा ने उसकी रजाई खींचते हुए कहा -" यार तू अभी तक सो रही है। बाहर नाश्ते पर सभी तेरा इंतजार कर रहे हैं।”
तभी करवट लिए हुए दीप्ति की आँखें खुलीं जो असामान्य पीले रंग की थीं उसके दोनों होंठों के बीच से दो नुकीले दाँत निकल आए थे। वह लंबी लंबी साँसे भर रही थी।
नेहा ने उसके कंधे पर हाथ रख कर अपनी तरफ किया।
“तुझे तो फीवर है! ओहह.... । तेरी शर्ट की कॉलर पर खून कैसा? तू ठीक तो है न?” - नेहा ने घबराते हुए पूछा।
दीप्ति पूरी तरह से सामान्य दिख रही थी। जैसे कुछ हुआ ही नहीं था।
“तुम जाओ मैं बिल्कुल ठीक हूं। सभी से बोल देना ब्रेकफास्ट कर लें, मुझे भूख नहीं है मुझे अभी सोना है।” - दीप्ति ने कहा।
“लेकिन दीप्ति तेरा फीवर........ ।”
“मैंने कहा न, मुझे कुछ नहीं हुआ। अब तुम जाओ यहां से....” - दीप्ति ने नेहा की बात को काटते हुए कहा। उसका व्यवहार उसके स्वभाव से बिल्कुल बदला हुआ था। नेहा को अजीब लगा और वह बिना कुछ बोले वहाँ से चली गई। नेहा के जाने के बाद दीप्ति फिर से रजाई औढ़ कर सो गई।
“सर! मेरे साथ जल्दी चलिए।” - नेहा ने हॉल में बैठे सभी लोगों के पास जाकर हङबङाते हुए कहा।
“क्या हुआ नेहा बोलो तो सही?"-प्रवीण ने खड़े होते हुए पूछा।
“क्या हुआ नेहा?” - प्रो. राणा ने नेहा के पास जाकर पूछा।
विक्रांत दूर से नाश्ते की ट्रे हाथ में लिए सभी की बातें सावधानी पूर्वक सुन रहा था।
“सर, दीप्ति को तेज़ फीवर है और उसकी कॉलर पर खून देखा मैंने।”
“व्हाट?”
“हाँ सर! आइए मेरे साथ।"
नेहा सभी के साथ दीप्ति के पास पहुंच जाती है।
तभी दीप्ति ने कहा -" तुम लोग मुझे क्यूँ परेशान कर रहे हो। मैंने बोल दिया न मैं बिल्कुल ठीक हूँ।”
“लेकिन दीप्ति! नेहा बोल रही थी। कि उसने तुम्हारी शर्ट की कॉलर पर खूब देखा..।”
“क्या सर आप भी..... मैं ठीक हूं। मैं बस और सोना चाहती हूँ अगर आप लोग मुझे डिस्टर्ब न करें तो...।”
तभी विक्रांत दीप्ति की ओर बढ़ते हुए कहता है कि - “नेहा जी बोल रहीं थीं कि आपको फीवर है।”
“देख विक्रांत मेरी तरफ मत बढ़ना। मेरा मूड बिल्कुल भी ठीक नहीं है।” - दीप्ति ने बैठते हुए कहा।
“ये क्या बदतमीजी है, दीप्ति?” - प्रोफ़ेसर ने डांटते हुए कहा।
“सर, प्लीज...”
इतना कहते ही दीप्ति गुर्राते हुए विक्रांत की पर हमला करने के लिए तैयार हो जाती है।
“विक्रांत , रुक जाओ उसके पास मत जाओ। वो बदल रही है।” - नेहा ने विक्रांत को रोका।
दीप्ति ने विक्रांत पर छलांग लगा दी और उसे जमीन पर गिरा दिया। दीप्ति अपने नुकीले दांतों से विक्रांत को काटने की कोशिश करने लगी। लेकिन उसका सिर विक्रांत के हाथों में था।
आक्रामक रुख अख्तियार किए हुए दीप्ति अपने धारदार नाखूनों से लगातार विक्रांत के शरीर को खरोंच रही थी। सभी लोग अचानक हुए हमले से बहुत घबरा चुके थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करें?
तभी प्रवीण, पास में टेबल पर रखी गन को उठा लेता है और दीप्ति पर निशाना लगाता है। नेहा ये सब देख लेती है। वह प्रवीण के पास जाकर गन को छीन लेती है।
“तुम बिल्कुल ही पागल हो,अब तुम दीप्ति को मारोगे?”
तभी विक्रांत पलट कर दीप्ति को नीचे जमीन में गिरा देता है और उसके दोनों हाथों को जमीन से सटा देता है। प्रवीण, नेहा और प्रोफेसर सभी ने मिलकर दीप्ति पर काबू पाया। दीप्ति चीख़ चीख़ कर बेहोश हो जाती है। उसे बेड पर लिटा दिया गया और साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से उसके भी हाथ - पांव रस्सी से बांध दिए गए।
“तुम ठीक तो हो न विक्रांत?” - नेहा ने विक्रांत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
“हम्म्म्....... ।” - विक्रांत ने नेहा की ओर मुड़ते हुए कहा।
“विक्रांत, अब क्या होगा? क्या तुम्हें पता है? कि दीप्ति के साथ क्या हुआ है?” - प्रोफ़ेसर ने कहा।
“ऎसे कुछ नहीं होगा, कुछ करना ही पड़ेगा अब। वक़्त आ गया है।”
इतना कहते ही विक्रांत लंगङाता हुआ वहां से चला जाता है। नेहा भी उसके पीछे - पीछे जाने लगती है।
तभी प्रोफेसर ने कहा - “नेहा क्या हुआ?”
“कुछ नहीं सर वो विक्रांत...... ।” - नेहा ने प्रोफेसर की ओर मुड़ते हुए कहा।
“विक्रांत ठीक है और वह अपना ख्याल खुद रख सकता है।”
वह रुक चुकी थी।
“जी सर।”
सभी का ध्यान कमरे में आते हुए पैरों की आहट की ओर गया। सभी ने मुड़कर देखा तो विक्रांत अपने हाथ में एक बहुत पुरानी सी दिखने वाली किताब लिए हुए थी।
“ये क्या है विक्रांत?” - प्रवीण ने पास आकर पूछा।
सभी जिज्ञासावश उस किताब को देख रहे थे।
“ये किताब मेरे पिता जी की है। जिसमें प्राचीन असाध्य रोगों के बारे में और उनके उपचार की विधि लिखी हुई हैं। तुम लोग जिस शाप से ग्रसित हो उसका भी उपचार भी लिखा है।” - विक्रांत ने किताब के पन्ने पलटते हुए कहा।
“ इसके बारे में तुमको पता था। फिर भी तुमने पहले क्यूँ नहीं बताया।” - प्रवीण ने संदेहवश कहा।
“इस किताब के नुस्खों का उपयोग करना जोखिम भरा है। मैं इस किताब की प्राचीन लिपि को ठीक से पढ़ नहीं पाता और अगर इसका त्रुटिपूर्ण उपयोग शापित लोगों की मौत का कारण बन सकता है। इसलिए मैं इसका उपयोग करने में हिचकिचा रहा हूँ।”
“इसका मतलब यह है कि तुमने अभी तक इसका उपयोग नहीं किया है? और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि मेरे दोस्त इससे ठीक हो सकते हैं।” - प्रवीण ने कहा।
“तो इसमें जान जाने का भी रिश्क है?” - प्रोफ़ेसर ने कहा।
“हाँ, लेकिन आप लोग जिस शाप से ग्रसित हो उसका इलाज मुझे समझ आ रहा है। देखिए इस चित्र को, इस विधि को मानव भेड़िया विषरोधी विधि कहते हैं।” - विक्रांत ने किताब का एक चित्र प्रोफेसर को दिखाते हुए कहा।
“विक्रांत तुम श्योर हो कि ये नुस्खा काम करेगा? मेरे दोस्तों को कुछ होगा तो नहीं न?” - नेहा ने कहा।
“नेहा, मुझ पर विश्वास रखो! मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा। मैं वचन देता हूं।”
“बस नेहा....? और हम सब.......” - प्रवीण ने कहा।
“अरे भाई, आप सब भी मेरे लिए नेहा की ही तरह हैं।” - विक्रांत ने बात को जारी रखते हुए कहा - “आप लोग चाहो तो मैं इस इलाज को अजमाकर देख लूँ।”
“हाँ क्यूँ नहीं। अगर सब ठीक हो सकते हैं तो जरूर देखो यार।” - प्रवीण ने उतावले लहजे में कहा।
“लेकिन विक्रांत सावधानीपूर्वक........ ।” - प्रोफेसर ने कहा। वो सब के लिए बेहद चिंतित थे।
“यस बॉस! आप बेफिक्र रहिए। आप सब मेरे लिए बहुत जरूरी हो।” - विक्रांत ने सभी की ओर मुस्कुराते हुए कहा।
विक्रांत, किताब को लेकर दूसरे कमरे में चला गया।
“डैड! क्या हम विक्रांत पर भरोसा कर सकते हैं?” - प्रवीण ने कहा।
न जाने क्यूँ वो विक्रांत पर भरोसा करने से कतरा रहा था।
“एक - एक करके हमारे दोस्त वेयरबुल्फ़्स के हमले से इन्फेक्टेड होते जा रहें हैं और हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं। एसी सिचुएशन में हमें विक्रांत पर ट्रस्ट करना चाहिए। अगर वो बुरा होता तो हम सबको भेड़ियों के हमले से नहीं बचाता और........... ।” कहते - कहते नेहा ने अचानक रुक गई।
क्यों कि नेहा की आंखों के सामने शौर्य की तस्वीरें तैरने लगीं वो शौर्य के बारे में कुछ कहती कि तभी.......
“आह्ह्ह्ह्ह..........!” - नेहा अपना कंधा पकड़ कर नीचे बैठ गई। वहां कुछ सेकंड के लिए उसे रात की तरह असहनीय तेज जलन का अहसास हुआ और बंद हो गया।
नेहा तुरंत खङी हो गई। वह घबराते हुए अपने चारों ओर देखने लगी।
“नेहा! तुम ठीक हो?” - प्रवीण ने नेहा के पास आकर पूछा।
नेहा कुछ कहती कि तभी सभी की नजर विक्रांत पर गई।
जो अपने हाथ में एक चीनी मिट्टी की कटोरी में एक घोल लिए हुए था। नेहा, प्रवीण, प्रोफ़ेसर और विक्रांत दीप्ति के पास पहुंच जातें हैं।
“आप लोग दीप्ति के पास खड़े हो जाइये। क्योंकि औषधि का असर होने पर दीप्ति को काबू करने की जरूरत पड़ेगी।” - विक्रांत ने संभावित कारण बताते हुए कहा।
नेहा, प्रवीण और प्रोफेसर दीप्ति के चारों तरफ़ खड़े हो गए। विक्रांत ने दीप्ति की गर्दन में लेप लगाना शुरू किया। कुछ देर तक दीप्ति अचेत अवस्था में रही लेकिन अब उसका शरीर कांप रहा था। उसकी आँखे खुल चुकीं थीं। वह तेज़ साँसें भर रही थी। वह एक भूखे जंगली जानवर की तरह गुर्राने लगी और फिर दीप्ति चीख़ कर छटपटाने लगी। वह रस्सियों को तोड़ती परंतु सभी लोगों ने उसे पकड़ कर काबू में रखा।
इसी दौरान विक्रांत दीप्ति के पास पास गया और उसके माथे पर हाथ फेरने लगा।
दीप्ति ने विक्रांत की आँखों में देखा तो उसकी आँखो का रंग सामान्य से बदल कर पीला हो गया।
“दीप्ति, अब तुम ठीक हो चुकी हो।” - विक्रांत ने दीप्ति की आंखों में देखते हुए कहा।
इसके बाद दीप्ति और उसकी की आँखें सामान्य हो गईं।
नेहा ने खुश हो कर दीप्ति को गले लगा लिया।
“नेहा! बी केयरफुल।” - प्रोफ़ेसर ने नेहा को चेताया।
“चिंता मत करिए सर, अब दीप्ति से किसी को कोई खतरा नहीं है।” - विक्रांत ने आश्वासन दिया।
“विक्रांत! क्या हम इस नुस्खे को रोनित, रजनीश और निकिता पर भी अप्लाई कर सकते हैं?” - नेहा ने विक्रांत से पूछा।
नेहा इस नुस्खे को लेकर बहुत एक्साइटेड थी।
“बेशक....।”
इतना कहकर विक्रांत, रोनित, रजनीश और निकिता की ओर बढ़ गया।
सभी लोग विक्रांत के पीछे रोनित, रजनीश और निकिता के कमरे की ओर बढ़ गए। उसी समय नेहा अचानक प्रवीण और प्रोफेसर की ओर पलटते हुए बोली - “देखा! मैंने कहा था न। विक्रांत भरोसे लायक हैं। वह सभी को ठीक कर देगा देखना...... ।”
नेहा की खुशी साफ़ साफ़ छलक रही थी। उसकी खुशी सातवें आसमान पर पहुंच गई थी।
“मुझे इस पर कभी भी ट्रस्ट नहीं होगा, डेडी।”
“मुझे भी इस पर शक़ है। इसने यह नुस्खा तब से ट्राइ क्यूँ नहीं किया?” - प्रोफ़ेसर ने अपने उत्तर में सहमति जताई।
विक्रांत कमरे में प्रोफ़ेसर और प्रवीण की बातों पर मुस्कुरा रहा था।
“बेचारे इंसान......”
विक्रांत ने सभी लोगों की मौजूदगी में एक - एक करके लेप लगाना शुरू किया। सभी दीप्ति की तरह विक्रांत की मदद करने के लिए आगे बढ़े तो विक्रांत ने हाथ के इशारे से सबको रोक दिया और कहा कि - “इन लोगों को यह नुस्खा ज्यादा तक़लीफ नहीं देगा। क्योंकि इन लोगों को संक्रमित हुए काफ़ी घंटे हो गयें हैं। तो इन पर काबू पाने की कोई आवश्यकता नहीं है।”
लेप लगाने के बाद सबसे पहले रोनित अपनी आंखें खोलता है। जैसे वह गहरी नींद से जागा
हो।
“मैं कहाँ हूँ?” - रोनित ने अपने लड़खड़ाते हुए पैरों पर खड़े होते हुए कहा।
रोनित, लड़खड़ाते हुए बेड से खड़े होने की कोशिश में जमीन पर गिर पड़ता है। सभी लोग उसे सहारा दे कर बेड पर बिठा देतें हैं।
“रोनित तुम ठीक तो हो न?” - नेहा ने रोनित के सर पर हाथ फेरते हुए पूछा।
“दोस्तों आप चिंता न करें। रोनित ने कई घंटों से कुछ खाया नहीं है। इसलिए वह कमजोर है। लेकिन मैं लाया हूँ रोनित के लिए स्पेशल और लाइट डिस..... ।”
विक्रांत, अपने हाथ में एक बड़ी ट्रे लिए हुए था। जिसमें कुछ फास्ट फूड और बीयर की बोटल रखीं हुईं थीं।
सभी बहुत खुश नजर आ रहें थे। रोनित नाश्ते पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा।
बाहर ठंड की वजह से पारा गिर गया था। धूप का कोई नामोनिशान नहीं था। प्रवीण ने रोनित को जैकेट पहना दी।
तभी कमरे में दीप्ति की आवाज ने चौंका दिया।
“वेलकम बैक एवरीवन....... ।”
सामने खड़ी दीप्ति रजनीश और निकिता की ओर देख कर मुस्कुरा रही थी। सभी ने रजनीश और निकिता के बेड की तरफ देखा तो रजनीश और निकिता अपने हाथों की रस्सी खोल रहे थे। सभी सामान्य दिख रहे थे।
सभी लोग एक दूसरे के गले लग गए। सभी बहुत खुश थे। एक तरफ़ खड़ा विक्रांत ये सब देख कर मुस्कुरा रहा था।
नेहा की नजर विक्रांत पर गई तो उसने खुशी में दौड़ते हुए विक्रांत को गले लगाते हुए कहा - “थैंक यू सो मच विक्रांत।”
“यह मेरा फ़र्ज़ था, नेहा जी। आप लोगों ने मुझ पर भरोसा किया। इसके लिए मैं आप सबका शुक्रगुजार हूं।” - विक्रांत ने आभार व्यक्त करते हुए कहा।
तभी अचानक रोनित को उल्टियाँ होना शुरू हो गईं। सभी घबराकर उसे घेर लेते हैं।
“आप लोग घबराएं नहीं। रोनित फास्ट फूड को डाइजेस्ट नहीं कर कर पा रहा है। रोनित! तब तक तुम बीयर पी सकते हो, जब तक तुम पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाते।” - विक्रांत ने समझाते हुए कहा।
“लेकिन रोनित तो बीयर नहीं पीता?” - प्रवीण ने कहा।
“वो नाम के लिए बीयर है भाई। वह पूरी तरह से प्राकृतिक रसों से मिलकर बनाई है मैंने विशेष पीड़ित लोगों के लिए।”
जब वह बीयर रोनित को पिलाई गई तो कुछ समय बाद रोनित सामान्य स्थिति में पहुंच गया।
“चलिए आप सभी लोग लंच के लिए रेडी हो जाइये। मैं टेबल पर खाना लगा देता हूं।” - विक्रांत ने कमरे से बाहर जाते हुए कहा।
“विक्रांत..... । रुको मैं भी हेल्प कर देती हूँ तुम्हारी।”
नेहा खड़े हो कर विक्रांत के साथ किचन में उसकी हेल्प करने के लिए पहुंच जाती है।
वह विक्रांत के साथ खाने की प्लेट और ट्रे रेडी करने लगती है। इसी दौरान ने की नजर विक्रांत की ओर गई जो उसी को देख रहा था। नेहा के देखने पर विक्रांत सकपका गया और अपनी निगाहें झुका लीं। यह देख नेहा मुस्कुराने लगी।
“वैसे विक्रांत..... ।”
“हाँ जी..... ।”
“हम सबके लिए इतना सब करने के लिए और मेरे दोस्तों को ठीक करने के लिए थैंक यू अगेन।”
“ये मेरा फ़र्ज़ है नेहा जी।”
“तुम मुझे नेहा बुला सकते हो।”
“जी...”
“तुम ये सब क्यूँ और कब से कर रहे हो। लोगों की हेल्प... ।”
“मैं अक्सर इस वीरान और शापित मोहिनीगढ़ में अकेला रहता हूँ। कभी-कभी कोई इंसान जिसकी किस्मत अच्छी हो। आपकी तरह... । वो मुझे मिल जाता है तो हेल्प कर पाता हूँ। नहीं तो ज्यादातर लोग भेड़ियों के निवाले बन जातें हैंमेरे पहुंचने से पहले।”
“ओह! कब से अकेले रहते हो?”
“दस साल से, जब मेरे माँ और पिता जी इन भेड़ियों के शिकार बने हैं।”
“सो सेड...... ।”
“आप लोगों के आने से, मेरी सुनी जिंदगी से अकेलापन दूर हो गया है, ये मेरी किस्मत है। कि मैं आप लोगों की मदद कर रहा हूँ।”
“अगर तुम न आते तो हम सब की जान बचना मुश्किल थी।”
“सच बताऊँ तो आपको देख कर अपनापन सा लगता है। जैसे हम आपको पहले से जानते हैं।”
“अच्छा जी!”
विक्रांत, खाने की ट्रे को ले जाने के लिए उठाता है तो उसी समय नेहा भी उसी ट्रे को उठा रही थी। विक्रांत नेहा के हाथ को गलती से छू लेता है। नेहा के हाथ के स्पर्श से विक्रांत तुरंत अपना हाथ खींच लेता है जैसे उसे करंट लग गया हो।
“सॉरी...... ।”
नेहा ने विक्रांत की ओर देखा और मुस्कराई।
“ इट्स ओके, और ये सॉरी और जी कहना भूल जाओ। अपने हाथ सेक लो बहुत ठंडे हैं।”
इतना कहते हुए नेहा ट्रे को उठा कर बाहर मुस्कुराते हुए निकल गई।
खाना खाने के बाद नेहा की नजर विक्रांत को ढूंढने लगी। जो उस वक्त वहां नहीं था। सब इकट्ठे बैठ कर मोहिनीगढ़ से निकलने की योजना बनाने लगे। रोनित, रजनीश, दीप्ति और निकिता शांत एक तरफ़ बैठे हुए थे।
नेहा खड़ी हो कर रूम से बाहर निकल आई। चारों तरफ़ निगाहें घुमाने पर नेहा को रात वाली सीढ़ियों पर एक आहट सुनाई दी। वह उसी की ओर आगे बढ़ गई।
नेहा के दिमाग में रात वाली घटना चलचित्र की भाँति घूमने लगी। उसके दिमाग़ में उस घटना की तह तक जाने की ललक उठी। वह सब भुला कर सीढ़ियों से होती हुई ऊपर छत पर पहुंच गई। तभी नेहा की नजर सामने खड़े विक्रांत पर गई। जो उसकी ओर पीठ किए बाहर मोहिनीगढ़ को निहार रहा था।
कोहरा और शीत लहर रात की तरह हाङ कंपा देने वाली थी।
“आओ नेहा! आज का दिन बहुत ज्यादा ही ठंडा है।” - विक्रांत ने नेहा की तरफ बिना मुड़े ही कहा।
“इतनी सर्दी में तुम यहाँ क्या कर रहे हो। मैं तुम्हें नीचे ढूंढ रही थी।” - नेहा ने विक्रांत के करीब आते हुए कहा।
“सच में, आप मुझे ढूंढ रही थीं। क्या मैं इसकी वजह जान सकता हूं?” - विक्रांत ने नेहा की ओर मुड़ते हुए कहा।
विक्रांत, नेहा की बात से खुश हो गया था।
“पता है! मैंने रात को सामने दूर एक बिल्डिंग में एक रोशनी को देखा था।”
“अच्छा वो रोशनी पास के गाँव सुरईपुर के किसी घर से आ रही होगी। वैसे भी ये मोहिनीगढ़ है यहाँ रात में तो छोड़ो दिन में भी भ्रम होते रहते हैं। जो शिकार को फांसते हैं।”
नेहा की नजर विक्रांत के हाथ की अंगुलियों पर गई जो कांप रहीं थीं और उनसे खून रिस रहा था।
“ये क्या हुआ तुम्हें?”
“कुछ नहीं बस मामूली सी चोट है।” - विक्रांत ने हाथ को छिपाने की कोशिश करते हुए कहा।
“दिखाओ मुझे....... ।” - नेहा ने गुस्सा होते हुए कहा।
नेहा ने विक्रांत का हाथ से जैकेट हटाई तो देख कर दंग रह गई। विक्रांत की बाँह पर दीप्ति के काटे जाने का घाव था। जिससे खून रिस रहा था।
“तुमने बताया क्यूँ नहीं और न ही बैन्डेड लगाई। तुम्हें बिल्कुल फिक्र नहीं है क्या?”
नेहा की बातों और व्यवहार में विक्रांत के लिए फिक्र थी।
“ये सब आप लोगों की परेशानी के आगे कुछ भी नहीं है। मैं आपकी सुरक्षा के लिए अपनी जान दे सकता हूं नेहा! क्यों कि आप मुझे मेरे अजीज की याद दिलाती हो। जिसे मैंने अपनी गलती से खो दिया। आपने मेरी जिंदगी में आकर मेरी बेरंग जिंदगी में रंग भर दिए हैं। मुझे मौत से डर नहीं लगता। मुझे बस फिर से अपने अजीज के बिना अकेले होने से डर लगता है। ये वही जगह है जहां मैंने अपने अजीज को खोया है। इसलिए मैं आया.... ।” - विक्रांत की आंखों में अपने अजीज को याद करते हुए आँसू छलक आए।
नेहा का दिल भर आया।
“तुम कितने अच्छे हो विक्रांत। मेरे माता पिता के गुजर जाने के बाद मेरी इतनी फिक्र किसी ने भी नहीं की।” - इतना कहते हुए नेहा ने विक्रांत को गले लगा।
“थैंक यू विक्रांत। आईम रीयली सॉरी तुम्हें गलत समझने के लिए।”
तभी नीचे से प्रवीण ने आवाज लगाई - “नेहा तुम ऊपर क्या कर रही हो? बाहर कितनी सर्दी है पता है तुम्हें।”
“अब हमें नीचे चलना चाहिए।” - नेहा ने नीचे जाते हुए कहा।
तभी विक्रांत ने नेहा का हाथ पकड़ लिया।
“नेहा मुझ पर भरोसा रखना।”
“हम्म्......... ।”
विक्रांत, नेहा के चले जाने से गुस्से में लाल पीला हो गया। उसकी आंखें पीतल के सदृश्य चमकने लगी।
“सर! सारा दिन हो गया है यहाँ घूमते हुए। कोई भी नहीं दिख रहा है। शाम होने वाली है। रात को यहां ठहरना खतरे से खाली नहीं है।” - हरिसिंह ने इंस्पेक्टर हर्षित से कहा।
पुलिस फोर्स के सभी मेम्बर आग में अपने हाथ सेक रहे थे। चारों तरफ़ से जंगली जानवरों की आवाजें आ रहीं थीं जैसे मोहिनीगढ़ कस्बा न हो कर कोई बियावान जंगल हो।
संजना पास ही में अपना फोन में नेटवर्क आने का इंतजार कर रही थी।
“मुझे लगता है कि किसी ने हमारे साथ मज़ाक किया होगा। यहाँ कोई भी नहीं है।” - अल्का ने अपना ओपिनियन शेयर करते हुए कहा।
“नहीं ऎसा नहीं है। लोकेशन यहीं की बता रहा है। नेटवर्क की प्रॉब्लम की वजह से सही लोकेशन को ढूंढने में दिक्कत हो रही है।” - हर्षित ने चारों तरफ़ देखते हुए कहा।
“सर क्या पता जो भी रात को हमसे मदद मांग रहा था वो हमारा इंतज़ार करते करते हुए चला गया होगा।” - जगदीश ने कहा।
“चलो एक घंटे तक और खोजते हैं। अगर कोई मदद के लिए कोई नहीं आया तो हम बापस चले जाएंगे।” - हर्षित ने कहा।
विक्रांत को आता देख। प्रोफेसर राणा कहतें हैं कि - “विक्रांत अब तो सब ठीक हो चुकें हैं। अब तो हम सब जा सकते हैं न?”
“जी नहीं, क्योंकि आप सब भेड़ियों के जहर से ठीक हुए हो न कि शाप मुक्त....... ।”
“क्या?”
“हाँ भाई। आप लोगों को बस अमावस्या की रात तक रुकना है। उसके बाद क्या पता आप सब शाप मुक्त हो जाएं। मेरे पास इस शाप से मुक्ति का भी एक उपाय है।”
“लेकिन अमावस्या को तो अभी दो दिन हैं।” - प्रवीण ने कहा।
“हाँ तो तब तक आप सब आराम से यहां रहिए। आपकी खातिरदारी में, मैं कोई भी कमी नहीं रखूँगा। ये मेरा वादा है आपसे।” - विक्रांत ने कमरे की खिड़कियां बंद करते हुए कहा। शाम के तीन बज चुके थे। नेहा विक्रांत की बातों पर मुस्कुराते हुए हॉल के रोशनदान में अंगीठी की आग को तेज़ कर रही थी।
उसी रात दो बजे सभी अपने कमरे में सो रहे थे। लेकिन विक्रांत अपने कमरे में अपने गुलामों को आदेश दे रहा था।
“मुझे महसूस हुआ है। कि मोहिनीगढ़ में कुछ इंसानों का प्रवेश हुआ है। जो हमारे लिए चिंता का विषय है। हम डरते नहीं हैं लेकिन वो हमारी सुरक्षा में सेंध लगा सकते हैं। इसलिए आज रात उन्हें रोक कर मार डालो। जाओ.....!”
“जो हुकुम सरदार.........”
सामने सर झुकाए खड़े रोनित, रजनीश, निकिता और दीप्ति ने एक स्वर में कहा।
सबकी आंखों से पीली रोशनी स्फुटित हो रही थी और उनके दाँत नुकीले होकर बाहर निकल आए थे।
क्रमशः Continues...................
बढ़िया कड़ी रही,,, पर कृपया शीघ्रता से प्रकाशित किया करें!!!!☺️☺️
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