Town of Death chapter_Seven


                     (अध्याय - ०७) 

                  Who's VIKRANT.....? 


By - Mr. Sonu Samadhiya Rasik 







भाग - 06 से आगे.......... (भाग - 07)

“नहीं... मैं वेयरवुल्फ़ नहीं हूँ। मुझे बस एलर्जी है। वैसे आपको मुझे या फिर इस जगह को देख कर कुछ याद आया?”

“यहाँ मैं पहली बार आई हूँ, दूसरी बार नहीं जो कुछ याद आए। वैसे तुम्हें देख कर मैं सेफ फील कर रहीं हूँ, जबकि तुम इंसानी शक्ल में एक आदमखोर नर - भेड़िये भी हो सकते हो? यार तुम क्या हो तुम? इंसान तो नहीं हो तुम इतना तो मुझे पता है। क्योंकि ऎसे खंडहर में और नर-भेड़ियों के बीच कोई आम इंसान तो नहीं रह सकता।"- नेहा ने खंडहर पर नजर डालते हुए कहा।

शौर्य ने कोई जवाब नहीं दिया।

नेहा ने लकड़ियों के ढेर की आग को तेज करने में मगन शौर्य को गौर से देखा। दिखने में तो शौर्य एक बेहद खूबसूरत राजकुमार जैसा लग रहा था। “लंबी - चौड़ी कद - काठी का लड़का नर - भेड़िया भी हो सकता है क्या?”-नेहा को यह प्रश्न सोचने पर मजबूर कर रहा था। 



“शायद कोई आ रहा है? आपको मेरे साथ चलना चाहिए। जिससे आप सर्दी और भेड़ियों से सुरक्षित रहें।” - शौर्य ने नेहा के करीब आते हुए कहा। 
वह चौकन्ना हो कर खंडहर के दरवाजे को घूरने लगा।

“कौन है? मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकती, मुझे अपने दोस्तों के पास जाना है? वैसे भी तुम अपने बारे में कुछ बता नहीं रहे हो?मैं किसी अनजान व्यक्ति पर भरोसा नहीं कर सकती।"


तभी नेहा के कानों में दीप्ति, प्रवीण और विक्रांत के पुकारने की आवाज पड़ी। जबाब में जैसे ही नेहा कुछ बोलती, तब तक शौर्य ने उसका मुँह अपने हाथ से बंद कर दिया।

" श्श्श्श्श्श........! शांत रहो। मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है। बस तुम बोलना मत।प्लीज।"

नेहा ने इशारे में सहमति जताई। शौर्य ने अपना हाथ नेहा के मुँह से हटा लिया।

"इतनी फुर्ती..... गजब? क्या हो तुम?"-नेहा ने लंबी साँसे लेते हुए पूछा। 

“पहले ये लो कंबल इससे अपने शरीर को ढंक लो। यहाँ सर्दी काफ़ी है।जो आपको मार भी सकती है। माफी चाहूँगा, गुस्ताखी करने के लिए।” 


शौर्य ने पास जल रही आग को तेज करते हुए अपनी बात को जारी रखा। 

“आपने सही कहा मैं आम इंसान नहीं हूँ और न ही मैं वेयरवुल्फ़ हूँ। मैं आपकी तरह शापित हूँ और मैंने आपको बोलने से इसलिए रोका क्योंकि आसपास मुझे किसी नर - भेड़िये की मौजूदगी महसूस हुई थी और साथ ही में इसका दूसरा कारण यह है कि मैं नहीं चाहता मेरे बारे में कोई जाने।”


“क्यूँ....??”


“हाँ! और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है। कि आप सब की जान को खतरा है। संभल के रहना, एक बात अपने जहन में रखना कि मोहिनीगढ़ में कोई भी जीव या फिर इंसान जिंदा नहीं रह सकता।”

दीप्ति और प्रवीण की आवाजें पास आती हुईं सुनाई देने लगी थीं।


“विक्रांत! वो सामने कौन सी जगह है?” - प्रवीण ने खंडहर की ओर इशारा करते हुए कहा।

“लगता तो कोई खंडहर जैसा है।”-प्रोफेसर ने कहा। 

“वही जगह बची है। चलो! वहां पर नेहा को ढूँढते हैं। एक घंटे में सूर्यास्त होने वाला है। गॉड प्लीज नेहा वहीं हो!"- दीप्ति ने प्रार्थना करते हुए कहा। 

सभी लोग उस वीरान पड़े खंडहर की ओर बढ़ने लगते हैं। प्रवीण की नजर विक्रांत पर पड़ी। जो वहीं खड़ा था। 

“विक्रांत तुम साथ नहीं चल रहे क्या?” - प्रोफेसर ने पूछा। 

“न... नहीं, आप लोग जाइए। मैं यहीं आसपास नेहा को ढूंढता हूँ और यहां से मैं आप सब पर नजर भी रख सकूंगा।” 

“ठीक है!” 

चारों तरफ़ सूर्य की लालिमा बिखरने से सूर्य अस्त होने का संकेत मिल रहा था। कोहरा और शीत लहर शरीर को छेदने को तत्पर प्रतीत हो रहे थे। 
लंबी - लंबी घास पर जमी ओस की बूँदें, शरीर के नीचे वाले हिस्से को भीगा चुकी थी। 
सभी दबे पाँव और चौकन्ने आगे बढ़ रहे थे। 


“क्या कहना चाहते हो तुम? हम सबकी जान को खतरा है और कोई भी इंसान जिंदा नहीं रह सकता मोहिनीगढ़ में। अगर यहां कोई इंसान जिंदा नहीं रह सकता तो तुम और विक्रांत कौन हो?” 
नेहा असमंजस में पड़ चुकी थी। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। 

“मेरी बात सुनो पहले ध्यान से। इससे पहले की आपके साथी यहां आ जाएँ। आपके हर सवाल का जवाब आपको विक्रांत के बंगले के नीचे बने तहखाने में मिल जाएगा। लेकिन ध्यान रखना ये बात विक्रांत को पता नहीं चलना चाहिए। और सबको यह भी पता नहीं होना चाहिए कि आप मुझसे मिली थीं।” 

शौर्य खंडहर में बाहर से आ रहीं आवाजों को देखे जा रहा था और साथ ही मैं नेहा को समझाता जा रहा था। शायद वह अपनी पहचान सभी से छिपा कर रखना चाहता था। बस नेहा को छोड़कर। इसी दौरान नेहा की नजर शौर्य के कन्धे पर पड़ी। जहाँ उसके बहुत बड़ा घाव बना हुआ था। 

“तुम्हारे कंधे पर घाव...........?” 


“वो सब ठीक है, बाद में बताऊंगा, मेरी बात याद रखना। और हाँ, अगर आगे हालात ज्यादा बिगड़ते नजर आएं तो मुझे बुला लेना। काश आप मुझे पहचान पाती.............!” 

“मतलब...??” 

“नेहा तुम यहाँ क्या कर रही हो?” 
नेहा ने देखा कि दीप्ति उसकी ओर आ रही है। साथ ही प्रोफेसर राणा और प्रवीण थे। 

नेहा को आश्चर्य हुआ। कि शौर्य को देख कर किसी ने कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दी। नेहा ने पलट कर शौर्य की ओर देखा तो शौर्य वहां पर नहीं था। 

“विक्रांत कहाँ है? वो तुम्हारे साथ नहीं आया क्या?” 


“आया है लेकिन वह बाहर से हम सबको प्रोटेक्शन दे रहा है। वैसे तू यहां क्या कर रही है वो भी अकेली।” - नेहा ने अपने हाथ सेकते हुए कहा। 


“नेहा तुमको पता है कि यहां खतरा बहुत है। फिर भी तुम बिना बताये अकेली इस खतरनाक जगह पर आग जलाए बैठी हो। सूर्य भी अस्त होने वाला है।” - प्रोफेसर राणा ने नाराजगी जाहिर की। 

“सॉरी सर।” 

“सॉरी वॉरी रहने दे। अब जल्दी विक्रांत के बंगले पर चल। वैसे ये ब्लैंकेट तू अपने साथ लेकर नहीं आई थी, कहाँ से आया ये?” - प्रवीण ने कहा। 

“ये तेरे कपड़ों को क्या हुआ?” - दीप्ति ने नेहा के गंदे और फटे हुए कपड़े को देख कर कहा। 

“गिर गई थी!”  
इतना कहकर नेहा, अपना सर पकड़ कर बैठ गई। उसके सर में तेज़ दर्द और कुछ देर पहले उसके साथ घटी घटना घूमने लगी। 

“तुम ठीक तो हो न, नेहा?” - प्रोफेसर ने चिंता जताई। 

“हाँ, बस थोड़ा सा सर भारी हो रहा है।"

“दीप्ति, नेहा को संभालो। नेहा ठीक नहीं है। उसे आराम की जरूरत है।” - प्रोफेसर ने कहा। 

“हमें, नेहा को जल्दी से बंगले पर ले जाना होगा?” - प्रवीण ने नेहा को संभालते हुए कहा। 
नेहा, अब लगभग अचेत हो चुकी थी। 



दरवाजे के खुलने की तेज़ आवाज से निकिता की आँख खुल गई। उसने दरवाजे की ओर देखा तो वहाँ कोई नहीं था। बस चारों ओर शांति और हल्की सी धुंध छाई हुई थी। 
गर्दन के घाव के दर्द और हाथ पैर बंधे होने के कारण निकिता खुद को मूव करने में असहज महसूस कर रही थी। 



कुछ सेकंड तक कोई आहट न पाकर और चारों तरफ फैली अजीब सी खामोशी ने निकिता की दिल की धड़कने बढ़ा दीं। 


अचानक... निकिता के दिमाग में कुछ आया। उसने तुरंत पास ही कुछ दूरी पर लेटे रोनित और रजनीश की ओर देखा। 
दोनों को लेटा हुआ। देख कर निकिता ने अपनी को शिथिल करते हुए एक लंबी साँस ली और कुछ सेकंड के लिए अपनी आंखे बंद कर लीं। क्योंकि रोनित अभी तक बेहोश था। 

सहसा निकिता की आंखे खौफ से फटी रह गईं क्यों कि एक अजीब सी आहट ने कमरे में किसी और की मौजूदगी का अहसास कराया। 

उसने डरते हुए नेहा को आवाज लगाई - “नेहा क्या तुम हो?” 

कमरे में से कोई जबाब नही आया। 
निकिता की छटपटाहट बढ़ती ही जा रही थी।
उड़ते हुए पर्दे अब निकिता को डरा रहे थे। 

तभी तेज़ हवा के झोंके ने एक खिड़की का काँच तोड़ कर बाहर के कोहरे को कमरे में दाखिल कर दिया। 
निकिता मौत के खौफ से रोने लगी। खिड़की से आती हुई ठंडी हवा कमरे के तापमान को लगातार गिरा रहीं थीं। 

डर से निकिता की चीख निकल पड़ी। डर उसके सब्र से पार जा चुका था। 


“ सम्बडी हेल्प मी......! हूँ हूँ हूं... ।” 


निकिता डर से रो रही थी। लेकिन उसकी सुनने वाला वहां कोई भी नहीं था। 

सूर्य, कोहरे के कारण डूबा हुआ, प्रतीत हो रहा था। भेड़ियों की आवाजों ने एक भयावह स्वप्न रूपी रात्रि का उद्घोष कर दिया था। 
देह को चीर देने वाली कड़ाके की ठंड में भी डर से निकिता के पसीने आ रहे थे। सारा बदन कांप रहा था। 
वह रस्सियों से बंधे खुद के हाथ - पांव को छुड़ाने का प्रयास कर रही थी। 
निकिता की पुतलियाँ अस्थिर थीं। वह उस चौथी चीज़ से वाकिफ़ होना चाह रही थी, जो अभी उसके कमरे में दाखिल हुई थी। 


तभी अचानक धड़ाम से उस कमरे का मुख्य दरवाजा बंद हो गया। जिसे कुछ क्षण पहले किसी ने खोला था। 

गेट बंद हो जाने की वजह से कमरे में अंधेरा और गहरा गया। उसी स्याह अंधेरे में कमरे में रखीं सारी मॉमबत्तियाँ स्वतः दीप्तिमान हो उठीं। 

निकिता बार - बार रजनीश और रोनित की ओर देख लेती थी। कहीं वो जाग न जाएं। 
कमरें में अब शांति थी। क्योंकि जिसने भी मॉमबत्तियाँ जलाईं थीं, उसने, उन्हें बुझने से बचाने के लिए पहले से ही खिड़कियों और दरवाजे को बंद कर दिया था। 

निकिता को अपनी धड़कनों और सांसों की आहट के सिवाय कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। 

सहसा निकिता को अपनी रजाई नीचे की ओर खिसकती हुई, महसूस हुई तो उसने चीखना चाहा परंतु उसकी आवाज डर से उसके हल्क में अटक गई। 
और तभी एक झटके से उसकी रजाई नीचे गिर गई। इसी दौरान निकिता की एक दहशत भरी चीख से पूरा बंगलों गूँज उठा। 


“विक्रांत कहाँ चला गया? दिख नहीं रहा?” -
प्रोफ़ेसर ने खंडहर के बाहर निकलते हुए कहा।


चारों ओर देखने और ढूंढने के बाद भी विक्रांत का कुछ अता पता नहीं चला।

“ऎसे ही हम लोगों की देखभाल करेगा? रात होने वाली और वो हम सबको अकेला छोड़ कर खुद लापता हो गया। ” - प्रवीण ने कहा।



"चलो, हम सब उसके बिना ही बंगलों पर चलते हैं। मुझे रास्ता पता है।" - प्रोफ़ेसर ने आगे बढ़ते हुए कहा।



सभी ने अपने कदम बंगलों की ओर तेज़ी से बढ़ा दिए। प्रोफेसर ने अपनी पिस्तौल ली और लोड कर के आगे बढ़ गए।



निकिता अपनी जिंदगी में पहली बार ऎसे खौफनाक माहौल में जिंदगी का अनुभव कर रही थी। डर से उसके सामने न मर सकने वाली और न ही जी सकने वाली स्थिति उत्पन्न हो चुकी थी।
निकिता छटपटाने के अलावा कुछ और करती कि तभी उसके कानों में किसी बहसी जानवर के गुर्राने की आवाज पड़ी।



निकिता ने रजनीश और रोनित की ओर देखा तो वह दंग रह गई। जिसका उसे डर था वही हुआ। क्योंकि वह गुर्राने की आवाज रोनित और रजनीश की ही थी। वह निकिता के चीखने के शोर से जाग चुके थे। निकिता, उनकी पीली चमक रहीं आँखों में बहसीपन और गुस्सा साफ़ देख सकती थी। दोनों सामान्य नहीं थे। 



निकिता का हाल बेहाल था। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो इस स्थिति में क्या करे। तभी रोनित और रजनीश, निकिता पर झपटने लगे। वो बहुत ही खूंखार हो चुके थे। 


निकिता को खुद के शरीर में डर के साथ ऐठन महसूस हो रही थी। इसके साथ ही वह खुद को पहले से ज्यादा मजबूत और फुर्तीली महसूस कर रही थी उसके गर्दन के जख्म का दर्द भी कम हो रहा था। 


उसी वक़्त रजनीश की रस्सीयां टूट गई और उसने निकिता के ऊपर गुर्राते हुए छलांग लगा दी। जैसे ही उसने निकिता को काटना चाहा तभी निकिता ने हिम्मत करके अंतिम प्रयास किया। 
उसने रजनीश की आंखों में देखते हुए कहा कि - “प्लीज बेबी! मुझे मत मारो। मुझे और खुद को पहचानों। तुम वेयरबुल्फ़ नहीं, मेरा प्यार हो तुम। तुम ऎसा कभी नहीं कर सकते। ये सब तुमसे वेयरबुल्फ़ करवा रहा है।” 


निकिता की बातों को सुन रजनीश रुक गया। रजनीश भलेही वेयरबुल्फ़ बन चुका था। लेकिन वह अपने प्यार निकिता को पहचान रहा था। 


   लेकिन तभी अचानक से शांत रजनीश ने निकिता की आंखों में देख कर फ़िर से गुर्राना शुरू कर दिया। और जैसे ही उसने निकिता को काटना चाहा, उससे पहले निकिता ने चीखते हुए अपनी रस्सीयां तोड़ दीं और रजनीश का गला पकड़ कर नीचे जमीन पर पटक दिया और छलांग लगा कर उसके ऊपर सवार हो गयी। 


  
   रजनीश लगभग परास्त हो चुका था। निकिता ने रोनित की ओर देखा कि उसकी रस्सीयां भी खुलने वाली हैं। तो उसने वहां से भागना ही मुनासिब समझा और बाहर जाने के वह दरवाजे की ओर बढ़ी। कि तभी रजनीश ने उसका पैर पकड़ लिया। 


निकिता ने अपना पैर रजनीश की पकड़ से छुड़ाने के लिए उसके एक लात मारी तो रजनीश खिसकता हुआ दूर रोनित के बेड को तोड़ता हुआ चला गया। 


“वाओ........! इट्स अमेज़िंग!” - इतना कहते हुए निकिता अपने हाथों को झाङती हुई गेट खोलने लगी। 


उसी समय नेहा को अपने पीछे रोनित आता हुआ महसूस हुआ। क्योंकि रोनित अब रजनीश की टक्कर से आज़ाद हो चुका था। 

रोनित हमला करता तब तक निकिता पलटी और “ सॉरी.....!” बोलते हुए एक पंच रोनित को मारा। रोनित भी रजनीश की तरह दूर जा गिरा। 
     
रजनीश को अपने पास आता देख। निकिता ने जल्दी से उस कमरे का गेट बंद कर दिया। और दरवाजे से अपनी पीठ सटाकर खड़ी हो गई और अपने सीने पर हाथ रख कर एक लंबी साँस ली। 


“मुझे क्या हुआ है? ये कुछ अलग और आउटस्टेंडिंग है।” - निकिता मन ही मन बुदबुदाई। 


तभी रजनीश ने गेट को अंदर से जोर से धक्का मारा। तो निकिता डरती हुई वहां से चली गई। बंगलों के अंदर चारों तरफ़ मॉमबत्तियाँ जल रहीं थीं। मॉमबत्तिओं के पीले और हल्के प्रकाश में निकिता को बाहर का रास्ता नजर नहीं आ रहा था। 

निकिता को सामने एक दरवाजा दिखता है। वह उसकी ओर बढ़ती है। जैसे ही वह उस दरवाजे को खोलने के लिए अपना हाथ बढ़ाती है कि तभी पीछे से एक रहस्यमयी और डरावनी आवाज उसे रोक देती है। 

“मुझसे..... मिले.. बिना.... ही.... चली.. जाओगी???”

आवाज सुनते ही निकिता के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसका शरीर डर से एक बार फिर से सुन्न सा पड़ गया। 

निकिता ने डरते हुए पीछे मुड़कर देखा तो सामने एक वीभत्स और डरावने चेहरे वाली औरत को काले धुंए जैसे लिबास को औढ़े हुए थी। उसकी आँखों से सफ़ेद रौशनी स्फुटित हो रही थी। उसके बोलने से उसके मुँह से एक दुर्गंधयुक्त द्रव छलक रहा था। उसकी मौजूदगी से आसपास किसी मरे हुए जानवर की तरह दुर्गंध फैल हुई थी। 


“क्कौन.... हो तुम? मेरे पास मत आना।” 
इतना कहते हुए निकिता जल्दी जल्दी गेट को खोलने की कोशिश करने लगी। लेकिन गेट नहीं खुला। 

वह भयानक दिखने वाली औरत धीरे - धीरे निकिता की ओर बढ़ने लगी। 

“देखो, मैं कह रही हूँ न। मेरी तरफ़ मत आना। मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।” - निकिता ने हिम्मत दिखाते हुए कहा। 
लेकिन ये सब दिखावा था। वह गेट से चिपकी और सिमटी हुई खड़ी थी। 


“हाहाहाहा..... सही कहा तुमने. तुम बिल्कुल मुझ पर गई हो! मुझको भी सब बुरी कहते थे। अब जल्दी से अच्छे बच्चे की तरह मेरे गले लग जाओ...... आओ.....!” 


वह डरावनी शक्ल की औरत भयानक आवाज निकालते हुए निकिता की ओर तेज़ी से बढ़ी। सामने खड़ी निकिता उसको पास आता देख चीख पड़ी। 
निकिता अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को छिपा कर दरवाजे से सटकर बैठ गईं। 


जब कुछ क्षण बाद निकिता ने अपने कांपते हुए हाथ चेहरे से हटाये तो सामने कुछ नहीं था। वो डरावनी औरत वहाँ से गायब हो चुकी थी और सब सामान्य हो चुका था। 

निकिता आहिस्ता आहिस्ता खड़ी हुई जैसे ही वह दरवाजे को खोलने के लिए मुड़ी तो वही डरावनी औरत खड़ी थी। निकिता चीख पड़ी और उल्टे पांव बंगलों के अंदर दौड़ पड़ी।

चारों तरफ़ उसी रहस्यमयी औरत की ठहाके सुनाई दे रहे थे। ये औरत कौन है और कहाँ से आई थी। ये किसी को नहीं पता था। निकिता खुद को बचाने के लिए उस बगलों के नीचे बने तहखाने में पहुंच गई। निकिता ने तहखाने में जाने वाली सीड़ियों के किवाङों को बंद कर दिया और सीड़ियों पर बैठ गई। 


निकिता एक टक तहखाने के गेट की ओर देखे जा रही थी। उसकी आँखों में उस औरत की दहशत साफ़ दिख रही थी। वह बुरी तरह हाँफ़ रही थी। 
अब निकिता ऎसी जगह थी। जहाँ कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। इससे साफ जाहिर होता था। कि वह रहस्यमयी औरत वहाँ नहीं थी। 



कुछ समय बाद निकिता का ध्यान तहखाने के नीचे से आ रही रोशनी की ओर आकर्षित हुआ। 


“तहखाने में रोशनी.....?” - निकिता के दिमाग़ ये विचार कौंधा। “क्या कोई नीचे रहता है? या फिर कुछ........?” 


निकिता खुद से सवाल करते करते तहखाने के नीचे पहुंच गई। 
वहाँ जाकर उसने देखा तो उसकी आँखें आश्चर्य से चौंधिया सी गईं। 

उसे खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था कि ऎसा भी हो सकता है? 

सामने एक चबूतरे पर कुछ मॉमबत्तियाँ जल रहीं हैं और वह चबूतरा जमीन के बीचोंबीच चार छोटे - छोटे खंबों पर टिका हुआ है। चबूतरे पर जादू - टोने की कुछ सामग्री रखी थी। स्पष्टतः वह किसी प्रकार का कोई पूजा स्थल था। 

निकिता ने पास जाकर देखा तो चबूतरे पर एक बहुत पुरानी चमड़े के जिल्द वाली किताब रखी है। उस किताब के उपरी पृष्ठ पर लिखा था - “भेड़िया - मानव विश्लेषणम्” 


वह किताब मोहिनीगढ़ की स्थानीय संकेतात्मक बोली में लिखी गई थी। उस रहस्यमयी किताब के प्रति निकिता की जिज्ञासा बढ़ती चली गई। फलस्वरूप निकिता ने उस किताब के पन्नो को पलटना शुरू किया। पुरातत्ववेत्ता होने की वजह से निकिता को किताब पढ़ने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी। 


निकिता ने जैसे ही किताब का अगला पेज खोला तो उसके आश्चर्य की कोई सीमा न रही। क्योंकि कि पहले पेज पर बने चित्र में जो व्यक्ति था। उसे निकिता जानती नहीं थी। लेकिन दूसरे पेज पर जिसकी तस्वीर बनी हुई थी। वो कोई और नहीं विक्रांत था। 


निकिता, किताब में लिखी विक्रांत की सच्चाई से पूरी तरह से अचंभित थी। यह जानकार निकिता का दिमाग ने जैसे कुछ देर के लिए काम करना बंद कर दिया हो। 
वो कुछ और पढ़ती कि तभी उसके कानों में दीप्ति और प्रवीण की आवाज सुनाई दी। 


“तहखाने में आवाज......?” 


निकिता ने हैरान होते हुए तहखाने को चारों तरफ़ देखा। तभी उसे सामने एक झरोखा दिखा। 
उसने झरोखे से झाँक कर बाहर देखा तो उसे सामने प्रवीण, दीप्ति, नेहा और प्रोफेसर आते हुए दिखे।

“मुझे, सबको इस बंगलों और विक्रांत के बारे में सब कुछ बताना होगा? कि हम सब यहाँ बिलकुल सेफ नहीं हैं।”

ऎसा सोच कर निकिता उस झरोखे से सभी को आगाह करने की कोशिश करने लगी।

“गाईस! यहाँ मत आओ यहां से भाग जाओ। यहां सबकी जान को खतरा है। मुझे यहाँ से निकालो।”

निकिता चिल्लाती रही लेकिन उसकी आवाज बाहर किसी ने भी नहीं सुन पाई।

“क्या हुआ? कोई मदद चाहिए आपको निकिता जी?” - पीछे आवाज आई।

निकिता ने पीछे मुड़कर देखा तो सामने विक्रांत खड़ा था। उसकी आँखे पीली चमक रहीं थीं। इससे जाहिर होता था कि वो अच्छे मूड में नहीं था।

निकिता, विक्रांत को वहां देख कर सकपका गई और उसने किताब को पीछे छिपा लिया।

“कोई मतलब नहीं है, उसे छुपाने का। चलो अब उस किताब को मुझे बापस करो।” - विक्रांत ने निकिता की ओर बढ़ते हुए कहा।


“मेरे पास मत आना। मुझे पता है कि तुम कौन हो?”


“अच्छा बताओ कौन हूँ!”

“तुम एक नर-भेड़िये हो! और तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।”

“क्यूँ?”

“क्यों कि मैं भी एक मानव भेड़िया हूँ और ये किताब सबका तोड़ है। चाहे वह मोहिनीगढ़ का शाप या फिर भेड़िये के काटने का इलाज।”


विक्रांत पलक झपकते ही निकिता के बिल्कुल करीब पहुंच जाता है और उसे दीवार से सटा देता है।

“सुना नहीं... । वो किताब मुझे दे दो।” - विक्रांत ने दाँत पीसते हुए कहा।
विक्रांत का चेहरा, निकिता के चेहरे के बिल्कुल पास था।


तभी निकिता ने विक्रांत को एक जोर का धक्का दिया। तो वह दूर जा गिरा।

“वाह! कोशिश अच्छी थी। लेकिन तुम्हें मेरी ताकत का नहीं पता।” - विक्रांत ने अपने कपड़ों को झाड़ते हुए कहा।


“मैं, तुझे मारकर अपने दोस्तों को इस मोहिनीगढ़ से सुरक्षित बाहर निकालूंगी।”

“तुम बहुत ही नासमझ हो निकिता। तुमको पता है और मुझे पता है कि मैं नर - भेड़िया हूँ। बस इतना ही काफ़ी नहीं है। और किसी को तो इतना भी नहीं पता कि मैं नर - भेड़िया हूँ। किताब बापस कर नहीं तो.......... ।”


विक्रांत, जैसे ही वह किताब छीनने के लिए निकिता के पास जाता है तो निकिता उस पर पंच का वार करती है तो विक्रांत उसका हाथ पकड़ लेता है।


“अब बहुत हुआ..... ।” - इतना कहते ही विक्रांत ने निकिता के गले पर अपने बड़े - बड़े दाँत गढ़ा दिए।
देखते ही देखते निकिता छटपटाते हुए निढाल हो कर जमीन पर गिर पड़ी।
लेकिन विक्रांत अभी तक उसका खून पी रहा था। शायद वह उसे जान से मार देना चाहता था।

तभी पीछे से विक्रांत के कन्धे पर एक नुकीले खूनी नाखूनों वाला काला हाथ आया।


“रुक जाओ विक्रांत..... । मार ही डालोगे क्या? पहचानों इसे इतना सुनते ही विक्रांत ने खून पीना बंद कर दिया और निकिता को छोड़ खड़ा हो गया।
उसने अपना मुँह साफ किया और किताब उठाकर पीछे की ओर मुड़कर देखने लगा।

क्रमशः.........


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                 राधे राधे

टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी कहानी रोमांच बड़ता जाrha हैं अगले भाग का इतजार रहेगा ऐसे बहुत सवाल हैं जो सायद अगले भाग में मिलने
    1.विक्रांत के कन्धे पर एक नुकीले खूनी नाखूनों वाला काला हाथ किसका था
    2. निकिता मे इतनी ताकत कैसे आई की वो अकेली rajnish और रोनित पर भारी पड़ गयी

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Thanks for read my article
🥀रसिक 🇮🇳 🙏😊😊

Best for you 😊

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