TOWN OF DEATH Chapter_Two
Town of Death chapter_Two
अध्याय ~१ से क्रमशः.........
अध्याय ~ ०२
(mystery_Continue)
✍🏻By ~ Mr. Sonu Samadhiya Rasik (SSR)
अगले दिन शाम के ३ बजे..
यूनिवर्सिटी के छात्र और प्रोफेसर की एक रिसर्च टीम जिसमें सभी आर्किलोजिस्ट थे। वो अपने प्रोजेक्ट के लिए अपनी कार से एक हिस्टॉरिकल प्लेस से होकर वापस लौट रहे थे।
इत्तेफाक से वह मोहनीगढ़ के रास्ते से गुजर रहे थे।
कोहरे के कारण धूप मटमैली सी थी, जिससे सर्दी में कोई बदलाव नहीं आया था।
सभी अपने अनुभवों को शेयर करने में व्यस्त थे। तभी उसमें एक लड़की दीप्ति ने अपने कानों से ईयर फोन निकाला और अपनी दोस्त नेहा जो कार की खिड़की से बाहर देख रही थी, उसे कोहनी मारते हुए कार के बेक साइड वाले शीशे की तरफ इशारा किया। और मस्ती भरे अंदाज में फुसफुसाती है कि - "देख नेहा! वो बुड्ढा प्रोफेसर तुझे कैसे घूर रहा है?"
"तु न, अपनी घटिया सोच अपने तक ही सीमित रखा कर। समझी न। कुछ भी बोलती है। वो हमारे रेस्पेक्टेबल फेवरेट प्रोफेसर हैं।" - नेहा ने झल्लाते हुए कहा।
"अच्छा।"
"हाँ।"
"अबे! नशेड़ी औरत तु शांत रह। नेहू को देखने का हक़ सिर्फ मेरी आँखों को है बस।" - रोनित ने मज़ाक के लहजे से कहा।
" शट अप ओके।"- नेहा ने इग्नोर करते हुए कहा।
" नशेड़ी किसे बोला तु, वैसे भी मैं जो भी करूँ। तुझे क्या करना। तेरा क्या जा रहा है, हाँ। "-दीप्ति ने चिढ़ते हुए कहा।
" ओ कम ऑन रोनित! क्यूँ परेशान कर रहा है नेहा को। जबकि तुझे पता है कि अब तक उसने तुझे घास नहीं डाला। अब ट्राइ करने से क्या फायदा। किसी और को देख। और हाँ तु दीप्ति यार शांत रह प्रोफेसर सुनेंगे तो उन्हें बुरा लगेगा न कुछ तो सोच लिया कर यार।" - बीच में बैठी निकिता ने समझाते हुए कहा।
" अरे! निकिता यार! ये दिल नहीं मानता न क्या करूँ।"- पीछे बैठे रोनित ने अपने सीने को सहलाते हुए कहा।
" गाईस! वो देखो सामने मोहनीगढ़ कस्बे के नाम का बोर्ड लगा है। यह वही मोहनीगढ़ है। जिसकी कुछ महीनो पहले एक न्यूज आई थी कि यह कस्बा रातों रात रहस्यमयी तरीके से वीरान हो गया था। या फिर यूँ कहें उजड़ गया। "-पीछे बैठे रजनीश ने बाहर देखते हुए कहा।
"हाँ! यार ये मैंने भी सुना था। क्या हुआ होगा वहाँ?"- निकिता ने जिज्ञासावश पूछा।
" प्रोफ़ेसर! क्यूँ न हम सबको वहां जाकर देखना चाहिए।"- नेहा की मोहनीगढ़ के रहस्य के प्रति उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
" वाओ वाट एन आइडिया!" - रोनित ने बीच में टोकते हुए कहा।
" रोनित! फिर से।"
" ओह सॉरी। आईम रियली सॉरी।"- रोनित ने इतना कहते हुए अपने मुँह पर अंगुली रख ली।
" नहीं नेहा! वह रिस्ट्रक्टेड एरिया है वहाँ हमे जाने की पर्मिशन नहीं है। वैसे भी हमें किसी अपरिचित जगह पर जाने से पहले उसके बारे में सटीक और सही जानकारी कलेक्ट करने के बाद ही जाना चाहिए।"-प्रोफेसर ने बाहर देखते हुए कहा।
सभी बाहर मोहनीगढ़ की ओर जाने वाले रास्ते को देखे जा रहे थे।
लगभग १०० मीटर की दूरी तय करने के बाद कार अचानक एक झटके से बंद हो गई।
सभी कुछ पल के लिए शांत रह गए।
प्रवीण सिंह जो कार प्रोफेसर का लड़का था, वह कार को ड्राइव कर रहा था।
प्रवीण, कार के सेल्फ को बार - बार ट्राइ कर रहा था। फिर भी कार स्टार्ट नहीं हुई। प्रवीण ने गुस्से से कार की स्टेरिंग पर हाथ मारा।
"क्या हुआ? प्रवीण।" - प्रोफेसर ने प्रवीण से परेशान होते हुए पूछा।
"क्या हुआ प्रवीण?" - पीछे बैठे लगभग सभी ने पूछा।
"शायद कार का इंजन गर्म हो गया है या फिर उसमें कोई कमी आ गई है। कार को खोलकर देखना पड़ेगा।" - प्रवीण ने अनुमान लगाया।
"लेकिन प्रवीण यार! हम यहाँ मैकेनिक को कहां से लाएंगे।" - रोनित ने चिंचित होते हुए कहा।
" अगर कोई छोटी खराबी हुई होगी तो मैं खुद ठीक कर दूँगा। आओ बाहर मेरी हेल्प करो।"-इतना कहते हुए प्रवीण कार से बाहर निकल आया।
रजनीश और रोनित, प्रवीण की हेल्प करने के लिए पहुंच गए।
प्रोफेसर राणा भी बाहर जाकर कार का मुआयना करने पहुंच गए।
" नेहा देख टाइम क्या हो रहा है? कहीँ लेट न हो जाए अपुन को!"
निकिता मोहिनीगढ़ की कहानियों से डरने लगी थी।
"अरे यार तू कितनी डरती है। कुछ नहीं होगा। अभी साढ़े चार बजे हैं। चल हम सब बाहर चलते हैं देखते हैं क्या हो रहा है बाहर।" - दीप्ति ने बाहर जाने का मन बना लिया था।
निकिता भी उसके साथ हो ली थी।
" चल नेहू! तू भी चल बाहर मौसम अच्छा है।"-निकिता ने नेहा को बुलाया।
"नहीं यार! बाहर सर्दी बहुत है। दिन भी ढल गया है और इस जगह के बारे में तुझे पता ही है।"
" अबे आ न बाहर। बहुत नखरे करती है। तू जैसे मैं तेरी फ्रेंड नहीं बॉयफ्रेंड हूँ। देख तेरा लवर रोनित तेरा वेट कर रहा है।"- निकिता ने पास खड़े रोनित की ओर मुस्कुराते हुए कहा।
" अब तू मुझे गुस्सा दिला रही है। मुझे नहीं आना बस। तू रह अपने बॉयफ्रेंड रजनीश के साथ ओके।"
नेहा ने कार का गेट बंद कर दिया।
दीप्ति और निकिता हँसतीं हुईं वहां से चलीं गईं।
" चल, निकिता सुट्टा लगातें हैं।" - दीप्ति ने निकिता को खींचते हुए कहा।
"पागल है तू। तुझे पता है न मैं ये सब नहीं करती।"-निकिता ने दीप्ति से अपना हाथ झटकते हुए कहा।
" मैंने कहा तू सुट्टा मार। बस खड़ी रहना मेरे साथ। प्लीज यार बहुत मन कर रहा है।" - दीप्ति ने निकिता से रिक्वेस्ट करते हुए कहा।
"हाँ ठीक है चल। लेकिन ओन्ली स्मोक, नो ड्रग्स ओके।"- निकिता ने दीप्ति को चेताया।
"ओके बाबा। अब चलना।"
दोनों को जाते देख। प्रोफेसर ने उन्हें टोका।
" निकिता और दीप्ति ज्यादा दूर मत जाना। ये जगह हमारे लिए सेफ नहीं है।"
"ओके सर!" - दीप्ति ने कहा।
"दीप्ति तू सुशील राणा सर को बुड्ढा बोल रही थी। लेकिन वो कितने हैंडसम और यंग हैं। वो प्रवीण के पापा कम भाई ज्यादा लगते हैं।" - निकिता ने फुसफुसाते हुए कहा।
" अबे वो 60 प्लस के होंगे। तेरी क्यूँ लार टपक रही है। रजनीश पसंद नहीं आया क्या?"
"शांत रह तू। उससे तो कई गुना अच्छे होंगे जिस प्रोफेसर से तेरा अफ़ेयर चल रहा है। वो क्या बच्चा है बुड्ढा वो है।"
" मेरा किसी के साथ अफ़ेयर नहीं है समझी।" - दीप्ति ने सिगरेट का कस मारते हुए कहा।
"अच्छा बेटा! पूरा कॉलेज जानता है कि तू और वो डाइरेक्टर कैबिन में क्या कर रहे थे।"
" ओ अच्छा वो! वो तो अपने प्रोजेक्ट में नंबर बढ़ाने के लिए था यार। तुझे पता है उसके और मेरे बीच कोई अफ़ेयर नहीं है। वो मुझे ड्रग्स भी लाकर देता है हाफ़ रेट में। कभी कभी फ्री में भी।"-दीप्ति ने मुस्कुराते हुए कहा।
दोनों कार से इतनी दूर जा चुकी थीं। जहां से कार कोहरे के आगोश में समा चुकी थी। केवल उसके इंडिकेटर्स की रोशनी दिख रही थी।
कोहरा और रात का अंधेरा घहराने लगा था।आसपास से कहीं दूर से भेड़ियों और सियारों के रोने की आवाजें आना शुरू हो चुकी थी।
"कौन कहेगा कि हम एक रिसर्च टीम हैं? सबके सब अपने में मस्त रहते हैं।" - प्रवीण ने पास आती दीप्ति और निकिता को देखते हुए कहा।
कार के पास आती दीप्ति और निकिता को पास की झाड़ियों में कुछ हलचल महसूस हुई।
पहले तो दोनों घबरा गईं और एक दूसरे की ओर देखने लगीं। लेकिन फिर भी दोनों ने बिना कुछ बोले वहां से भागने की कोशिश नहीं की बल्कि दोनों के कदम झाड़ी की ओर बढ़ गए।
पास जाने पर दीप्ति और निकिता को किसी जानवर के गुर्राने की भी आवाज सुनाई दी। जैसे कोई जानवर एक दूसरे से लड़ रहे हों।
दीप्ति और निकिता के लिए इतने में ही माहौल बहुत डरावना हो चुका था।
दोनों यहीं तक नहीं रुकीं।
जब उन्होने झाड़ियों में झाँक कर देखा। तो वहाँ से दो सियार दीप्ति और निकिता को देख कर भाग खड़े हुए और दूर जाकर खड़े होकर उनकी ओर देखने लगे।
झाड़ी से आ रही असहनीय दुर्गंध से दीप्ति और निकिता का मन मिचलाने लगा। वह दुर्गंध किसी जानवर के सड़े हुए गोश्त की थी। जिसे सियार खा रहे थे।
दीप्ति और निकिता ने अपनी नाक और मुँह ढँक लिए।
दीप्ति ने मुड़ कर कार की ओर देखा तो सब कार को ठीक करने में व्यस्त थे और नेहा कार के अंदर बैठी मोबाइल में कुछ देख रही थी।
तभी निकिता जोर से चीखी।
दीप्ति ने निकिता के पास जाकर देखा तो निकिता स्तब्ध खड़ी बिना पलक झपकाए झाड़ियों की ओर देख कर कांप रही थी।
दीप्ति ने बिना कुछ कहे झाड़ियों की तरफ देखा तो उसकी रूह कांप उठी। जिससे उसके कदम खुद व खुद पीछे हट गए।
दीप्ति, निकिता को लेकर जाने के लिए जैसे ही मुड़ी तो सामने से......
बाकी के सब लोग निकिता की चीख सुनकर वहां पहुंच चुके थे। कार अभी तक ठीक नहीं हुई थी।
"क्या हुआ? निकिता! तुम इतनी जोर से क्यूँ चीखी। सब ठीक तो है न।" - प्रोफेसर राणा ने चिंचित होते हुए पूछा।
"क्या हुआ निकिता! कुछ तो बोलो?" - रजनीश ने परेशान होते हुए पूछा।
वहाँ खड़ी दीप्ति ने अपने हाथ का इशारा झाड़ियों की तरफ किया तो सभी सहम गए कि आखिरकार दोनों ने वहां ऎसा क्या देख लिया था। जिससे वो दोनों इतनी डर चुकी थीं।
सभी सावधानीपूर्वक झाड़ियों की तरफ बड़े।
वहाँ जाकर सभी ने झाड़ियों के बीच एक खून से लथपथ एक इंसानी हाथ देखा। जिससे बेहद बुरी दुर्गन्ध आ रही थी। उस इंसानी हाथ पर सेकड़ों कीड़े बिलबिला रहे थे।
जो देखने में बहुत ही घृणित था। सभी के चेहरे पर रुमाल थे।
रोनित ने एक लकड़ी की सहायता से उस हाथ को पलट कर देखा तो सभी हैरान रह गए। क्यों कि उस पर धनीराम नाम गुदा हुआ था।
"सर। शायद ये वही इंसान का हाथ है, जिसके बारे में न्यूज में सुना था। सुराईपुर में कल रात से बेनीराम और धनीराम नाम के दो व्यक्ति गायब हैं।कहीँ ये वही तो नहीं है?....." - नेहा ने कहा।
"लेकिन ये तो मोहिनीगढ़ है.... ।" - प्रवीण ने असमंजस में कहा।
"चलो गाइस! अब हमें यहां से जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी निकल जाना चाहिए। पता नहीं क्यूँ मुझे यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा।"- नेहा ने घबराते हुए कहा।
" हाँ! तुम सही कह रही हो नेहा!" - प्रवीण ने सहमति जताते हुए कहा।
जैसे ही सब जाने के लिए कार की ओर आगे बढते हैं। तभी कार की सिक्यूरिटी बीप सुनाई देती है तो सभी कार की ओर दौड़ पड़ते हैं।
लेकिन कार के पास पहुंचने से पहले कार के काँच के टूटने की तेज़ आवाज सुनाई देती है।
जब सभी लोग कार के पास पहुंचे तो देखा कि कार को किसी ने पूरी तरह से देमेज कर दिया है। उसकी लाइट्स, मिरर सभी को तहस-नहस कर दिया है।
"ओह सिट!.." - प्रवीण दौड़कर कार के पास पहुंच गया।
सभी कार को देखते हैं कि कार की बॉडी पर खरोचने के निशान बने हुए हैं। जैसे किसी ने तेज़ नुकीले हथियार से बॉडी को खरोचा है।
"अब हम कहाँ जाएंगे यार? मुझे बहुत डर लग रहा है रजनीश। कहीँ कोई हमें मार न डाले।" - निकिता ने हङबङाते हुए कहा।
"कोई तो है। जो हमें रोकना चाह रहा है। उसकी इस हरकत से ये साफ़ मालूम होता है कि उसके इरादे हमारे लिए नेक नहीं है। कोहरा भी ज्यादा हो रहा है किसे कहाँ और कैसे ढूंढे?"-रोनित ने सोचते हुए कहा।
क्यों कि ऎसी स्थिति में दिमाग से ही काम लेना चाहिए।
पश्चिम में सूर्य की लालिमा अँधेरे की कालिख में घुलती जा रही थी। विस्तृत क्षेत्र अब कोहरे और रात के अंधेरे में सिमटते जा रहे थे। रही कसर मौत के डर ने पूरी कर दी थी।
भेड़ियों और सियारों की आवाजें अब नजदीक सुनाई देने लगी थीं।
अब शीत लहर भी हल्की हल्की बहने लगी थी। जिससे सभी का बुरा हाल था।
"सभी कार से जितना बचा हो उतना सामान उठा लो। हमें तुरंत यहां से निकल जाना है। क्योंकि ये जगह हमारे लिए सेफ नहीं है। इस इलाके में कई मौतें हो चुकी हैं।" - प्रोफेसर राणा ने सभी को चेताया।
कार में इलैक्ट्रिक चीजों के अलावा कुछ नहीं बचा था। सभी खाना भी वहां से गायब था।
सभी तुरंत उस जगह से निकल गए। तभी सभी को कार के टूटने की आवाजें सुनाई देने लगी। जैसे कई लोग मिलकर कार को तोड़ रहे हों।
" सर! ऎसे हम कब तक चलते रहेंगे? कोई तो सेफ जगह ढूंढनी पड़ेगी न। ये जगह भी हम सबके लिए अपरचित है। हेल्प के लिए बाहर से किसी को बुलायीये न।" - दीप्ति ने रूमाल से अपने चेहरे पर जमी कोहरे की बूंदों को साफ करते हुए कहा।
"मैंने अपने यूनिवर्सिटी में हेल्प के लिए कॉल किया था लेकिन यहां मोबाइल के नेटवर्क ही नहीं हैं।"-प्रवीण ने कहा।
" सर........ ।"-पीछे चल रही नेहा ने आवाज लगाई।
सभी शांत हो गए। सबने पीछे मुड़कर देखा तो पीछे से कोहरे के अंधेरे से किसी जानवर की आवाज सुनाई दे रही थी।
" लगता है कोई हमारा पीछा कर रहा है?"-नेहा ने पास आकर धीरे से कहा।
सबने देखा कि एक आकर मे बड़ा भेड़िया सबको घूर रहा था। जो सबने अपनी जिंदगी में न तो देखा था और न ही किसी किताब में पढ़ा था।
जैसे ही वो भेड़िया अपने चार पैरों से दो पैरों पर खड़ा हुआ तो सभी सीधे रास्ते पर बेतहासा दौड़ने लगे।
वह भेड़िया भी उनका पीछा करते हुए कुछ मीटर तक अपने दो पैरों पर दौड़ा और फिर चार पैरों से।
अंधेरा चारों तरफ़ अपने पैर पसार चुका था। शाम के ७ बज चुके थे। सभी एक दिशा में दौड़े जा रहे थे। तभी सभी को एहसास हुआ कि वो भेड़िया अब उनका पीछा नहीं कर रहा है।
वास्तव में अब उनके पीछे कोई नहीं था। सभी की सांसे फूल चुकीं थीं। सभी ने एक लंबी साँस ली।
"ये बला क्या है सर। ये जानवर मैंने पहली बार देखा है? कौन सा जानवर है ये सर। जो इतना बड़ा और ताकतवर है।" - रोनित ने जिज्ञासावश पूछा।
"मुझे इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। बस मुझे इतना पता है। इस जानवर का वर्ताव और शरीर की बनावट एक भेड़िये से मेल खाती है। बस।"
" लेकिन ये तो दो पैरों से भी चलता है?"-नेहा ने कहा।
" श्श्श्श......!"
प्रवीण ने सभी को शांत रहने का इशारा किया। सभी को अपने पीछे से किसी के गुर्राने की आवाज सुनाई दी जो बहुत नजदीक से आ रही थी।
सभी ने पीछे मुड़कर देखा तो एक बेहद खूंखार दिखने वाला भेड़िया सबके सामने खड़ा था।
उसकी आँखों में हैवानियत साफ दिख रही थी। वह हमले की योजना में था।
प्रोफेसर ने सभी से शांत रहने का और न भागने इशारा किया।
लेकिन दीप्ति इस बात को डर से इग्नोर करके जैसे ही भागी तो हमले के लिए तैयार भेड़िये ने उस पर छलांग लगा दी।
इसके साथ ही........
गोली की आवाज़ भी सुनाई दी। वह भेड़िया दीप्ति को काटता तब तक गोली उसके सिर को पार कर चुकी थी।
वह भेड़िया वहीं ढेर हो गया।
सभी ने पीछे मुड़कर देखा तो वहां पर एक आदमी बंदूक को भेड़िया की तरफ टार्गेट करके खड़ा था।
सभी वहां एक आदमी को देख कर खुश होने के साथ हैरान थे। सभी उस अजनबी के पास पहुंच जाते हैं।
"हम सभी की जान बचाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद भाई।" - प्रवीण ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा।
"कोई बात नहीं, ये मेरा फर्ज़ है। आज कई दिनों बाद एक साथ इतने आदमियों को देख कर मुझे अच्छा लगा।" - उस अजनबी ने अपनी बंदूक को अपने कंधे पर रखते हुए कहा।
"थैंक यू यार।"-दीप्ति ने उसके पास आते हुए कहा।
" आप सब हमारे साथ चलिए। आप सभी को मेरे साथ चलना चाहिए। जिससे पहले मरे हुए भेड़िये के साथी आकार हमें अपना शिकार बना लें।"-उस अजनबी ने सभी को समझाते हुए कहा।
"नहीं आपको मेरे साथ चलना चाहिए। हम आपको अपने साथ अपने शहर ले जाएंगे। सबसे बड़ा खतरा हम सभी को मोहिनीगढ़ से है। हमें उसकी सीमाओं से दूरी बना कर रहना है जिससे हम सभी सेफ रहेंगे।"-प्रोफेसर राणा ने उस व्यक्ति को समझाया।
"हाहाहाहा... अरे। साहब। आप भी न बड़े नादान हैं। अभी आप जिस जगह खड़े हैं वहां से अब कोई जिंदा बाहर नहीं जा सकता। क्योंकि आप अभी जहां खड़े हो वह मोहिनीगढ़ ही है।"-उस अजनबी ने हंसते हुए कहा।
सभी के मुँह से एक साथ आश्चर्य से एक शब्द निकला।
"क्या???.......... "
क्या होगा आगे आपको पता है?
क्या सभी मोहिनीगढ़ जैसे रहस्यमयी जगह में सर्वाइव कर पाएंगे?
आख़िरकार क्या है मोहिनीगढ़ का रहस्य?
जानने के लिए जुड़े रहिए मुझसे....
क्रमशः..........................
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